अगन-हिंडोला / भाग - 11 / उषा किरण खान

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"हमारी ओर से इन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। आप इत्मीनान रखिए." - राजा ने आश्वासन दिया। शेर खाँ रोहतास किला से निकलकर अपने साथी सिपाहियों के साथ मिलकर जंगलों पहाड़ों में बैठकर चेरो उराँव और स्थानीय क्षत्रिय तथा पठानों की फौज तैयार करने में लग गया। फौज के लिए सिपाही चुनने में वह खुद लग जाता। उसके सामने एक एक कर जवान आते वह उनसे कुछ प्रश्न पूछता अगर संतुष्ट होता तो उसकी पिंडलियों को अपने हाथों से छुकर, महसूस कर भर्ती करता। भर्ती के बाद शुरुआती दाँव सिखाता साथ ही उन्हें अभ्यास करने का समय देता। घोड़े वह खुद पहचान कर खरीदता उसके खाने पीने और अभ्यास का खास ख्याल रखता। श्यामसुंदर हाथी शेर खाँ के दिल में ऐसा बस गया था कि उसने जंगलों से हाथी पकड़वा मँगाए उन्हें युद्ध के लिए तैयार किया। तीरंदाजों की अलग एक फौज खड़ी की। शेर खाँ के जंगलों में सेना इकट्ठी करने की खबर से उस वक्त हड़कंप मच गया। बहार खाँ जिसने अपने आपको सरदारे हिंद सुलतान मुहम्मद की उपाधि दी थी उसी ने शेर खाँ को अपना वजीर मुकर्रर किया था उसे मुहम्मद खाँ सूर ने आकर इत्तिला दी कि शेर खाँ आपको आपके ओहदे से बेदखल करने के लिए ही सेना इकट्टी कर रहा है। सुलतान मुहम्मद पहले से ही शेर खाँ के पराक्रम के आगे डरा हुआ था अब ज़्यादा घबड़ा गया। उसने मुहम्मद खाँ सूर के कहने पर शेर खाँ के सौतेले भाई सुलेमान वगैरह के नाम जागीर का रुक्का लिखकर भेज दिया। सुलतान मुहम्मद ने एक हजार घुड़सवार शेर खाँ से लड़ने भेजा। शेर खाँ अपनी नई तैयार की गई सेना के बल पर पुरानी सेना से मुकाबला नहीं कर सका। अपनी अस्त-व्यस्त सेना के साथ वह पशेमन होकर सुलतान जुनैद बरलास की जानिब पहुँच गया। सुल्तान जुनैद बरलास खानदाने तैमूरिया का एक वफादार तथा इज्जतदार अमीर था। उसके पास एक बड़ी सेना थी। अपने समय का वह एक ही पक्का इनसान था, सच्चा मुसलमान था। उसने शेर खाँ की हौसला अफजाई की, अपनी फौज उसकी सहायता को दिया अब जौनपुर के मुहम्मद खाँ सूर हार कर भाग गए, सुलेमान कहीं जाकर छिप गया। शेर खाँ जो अपने खानदान और जाति की एकता का हिमायती था ने मुहम्मद खाँ सूर को खबर भेजी - "मुझे आपके परगने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं तो सिर्फ और सिर्फ अपने हक की लड़ाई लड़ रहा था। आप आएँ और फिर से जौनपुर की गद्दी सँभालें। मैं रमता जोगी हूँ। मुझे ज़्यादा बड़ा काम करना है।" - मुहम्मद खाँ सूर एक तो शेर खाँ की फितरत को जानता था, थोड़ी देर को विभ्रम में पड़ गया था दूसरे स्वयं भी बुद्धिमान था सो वैमनस्य भुलाकर जौनपुर का तख्त सँभाल लिया। शेर खाँ का अब बिलाशक सच्चा दोस्त मुहम्मद खाँ सूर कभी इसके खिलाफ नहीं जायगा। उसने अपने भाई निजाम को फिर से अपने परगने सहसराम, हवासपुर टाँडा बलहू का शिकदार बहाल किया और खुद जुनैद बरलास के हुजूर में रहा। इन दिनों शेर खाँ में एक बदलाव आया था। वह जंगल में फौज की तालीम देता जब थक कर पेड़ के नीचे किसी पत्थर को सिरहाना बना लेट जाता तो अजीबोगरीब वाक्यात पर उसकी नजर जाती। जंगल का अपना रंग-ढंग था, कीड़े मकोड़े, पशु पक्षियों के तौर तरीके देख दिल में कई तरह की भावनाएँ उठतीं। शेर खाँ ने देखा कि एक छोटा-सा पंछी बाज पत्तों के बीच देर तक चुपचाप बिना हिले डुले बैठा रहता है सिर्फ उसकी लाल काली करजनी-सी आँखें इधर उधर घूमतीं। कई बार घंटों एक ही ओर देखता हुआ बैठा रहता। ज्यों ही झुटपुटा समय होता कि वह अपने से दोगुने पंछी पर झपट पड़ता और एकबारगी दबोच लेता। दबोचा जाने वाला पंछी अक्सर बेपरवाह होता। यह वाक्यात जंगल के लिए आम थे। साँप चूहे मेढक गिलहरी पंछी को बेपरवाही में ही दबोचता, नेवला साँप को ऐसे ही समय दबोचता, लोमड़ी चालाकी से ही शिकार पाती यह इस खुदाई की फितरत हैं जो ताकतवर, अक्लमंद, शातिर होता है जीत उसी की होती है। हम हिंदोस्तान की धरती पर यहाँ के बाशिंदे तब तक सुकून से राजपाट चलाते रहे जब तक किसी उनसे ज़्यादा होशियार ताकतवर चालाक हमलावर ने शिकस्त न दे दी। कीमत उसी की है जो शिकस्त दे सकते हैं जो हार गए वे गए. शेर खाँ को ऐसा लगा जैसे उसे सदा याद दिलाने के लिए एक साथी चाहिए. वह साथी कौन हो सकता है। उसने एक बाज को चुना। अब उसका अपना प्यारा बाज उसके साथ रहता। कई बार शेर खाँ अपने बाज को कुछ पता करने भेज देता। अक्सर वह उसके कंधे पर बैठा रहता। सुलतान जुनैद बरलास बाबर बादशाह की सेवा में उसके दरबार में उपस्थित हुआ, साथ में शेर खाँ भी था। शेर खाँ पठानी वस्त्रों में एक बहादुर लड़ाका दिखाई पड़ रहा था पर उसमें कोई शाही या अमीरी रंगत थी ही नहीं। जुनैद बरलास ने शहंशाह जहीरुद्दीन बाबर के सामने शेर खाँ के गुणों और बहादुरी की चर्चा की। बाबर सुनकर बेहद खुश हुआ और अपने अनुरूप कीमखात का जरीदार चोगा शेर खाँ को पेश करने का हुक्म दिया। बाबर को उसकी मझौले कद काठी पर चोगा खूब फबता दिखता था। बाबर ने उमंग में कहा -"तुम तो शेर खाँ नहीं शेरशाह दीखते हो।" - शेर खाँ के चेहरे पर रौनक छा गई. उसने तुरत ही नियम के अनुसार तैमूर वंश के प्रति निष्ठा की, वफादारी की कसमें खाईं। दरबार सहित जुनैद बरलास बेहद खुश था। एक बहादुर पठान बाबर का मुरीद हो गया है यह उसे उस वक्त अपने लिए सचमुच ज़रूरी लगा। शहनशाह ने जुनैद बरलास और शेर खाँ को अपने साथ खाने की दावत दी। शेर खाँ निहायत शरीफाना अंदाज में खाने बैठा। सामने माही चा यानी बक्रा मुसल्लम परोस कर रखा गया था। बेहद खुशबूदार और जायकेदार दिख रहा था। शेर खाँ के नथुनों में इसकी खुशबू पहुँच रही थी, उसकी भूख भड़क उठी। सबों ने हाथों में तश्तरी ले रखी थी, वहाँ कोई छुरा काटने को नहीं था सभी एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। शेर खाँ ने आव न देखा ताव तुरंत अपनी कमर में खुँसी खुखरी को निकाला और माहीचे की रान काटकर अपनी तश्तरी में रखा। रोटी के साथ खाने लगा। बाबर ने देखा तो अचरज में पड़ गया। बादशाह के सामने एक पठान नौजवान थोड़ा ठहर नहीं सका, खाने की उतावली में अपनी ही खुखरी का इस्तमाल कर गया और पहला मनपसंद निवाला शहंशाह नहीं शेर खाँ लेने की जुर्रत कर रहा है। बाबर बादशाह ने कनखियों से उसे देखा और सुल्तान जुनैद बरलास से धीरे से कहा - "सुनो भाई, इस अफगान में मैं एक बागी को देख रहा हूँ। इससे हमेशा बचकर रहना नजर भी रखना। देखो इसने जाने क्यों अपने कंधे पर बाज बैठा रखा है। पालतू बनाने के लिए तमाम खुशनुमा, गानेवाले रंगीन पंछी हैं फिर बाज ही क्यों? नः इस पर नजर रखी जाय।" बरलास ने ना-नुकर की तो कहा,

