हे भगवन / शोभना 'श्याम'

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"बहुत दर्द सह चुका भगवन! अब तो मुक्ति दे दो! अब और सहने की हिम्मत नहीं बची। चार साल हो चुके मुझे, इस नामुराद बीमारी के कारण बिस्तर से लगे। सुन लो प्रभु!"


"हे भगवान! और कितनी सेवा करवाओगे, चार साल हो गए कि अब ठीक होंगे ससुर जी, अब ठीक होंगे। मगर ...मेरी सारी सेवा बेकार जा रही है। बच्चों की परवरिश भी ठीक से नहीं हो पा रही। ... इस सब से तो अच्छा है कि उन्हें अपने पास, हे भगवन!"


"हे भगवान! कब ठीक होंगे पापा? अब तो मेडिकल इंश्योरेंस की लिमिट भी खत्म हो चुकी। पैसा पानी की तरह बह रहा है। बच्चों की पढाई के लिए रखी एफ.डी. भी खुल चुकी। दिव्या भी बाबूजी की सेवा करती कुम्हलाती जा रही है। कब राहत मिलेगी इस सब से? अगर ठीक नहीं कर सकते भगवन, तो कम से कम, उन्हें इस कष्ट से । राम, राम, राम! ये क्या सोच रहा हूँ मैं? मगर ...?"


"उफ़ कितनी गर्मी है ...! आज तो सारी जान निचोड़ ली है। हे भगवान! ठीक कर दो मेरे पापा को, या फिर ...ये हर हफ्ते हालचाल लेने आना । घर, बच्चों की पढ़ाई-सब तलपट पड़ी है । न आओ तो भाभी के ताने सुनो कि वह अकेली सेवा करती है। सगी बेटी को कुछ पड़ी नहीं है। मुझे क्या अपने पापा से प्यार नहीं, लेकिन मेरा घर भी तो मुझे ही, ...हे प्रभु ...!"


"हे भगवान! सुन लो मेरे पति की। यूँ तो सुहाग है मेरे, लेकिन इतने कष्ट उठा रहे हैं ...अब तो देखा नहीं जाता। चार साल हो गए, मैं भी इनकी चारपाई से बंधी हूँ। मंदिर के वह कीर्तन, वह तीर्थयात्राएँ ...सब। हे भगवन! मुझे माफ़ करना ...तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूँ?"