‘गंगूबाई’ और ‘गॉडमदर’ काल्पनिक नहीं है / जयप्रकाश चौकसे

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‘गंगूबाई’ और ‘गॉडमदर’ काल्पनिक नहीं है
प्रकाशन तिथि : 05 फरवरी 2022

गौरतलब है कि संजय लीला भंसाली की आलिया भट्‌ट अभिनीत फिल्म ‘गंगूबाई’ एक सत्य घटना से प्रेरित फिल्म है। फिल्म की कहानी में अपने सीधे रास्ते पर चलने वाली महिला को अन्याय से लड़ने के लिए शस्त्र उठाने होते हैं और वह कालांतर में संगठित अपराध गिरोह की सरगना बन जाती है। गोया की अपराध सरगना का अभिनय आसान नहीं होगा। उनके पिता महेश भट्ट ने विविध फिल्में बनाई हैं परंतु उनमें अपराध फिल्मों की संख्या भी कम नहीं है। उनकी श्रेष्ठ फिल्म ‘सारांश’ सबसे अलग किस्म की फिल्म है।

विनय मोहन ने शबाना आजमी अभिनीत फिल्म ‘गॉडमदर’ बनाई थी। उस फिल्म में शबाना आजमी ने हुक्का पीने और नृत्य के सीन भी बड़े विश्वसनीयता से अभिनीत किए थे । ‘गॉडमदर’ में अपराध सरगना शबाना आजमी अभिनीत पात्र का पुत्र एक लड़की को चाहता है। यह प्रेम कहानी खानदानी शत्रुओं के सदस्यों के बीच घट जाती है। ‘गॉडमदर’ सत्य जानकर अपने लाडले पुत्र के एकतरफा प्यार का पक्ष न लेते हुए शत्रु की बेटी का विवाह उसके प्रेमी से करा देती है। इस तरह वह ममता को उदात्त व्याख्या देती है।‘गंगूबाई’ भी सत्य घटना से प्रेरित फिल्म है परंतु इसी तरह कल्पना का तड़का फिल्मों को रोमांचक बनाता है।

शेखर कपूर की ‘फूलन देवी’ फिल्म का भी सिनेमा जगत में विशेष स्थान है। शेखर कपूर ने अन्याय को अपने घिनौने रूप में जस का तस प्रस्तुत कर दिया। वे अपने पात्रों को रोमांटिसाइज करने के साथ बचा ले गए। प्राय: यह जानकर किया जाता है। महिला के खिलाफ किए गए अपराध बहुत कम संख्या में उजागर होते हैं। समाज इस जख्म की ऊपरी मरहम पट्टी करके मुतमइन हो जाता है। लाक्षणिक इलाज सामाजिक व्यवस्था को सुविधाजनक लगता है। स्वतंत्रता संग्राम के समय महिलाओं ने गांधी जी के मार्ग पर चलते हुए लाठियों की मार भी सही और क्रांतिकारियों के साथ भी कुछ महिलाएं रही हैं। फिल्मकार केतन मेहता की फिल्म ‘मंगल पांडे’ में रानी मुखर्जी का पात्र कुछ अलग हटकर था। इतिहास के हर चरण में महिलाओं का योगदान रहा है।

मारिया पुजो के ‘द गॉडफादर’ में सबसे अधिक हृदयस्पर्शी दृश्य यह है कि संगठित अपराध परिवार की एक विवाहित महिला अपने गर्भस्थ शिशु को मार देना चाहती है। वह अपने पति से कहती है कि बड़ा होकर यह भी डॉन कोरलीन परिवार के सदस्य की तरह अपराध करेगा और किसी दिन अचानक कहीं से चली गोली का शिकार होगा। इसके युवा होने पर इसे मरते देखने से बेहतर है कि गर्भ में ही इसे मार दिया जाए। ज्ञातव्य है कि दाऊद इब्राहिम की बहन का बायोपिक पहले ही बन चुका है। दाऊद की बहन अदालत में सफाई देती है कि उसने कभी कोई अपराध नहीं किया। उसके भाई ने जिन लोगों का भला किया था वे स्वयं आकर आदर स्वरूप उसे कुछ देते हैं। उसने कभी किसी हथियार को छुआ तक नहीं है। वह क्या करे कि उसका भाई दाऊद रहता तो पाकिस्तान में है परंतु उसका लंबा साया यहां तक छाया रहता है।

‘गंगू बाई’ और गॉड मदर दोनों के पात्र अन्याय व असमानता की कोख से जन्में हैं। इस फसल को बोना नहीं पड़ता। यह जंगल घास की तरह फैल जाती है और इसमें आम आदमी की सहमति उसे प्राप्त है। हर कालखंड में महिलाओं के साथ अत्याचार हुए हैं। लेखकों और कवियों ने इस पर बहुत लिखा है। सिमोन द बोउआर की ‘सेंकंड सेक्स’ ऐतिहासिक दस्तावेज का महत्व रखती है। कुमार अंबुज ने भी इस पर बहुत कुछ लिखा है। ग्वालियर के पवन करण ने पौराणिक काल से मुगल काल होते हुए आधुनिक काल तक लिखा है। उनके लेखन में महिला जीवन का अर्थशास्त्र जुड़ जाए तो वह अलग ही परिणाम देगा। बहरहाल किसी दिन ‘गंगू बाई’ और ‘गॉडमदर’ बड़ा सामाजिक बदलाव अवश्य लाएंगी।