हैप्पी मदर्स डे / कृष्णा वर्मा

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फोन की घंटी बजी देखा तो रमाजी का फोन था, "नमस्कार रमाजी! कहिए कैसी हैं?"

"मैं ठीक हूँ तुम सुनाओ निशा सब कुशल-मंगल?"

"जी बिल्कुल।"

" काफी समय हो गया मिले हुए. बात करने को मन हो रहा था; इसीलिए फोन कर दिया। कहीं तुम खास काम में व्यस्त तो नहीं थीं?

"नहीं-नहीं ऐसा कुछ विशेष नहीं कर रही थी। आपने फोन किया बहुत अच्छा लग रहा है। पहले तो कभी-कभी आप मिल लेती थीं; लेकिन आजकल तो बिलकुल ही घर पर रहने लगीं।"

"बस जब से अनु ने नौकरी के लिए जाना शुरू किया है, मैं गुड़िया के साथ इतना व्यस्त हो गई हूँ कि फुर्सत ही नहीं मिलती। क्यों नहीं तुम ही आ जातीं। आज साथ बैठकर चाय भी पिएँगे और बातचीत भी हो जाएगी।"

"चलिए ठीक है, दोपहर के खाने के बाद आती हूँ।"

करीब चार बजे निशा ने घंटी बजाई, दरवाज़ा खोलते ही रमाजी के मुखमंडल पर खुशी झलक गई, "आओ-आओ निशा बहुत अच्छा लग रहा है मिलकर।"

निशा और रमाजी बैठकर बातचीत करती रहीं बीच में उठकर रमाजी चाय-नाश्ता ले आईं। चाय पीते-पीते बताती रहीं कि गुड़िया के साथ कैसे समय निकल जाता है, दिन का पता ही नहीं चलता।

"आज गुड़िया घर पर नहीं है क्या?"

" घर पर ही है बस अभी थोड़ी देर पहले ही सोई है। आजकल उसके दाँत आ रहे हैं तो चिड़-चिड़ी—सी हो गई है।

निशा ने पूछ ही लिया, "आज आप भी कुछ उखड़ी-उखड़ी-सी लग रही हैं। सब ठीक तो है? तबीयत तो ठीक है ना?"

"हाँ सब ठीक है थोड़ा थक गई हूँ, उम्र भी तो हो रही है। इतना काम अब कहाँ हो पाता है। ऊपर से गुड़िया को दिन भर सम्भालना। आज तो अनु ने हद ही कर दी। घर का काम यूँ ही फैला छोड़कर इतनी जल्दी चली गई कि मेरे उठने का इंतज़ार भी नहीं किया। ऐसा तो पहले कभी हुआ नहीं। इतना भी नहीं कि एक फोन ही कर दे। बस यही सोच मन खिन्न-सा हो गया था। सोचा तुम से ही बातचीत कर के मन हलका कर लूँ। अनु को क्या चिंता, मैं हूँ ना सब काम देखने के लिए."

बातों का सिलसिला अभी ज़ारी ही था कि दरवाज़े की घंटी बजी और उधर से गुड़िया के रोने की आवाज़ आई.

"काफी देर से सो रही थी शायद उठ गई है, रमाजी आप गुड़िया को देखो, दरवाज़ा मैं खोल देती हूँ।"

निशा ने दरवाज़ा खोला सामने अनु खड़ी थी।

"नमस्ते आंटी जी! आप कब आईं?"

"बस थोड़ी देर पहले ही।"

इतने में रमाजी गुड़िया को लेकर आ गईं और बोलीं–

"अरे अनु–आज इतनी जल्दी घर?"

"मम्मी जी, आज से मैंने सोमवार के व्रत शुरू किए हैं। सुबह जल्दी निकल गई थी कि मंदिर दर्शन करके समय से दफ्तर पहुँच जाऊँ। आपकी नींद खराब न हो सो आपको सुबह उठाना उचित नहीं समझा। इसलिए नवीन से कह गई थी कि आप को बता दें।"

हाथ में पकड़ा लिफाफा सासू माँ के आगे बढ़ाती हुई बोली, "हैप्पी मदर्स डे मम्मी जी" ! आज शाम आपको खाने के लिए बाहर ले जा सकूँ; इसलिए ही जल्दी आई हूँ। "

मन ही मन स्वयं को धिक्कारते हुए रमाजी ने उपहार स्वीकार कर बहू को गले से लगा लिया।