‘दो बीघा जमीन और‘सिटी ऑफ जॉय’ / जयप्रकाश चौकसे

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‘दो बीघा जमीन और‘सिटी ऑफ जॉय’
प्रकाशन तिथि : 30 मार्च 2020

डोमनिक लेपियर के उपन्यास ‘सिटी ऑफ जॉय’ से प्रेरित ओम पुरी अभिनीत हॉलीवुड में फिल्म बनी है। ज्ञातव्य है कि इसी लेखक ने अपने सहयोगी कॉलिन्स के साथ पहले ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ नामक किताब लिखी थी, जिसमें भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के समय का विवरण था। बहरहाल, ‘सिटी ऑफ जॉय’ में तीन प्रमुख पात्र हैं। एक विदेशी पादरी है, जिसने शरीर विज्ञान की शिक्षा भी प्राप्त की है। यह पादरी पोलैंड का नागरिक है। दूसरा पात्र एक अमेरिकन डॉक्टर है जो अन्य लोगों की भलाई के लिए जीता है। तीसरा प्रमुख पात्र रोटी-रोजी के लिए अपने गांव से महानगर आया है। वह हाथ रिक्शा चलाता है। इस रचना में घटनाक्रम का केंद्र एक झोपड़पट्टी का क्षेत्र है। हमारे हर महानगर में एक बड़ा स्लम क्षेत्र होता है। साधन संपन्न लोगों की सेवा चाकरी के लिए गरीबों की आवश्यकता होती है। गरीबी पूंजीवादी व्यवस्था की आवश्यकता है। इस बस्ती को हम चौथा पात्र मान सकते हैं।

इस स्लम में सभी धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं और एक-दूसरे की सहायता करते हैं। यह पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष बस्ती है। कोई संकीर्णता वहां नहीं पहुंची है। परंतु कालांतर में जाति प्रथा का कट्‌टरवाद किसी सुरंग द्वारा जाने कैसे वहां पहुंच गया है। इसके साथ गरीबों में भी अत्यंत गरीब का शोषण होता है। इसी बस्ती का नाम ‘आनंद नगर’ है। ज्ञातव्य है कि इस उपन्यास और उससे प्रेरित ओम पुरी अभिनीत फिल्म के निर्माण के दशकों पूर्व बिमल रॉय, बलराज साहनी अभिनीत फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ प्रदर्शित कर चुके हैं। इस फिल्म का नायक अपने दो बीघा खेत को महाजन के पास गिरवी रखता है और उसी रकम की अदायगी के लिए महानगर कलकत्ता में हाथ रिक्शा चलाता है। एक लोमहर्षक दृश्य में दो रिक्शा चलाने वालों की सवारियों में जल्दी पहुंचने की प्रतिस्पर्धा जारी है। दोनों सवारियां अपने-अपने रिक्शा खींचने वालों को जोश दिलाती हैं और वे नहीं सोचते कि मनुष्य ही मनुष्य को ढो रहा है। इस दृश्य को बिमल रॉय ने उतना ही रोचक बना दिया है, जितना हॉलीवुड की फिल्म ‘बेनहर’ की चैरियट रेस बन गई थी। ज्ञातव्य है कि ‘बेनहर’ की चैरियट रेस का दृश्य फिल्म की दूसरी यूनिट ने शूट किया था। भव्य फिल्मों के निर्माण में दो यूनिट होती हैं। फिल्मकार के आकल्पन में थोड़े से कम महत्वपूर्ण दृश्यों की शूटिंग दूसरी यूनिट करती है। संपादन कक्ष में यह महसूस किया गया कि चैरियट रेस फिल्म का बड़ा आकर्षण बन सकती है, इसलिए फाइनल संपादन में उसे विस्तार के साथ रखा गया। बिमल रॉय की फिल्म में बलराज साहनी ने मुख्य पात्र अभिनीत किया था और ‘सिटी ऑफ जॉय’ में ओम पुरी ने। गौरतलब है कि ओम पुरी अभिनय में स्वाभाविकता के उसी स्कूल के कलाकार थे, जिस स्कूल के पुरोधा बलराज साहनी रहे हैं। मोतीलाल से प्रारंभ यह परंपरा बलराज साहनी और संजीव कुमार से होती हुई नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी तक जाती है। वर्तमान में आयुष्यमान खुराना और राजकुमार राव तक आई है।

‘सिटी ऑफ जॉय’ में प्रस्तुत झोपड़पट्‌टी क्षेत्र में बीमारी फैल जाती है। अस्पताल दूर है और किसी के पास पैसे भी नहीं हैं। वहां रहने वाले अपनी स्वाभाविक भीतरी ताकत से बीमारी का मुकाबला करते हैं। अभावों ने उन्हें प्रेम से पालकर अत्यंत शक्तिशाली बना दिया है। उनके पास प्रतिरोध की शक्ति उनकी जीन्स का ही हिस्सा है।

‘दो बीघा जमीन’ और ‘सिटी ऑफ जॉय’ में समानताएं हैं, परंतु फिर भी ये जुदा किस्म की त्रासदी का विवरण प्रस्तुत करती हैं। दो बीघा जमीन का नायक महाजन के ब्याज का शिकार है। सिटी ऑफ जॉय में झोपड़पट्‌टी क्षेत्र केंद्र में है। उस बस्ती में खलनायक नामक बीमारी है जो गरीबी की कोख में जन्मी है। हमारे महानगरों में गांव और कस्बे मौजूद हैं। ये सभ्यता के जंगल की तरह फैले हुए हैं, जिनमें व्यवस्था आदमखोर शेर की तरह है। दो बीघा जमीन की कथा संगीतकार सलिल चौधरी ने लिखी थी। शैलेंद्र के गीत और सचिन देव बर्मन का संगीत था। सिटी ऑफ जॉय में गीत नहीं हैं, परंतु प्रभावोत्पादक पार्श्व संगीत है। दो बीघा जमीन का गीत है- गंगा-जमुना की गहरी है धार, आगे-पीछे सबको जाना है पार, धरती कहे पुकार के, बीज बिछा ले प्यार के, मौसम बीता जाए...। अपनी कहानी छोड़ जा, कुछ तो निशानी छोड़ जा... कौन बहे इस ओर भई रे नीला अंबर मुस्कुराए, हर सांस तराने गाए, तेरा मन क्यों मुरझाए, मन की बंसी पर कोई धुन बजा ले...। कोरोना के कहर में भाई रे मन को मत मुरझाने दे।