अपराध और दंड / अध्याय 6 / भाग 3 / दोस्तोयेव्स्की

Gadya Kosh से
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उसे स्विद्रिगाइलोव से जल्द से जल्द मिलने की बेचैनी थी। उस आदमी से वह क्या पाने की उम्मीद कर सकता था, यह तो उसे भी नहीं मालूम था, लेकिन लगता था उस पर उस शख्स का किसी न किसी तरह का दबाव था। इस बात को एक बार समझ लेने के बाद वह अब चैन से नहीं बैठ सकता था। अलावा इसके, अब वक्त भी आन पहुँचा था।

रास्ते में एक सवाल उसे खास तौर पर परेशान करता रहा : क्या स्विद्रिगाइलोव पोर्फिरी से मिलने गया था?

जहाँ तक वह समझ पा रहा था - और यह बात वह कसम खा कर कहने को तैयार था - वह नहीं गया था। उसने एक बार फिर ध्यान से इस सवाल पर सोचा, पोर्फिरी के साथ अपनी मुलाकात की छोटी से छोटी बात को भी याद किया, और इसी नतीजे पर पहुँचा : वह नहीं गया था; कतई नहीं गया था!

लेकिन अगर वह पोर्फिरी के पास अभी तक नहीं गया था तो क्या अब जाएगा या नहीं?

उस वक्त उसे पूरा-पूरा यकीन था कि वह नहीं जाएगा। क्यों... इसकी कोई वजह वह नहीं बता सकता था, लेकिन अगर बता भी सकता तो इस वक्त वह इस पर ज्यादा वक्त खराब करने को तैयार नहीं था। ये सारी बातें उसे परेशान तो करती थीं, पर न जाने क्यों ऐसा लगता था कि उसे इनकी कोई परवाह नहीं है। यह एक अजीब बात थी, और इस पर शायद कोई यकीन भी न करता, लेकिन उसे न तो अपनी वर्तमान स्थिति की बहुत चिंता थी और न अपने निकट भविष्य की। उसे चिंता किसी और ही बात की थी, एक ऐसी बात की जो कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी, एक ऐसी बात की जो खास अहमियत रखती थी। एक ऐसी बात की जिसका किसी दूसरे से कोई संबंध नहीं था; लेकिन वह बिलकुल ही दूसरी बात थी और उसका महत्व भी बहुत खास था। अलावा इसके वह एक गहरे नैतिक पतन का एहसास भी कर रहा था, हालाँकि आज उसका दिमाग जितनी अच्छी तरह काम कर रहा था, उतनी अच्छी तरह इधर हाल में कभी नहीं किया था।

खैर, जो कुछ हो चुका था उसके बाद इन छोटी-मोटी कठिनाइयों पर काबू पाने का क्या सचमुच कोई फायदा था... मिसाल के लिए, क्या इस बात का कोई फायदा था कि स्विद्रिगाइलोव को पोर्फिरी से मिलने से रोकने की योजना बनाई जाए और उसके लिए कोई साजिश की जाए या स्विद्रिगाइलोव जैसे आदमी को समझने, उसके बारे में मालूम करने की कोशिश करने और उस पर वक्त खराब करने का

आह, इन सब बातों से वह कितना तंग आ चुका था!

फिर भी, इन तमाम बातों के बावजूद वह स्विद्रिगाइलोव से मिलने के लिए भागा चला जा रहा था; कहीं ऐसा तो नहीं था कि वह उससे किसी नई बात की उम्मीद रख कर जा रहा था कुछ हिदायतों की बच निकलने के किसी रास्ते की डूबते को तिनके का सहारा होता है! क्या नियति या कोई सहज भावना, उन दोनों को एक-दूसरे के करीब ला रही थीं? शायद वह सिर्फ महसूस कर रहा था। शायद यह घोर निराशा थी। शायद उसे स्विद्रिगाइलोव की नहीं, किसी दूसरे ही आदमी की जरूरत थी और स्विद्रिगाइलोव तो बस रास्ते में आ गया था। सोन्या की लेकिन अब वह सोन्या के पास क्यों जाए? एक बार फिर आँसुओं की भीख माँगने? अलावा इसके उसे सोन्या से डर भी लग रहा था। उसकी निगाह में सोन्या एक निर्मम भर्त्सना की, एक अटल निर्णय की प्रतीक थी। वहाँ तो बस यह था कि या तो सोन्या का रास्ता हो या उसका अपना। खास तौर पर उस समय वह अपने को उसने मिलने के लिए तैयार नहीं कर पा रहा था। इससे कहीं अच्छा शायद यह होता कि वह स्विद्रिगाइलोव को आजमा कर देखे और यह मालूम करे कि वह किस किस्म का आदमी है। वह अपने दिल की गहराई में इस बात को मानने पर मजबूर था कि उसे बहुत अरसे से किसी वजह से उसकी जरूरत थी।

तो भी ऐसी क्या चीज थी जो उन दोनों के बीच एक जैसी थी उन दोनों ने जो कत्ल किए थे वे भी तो एक ही तरह के नहीं थे। अलावा इसके वह आदमी बेहद आपत्तिजनक, बेहद अनैतिक, परले दर्जे का कमीना और धोखेबाज, और शायद कीने से भरा हुआ भी था। उसके बारे में कैसे-कैसे भयानक किस्से कहे जाते थे। यह सच था कि कतेरीना इवानोव्ना के बच्चों के लिए वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन कौन जाने उसका मकसद क्या था या इन बातों के पीछे रहस्य क्या था उस आदमी के पास तरह-तरह के मंसूबों की कभी कोई कमी तो रही नहीं।

उन दिनों रस्कोलनिकोव के दिमाग पर एक और विचार छाया हुआ था जिसने उसे बहुत परेशान कर रखा था, हालाँकि उसने उसे अपने दिमाग से निकालने की पूरी कोशिश की थी क्योंकि वह उसके लिए बहुत कष्टदायक था। कभी-कभी वह यह सोचे बिना रह नहीं सकता था कि स्विद्रिगाइलोव उसका पीछा करता आ रहा था और अब भी कर रहा था, कि स्विद्रिगाइलोव ने उसका भेद पा लिया था, कि स्विद्रिगाइलोव के दिल में दूनिया के बारे में भी कुछ मंसूबे रह चुके थे। और अगर ये मंसूबे अब भी हों तो यह लगभग तय था कि उसके दिल में ऐसे मंसूबे अब भी थे। अगर उसका भेद पा लेने और इस तरह उसे अपने शिकंजे में कस लेने के बाद, वह इसे दूनिया के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल करे तो क्या होगा?

यह विचार जो उसे सपने में भी सताता रहता था, उसके मन में कभी इतने जोरदार ढंग से नहीं उठा था जिस तरह इस वक्त उठ रहा था जबकि वह स्विद्रिगोइलोव के पास जा रहा था। इस विचार के उठते ही वह गुस्से से पागल हो उठता था। पहली बात तो यह थी कि इससे हर चीज बदल जाएगी, उसकी अपनी स्थिति भी। उसे अपना भेद दूनिया को फौरन बता देना होगा। उसे शायद पूरी तरह आत्मसमर्पण कर देना होगा ताकि दूनिया को कोई नासमझी का कदम उठाने से रोका जा सके। वह खत दूनिया को उसी दिन सबेरे कोई खत मिला था। पीतर्सबर्ग में भला उसे किसने खत भेजा होगा (शायद लूजिन ने?), यह सच था कि रजुमीखिन वहाँ नजर रख रहा था, लेकिन रजुमीखिन कुछ नहीं जानता। क्या उसे रजुमीखिन को फौरन अपना भेद बता देना चाहिए? यह विचार रस्कोलनिकोव के लिए काफी अप्रिय था।

बहरहाल, उसे स्विद्रिगाइलोव से जल्द-से-जल्द मिलना होगा। उसने मन-ही-मन अंतिम निर्णय किया। खैरियत की बात यह थी कि इस बारे में ब्यौरे की बातों का उतना महत्व नहीं था जितना मुख्य बात का। लेकिन अगर... अगर वह सचमुच ऐसा कुछ कर सकता हो, अगर दूनिया के खिलाफ स्विद्रिगाइलोव सचमुच कोई मंसूबा बना रहा हो तो...

