हुदहुद / ममता व्यास

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बहुत थक गयी मैं, मुझसे उड़ा भी नहीं जा रहा, अब मुझे वापस चले जाना चाहिए। इन घास के मैदानों को जी भर कर निहार लूँ तो चलूँ। ये सोचकर वो धीरे धीरे नीचे उतरने लगी। वो एक नन्ही चिड़ियाँ थी बादाम जैसा उजला रंग और उसपर काली सफ़ेद सुन्दर रेखाएं थी। उसकी चोंच बहुत नुकीली और घुमावदार थी। वो बहुत सुन्दर चिड़ियाँ थी उसके सर पर एक सुन्दर कलगी थी जिसे वो अक्सर बंद रखती थी ऐसा लगता जैसे कोई पंखा उसने अपनी गर्दन पर बांध रखा हो लेकिन जब वो खुश होकर गीत गाती तो उसका पंखा यानी कलगी खुल जाती, जितनी बार वो उड़कर आकर बैठती उसकी कलगी वाला सुन्दर पंखा खुल जाता, वो नन्ही चिड़िया जो अक्सर खामोश रहती थी, उसे शोर सख्त नापसंद था और जब भी बात करती उसके मुंह से हु ...द...हुद ..हु ..द .की आवाज होती, मानो वो कह रही हो,” खुद .. खुद हाँ खुद से ही बात बस खुद से ही बात ...”

अभी भी वो खुद से खुद ही बात कर रही थी।” मैं आई ही क्यों आखिर यहाँ? उस साधक ने मुझे ही क्यों चुना, गलती मेरी ही थी मैं उस साधक के पास गयी ही क्यों?”

तमाम सवाल खुद से करते हुए वो नन्हीं चिड़ियाँ यादों में खो गयी। उसकी यादों के पन्ने खुलने लगे उस इयाद आया अपना वो पहाड़ जहाँ वो योगी उसे मिला था।

हमेशा की तरह, उस दिन भी सुबह- सुबह वो भूख से व्याकुल होकर यहाँ -वहां कीड़े मकोड़े खोज रही थी। तभी उसे बहुत से कीड़े इक मिटटी के ढेर की तरफ जाते हुए दिखे। चिड़ियाँ उड़कर उस ढेर पर बैठ गयी और अपनी नुकीली चोंच से मिटटी खोदने लगी। थोड़ी देर में उस एपता चल गया ये दीमक की ढूह है। वो बड़े मजे से कीड़े चुन-चुन कर खाने लगी।

उसने बहुत सावधानी से सुना तो उस ढूह के भीतर से सांसों की आवाज आ रही थी। उसने जल्दी -जल्दी उस मिटटी के ढेर से मिटटी हटाना शुरू कर दिया। मिटटी हटाते ही उसकी आखें हैरान हो गयी उस ढेर के भीतर तो कोई साधक साधना कर रहा था।

“ओह, तो ये कोई ध्यानी पुरुष है जिसे इतना भी ध्यान नहीं कि दीमकों ने उस पर ढूह बना ली है” (चिड़िया ने चिंता जताई)।

उस साधक की पूरी देह पर दीमक रेंग रही थी चिड़ियाँ ने अपनी छोटी चोंच से की सहायता से बड़ी मेहनत से एक -एक दीमक को हटाया और सारी मिटटी भी हटा दी। अब वो खुश थी उसने देखा उस योगी की देह सूख चुकी और उसके होठों पर दरारें थी।

चिड़ियाँ, उड़ कर अपनी चोंच में पानी भर लायी और उस योगी पर छींटे मारे।

तन्द्रा भंग होते ही योगी बोला, क्या कर रही हो नन्ही चिड़ियाँ? क्यों मेरी साधना भंग कर दी?