"मैंने कहा न कि यह उपद्रवी जान पड़ता है। माबदौलत को इससे खतरा पेश आ सकता है। नजर रखी जाय, गड़बड़ी का शक हो तो तुरंत कैद कर लिया जाय।" - शेर खाँ ने अपने रोएँ के हर हिस्से को आँखें बना रखी थीं। उसे सब कुछ समझ में आ गया। रात का खाना खतम होते न होते वह अपना घोड़ा ले आगरे से निकल गया। वह सीधा सुल्तान मुहम्मद के पास गया। सुलतान मुहम्मद ने कहा - "शेर खाँ, तुमने मुझे जिंदगी बख्शी थी उसका समय पूरा हो रहा है। तुम अब भी मेरे बेटे जलाल के सरपरस्त हो। इसे अपनी तरह का इनसान बनाना।"

"आप नाहक गमगीन हैं सुल्तान। मैं आ गया हूँ आपसे काफिया और गुलिस्ताँ का जिक्र करके फिर से जिंदगी में ले आऊँगा। मुझे जान पड़ता है अकेले हो गए हैं हुजूर।"

"इसमें कोई शक नहीं कि मैं अकेला पड़ गया हूँ।" - शेर खाँ उनको खुश रखने की कोशिश करने लगे। "पश्चिमी प्रदेश रायसीन का राजा पूरनमल बेहद पुख्ता किले का स्वामी था उसके पास दस हजार घुड़सवार और कई हजार पदातिक सैनिक थे सभी के सभी जाँबाज। पूरनमल वीरता की मिसाल था पर साथ ही सुरा-सुंदरियों में लिप्त रहने वाला राजा था। दिल्ली के सुलतान इब्राहिम लोदी के साथ मित्रता का संबंध था पूरनमल का। सुलतान बहलोल लोदी का यह करदाता था। सभी छोटी बड़ी लड़ाइयों में उसका साथ देता। इब्राहिम लोदी इससे कर नहीं लेता था पर सेवा भेजने का अनुबंध था। इब्राहिम लोदी की बाबर के साथ हुई निर्णायक लड़ाई में पूरनमल ने बहुत देर कर दी सेना लेकर आने में। इब्राहिम लोदी मारा गया। बाबर गद्दीनशीन हुआ। पूरनमल इब्राहिम लोदी की हरम की बेगमों को रायसीन ले गया अपने किले में पहुँचकर पूरनमल ने दोस्ती का चोला उतार फेंका और बेगमों को नाचने गाने को मजबूर कर दिया। पूरनमल ने बाबर बादशाह की गद्दीनशीनी पर तोहफे भी भेजे. जिन दिनों शेर खाँ जुनैद बरलास के साथ बाबर से मिला था उन्हीं दिनों उसने ऐसे वाकयात सुने। शेर खाँ का दिलो दिमाग भन्ना उठा। एक अफगान बादशाह की बेगमों का यह हश्र! पूरनमल पर कभी विजय प्राप्त करने का सुअवसर मिले तो उसे इसका मजा चखाया जाए - शेर खाँ मन ही मन सोचने लगा। बाबर की नजरे इनायत के लिए हजारों साल से राज करने वाला क्षत्रिय कितना नीचे गिर गया यह सोचता हुआ वह बिहार पहुँचा था।

