‘पैरासाइट और ‘डायरी ऑफ एनी फ्रैंक’ / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
‘पैरासाइट और ‘डायरी ऑफ एनी फ्रैंक’
प्रकाशन तिथि : 31 मार्च 2020


द. कोरिया की फिल्म ‘पैरासाइट’ को ऑस्कर पुरस्कार से नवाजा गया। यह पहली बार हुआ कि एक डब की गई फिल्म को पुरस्कार प्राप्त हुआ। फिल्म में बेरोजगारी, बीमारी और गंदगी से त्रस्त देश में जीवन मूल्यों के पतन को प्रस्तुत किया गया है। एक दृश्य में दिखाया गया है कि परिवार घर की खिड़कियां उस समय खुली रखता है, जब सरकार मच्छरों को नष्ट करने के लिए कीटनाशक धुआं छोड़ती है। पूरा घर कीटनाशक धुएं से भर गया है और किसी को कुछ नजर नहीं आता।

फिल्म तीन परिवारों के जीवन को प्रस्तुत करती है। एक परिवार साधन-संपन्न है, दूसरा बेरोजगार है और तीसरे में मात्र दो सदस्य हैं। तीसरा परिवार साधन-संपन्न परिवार की चाकरी कर चुका है। वे नौकरी से निकाले गए हैं। इस तीसरे परिवार के एक सदस्य ने कर्ज लिया है जो वह चुका नहीं पा रहा है। तीसरे परिवार का मुखिया कर्जदारों से बचने के लिए नौकरी से निकाले जाने के बाद मकान में बने एक गुप्त तहखाने में छिप गया है, जहां उसकी पत्नी उसे भोजन दे देती है। इस फिल्म में प्रस्तुत मकान एक आर्किटेक्ट ने ऐसे बनाया है कि धूप अधिक समय तक घर को गर्म रखे और रहने वालों को रोगों से बचा सके। साधन-संपन्न परिवार चाहता है कि उनकी पुत्री को अंग्रेजी भाषा का भरपूर ज्ञान प्राप्त हो, ताकि वह अमेरिका जाकर अध्ययन कर सके। पुत्री को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए एक शिक्षक रखा गया है, जो बेहतर अवसर पाकर विदेश जाने से पहले अपनी प्रेमिका को एक पत्र देता है, जिसकी सहायता से उसे पढ़ाने का काम मिल जाता है। पढ़ने-पढ़ाने कि प्रक्रिया में प्रेम हो जाता है।

साधन-संपन्न परिवार कुछ दिन के लिए शहर से बाहर जाता है। उनकी गैर हाजिरी में चाकर दावतें उड़ाते हैं, शराबनोशी करते हैं। ठीक उसी समय उस परिवार के द्वारा सेवा से निकाले जाने वाली बुढ़िया उनसे निवेदन करती है कि उसे घर के भीतर आने दिया जाए। वह बुढ़िया उन्हें घर में एक तहखाने की जानकारी देती है, जहां उसका पति लंबे अरसे से छिपा है। बुढ़िया अपने मोबाइल पर उनके चित्र लेती है और मालिक को भेजना चाहती है। मोबाइल पर अधिकार पाने के लिए हाथापाई होने लगती है। बुढ़िया को भी उसके पति के साथ तहखाने में कैद कर दिया जाता है। साधन-संपन्न व्यक्ति लौटने पर एक दावत का आयोजन करता है। बगीचे में दावत जारी है और तहखाने से मुक्त हुआ बूढ़ा व्यक्ति लोगों को कत्ल करने लगता है। उसके मन में अकारण बर्खास्त किए जाने का रंज है। फिल्म के अंत में दिखाया गया है कि येन केन प्रकारेण नौकरी पा जाने वाला परिवार का एक सदस्य विदेश जाकर इतना धन कमाता है कि उस घर को खरीद सके।

महेश भट्‌ट की फिल्म ‘मर्डर-3’ में एक ऐसा ही घर प्रस्तुत हुआ है, जिसमें एक तहखाना है। तहखाने के एक कमरे में एक झरोखा है, जिससे पूरे घर को देखा जा सकता है। इस तहखाने में बंद आदिति राव हैदरी द्वारा अभिनीत पात्र अपने पति के लम्पट स्वभाव को जान जाती है। इस फिल्म के सभी पात्र भ्रम में जी रहे हैं और तहखाने में बने झरोखे के कारण सब कुछ उजागर हो जाता है। मुगलों द्वारा बनाई गई इमारतों में तहखाने होते थे और अंग्रेजों की हुकूमत के दौर में ये तहखाने ही क्रांतिकारियों के छिपने के काम आए। ऋषिकेश मुखर्जी ने ‘मुसाफिर’ नामक फिल्म बनाई थी। डेविड अब्राहम अभिनीत पात्र अपना मकान किराए पर देता है। कुछ समय के अंतराल में तीन परिवार मकान किराए पर लेते हैं। फिल्म में दिलीप कुमार, किशोर कुमार और सुचित्रा सेन इत्यादि कलाकारों ने अभिनय किया था। सलिल चौधरी के संगीत में शैलेंद्र का लिखा एक गीत स्वयं दिलीप कुमार ने गाया था। जिसके बोल इस तरह थे- लागी नहीं छूूटे राम चाहे जिया जाए, मन अपनी मस्ती का जोगी, कौन इसे समझाए, लागी नहीं छूटे, चाहे जिया जाए…। इस फिल्म में ऊषा किरण ने भी अभिनय किया था।

‘पैरासाइट’ परजीवी होते हैं। वे स्वयं कुछ अर्जित नहीं करते। उनके शोषण करने की तुलना अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण से नहीं कर सकते। यथार्थ घटना है कि दूसरे विश्व युद्ध के समय एक परिवार तहखाने में छिप गया। परिवार की चौदह वर्षीय कन्या डायरी लिखती है। युद्ध के पश्चात प्राप्त उस डायरी को प्रकाशित किया गया और फिल्म भी बनी। रचना का नाम है ‘डायरी ऑफ एनी फ्रैंक’। काल्पनिक ‘मुग़ल-ए-आज़म’ में भी अनारकली को एक तहखाने और उसमें बनी सुरंग द्वारा लाहौर चले जाने का संकेत है। बहरहाल, द. कोरिया की फिल्म को ऑस्कर दिए जाने का राजनीतिक कारण यह हो सकता है कि अमेरिका यह साबित करना चाहता हो कि द. कोरिया में गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी बहुत अधिक है। फिल्मों को ऑस्कर देने से पहले ऑस्कर कमेटी बहुत गहराई से छानबीन करती है। अपर्णा सेन द्वारा निर्देशित ‘36 चौरंगी लेन’ (अंग्रेजी भाषा में बनी) को ऑस्कर दिया जाना लगभग तय हो चुका था, परंतु कमेटी ने देखा कि भारत की इस फिल्म को विदेशी भाषा की कैटेगरी में रखा गया है। ऑस्कर का आर्थिक पक्ष यह है कि पुरस्कार पाने वाली फिल्म अमेरिका में दोबारा प्रदर्शित की जाती है। इसमें 30 प्रतिशत आय अधिक अर्जित होती है। इस तरह से अमेरिका का पैसा द. कोरिया जा सकता है। बहरहाल, इस फिल्म में अर्थ की अनेक परते हैं। कुछ चीजें समझ में न आने के बावजूद लगता है कि वे अच्छी हैं।