“आप क्या कर रहे है आपको कुछ होश है आपके ऊपर दीमकों ने घर बनाये थे मैंने बहुत मेहनत से उन्हें हटाया है। क्या करते है आप यहाँ छिपकर?” (चिड़ियाँ ने सवाल के जवाब में सवाल उछाल दिया)

"मैं उस परमसत्ता की उपासना कर रहा हूँ अनगिनत बरसों से” (योगी ने स्पष्ट किया)

"क्या उस अज्ञात से मिलने के लिए छिपकर रहना होता है?" चिड़िया ने जिज्ञासा दिखाई)

"हाँ बिलकुल संसार में बहुत शोर है मुझे एकांत में इश्वर खोजना होगा” (योगी बोला)

इस बात पे चिड़िया बहुत जोर से हंसी और मन ही मन बोली।

मुझे तो हर जगह इश्वर दिखते हैं इन्हें क्यों नहीं दिखते?”

“क्या बोली तुम” (योगी मुस्काये)

“कुछ नहीं यही सोच रही थी कि इश्वर तो कण -कण में व्याप्त है फिर उन्हें ऐसे संसार से दूर रहकर, छिपकर खोजने की क्या आवशयकता है? मुझे तो वो इन नदियों, पेड़ों, फूलों और इस मिटटी में भी इश्वर दिखते है” ( चिड़ियाँ एक सांस में सब बोल गयी)

उसकी इस मीठी सी और तर्कपूर्ण बात पर योगी मुस्काये और बोले। "तुमने कितने परिश्रम से मेरी देह से मिट्टी और दीमक को हटाया है। तुम्हारी इस निस्वार्थ भावना और लगन देखकर मैं तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ| मेरे पास एक ऐसा रसायन है जो बंजर धरती को हरा-भरा कर सकता है। सूखे ठूंठ को हरिया सकता है। मुरझाये फूलों में रंग और हवाओं में सुगंध भर सकता है। मैंने इसे एक मोती में छिपाकर रखा है। आज मैं तुम्हे ये रसायन देता हूँ तुम हिमालय के निचले इलाकों में जाना और वहां सूखे जंगलों को खोजना, जहाँ -जहाँ भी जंगल सूखते दिखे या वनस्पतियों का नाश होता दिखे तुम वहीं रुक जाना। और हाँ याद रहे ये रसायन किसी निस्वार्थी और दयालू पेड़ के कोटर में ही रखना। जो इसे सुरक्षित रख सके।” (योगी ने अपनी बात ख़तम की)

“देखो, योगी मैं बहुत ही नन्ही और कमजोर चिड़ियाँ हूँ मैं ये काम नहीं कर सकती मुझे बस घास के मैदान और मिट्टी में लोटना पसंद है, मैं अपने में मस्त रहने वाली चिड़ियाँ हूँ एक जगह ठहरती नहीं हूँ, हाँ किसी को दुखी नहीं देख सकती और चाहती हूँ सब खुश रहे, आपको दीमकों की ढूह से मुक्त किया इसमे कोई अहसान नहीं किया ये मैंने अपनी ख़ुशी के लिए किया” चिड़िया मन ही मन बुदबुदाई)

योगी उसे देख हंस पड़े और बोले "जब तुम खुद से खुद बाते करती हो, और तुम्हारे मुंह से” हुदहुद” की आवाज आती है।

आज से तुम्हारा नाम हुदहुद होगा। जाओ ये रसायन ले जाओ”

"जाओ, वहां तुम्हें तुम्हारे मन की सभी चीजें मिलेगी घास के मैदान और मिट्टी भी”

“सच में” (चिड़ियाँ ख़ुशी से चिल्लाई) पर मैं ये रसायन कहाँ रखूंगी?

“अपनी चोंच में छिपाकर रखना और रोज सुबह सूरज के उगने से पहले सरे जंगल में इसे छिड़क देना।”

ध्यान रहे, तुम्हारी हर सांस इस रसायन से बंधी हुई है। अगर इसका नुकसान हुआ तो तुम भी जीवित नहीं बचोगी इसे संभालना और कहीं सुरक्षित स्थान पर रखना, । ( योगी ने हिदायत दी) अब जाओ”

चिड़ियाँ खामोश हो गयी और फिर मन ही मन बुदबुदाई” मुझे प्रकृति के लिए मरना पसंद होगा” मेरी सांसे किसी के काम आये, किसी को जीवन मिले इससे सुन्दर कोई बात नहीं हो सकती” योगी बोले” ऐसा ही हो” ( योगी की आखें इस बार नम थी)