सुल्तान मुहम्मद के पास शेर खाँ था तभी उसे जानकारी मिली कि उसकी बेगम और भाई निजाम कुनबे सहित किले से नीचे उतर सहसराम आ गए. इसे यह भी जानकारी मिली कि मुगलों की नजर अब पूरब की ओर उठ रही है। उसने निजाम को संदेश भेजा कि अपनी और अपने पूरे कुनबे की सलामती के लिए निजाम फिर से पत्थर वाले पहाड़ी किले की शरण ले। राजा महारथ सिंह को भी संदेशा भेजा कि वह बिहार में है और उसके कुनबे को मुगलों से खतरा है सो उन्हें फिर से अपनी सरपरस्ती में रख लें। सुलतान मुहम्मद से बातचीत के सिलसिले में शेर खाँ अक्सर कहता - "हुजूर ये मुगल हिंदोस्तान पर ज़्यादा दिन टिक नहीं सकते। इनका अंदाज पहले से शहंशाहों वाला है। ये खुद कुछ नहीं करते, अमलों और ओहदेदारों पर भरोसा करते हैं जो बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते। अभी तो सिर्फ दिल्ली आगरा इनके कब्जे में है तब ये रंग है।"

"हिंदोस्तान में कौन है जो इन्हें रोकेगा शेर खाँ, सारे क्षत्रिय और कुछ पठान जो नूहानी हैं इनका इस्तकबाल करने को मरे जा रहे हैं।"

"मैं रोकूँगा सुलतान"

"छोटे मुँह बड़ी बात न करो। तुम बहादुर हो आलिम हो पर तुम्हारा साथ कौन देगा। उनके तोप के मुकाबिल हो क्या? पहले उनकी तैयारियाँ देखो तब बोलो।"

"देख रहा हूँ सुलतान।" - शेर खाँ बेचैन था।

बाबर बादशाह का इंतकाल हो गया था हुमायूँ बादशाह गद्दीनशीन हुए. हुमायूँ बहादुर तो थे लेकिन उनका ज़्यादा से ज़्यादा समय किताबों के बीच गुजरता। किताबों से समय बचता तो शराबनोशी करते रक्कासाओं के नाच देखते। उनके अमीर उमरा और दोस्त बैरम खानखाना उनका ख्याल रखते। बैरम खाँ ने हुमायूँ बादशाह से अर्ज किया -"शहंशाह, आपके अब्बा हुजूर जन्नत आशियानी बादशाह बाबर के पैर अभी जमे भी नहीं थे कि वे इस दुनिया से रुखसत हो गए. अब अगर बादशाही कायम करनी हो तो हिंदोस्तान जो अभी खील-खील बिखरा हुआ है उसे समेट लें और फिर मुसलमानी राज करे।"

"आपकी सलाह मेरे मन मुआफिक है। पहले हमें पूरब की ओर बढ़ना चाहिए. जौनपुर, चुनार, बिहार फिर गौड़। क्या कहते हैं? - हुमायूँ ने तजवीज की।

"बिल्कुल ठीक। अभी हमारे मातहत जितने सिपाही घोड़े और हाथियों की फौज है हम उनसे कन्नौज के बाद जौनपुर का इलाका लपेटे में ले सकते हैं। जौनपुर से हमें और लड़ाके और घोड़े मिल जाएँगे। चुनार के पुख्ते किले को छोड़ और बिहार को दरकिनार कर हमें गौड़ की ओर बढ़ना चाहिए."

"ऐसा क्यों खानेखाना साहेब?"

