“द ब्रिजेस ऑफ़ मेडीसन काउंटी” प्यार की सुखद अनुभूति / राकेश मित्तल

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“द ब्रिजेस ऑफ़ मेडीसन काउंटी” प्यार की सुखद अनुभूति
प्रकाशन तिथि : 08 नवम्बर 2014


यह फिल्म इस बात को प्रतिपादित करती है कि प्यार की गहराई और ऊष्मा का संबंध साथ बिताए गए समय की अवधि से नहीं होता है। कई बार लोग जीवन भर साथ रहने के बावजूद प्यार की सतह तक भी नहीं पहुंच पाते जबकि कोई क्षण मात्र में प्यार की गहराइयों तक गोता लगा लेता है।

प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक प्रोफेसर रॉबर्ट जेम्स वालर का पहला उपन्यास 'द ब्रिजेस ऑफ मेडीसन काउंटी" वर्ष 1992 में प्रकाशित हुआ। एक शादीशुदा एकाकी गृहणी के जीवन में सुखद हवा के झोंके की तरह आए प्यार के चार दिनों की यह खूबसूरत कहानी पाठकों के दिलो-दिमाग पर छा गई। देखते ही देखते इस उपन्यास की लाखों प्रतियां हाथो-हाथ बिक गईं और यह उस वर्ष का दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला उपन्यास बन गया। समय के बीतने के साथ-साथ इसकी लोकप्रियता में निरंतर वृद्धि होती गई। पांच करोड़ से अधिक प्रतियों की बिक्री के साथ यह बीसवीं सदी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासों की सूची में शुमार किया जाता है। वर्ष 1995 में विख्यात हॉलीवुड अभिनेता और निर्देशक क्लिंट ईस्टवुड ने इस उपन्यास पर इसी नाम से फिल्म बनाई, जिसमें उन्होंने उपन्यास की मूल भावना और कलेवर को पूरी ईमानदारी से रुपहले पर्दे पर उतार दिया। इस फिल्म को भी दर्शकों और समीक्षकों का भरपूर प्रतिसाद मिला।

यह फिल्म इस बात को प्रतिपादित करती है कि प्यार की गहराई और ऊष्मा का संबंध साथ बिताए गए समय की अवधि से नहीं होता है। कई बार लोग जीवन भर साथ रहने के बावजूद प्यार की सतह तक भी नहीं पहुंच पाते जबकि कोई क्षण मात्र में प्यार की गहराइयों तक गोता लगा लेता है।

फिल्म की नायिका फ्रांसेस्का (मेरिल स्ट्रीप) एक पैंतालीस वर्षीया शादीशुदा इटैलियन महिला है, जो अपने अमेरिकन पति और दो बच्चों के साथ आयोवा, मेडिसन काउंटी स्थित एक फार्महाउस में रहती है। वह वर्षों से एक सामान्य, नीरस वैवाहिक जीवन जी रही है, जिसमें तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद कोई नयापन या उत्तेजना नहीं है। फिल्म का बावन वर्षीय नायक रॉबर्ट (क्लिंट ईस्टवुड) एक फोटोग्राफर है, जो नेशनल जिओग्राफिक पत्रिका के लिए काम करता है और पूरी दुनिया में स्टोरी करने के लिए घूमता रहता है। इन दिनों वह मेडीसन काउंटी के ढके हुए पुलों पर एक स्टोरी कर रहा है। एक पुल को खोजते हुए वह फ्रांसेस्का के गांव से गुजरता है और उससे पुल की तरफ जाने का रास्ता पूछता है। संयोग से उन दिनों फ्रांसेस्का के पति और बच्चे बाहर गए हुए हैं। दोनों के परिचय और बातचीत का सिलसिला चाय के आमंत्रण से शुरू होकर रात्रिभोज के आमंत्रण तक पहुंच जाता है। रॉबर्ट को अगले चार दिन उस क्षेत्र में रहकर विभिन्ना पुलों के फोटोग्राफ लेना है। इन चार दिनों में रॉबर्ट और फ्रांसेस्का एक-दूसरे के बेहद निकट आ जाते हैं। प्रेम की इतनी तीक्ष्ण और गहन अनुभूति इसके पहले फ्रांसेस्का को किसी के साथ नहीं हुई थी। एक साधारण गृहणी के दिवास्वप्न की तरह फ्रांसेस्का का प्रेम परवान चढ़ता है और दैहिक तथा आत्मिक चरमोत्कर्ष पर जा पहुंचता है। जिन लम्हों की उंगली पकड़कर वह एक शाख से घने दरख्त में तब्दील होती है और उन्हें संजोने की प्रक्रिया में जिस तरह अपने आप को अभिव्यक्त करती है, वह देखने लायक है। इस दौरान फिल्म एक संगीतमय कविता हो जाती है। इन चार दिनों के प्रेम में वह अपने जीवन का श्रेष्ठतम समय गुजारती है किंतु इस सुख की कीमत पर वह अपने परिवार की खुशियां नष्ट नहीं कर सकती। स्वप्न और यथार्थ की दुनिया में से उसे कोई एक विकल्प चुनना है।

मेरिल स्ट्रीप ने फ्रांसेस्का की भूमिका में कमाल किया है। एक निष्णात अभिनेत्री के रूप में उन्होंने सूक्ष्मतम मनोभावों को बेहतरीन अभिव्यक्ति दी है। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के ऑस्कर पुरस्कार हेतु नामांकन के साथ-साथ उस वर्ष का गोल्डन ग्लोब एवं स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड पुरस्कार प्रदान किया गया था। अपनी काऊबॉय छवि के विपरीत क्लिंट ईस्टवुड ने भी अत्यंत परिपक्व और प्रभावी अभिनय किया है। रॉबर्ट के कोमल किंतु पौरुषपूर्ण व्यक्तित्व को उन्होंने पूरी तरह से आत्मसात किया है। मुख्य अभिनेता होने के अलावा वे फिल्म के निर्माता व निर्देशक भी हैं और तीनों जिम्मेदारियों का उन्होंने बखूबी निर्वाह किया है। यह फिल्म उन दो व्यक्तियों की कहानी है, जो अपने लिए सर्वाधिक खुशी के लम्हों को पा लेते हैं लेकिन इस कड़वे यथार्थ को भी समझते हैं कि जीवन में स्वयं की खुशी ही सबसे महत्वपूर्ण नहीं होती।