पिछले एक महीने की घटनाओं से थक कर रस्कोलनिकोव इतना चूर हो चुका था कि इस तरह के सवालों का एक ही फैसला कर सकता था - 'फिर तो मैं उसे मार डालूँगा।' उसने क्रूर निराशा के भाव से यह बात सोची। और बेहद उदास हो गया। यह देखने के लिए कि वह किधर जा रहा था और कहाँ तक पहुँच चुका था, वह सड़क के बीच में रुक गया। वह ओबुखोव्स्की एवेन्यू में था, भूसामंडी से कोई तीस-चालीस गज दूर, जहाँ से वह चला था। बाईं ओर के मकान की पूरी दूसरी मंजिल में एक रेस्तराँ था। सारी खिड़कियाँ पूरी खुली हुई थीं। खिड़कियों के रास्ते जो कुछ नजर आ रहा था उससे पता चलता था कि रेस्तराँ खचाखच भरा हुआ है। खाने के कमरे से गाने की; एक वायलिन और क्लेरिनैट की आवाजें और एक तुर्की ढोल की ढम-ढम की आवाजें आ रही थीं। औरतों की चीखें सुनाई दे रही थीं। यह सोच कर कि वह ओबुखोव्स्की एवेन्यू में मुड़ा ही क्यों था, वह वापस जाने ही वाला था कि उसे अचानक स्विद्रिगाइलोव दिखाई पड़ गया। रेस्तराँ की एक सबसे दूरवाली खुली खिड़की के पास वह मुँह में पाइप लगाए, चाय की मेज के सामने बैठा हुआ था। इस संयोग पर उसे बेहद आश्चर्य हुआ, बल्कि यूँ कहिए कि वह धक से रह गया। स्विद्रिगाइलोव उसे चुपचाप देख रहा था। रस्कोलनिकोव को यह बात बरबस खटकी : उसे ऐसा क्यों लगा कि स्विद्रिगाइलोव उठना चाह रहा था ताकि इससे पहले कि उसे देखा जा सके, वह वहाँ से चपुचाप खिसक जाए। रस्कोलनिकोव ने भी फौरन यूँ जताया कि जैसे उसने उसे देखा न हो, बल्कि किसी दूसरी ही दिशा में किसी दूसरी ही चीज को देख रहा हो, लेकिन वह कनखियों से बराबर उसे देखे जा रहा था। उसका दिल बेचैनी से धड़क रहा था। उसका अनुमान ठीक था। स्विद्रिगाइलोव साफ तौर पर यह नहीं चाहता था कि कोई उसे देख सके। उसने मुँह से पाइप निकाला और छिपाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ज्यों ही वह उठा और अपनी कुर्सी पीछे खिसकाई, उसे जरूर यह एहसास हुआ होगा कि रस्कोलनिकोव ने उसे देख लिया था और लगातार उस पर नजर रखे हुए था। इस समय उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ वह बहुत कुछ उस दृश्य जैसा ही था जो रस्कोलनिकोव के कमरे में उनकी पहली मुलाकात के समय सामने आया था, जब रस्कोलनिकोव सो रहा था। स्विद्रिगोइलोव के चेहरे पर एक कमीनी मुस्कराहट उभरी जो धीरे-धीरे फैल कर चौड़ी होती गई। दोनों को ही मालूम था कि दूसरे ने उसे देख लिया है और उस पर नजर रख रहा है। आखिरकार स्विद्रिगाइलोव ठहाका मार कर हँसा।