"चुनार के पुख्ता किले पर अपना वक्त जाया होगा और बिहार का सरपरस्त शेर खाँ सूर है जो बड़ा शातिर और जाँबाज सिपाही है। उससे टकराने की अभी ज़रूरत नहीं है।"

"जैसा आप ठीक समझें।"

"दो चार लड़ाइयाँ जीतनी ज़रूरी हैं शहंशाह वह भी तुरंत। तभी तो रियाया में खौफ रहता है। इसे ही तो सियासत कहते हैं।"

"आप सियासत के लिए कहते हैं तो सच ही होगा।"

"हुजूरे आली, मुल्क अगर एक बड़े दरख्त के समान है तो सियासत पानी है जो उसकी जड़ें सींचता है। आपके जन्नत आशियानी अब्बा हुजूर बादशाह बाबर ने मुल्तान के रास्ते में ही कहा था कि हिंदोस्तान जीतकर वहाँ से हीरे जवाहरात लूट के ले जाने नहीं आया हूँ हम इसे अपना वतन कबूल करते हैं। हम चाहते है कि यहाँ एक पौध रोपें उसकी जड़े दूर-दूर तक फैलें खुदा की मर्जी."

"हमें याद है। अब्बा हुजूर ने यह सब इबादत के वक्त कहा था।"

"इबादात के वक्त दिल से निकली आवाज दुआ होती है।"

"उस वक्त इनसान अपने अल्लाह के रू-ब-रू खड़ा होता है।"

"हुजूर, तो हम लश्कर की तैयारी कर लें।"

"तैयारी हमारी तहजीब की तरह हो।"

"न हुजूर, यहाँ जंग पर जनानियों को नहीं ले जाते।"

"हम अपनी चाल क्यों छोड़ें?"

"पहली लड़ाई है। बेगमों को किले में रहने दें। बाकी को ले जा सकते हैं।"

"चलिए आप की तजवीज भी सही है" - बैरम खाँ ने सब मसले देख रखे थे। उन्हें यह अंदाजा हो गया था कि राजपूतों को अपने साथ मिलाना उतना मुश्किल नहीं है पठानों और अफगानों से पार पाना बेहद खतरनाक है। यह ज़रूर है कि छोटे छोटे कबीलों वाले छोटे-छोटे सूबों में बँटे थे उन्होंने यह भी सुन रखा था कि शेर खाँ एका कराने में जुटा था अब। "खानेखाना, आपकी तरह मैं शेर खाँ को कोई तवज्जो नहीं देता। वह है क्या चीज इधर उधर सियार की तरह भटकने वाला बिना किसी हैसियत का इनसान।"

"इतना कम करके आँकना सही नहीं है शहंशाह। दुश्मन जितना सामने से दिखाई पड़ता है उसकी ताकत पीछे से कहीं बड़ी है। यह न भूलें कि हमने पठान और अफगान सुल्तानों की फमट का ही फायदा उठाया है। अब यदि कोई शख्श एका करवा देता है तो हमारी मुखालफत के लिए तैयार हो जाता है।"

"अभी हमें कन्नौज से फौज लेकर सीधे गौड़ की ओर बढ़ना चाहिए आपकी राय यही है न" - हुमायूँ ने अपने आपको फतह की तजवीज की ओर मोड़ लिया। बैरम खाँ ने इशारा समझा कि अपनी नजर जमाकर उसी ओर रखनी चाहिए जिस ओर जाना है फालतू इधर उधर भटकने से क्या फायदा?

"शेर खाँ के सामने बड़ी से बड़ी सेना खड़ी करने की चुनौती थी। सेना के लिए धन चाहिए. घोड़े, हथियार और सिपाहियों के लिए धन ही ज़रूरी है। छोटी छोटी लड़ाइयों से इकट्ठा धन वह इन्हीं में खर्च करता। अपना और अपने कुनबे का जीवन शानदार नहीं रखता बेहद सादगी से रहता। जिन इलाकों में उसकी हुकूमत थी वहाँ खुशहाली थी, कर पूरे मिलते थे लेकिन बादशाहत की लड़ाई के लिए यह सब नाकाफी था। बिहार के अमीर सुल्तान मुहम्मद के इंतकाल के बाद नाबालिग जलाल खाँ का सूबा शेर खाँ की सलाह से जलाल की अम्माँ दूदा बेगम देखती थीं। दूदा खुद बीमार रहती। उन्होंने शेर खाँ को बुलाकर तिजोरी की चाभी दे दी कि जलाल की सरपरस्ती कभी न छोड़े। उन्हें शेर खाँ पर पूरा भरोसा था। जलाल खाँ के साथ खास सरदारों को छोड़ शेर खाँ अपने घर आए. घर आकर देखा कि पत्थर वाले किले पर निजाम ने डेरा बना लिया है। महारथ सिंह जमींदार का कहीं अता पता नहीं था।

"यह कैसे हुआ निजाम, सुना राजा साहब किला का कोई कोना छोड़ने को तैयार न थे।"

"हमने काफी कोशिश की भाई, पर वह नहीं माना फिर एक चाल चली।"

"क्या थी चाल?"