चलो हुदहुद अब चले "उस ये नाम पसंद आया था। उसने अपनी कलगी का पंखा हवा में लहराया और चल दी पहाड़ों की दुनिया से दूर मैदानों की दुनिया में।

हुदहुद ने यादों की जुगाली करते हुए कबसे खोये हुई थी तभी पक्षियों का एक समूह उसके ऊपर से शोर मचाता हुआ निकला और जैसे वो नींद से जागी, एक ठंडी साँस भरी और बोली” कितनी मुश्किल से मैं यहाँ आई और अब खोजना होगा कोई पेड़” वो भारी मन से उड़ चली।

उसे शोर पसंद नहीं था, और न समूह बनाने का उसे शौक था लेकिन वो व्यवहार कुशल चिड़िया थी, अपनी चौंच से वो किसी भी वृक्ष में कोटर बनाकर रहना चाहती थी। कई दिनों तक परेशान होकर वो आज थक गयी थी। और वापस अपने देश चले जाना चाहती थी। उसे अब तक कोई ऐसा पेड़ नहीं मिला था जहाँ वो ये रसायन वाला मोती छिपा सके।

वो सोचने लगी” , इतनी थका देने वाली यात्रा के बाद, इतनी भटकन के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला। कभी -कभी जीवन कितना व्यर्थ लगने लगता है, अभी वो खुद से बात कर रही रही थी कि

तभी उसकी नजर एक बहुत बड़े और घने बरगद पे पड़ी और उसकी आखें चमक उठी। पूरा जंगल हर तरफ से सूखा पड़ा था। हजारों पेड़ कटे हुए थे, कंटीली झाड़ियाँ थी कहीं कोई घना पेड़ नहीं था। बस एक वो बरगद था जो बहुत घना था, उसकी मजबूत जड़ें चरों तरफ फैली हुई थी। उसने उस बरगद पर ही अपना कोटर बनाने का निर्णय किया। लेकिन जैसे ही वो बरगद के पास पहुंची उसने देखा उस बरगद की सभी शाखाएं जो यहाँ वहां फैली हुई थी और उन पर अनगिनत पक्षियों ने घौंसले बनाये थे।

अन्य जीव भी उस पर रेंग रहे थे। ये पेड़ है या कोई पानी का जहाज है? इसने कितने पक्षियों को पनाह दी है, उफ़ ..कितना शोर है यहाँ मैं यहाँ नहीं रह सकती ..खुद से बात करते हुए, हुदहुद बुदबुदाई।

ऐसा नहीं था कि हुदहुद को उस घने जंगल में कोई पेड़ नहीं मिला था, कई पेड़ मिले थे लेकिन उसकी नुकीली और मजबूत चौंच का वार कोई पेड़ सह नहीं पाता था, या तो उसे बहुत कोमल तने वाले पेड़ मिले थे अबतक या खोखले तने वाले दोनों ही तरह के पेड़ों पर वो कोटर नहीं बना सकती थी। पर योगी ने कहा था कोई निस्वार्थ और भला पेड़ ही खोजना। ये बरगद कितना व्यवहार कुशल है, इसने कितने पक्षियों को पनाह दी है।

खुद ही खुद बात करती वो चिड़िया अपने सवालों में उलझी जा रही थी। फिर मन नहीं माना और वापस उसी बरगद के पास जाकर रुक गयी| और सोचने लगी, आपकी नियति आपको तयशुदा रास्तों पे लिए जाती है, आप न चाहते हुए भी बार –बार वहीं खिंचे चले जाते हैं। फिर खुद से बातचीत शुरू कर दी उसने ' क्या हुआ जो मैं इतने शोर के बीच रह लू? मुझे क्या करना है उन शोर मचाती भीड़ से मुझे तो एक सुन्दर कोटर मिलजायेगा न

