28 मार्च, 1946 / अमृतलाल नागर

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज डायरी लिखने की इच्‍छा हो आई। क्‍यों? नरोत्‍तम को पत्र लिखते-लिखते अपने विचारों की थाह लगी। अपने अंदर की नई जरूरत को नए सिरे से आज फिर महसूस किया। हर रोज भूलकर पुरानी बात को नए सिरे से अनुभव करना क्‍या है? अगति। यह अगति क्‍यों है? मेरी लापरवाही के कारण। लापरवाही क्‍यों है? एकाग्रता की कमी के कारण। एकाग्रता की कमी क्‍यों है? अपने प्रति sincere न होने के कारण। sincere क्‍यों नहीं हूँ? आदमी तो अपने प्रति sincere होने की इच्‍छा रखता ही है। - हाँ, मगर वह इच्‍छा मात्र ही रखता है। इच्‍छा (कर्म) शरीर न पाकर भूत है - इसीलिए वह अशांत है। शांति तन और मन की होनी ही चाहिए। आखिर को शांति ही तो चाहता हूँ न ! फिर उसे अपनाने का प्रयत्‍न क्‍यों नहीं? आलस्‍य आड है। लेकिन यह शत्रु तो उतना बलवान नहीं, जितना वास्‍तव में दिखता है। नियम, संयम। और उसके द्वारा विराट के प्रति समर्पण। करूँगा ही होगा। करूँगा ही । फिर भागता क्‍यो हूँ?

श्री अरविंद आश्रम