"हमने कहा भाभी कमानी बीवी, मेरी मेहर जमानी बीवी और बच्चे सभी बेहद बीमार हैं कम अज कम उन्हें तो हवेली में जाने की इजाजत दे दो। वह तैयार हो गया। हमने पचास पालकियों में भरकर पठान सिपाहियों को भेज दिया। उन्होंने राजा के आलसी सिपाहियों की मुश्कें कसी और बागीचे में छोड़ आए. दूसरे दिन राजा महारथ सिंह का श्यामसुंदर हाथी तैयार करवाया उन्हें उस पर बिठा बागीचे में ले आया।"

"निजाम, रनिवास का क्या हुआ?"

"भाई पालकी और बारादरियों में इज्जत के साथ उन्हें भी बागीचे वाले घर में पहुँचा दिया।"

"अब वे कहाँ हैं?"

"बागीचे में ही हैं। उनकी जमींदारी वहीं तो है।"

"देखो यह तरीका ठीक नहीं था। औरतों की शान में कोई गुस्ताखी नहीं होनी चाहिए."

"नहीं होगी भाई." - निजाम ने कहा। बहुत दिनों के बाद एक पुरसुकून रात थी शेर खाँ की कमानी बीवी ने साथ चार-चार बेटों को जन्म तो दिया यूँ ही भागते से।

"मेरे सरताज, इस किले पर हम हैं किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है न ही डर है। यहाँ से रसद के सिवा कुछ भी लेने नीचे जाने की ज़रूरत नहीं है। आज से दस साल पहले जब हम यहाँ आए थे इस्लाम के पैदा होने के वक्त तक नहीं पता था कि चश्मा-पानी और दरिया सब यहाँ मौजूद है। यह जन्नत है मेरे आका।"

"आप खुश हैं बेगम तो मैं खुश, देखिए हमने कभी आपको अपना समय नहीं दिया, जंगलों पहाड़ों की खाक छानते फिरते हैं। एक जुनून-सा सवार है कि मुझे हिंदोस्तान का शहंशाह बनाना है। कई लोग तंज कसते हैं पर मेरा दिल कहता है ऐसा होगा ज़रूर। आप हिंदोस्तान की मलिका बनेंगी।"

"इतनी अच्छी बातें सुनकर यकीन करने का जी करता है मेरे शहंशाह। आप मेरे लिए हिंदोस्तान तो क्या काबुल कांधार खुरासान ईरान सभी के बादशाह हैं।"

"यही सादगी मुझे आगे बढ़ने की कुव्वत देती है बेगम।"

"यहाँ एक अफवाह उड़ी थी मेरे हमदम कि आपने दुदा बेगम से निकाह पढ़वा लिया है।" - कमानी बीवी ने पूछने के अंदाज में कहा। शेर खाँ को हँसी आ गई. सचमुच यह अफवाह उड़ी तो थी। हमारी बीवी तक पहुँच गई.

"मैंने कोई निकाह नहीं पढ़वाया। दूदा बेगम जन्नतनशीं हो गई. वे बेहद नेकदिल इनसान थीं। कमानी बीवी, सुल्तान मुहम्मद निहायत कमीना इनसान था, उसने बड़े हरम बना रखे थे पर जलाल की अम्माँ भली औरत थीं। उनपर गलती से भी तंज न कसें।" - शेर खाँ उदास हो गए. "यह भी सुन रखा है पर अब जो मैं कहने जा रही हूँ उस पर गौर फरमाइएगा अपने बाजू में जो चुनार गढ़ है उसे तो देख रहे हैं न?"