और अभी तक पूरे जंगल छान चुकी हूँ ऐसा सुन्दर पेड़ भी तो नहीं देखा, इस पेड़ पर ही मैं एक सुन्दर और मजबूत कोटर बना सकती हूँ, जहाँ मैं अपने उस रसायन भरे मोती को सुरक्षित रख सकूंगी”

अचानक से उस चिड़ियाँ ने अपनी सुन्दर कलगी फैला कर उसका पंखा बनाया और बरगद पर अपनी चोंच मार दी।

फिर कहा खुद से "आज चिन्ह बनाकर जाती हूँ कल जब सभी ये शोर मचाती चिड़ियाएँ दाना चुगने जाएगी तब इत्मिनान से यहाँ मैं कोटर बना लूगीं” । |

अभी वो चिन्ह बना ही रही थी कि एक धीर गंभीर सी आवाज आई” कौन हो तुम?” ये क्या कर रही हो?”

चिड़ियाँ ने अपनी कलगी घुमाई और देखा वो बरगद बहुत गंभीर सा दिखता था उसकी आवाज किसी गुफा सी आती प्रतीत होती थी।

“मेरा नाम हुदहुद है मैं इक पहाड़ी चिड़िया हूँ, जो बहुत दूर से आई हूँ कई दिनों की मेहनत और खोज के बाद तुम मिले हो मैं अब तुम्हारे भीतर अपना कोटर बनाना चाहती हूँ। इस देश में चौमासा ख़तम हो गया है इसलिए मैं हिमालय छोड़ कर निचले इलाकों के जंगलों में आई हूँ । मुझे खुले और कम घने जंगल पसंद है धूल भरे रस्ते और घास के मैदानों पर मुझे दौड़ना खूब पसंद है पर आज मैं बहुत उदास हूँ मुझे इस स्वर्ग जैसी, मेरे सपनों जैसी जगह को छोड़ कर नहीं जाना है। जब से आई हूँ मुझे एक भी पेड़ ऐसा नहीं मिला जहाँ मैं अपना कोटर बना सके।

बस तुम ही एक ऐसे पेड़ हो जिसके भीतर मैं रह सकती हूँ। मुझे कोटर बनाने दो” चिड़िया ने विनती की)

“कभी नहीं” बरगद की आवाज में सख्ती थी।

“क्यों नहीं?” इतने लोगो को तुमने पनाह दी है, कितने जीव तुम पर डेरा जमाये हुए है। कितनी चिड़ियाएँ घोंसला बनाये हुए हैं फिर मुझे क्यों मनाही है” चिड़िया एक साँस में सब बोल गयी।

“हाँ, मैं कभी किसी पक्षी या जीव को अपने आश्रय में आने से नहीं रोकता। मुझे अच्छा लगता है किसी के काम आना।

किसी की सेवा करना या किसी के काम आना हम सभी का धर्म है, तुम जहाँ चाहो वहां अपना घौसंला बना सकती हो मुझे तुमसे कोई परेशानी नहीं। लेकिन तुम मेरे सीने पे चोट करो, कोटर बनाओ ये मुझे सख्त नापसंद है ऐसी जुर्रत आजतक किसी चिड़िया ने नहीं की है” समझी तुम? (बरगद ने समझाइश दी)

चिड़िया तो जैसे तय करके आई थी अपना लक्ष्य, उसने कहा” आज चिन्ह बनाकर जा रही हूँ कल अलसुबह अपना काम शुरू कर दूंगी।”

“हा हा हा ..बरगद बहुत जोर से हंसा, उसके हंसते ही पूरा जंगल काँप गया ..जानती हो मेरी उम्र कितनी है? चार सौ साल, मेरा तना पहाड़ जैसा कठोर हो चुका है तुम अपनी जान देकर भी मुझमे कोटर नहीं बना सकोगी। इसलिए चली जाओ अपनी नन्ही और बहुत ज्यादा बोलने वाली चौंच का उपयोग मरे हुए कीड़े खाने में किया करो, किसी विशाल बरगद के सीने में जगह बनाने में नहीं, हा हा हा जाओ” बरगद ने अभिमान से कहा।

