“लाइक फादर, लाइक सन” पिता-पुत्र संबंधो का रोचक मनोविज्ञान / राकेश मित्तल

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“लाइक फादर, लाइक सन” पिता-पुत्र संबंधो का रोचक मनोविज्ञान
प्रकाशन तिथि : 01 नवम्बर 2014


यह फिल्म बहुत शिद्दत से इस बात को रेखांकित करती है कि मातृत्व या पितृत्व सिर्फ जन्म देने से नहीं, बल्कि बच्चों के साथ बिताए गए समय से तय होता है। और यह भी कि वयस्कों की तुलना में बच्चे अजनबी होने के बावजूद कितनी सरलता और शीघ्रता से अपने आसपास के वातावरण को आत्मसात कर लेते हैं।

जापान के युवा फिल्मकार हिरोकाझु कोरीदा की फिल्मों में परिवार केंद्रीय विषयवस्तु होता है। अपनी सभी फिल्मों में उन्होंने पारिवारिक संबंधो का बहुत सूक्ष्मता और खूबसूरती से विश्लेषण किया है। वर्ष 2013 में प्रदर्शित उनकी फिल्म 'लाइक फादर, लाइक सन एक अद्भुत संकल्पना पर बनी फिल्म है। इसमें दो दंपतियों को छ: साल बाद अचानक यह पता चलता है कि उनका बेटा उनका अपना खून नहीं है बल्कि जन्म के समय अस्पताल में गलती से वे एक-दूसरे के बच्चों के साथ बदल गए हैं। अब यदि वे चाहें तो अपने असली बच्चों को फिर से बदल सकते हैं। यह उन दोनों दंपतियों की इच्छा पर निर्भर है। इस अनोखी घटना को केंद्र में रखकर कोरीदा ने बड़ी कुशलता से माता-पिता और बच्चों के बीच के संबंध्ाों की विवेचना की है। इस फिल्म का प्रीमियर कान के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में किया गया था, जहां इसे समारोह के सर्वोच्च पाम डिओर पुरस्कार के नामांकन के साथ सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ज्यूरी पुरस्कार मिला था। समीक्षकों और दर्शकों के उत्साहपूर्ण प्रतिसाद के साथ-साथ अन्य कई फिल्म समारोहों में इसे पुरस्कृत किया गया। हिरोकाझु कोरीदा के करियर की यह सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। तमाम महत्वपूर्ण पात्रों, विषयों और प्रतीकों के बरअक्स यह फिल्म मुख्य रूप से नायक रोटा नोनोमिया के आत्म-विश्लेषण की कथा है। इस कठिन भूमिका को जापान के प्रतिभाशाली गायक-अभिनेता मसाहारु फुकुयामा ने बेहद तन्मयता और खूबसूरती के साथ निभाया है। फिल्म के मूल जापानी शीर्षक का शब्दकोशीय अनुवाद होता है 'और फिर मैं एक पिता बन गया, जो इस फिल्म का सार है।

फिल्म की शुरूआत एक स्कूल के दृश्य से होती है, जहां रोटा, उसकी पत्नी मिडोरी नोनोमिया (मेचिको ओनो) और पुत्र कैता स्कूल में प्रवेश के लिए इंटरव्यू दे रहे हैं। कैमरा मासूम, अंतर्मुखी बालक कैता पर केंद्रित है, जो सवालों के पिता द्वारा पहले से तैयार कराए गए जवाब दे रहा है। औपचारिक पोशाक पहने, साफ-सुथरे, नपे-तुले, परिष्कृत अंदाज में माता-पिता और पुत्र एक कतार में बैठे हुए एक-दूसरे के प्रतिरूप लग रहे हैं। इंटरव्यू के बाद वे अपने आधुनिक आलिशान फ्लैट में लौटते हैं, जहां की व्यवस्थित सजावट को सिर्फ कैता के बिखरे खिलौने और ड्रॉइंग किए हुए कागज अव्यवस्थित कर रहे हैं। यह शुरूआती दृश्य नोनोमिया परिवार के शिष्ट और अभिजात्य रहन-सहन की ओर इशारा कर देता है।

रोटा एक शांत, कठोर और अनुशासनप्रिय नौकरीपेशा व्यक्ति है। उसके लिए परिवार की आर्थिक सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। अपनी पत्नी और बच्चे से वह बहुत प्यार करता है लेकिन उनके लिए उसके पास कोई समय नहीं है। सूने घर में कैता का अधिकांश समय अकेले खिलौनों से खेलते हुए बीतता है। वहीं दूसरी तरफ रोटा का वास्तविक पुत्र रुसेई एकदम विपरीत वातावरण में एक मध्यमवर्गीय दंपति यूदाई सैकी (रिरी फुरैंकी) और युकारी सैकी (योको माकी) के यहां पल रहा है, जो शहर के एक उपनगरीय इलाके में एक छोटे-से घर में अपने तीन बच्चों के साथ रहते हैं। वे बेहद साधारण, अव्यवस्थित और बेपरवाह जिंदगी जीते हैं। मगर व्यस्तता के बावजूद वे बच्चों को भरपूर समय देते हैं और उनके साथ उठते, बैठते, खेलते हैं। इस कारण रुसेई दो छोटे भाई-बहनों के साथ खूब मस्ती भरे, हंगामेदार वातावरण में पला-बढ़ा है। बच्चों के बदले जाने की सूचना मिलने के बाद दोनों परिवारों की शांत जिंदगी में भूचाल आ जाता है।

अपना खून अपना होता है। कोई भी यह नहीं चाहेगा कि अपने पुत्र को छोड़कर वह दूसरे के पुत्र को पाले। मगर यह बात उन छ: साल के मासूम बच्चों को कैसे समझाई जाए? वे तो उन्हीं को माता-पिता मानते हैं जिन्होंने अब तक उन्हें बड़े प्यार से पाला है। यह स्थिति दोनों दंपतियों के लिए एक असाधारण चुनौती बन जाती है। दोनों परिवार आर्थिक संपन्नाता, पृष्ठभूमि, शिक्षा, स्वभाव और तौर-तरीकों के स्तर पर एकदम विपरीत हैं, जिस कारण यह चुनौती और कठिन हो जाती है। शुरूआती टकराहट और सौदेबाजी के बाद दोनों समाधान निकालने की दिशा में काम करते हैं। वे कई दिनों तक सप्ताहांत में एक-दूसरे के घर में अपने बच्चों को खेलने के लिए भेजते हैं ताकि उनके मन में अपने असली माता-पिता के प्रति एक सही समझ विकसित हो सके। यहां से छोटी-छोटी घटनाओं की रोचक श्रृंखला शुरू होती है, जिसमें हमें बच्चों के मनोविज्ञान और माता-पिता से उनके संबंधो तथा अपेक्षाओं के विभिन्ना पहलू देखने को मिलते हैं। अनेक भावनात्मक उतार-चढ़ावों से गुजरकर फिल्म एक अनपेक्षित अंत पर खत्म होती है।

यह फिल्म बहुत शिद्दत से इस बात को रेखांकित करती है कि मातृत्व या पितृत्व सिर्फ जन्म देने से नहीं, बल्कि बच्चों के साथ बिताए गए समय से तय होता है। और यह भी कि वयस्कों की तुलना में बच्चे अजनबी होने के बावजूद कितनी सरलता और शीघ्रता से अपने आसपास के वातावरण को आत्मसात कर लेते हैं। बाल मनोविज्ञान में रुचि रखने वालों को यह फिल्म अवश्य देखना चाहिए।