"बिल्कुल, इस रोहतासगढ़ के किले का बड़ा भाई है क्यों न देखूँ।" शेर खाँ ने तपाक से कहा।

"और क्या-क्या जानते हैं मेरे आका? सिर्फ किले की चारदीवारी ही दीखती है या और कुछ?"

"अपने ताज खाँ साहब को सुल्तान इब्राहिम लोदी ने वह किला दिया था। चुनारगढ़ उन्हीं का है।"

"हुजूर उनकी एक बेगम है लाड मलका। सुना है वह रक्कासा थी। बेहद हसीन है। धनवान भी है, ताज खाँ साहब की चहीती है।"

"होगी, ऐसा होता है।"

"पर वह मलका मुसीबत में है। उसके सौतेले बेटे ताज खाँ को मार डालना चाहते हैं, लाड मलका को अपना बनाना चाहते हैं।"

"ऐसा कैसे हो सकता है। जिससे चिढ़ हो सकती है उसे अपनाना, यह नहीं हो सकता।"

"लाड मलका के जहन में सिर्फ आपका नाम आता है जो उसे इस मुश्किल से उबार ले।"

"आपको किसने कहा? और मैं दूसरे के घर के अंदर क्यों घुसने जाऊँ? यह कोई सियासी मुआमला तो है नहीं। मैं ऐसे वाकयात सुनना भी नहीं चाहता।"

"सुनिए तो, आपको निजाम भाई भी बताएँगे।" - एक हसीन रात कमानी बीवी ने खो दिया। शेर खाँ करवटें बदलते रहे। उन्हें ठीक से समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सुबह-सुबह निजाम को तलब किया और पूछा कि चुनारगढ़ का क्या किस्सा है?

"ओहो भाई, मैं अपने आप में इतना उलझा था कि आपको कुछ बता नहीं पाया। अच्छा हुआ कि भाभीजान ने आपसे यह सब कह दिया। चुनारगढ़ से लाड मलका का एक खत आया है।" - निजाम ने खत शेर खाँ को पढ़ने दिया। सचमुच लाड मलका शेर खाँ से मदद की गुहार कर रही हैं। किले के किसी गुप्त कोने में वे ताज खाँ के साथ छुपी है।"- शेर खाँ दिन भर सोचता रहा क्या करना चाहिए. ताज खाँ के बहाने कोई दुश्मन तो नहीं है? लेकिन क्यों कर कोई दुश्मन चुनारगढ़ का सहारा लेगा? चुनारगढ़ की कौन-सी पोशीदा जगह है जहाँ ताज खाँ छुपे हो सकते हैं वहाँ कैसे पहुँचें? समय बालू की मानिंद इनकी मुट्ठी से फिसलता जा रहा था। रात गहरी काली थी, इनकी बाँहों में बेटा आदिल खाँ सो रहा था, बाज बड़ी बेचैनी से फड़फड़ा रहा था कि शेर खाँ उठ खड़ा हुआ। अपने साथ एक हजार सिपाही लेकर चुनारगढ़ की ओर चला पड़ा। गढ़ की दीवारों के अंदर जो हलचल मची थी वह किलेदार बिल्कुल नहीं जानता था। शेर खाँ अफगान था और लोदी वंश का खैरख्व्वाह था। ताज खाँ के साथ उनकी आमदरफ्त थी। दरवाजा खोल दिया गया। अंदर हवेली में जाते ही उसने जो नजारा देखा वह दिल दहला देने वाला था। ताज खाँ के बेटे ने उनका सर काट दिया था। लाड मलका के बाल पकड़कर खींच रहे थे।"बता खजाना कहाँ छुपा रखा है गलीज रक्कासा, बता वरना में तेरा वह हस्र करूँगा कि शैतान भी शर्मा जाए." - ताज खाँ का बेटा बक रहा था लाड मलका रोए जा रही थी। शेर खाँ ने उसके चंगुल से लाड मलका को छुड़ाया। बिना बड़ी लड़ाई के वह इनके कब्जे में आ गया। शेर खाँ ने उसे कैद कर लिया और ताज खाँ को इज्जत से दफन किया। उसने लाड मलका से काफी माँगी कि उन्हें आने में देरी हुई.