चिड़ियाँ की आखों में आसूं आ गए उसने फिर खुद से बात की और बोली” कोटर तो बन के ही रहेगा” कल सुबह जरुर आउंगी और उड़ गयी उसका पंखा देर तक हवा में लहराता रहा।

उसके जाते ही बरगद को खुद पर बहुत क्रोध आया” क्यों उसे भला बुरा कहा, क्या बिसात है उस नन्ही चिड़िया के मेरे आगे, पर उसकी हिम्मत तो देखो मेरे भीतर घर बनाएगी, मूर्ख, नादान चिड़िया” (बरगद अपने मानसिक अंतर्द्वंदों में उलझ गया था)

दूसरे दिन, जैसे ही सूरज उगा सभी पक्षी अपने घौसलों से शोर मचाते हुए निकल पड़े, सभी को जाने के जल्दी थी।

बरगद भी उन पक्षियों के जाने के बाद सुकून के साँस लेता था। इस रोज -रोज के शोर से वो भी तंग आ चुका था। ये उसके ध्यान का समय होता था। वो अपनी आखें बंद करके शांति को खुद के भीतर महसूस करने लगा, पूरे जंगल में शांति फ़ैल गयी थी।

तभी बरगद ने आवाज सुनी, ठक-ठक , एक पल को ध्यान भंग होने को था फिर वो ध्यान में खो गया। अबकी बार बिना रुके आवाज आने लगी ...आखें खोलने पर वो नन्ही चिड़ियाँ उसे अपनी चोंच से कोटर बनाते हुए दिखी।

“ओह, मेरे मना करने के बाद भी तुम आ गयी? तुम्हारी इस ठक-ठक से मेरा ध्यान भंग होता है बंद करो ये आवाज” बरगद लगभग चीखा।

“बड़े ध्यानी बनते हो, हमारे पहाड़ों पर तो बरसों से कई साधू संत साधना में लीन हैं उनका ध्यान तो कभी किसी शोर से भंग नहीं होता।

मैंने देखा है, ध्यानियों के ऊपर तो दीमक अपनी ढूह बना लेती है और उन्हें खबर नहीं होती तुम किस तरह के ध्यानी हो मेरी आवाज से ध्यान भंग हुआ जाता है? (चिड़ियाँ चहकी)

चिड़ियाँ की नन्ही चोंच से ऐसी बाते सुनकर बरगद चुप हो गया और सोचने लगा” ये चिड़िया कितनी अनोखी सी है।

ये मुझसे डरती नहीं मेरी ही छाती को बड़ी आसानी से छलनी किये जाती है और मैं इसे रोक भी नहीं पा रहा हूँ। अन्य सभी पक्षी तो मुझसे कितना डरते हैं और आते -जाते पनाह देने का आभार भी व्यक्त करते है लेकिन ये तो बड़ी रहस्यमयी सी चिड़िया है।

इसकी चोंच जितनी नुकीली है, इसकी बातें उससे कहीं ज्यादा मारक हैं ये समझ नहीं आ रहा है की इसकी नुकीली चोंच से मेरे तने पर कोटर बन रहा है या इसकी नुकीली चोंच से या इसकी मारक बातें मेरे दिल में कोटर बना रही है।” बरगद मन ही मन बुदबुदाया।

अगले दिन बरगद चिड़िया का इंतजार करने लगा आज आई नहीं अभी तक, हो सकता है वापस चली गयी हो” हो सकता है उसने इरादा बदल लिया हो, हो सकता है वो अब कभी नहीं आये, क्यों मैंने उसे खरी खोटी सुनाई।

कितनी प्यारी सी थी, मीठी बातें करने वाली, कितना अकेला हूँ मैं चार सौ सालों से एक भी पक्षी या जीव मेरे स्वभाव की वजह से मेरा मित्र नहीं बन पाया। सभी स्वार्थ वश मेरे पास आश्रय लेने आते है मित्रता कोई नहीं करता।

