‘टाइगर’ की शीघ्र वापसी! / जयप्रकाश चौकसे

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‘टाइगर’ की शीघ्र वापसी!
प्रकाशन तिथि :16 सितम्बर 2016


आदित्य चोपड़ा की 'एक था टाइगर' फिल्म का भाग दो बनने जा रहा है और सलमान खान को पटकथा इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने अपनी बहन अलविरा की फिल्म को कुछ माह आगे खिसका दिया है। ज्ञातव्य है कि सलमान खान अपने परिवार को बहुत चाहते हैं और अलविरा तो उनके सारे मुकदमों का काम वर्षों से देखती आ रही हैं। जोधपुर हो या मुंबई सलमान के मुकदमों में अदालत का दरवाजा खुलने से पहले अलविरा वहां मौजूद होती हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आदित्य चोपड़ा की टाइगर पटकथा सलमान खान को बहुत अच्छी लगी। हर देश की एक गुप्तचर संस्था होती है और उसके एजेंट सभी देशों में सक्रिय रहते हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े देशों में ये एजेंट नेताओं और मीडिया में घुसपैठ करते हैं। इनका काम होता है पिछड़े हुए देशों में सांप्रदायिकता की आग को हवा देते रहना। एजेंट राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाते हैं ताकि विकास महज नारा रहे और सचमुच में काम नहीं हो पाए। आर्थिक रूप से पिछड़ापन बनाए रखने के खूब प्रयास किए जाते हैं।

विज्ञान व टेक्नोलॉजी ने अंतरराष्ट्रीय जासूसी की बहुत मदद की है और संचार माध्यम के विकास ने भी इस क्षेत्र को असीमित ऊर्जा दी है। इस तरह की नकारात्मकता पर धन और ऊर्जा का भारी अपव्यय होता है। सैटेलाइट फोटोग्राफी से आप किसी भी घर के चौके तक में झांक सकते हैं और क्या पकाया जा रहा है, यह जान सकते हैं। सकारात्मकता के कामों के लिए बजट ही नहीं बच पाता। हर प्रांतीय सरकार अपने तथाकथित विकास के प्रचार पर जितनी रकम खर्च करती है, उससे सच्चा विकास किया जा सकता है।

सिनेमा के लिए यह विषय बहुत मुनाफे का है, क्योंकि जासूस नायक के लिए अभिनव स्टंट रचे जा सकते हैं और नई जगहों पर शूटिंग करके फिल्म में चकाचौंध पैदा की जा सकती है। नायिका का शरीर सौष्ठव भी प्रदर्शित किया जा सकता है। आदित्य चोपड़ा की 'टाइगर जिंदा है' में कैटरीना कैफ को फिर अवसर मिल रहा है, जिसकी उन्हें सख्त आवश्यकता है। सलमान खान के मन में अपनी पूर्व अंतरंग मित्रों के लिए अपार स्नेह है और वे उन्हें हर मुमकिन सहूलियत व लाभ देना चाहते हैं इस 'देवदास' के मन में 'पारो' और 'चंद्रमुखी' दोनों के लिए स्नेह है। दरियादिली प्रेम का ही बाय-प्रोडक्ट है परंतु नकारात्मक प्रवृत्ति वाले लोग पूर्व प्रेमियों को कष्ट देना चाहते हैं। दरअसल, उन्हें कभी प्रेम था ही नहीं। प्रेम में पड़ने का मुगालता आसानी से पाला जा सकता है। प्रेम में आकंठ डूबे रहना युवा फैशन भी है। प्रेम जीवन दृष्ट देता है, एक उजास पैदा करता है। इसलिए समाज में कुरीतियां व अंधविश्वास फैलाने का व्यापार करने वाले इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। खाप पंचायतों का तो आधार ही प्रेम-विरोध है, क्योंकि उन्हें उसके द्वारा प्रदान किए गए उजास से डर लगता है।

'टाइगर जिंदा है' की शूटिंग विदेशों में की जाएगी और निर्माता उन देशों को ही चुनता है, जहां लंबी शूटिंग की एवज में भारी सब्सिडी मिलती है। कई देशों का नियम है कि निर्माता शूटिंग के लिए खर्च की जाने वाली राशि वहां के बैंक में जमा करे ताकि हिसाब का सही आकलन हो सके। फिल्म यूनिट में अमूमन सौ सदस्य होते हैं, जिनके खर्च व खरीदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था को भारी मदद मिलती है। इसी कारण अनेक देश सब्सिडी देते हैं। भारत अगर सब्सिडी का प्रलोभन बढ़ा भी दे तो यहां कानून-व्यवस्था के लचर होने के कारण असुरक्षा की भावना उन्हें शूटिंग करने के लिए उत्साहित नहीं करती। हमारे यहां विधान के परे इतने हुड़दंगी लोग हैं कि अवाम भी अपने को असुरक्षित पाता है। हर संवेदनशील व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसकी पीठ के पीछे नौ इंची रामपुरिया लहरा रहा है। यह भी अजीब-सी बात है कि इस घातक नौ इंची चाकू को अनेक क्षेत्रों में रामपुरिया कहते हैं। राम ने तो कभी खंजर का प्रयोग नहीं किया। यह भी समझ से परे है कि क्यों अनेक भगवानों को किसी शस्त्र के साथ पेंटिंग्स में दिखाया जाता है। श्रीकृष्ण की अधिकांश छवियों में उनके हाथ में चक्र दिखाया जाता है जबकि बांसुरी बजाने वाले श्रीकृष्ण की छवियां कम प्रस्तुत हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि हिंसा के लिए मानव मन में स्वाभाविक ललक है और हम भीतर छिपे आखेट करने वाले को हर तरह अक्षण्ण रखना चाहते हैं। शिकार और शिकारी के प्रतीक भी बहुत मजबूत है। मनुष्य अपने प्रारंभिक दौर में शिकार करके ही भोजन प्राप्त करता था और वही हिंसा सामूहिक अवचेतन में गहरी पैठी हुई है।