"मोहतरमा लाड मलका, अगर मैं बिना समय गँवाए आ गया होता तो आज ताज खाँ साहेब हमारे बीच होते। हमें बेहद अफसोस है, मैं शर्मिंदा हूँ। मुझे लगता है ताज खाँ साहब की ऐसी मौत के लिए मैं खुद जिम्मेवार हूँ।"

"शेर खाँ, आप आए यह बताता है कि ताज खाँ साहेब का आप पर ऐतबार बिल्कुल सही था। उन्होंने कहा था कि शेर खाँ ही इस किले को किसी गैर के हाथों जाने से बचा सकता है।"

"जहेनसीब, मुझे इस लायक समझा अमीर ताज खाँ ने।"

"शेर खाँ साहेब, एक इल्तिजा है।"

"कहिए मल्काँ"

"मेरे पास ताज खाँ साहेब का और मेरा अपना खजाना है वह माशा अल्लाह बहुत बड़ा है। चुनारगढ़ में पाँच हजार घुड़सवार फौज है यह सब आपकी नजर करती हूँ।"

"आप खुद एक जवान खातून हैं, सब कुछ सँभाल सकती हैं मैं मदद करूँगा।"

"मुझे आपकी मदद चाहिए हुजूर लेकिन आप मेरी पूरी बात गौर से सुनिए तो सही।"

"कहिए लाड मल्का।"

"आप मुझसे निकाह पढ़वा लीजिए. मैं और मेरा धन, मैं और मेरा गढ़ सब आपका।" - शेर शाह गुस्से से लाल हो गए. सोचा यह औरत अपनी बेमिसाल खूबसूरती और धनबल की धौंस दिखा रही है। कैसी बेरहम है यह। ताज खाँ साहब की कब्र की मिट्टी अभी गीली ही है और यह मुझसे निकाह की तैयारी कर रही है। लेकिन इसे नहीं मालूम की शेर खाँ किसी औरत से ज़रा भी नहीं भरमाता। धन-बल अपने बाजुओं की ताकत पर हासिल करता है इस तरह की गलती करने का वक्त बहुत पीछे छूट गया है।

"मैंने ताज खाँ साहब की महबूबा के नाते आपकी इज्जत अफजाई की मोहतरमा आप तो ऐसे बेहिस सवाल करने लगीं, बल्कि तजवीज सुझाने लगीं। मैं अंदर गढ़ में आपके जानिब खड़ा हूँ आपको कैद कर अमीर बन बैठूँ कौन माई का लाल रोकेगा? पर शेर खाँ ऐसा नहीं कर सकता। मुझे तकलीफ हो रही है यह कहने में कि मुझे आपको पहचानने में गलती हुई."

"गलती तो हुई हुजूरे आली शेर खाँ पर मुझे पहचानने में नहीं पूरे वाकयात को समझने में। मैं जो कुछ आपको कह रही हूँ वह मरहूम ताज खाँ साहेब का हुकुम था मेरे लिए उन्होंने ही कहा था कि मैं आपकी सरपरस्ती कबूल कर लूँ।"

"क्या?"

"जी हुजूर, उन्हें मालूम था कि आप ज़रूर आएँगे। उनकी उम्र हो चली थी बाजुओं में दम कम था। मुगल बादशाह हुमायूँ का डर था। उससे भिड़ने का दमखम किसके पास है? शेर खाँ आप और हम मिलकर मुकाबला कर सकते हैं। हमारे पास जो धन है उससे तोप और बंदूकें खरीदें। बारूदी हथियार से मुगल लैस हैं अगर अफगान पठानों की हुकूमत बरकरार रखना चाहते हैं तो हमारी अर्जी पर गौर फरमाएँ वरना हमें हमारे हाल पर छोड़ दें।" - शेर खाँ ने हैरत से लाड मलका के चेहरे की ओर गौर से पहली बार देखा। यह बेमिसाल खूबसूरत औरत हिम्मतवाली है। इसके पेशकश में दम तो है। क्या करे? बिना सरपरस्ती के कैसे हक हो सकता है इसके धन बल पर?

"मुझे सोचने का मौका दें मोहतरमा।"