‘झरे हरसिंगार’ तक की यात्रा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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झरे हरसिंगार' तक की यात्रा

डॉ. सुधा गुप्ता जी के ताँका ,इनके दो अन्य संग्रह में पढ़े थे; लेकिन लिखने की बात मन में नहीं आई. जब इनका स्वतन्त्र ताँका-संग्रह 'सात छेद वाली मैं' पढ़ा तो ताँका-रचना की ओर ध्यान गया। सबसे पहले 'हिन्दी हाइकु' में ताँका का प्रकाशन किया; लेकिन कुछ ही समय में इतने अच्छे रचनाकार सामने आए कि सबको 'हिन्दी हाइकु' में स्थान देना मुश्किल हो गया। इसी बीच रचनात्मक प्रयास मेरे और डॉ• हरदीप कौर सन्धु के ताँका-चोका संग्रह 'मिले किनारे' के रूप में साकार हुआ। आपने ताँका-चोका-हाइगा आदि के व्यापक विस्तार के लिए 23 सितम्बर 2011 को त्रिवेणी की शुरुआत की। इसी बीच डॉ• उर्मिला अग्रवाल के संग्रह पढ़ने का भी अवसर मिला। डॉ• सुधा गुप्ता जी के ताँका ने सभी रचनाकारों को प्रभावित और प्रेरित किया। अत: डॉ• हरदीप कौर सन्धु के साथ-साथ डॉ• भावना कुँअर, रचना श्रीवास्तव, सुभाष नीरव, कमला निखुर्पा, डॉ• जेन्नी शबनम, डॉ•श्याम सुन्दर दीप्ति, डॉ• अनीता कपूर, प्रगीत कुँअर, मंजु मिश्रा, प्रियंका गुप्ता, डॉ• अमिता कौण्डल, मुमताज टी एच खान आदि ने जो रचनाएँ प्रस्तुत कीं, वे विशाल पाठक-वर्ग द्वारा सराही गईं। मेरे और डॉ• भावना कुँअर के सम्पादन में प्रकाशित 'भाव-कलश' ताँका संग्रह में भारत और भारत से बाहर के 29 कवियों के 587 ताँका थे। इसके बाद ताँका के रचना-प्रवाह में 'शब्दों सजी वेदना' (डॉ सतीशराज पुष्करणा) , 'मुखर हुर शब्द' (डॉ मिथिलेशकुमारी मिश्र) , 'मेरे हिस्से का सूर्य' (पुष्पा जमुआर) भी जुड़ गए.

जहाँ तक मेरे रचनाकर्म की बात है, मैं 1986 से हाइकु लिखता रहा हूँ; लेकिन अनियमित रूप से। जो संग्रह मेरी दृष्टि से गुज़रे, काव्य के स्तर पर मुझे निराशाजनक लगे अनुभूति और अन्य माध्यम से डॉ• सुधा गुप्ता, डॉ• शैल रस्तोगी के कतिपय हाइकु पढ़ने का अवसर मिला; जिन्होंने मुझे प्रभावित किया; लेकिन मेरे सामने इनका कोई पूरा संग्रह उस समय नहीं था। जब मुझे 2008 में डॉ•भावना कुँअर का हाइकु-संग्रह 'तारों की चूनर' पढ़ने का अवसर मिला तो मैं अभिभूत हो गया। मैंने कई बार यह संग्रह पढ़ा और हर बार कुछ नए अर्थ खुले। इसी बीच जुलाई 2010 में 'हिन्दी हाइकु' की शुरुआत हुई तो डॉ•हरदीप कौर सन्धु ने अत्यन्त आत्मीय भाव से मुझे इस ब्लॉग से जोड़ा। आज 5 हज़ार से अधिक हाइकु के साथ हिन्दी-जगत का सबसे बड़ा हाइकुकोश है, जिससे 178 रचनाकार जुड़े हैं। इसके विशिष्ट पाठक 11500 और लगभग 50 हज़ार हैं। इसे 78 देशों के देखा जा चुका है। इस कार्य में डॉ• सुधा गुप्ता और डॉ•भावना कुँअर भी नि: स्वार्थ-भाव से जुड़ी हैं। हिन्दी-जगत् में एक प्रवृत्ति सदा रही है, वह है-अपने वरिष्ठ रचनाकारों की उपेक्षा करना और नए रचनाकारों को प्रोत्साहन न देना और साथ लेकर न चलना। आज जब हाइकु, ताँका, सेदोका तक की छोटी-सी सम्पादन-यात्रा पर ध्यान देता हूँ; तो पता चलता है कि अल्प समय में जो रचनाकार जुड़े हैं, उनमें नए-पुराने सभी मौजूद हैं। सभी अपनी काव्य-प्रतिभा और अनुभव-जगत् का बहुत गहराई से अहसास कराते हैं। नए जुड़ने वालों में डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा, सुशीला शिवराण, तुहिना रंजन, कृष्णा वर्मा और डॉ• सरस्वती माथुर की भाषा-सजगता और सौन्दर्य-बोध प्रभावित करते हैं। एक पाठक के तौर पर मैं कहना चाहूँगा कि ताँका के क्षेत्र में जो गुणात्मक कार्य हुआ है, उसके मूल में आदरणीया सुधा गुप्ता जी के साथ मैं अपनी प्रेरक शक्ति के रूप में डॉ• भावना कुँअर और डॉ• हरदीप कौर सन्धु के प्रति आभार प्रकट करूँ तो कैसे करूँ? मैं इनकी आत्मीयता के आगे नि: शब्द हूँ। 'जीवन की किताब' के ताँका की प्रेरणा के लिए मुमताज का नाम कैसे भुलाया जा सकता है। इन सबकी प्रेरणा और आग्रह के कारण ही यह ताँका-संग्रह आप तक पहुँच रहा है।

अग्रज भूपाल सूद जी के सहयोग और उत्कृष्ट प्रकाशन-अनुभव-लाभ 'झरे हारसिंगार' को भी मिला है; इसके लिए हृदय से कृतज्ञ हूँ।

2 सितम्बर, 2012