मुझसे बात कोई नहीं करता। ये नन्ही चिड़िया मेरे पास रहना चाहती है मेरे भीतर तो मैं इसे क्यों मना कर रहा हूँ?” मुझे ये भली सी चिड़ियाँ मित्र जैसी क्यों लगी? जो सहज और सरल हो जो बेझिझक होकर हमे हमारे गुण दोष बताये वो ही तो मित्र होते हैं न”

बरगद अब आशा और निराशा में डूब रहा था। उसका ध्यान नहीं गया कि चिड़िया कब से आ चुकी है और अपना कोटर बना भी चुकी है बस अब पूरा होने ही वाला है उसका घर। चिड़िया की जिद, लगन और समर्पण देख बरगद को उस पर स्नेह आ गया।

उसने बहुत ही प्यार से कहा,” “पहली बार खुद को कटते, छिलते देख कर भी ख़ुशी हो रही है|” जवाब में चिड़िया मुस्काई “दोस्तों को भीतर ही रखा जाता है छिपाकर ..तुम्हारा दिल और तना दोनों बहुत बड़े हैं। ‘’

मैं जल्दी ही चली जाउंगी, बस कुछ दिनों के लिए पनाह दे दो और मेरे दोस्त बन जाओ| (चिड़िया ने दोस्ती का हाथ बढाया) बरगद ने हामी भरी।

अब दोनों दोस्त बन गए थे। समय गुजरता जा रहा था। चिड़िया का खुद से बात करना बरगद को बहुत भाता था बरगद उसे हुदहुद नाम से ही पुकारता था।

समय बीत रहा था, नियति कब किसी को चैन से रहने देती है उसे अपना लिखा पूरा जो करना होता है।

उनकी ये दोस्ती उस बरगद पर रहने वाले पक्षियों को फूटी आखं नहीं सुहाती थी। पर बरगद और हुदहुद सभी से बेखबर होकर घंटों बाते करते रहते थे। बरगद ने हुदहुद को कई जन्मो के किस्से सुनाएँ। इतिहास बताये। उसके पास जंगल के इतिहास और रहस्य के किस्से थे। हुदहुद उसके ज्ञान से और समझ से अभिभूत थी। हुदहुद ने बरगद को पहाड़ों की किस्से सुनाये, उसने बताया किस तरह आसमान में रंग बातें करते है। किस तरह फूलों में खुशबू भरी जाती है, किस तरह जीवन को सुन्दर बनाया जाता है। किस तरह प्रेम और दोस्ती की जाती है और निभाई जाती है। ये जीवन एक रंगशाला है, हम सभी का एक अनोखा रंग होता है जब हम किसी दूजे से मिलते है या जुड़ते है तो उसका रंग हम पर चढ़ जाता है”

उसकी बातों को सुनते हुए बरगद बहुत मुस्काता था और कहता तुम्हारी कलगी पर कितने सुन्दर रंग है और तुम्हारी बातों से खुशबू क्यों आती है?

जवाब में हुदहुद जोर से हंसती और कहती” ये रहस्य है, जो मेरे कोटर के भीतर छिपा हुआ है।”

उनकी इन बातों से बरगद पे रहने वाले अन्य पक्षियों को परेशानी होने लगी थी। अब बरगद हुदहुद से ही बातें करता था वो जानता था ये मेहमान चिड़ियाँ है इसे चले जाना है इकदिन ..| इसलिए वो कोई भी पल गंवाना नहीं चाहता था।

हुदहुद, रोज सूरज उगने से पहले पूरे जंगल में जाकर उस मोती को ले जाती और अपनी चोंच से उस रसायन को सभी पेड़ों, नदियों, फूलों और मिट्टी पर छिड़क देती। कई महीनों से ये वो ये कार्य बड़ी सावधानी से कर रही थी लेकिन आज उस दुष्ट चील ने उसे देख लिया था। और पूरे जंगल में ये खबर फैला दी की” ये दूसरे देश की चिड़िया हमारे जंगल के पेड़ पौधों नदियों और रास्तो पर कोई जहरीला रसायन छिड़क रही थी। ये रोज सुबह छिपकर जाती है मैंने खुद अपनी आखों से इसे ऐसा करते हुए देखा है

और इसी ने उस बूढ़े बरगद पर भी कोई जादू कर दिया है| इसलिए आजकल वो किसी से ठीक से बात नहीं करता” (चील ने जहर उगल दिया था)

पल भर में पूरा जंगल उस चील के कहे अनुसार हुदहुद के खिलाफ हो गया।

आखिर में बात बरगद तक पहुंची” हुदहुद, क्या ये चील सही कहती है?” (बरगद के स्वर में दुःख और अविश्वास था)

“नहीं मित्र” (हुदहुद रोने को हुई) तभी चील कोटर में से जाकर वो अनमोल मोती ले आई” यही है वो जहरीला रसायन इसे ये रोज सभी पेड़ों पर डालती है” ये देखो बरगद आज तुम खुद देखो इसके षड्यंत्र (चील लगभग चीखी)

बरगद बहुत हैरान और दुखी था उसने हुदहुद से पूछा ये सब क्या है हुदहुद?” तुम क्यों आई मेरे पास?

“फिर तुमने कोटर क्यों बनाया मुझमे और रोज उसमे क्या छिपाती हो? और जब दोस्ती की कसमे खाती हो तो फिर मुझसे झूठ क्यों बोला? क्यों आई तुम यहाँ हमारे जंगल में? चली जाओ अभी इसी समय”

पूरा जंगल एक स्वर में चिल्लाया” चली जाओ और इसका ये मोती तोड़ दो अभी इसी समय”

और चील ने एक झटके में उस मोती को जमीन पे पटक कर तोड़ दिया, उसमे से वो अनमोल और पवित्र रसायन बहकर मिटटी में मिलने लगा।

इधर हुदहुद की सांसे उखड़ने लगी, उसने अपनी समस्त शक्ति लगाकर बरगद से कहा” दोस्त मैं कोई जहर लेकर नहीं आई थी मैं तो अपने भीतर प्रेम-रसायन छिपाकर लायी थी। जब मैं हिमालय से आई तो सिर्फ यही जंगल मुझे रुखा सूखा और उजाड़ सा दिखा, जहाँ कोई फूल नहीं खिलते तह न खुशबू आती थी न कोई मधुर हवा चलती थी। ये देखकर मैंने यही रुकना मुनासिब समझा।

तुम सिर्फ अकेले ही इस जंगल में भले पेड़ थे, जो सभी को पनाह देते थे, तुम्हारे भीतर परोपकार की भावना मुझे तुम तक ले आई थी। इतनी भीड़ तुम्हारे आसपास थी, इसके बाद भी तुम उदास दिखते थे क्योकिं ये स्वार्थी और एहसान फरामोश पक्षी तुम्हारे दोस्त कभी नहीं बन पाए।

मैंने इसीलिए तुम्हे चुना और अपने रसायन को सुरक्षित रखा।

मैंने तुम्हारे इस बंजर से जंगल को हरियाली से भर दिया है। इस जंगल ने मेरी कभी कदर नहीं की। और मेरे इस पवित्र रसायन को नष्ट कर दिया इसके साथ ही मेरी सांसे जुडी थी। अब मुझे मर जाना होगा। मैं जा रही हूँ लेकिन याद रहे, मुझे जब भी तुम्हारे अपमान, तिरस्कार, विश्वासघात याद आएंगे समंदर में हुदहुद नमक तूफ़ान आयेगा। जो तबाही मचाएगा, प्रकृति का अपमान करने वालों को प्रकृति कभी क्षमा नहीं करती” । (हुदहुद में अंतिम सांस लेते हुए अपनी बात खतम की और अपनी अंतिम उड़ान भरी)

हुदहुद उड़कर समंदर में समां गयी उसकी सुन्दर कलगी वाला पंखा भी बंद हो गया था।

बरगद के पास सिर्फ अफ़सोस रह गया था।

एक बरस बड़ा भयंकर तूफान आया और वो चार सौ साल पुराना बरगद उसमे बह गया।

दुनिया तबसे उस तूफान को हुदहुद कहकर पुकारती है।