'खूब! जी चाहे तो अंदर आ जाओ... मैं यहाँ हूँ!' उसने खिड़की में से पुकार कर कहा।

रस्कोलनिकोव सीढ़ियाँ चढ़ कर रेस्तराँ में जा पहुँचा।

उसने देखा, स्विद्रिगाइलोव खाने के बड़े कमरे से लगे और उसके पीछे एक बहुत ही छोटे कमरे में बैठा था जिसमें बस एक खिड़की थी। खाने के बड़े कमरे में कई व्यापारी, सरकारी नौकर और बहुत से दूसरे लोग जान लड़ा कर गानेवालों की टोली के शोर के बीच बीस छोटी-छोटी मेजों पर बैठे चाय निगल रहे थे। कहीं से बिलियर्ड की गेंदों के टकराने की आवाज आ रही थी। स्विद्रिगाइलोव के सामने मेज पर शैंपेन की एक खुली बोतल और एक आधा भरा गिलास रखा हुआ था। उसी कमरे में हाथ में छोटा-सा आर्गन लिए हुए एक लड़का था और कोई अठारह साल की, तंदुरुस्त और लाल-लाल गालोंवाली एक लड़की भी थी, जो धारीदार स्कर्ट उड़स कर पहने हुए थी और सर पर फीतों से सजी टाइरोलियन हैट लगाए हुए थी। बगलवाले कमरे में गाने के शोर के बावजूद वह आर्गन की धुन पर ऊँची भर्राई हुई आवाज में कोई बाजारू गाना गा रही थी...

'अच्छा, अब रहने दो!' रस्कोलनिकोव के अंदर आते ही स्विद्रिगाइलोव ने उसे टोकते हुए कहा।

लड़की ने गाना फौरन बंद कर दिया और बड़े अदब से खड़ी इंतजार करती रही। बाजारू गाना गाते समय भी उसके चेहरे पर आदर और गंभीरता का यही भाव था।

'फिलिप, एक गिलास लाना!' स्विद्रिगाइलोव ने आवाज दी।

'मैं शराब नहीं पिऊँगा,' रस्कोलनिकोव ने कहा।

'जैसी तुम्हारी मर्जी, लेकिन गिलास तुम्हारे लिए माँगा भी नहीं। लो पियो, कात्या! आज मैं कोई और गाना नहीं सुनूँगा। तुम जा सकती हो!' उसने कात्या के लिए एक गिलास भरा और एक पीला नोट निकाल कर उसे दिया। कात्या ने एक घूँट में गिलास खाली कर दिया, जैसा कि औरतें आम तौर पर करती हैं यानी बीस चुस्कियाँ लेने के लिए बीच में रुके बिना, नोट लिया, स्विद्रिगाइलोव का हाथ चूमा, जो स्विद्रिगाइलोव ने बड़ी गंभीर मुद्रा बना कर उसे करने दिया, और कमरे के बाहर चली गई। लड़का भी आर्गन लिए हुए उसके पीछे-पीछे चला गया। उन दोनों को सड़क पर से लाया गया था। स्विद्रिगाइलोव को पीतर्सबर्ग आए अभी मुश्किल से एक हफ्ता हुआ था, लेकिन इन थोड़े दिनों में ही उसके सारे तौर-तरीके एक खास ढंग के बन चुके थे। वेटर फिलिप जल्द ही उसका 'पुराना दोस्त' बन चुका था, और बड़ी मुस्तैदी से उसका हर हुक्म बजा लाने को तैयार रहता था। खाने के कमरे में जानेवाला दरवाजा आम तौर पर बंद रहता था। इस छोटे कमरे में स्विद्रिगाइलोव को हर तरह की सुख-सुविधा मिलती थी और वह शायद पूरा-पूरा दिन उसी में काट देता था। रेस्तराँ बहुत गंदा और सस्ता था; शायद दूसरे दर्जे का भी नहीं था।

'मैं आप ही से मिलने जा रहा था,' रस्कोलनिकोव ने कहना शुरू किया। 'आपकी खोज में। लेकिन न जाने क्यों मैं भूसामंडी से ओबुखोव्स्की एवेन्यू की तरफ मुड़ गया। मालूम नहीं, किसलिए। मैं इधर कभी नहीं आता। आम तौर पर भूसामंडी से दाहिनी ओर मुड़ जाता हूँ। फिर यह आपके यहाँ जाने का रास्ता भी तो नहीं है। सड़क का नुक्कड़ मुड़ते ही आप पर मेरी नजर पड़ी! अजीब बात है!'

'साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि चमत्कार है?'

'इसलिए कि शायद यह महज इत्तफाक है।'

'आह, तुम लोग भी अजीब हो,' स्विद्रिगाइलोव ठहाका मार कर हँसा। 'मानोगे नहीं, हालाँकि दिल में चमत्कारों में विश्वास रखते हो। तुमने अभी कहा कि 'शायद' यह इत्तफाक था। पर मेरे दोस्त, जब खुद अपनी राय जाहिर करने का सवाल आता है तो तुम यहाँ के लोग इतने बुजदिल हो जाते हो कि सोचा भी नहीं जा सकता। मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा। तुम अपने दिमाग से सोचते हो और इस बात से डरते भी नहीं। यही वजह है कि मेरे मन में तुम्हारे बारे में जानने की इच्छा पैदा हुई।'

'इसके अलावा और कोई बात नहीं थी?'

'क्यों, क्या इतना काफी नहीं है?'

स्विद्रिगाइलोव सचमुच तरंग में था, हालाँकि थोड़ा ही था। उसने आधा गिलास शराब ही पी थी।

'मुझे तो लगता है कि आप जिस चीज को मेरा अपना दिमाग कहते हैं उसका पता लगने से पहले ही आप मुझसे मिलने आए थे,' रस्कोलनिकोव ने अपनी राय जाहिर की।

'खैर, दूसरी ही बात थी उस वक्त। हर किसी का काम करने का अपना ढंग होता है। जहाँ तक चमत्कार का सवाल है, तो मैं तुम्हें इतना ही बता सकता हूँ कि तुम पिछले दो-तीन दिन से सोते रहे हो। इस रेस्तराँ के बारे में मैंने खुद तुम्हें बताया था, और यहाँ तुम्हारे आने में ऐसी कोई चमत्कार की बात नहीं है। मैंने तुम्हें यहाँ आने का रास्ता बताया था, इस जगह के बारे में बताया था, यह बताया था कि यह जगह कहाँ है और यह भी बताया था कि मैं यहाँ किस वक्त मिल सकता हूँ। याद नहीं?'

'मुझे याद नहीं पड़ता,' रस्कोलनिकोव ने हैरान हो कर जवाब दिया।

'चलो, तुम्हारी बात माने लेता हूँ। मैंने दो बार तुम्हें इसके बारे में बताया था। सो पता अनजाने ही तुम्हारे दिमाग में चिपका रह गया होगा और तुम आप ही मेरे बताए हुए रास्ते पर चलते हुए इस सड़क पर मुड़े होगे, हालाँकि यह बात तुम्हें खुद मालूम नहीं रही होगी। तुम्हें इसके बारे में अभी उस दिन जब मैं बता रहा था तब मेरे खयाल में तुम समझे नहीं थे। दोस्त, तुम खुद अपना भेद बहुत ज्यादा खोलते चलते हो। एक बात और। मुझे पूरा यकीन है कि पीतर्सबर्ग में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चलते-चलते अपने से बातें करते रहते हैं। यह आधे पागलों का शहर है। अगर यह वैज्ञानिकों का राष्ट्र होता तो हमारे डॉक्टर, वकील और यह दार्शनिक यहाँ पीतर्सबर्ग में अपने-अपने क्षेत्रों में बहुमूल्य खोजें कर सकते थे। तुम्हें पीतर्सबर्ग जैसी जगह आसानी से नहीं मिलेगी जहाँ आदमी के दिमाग पर इतनी सारी विचित्र, कठोर और निराशाजनक चीजों का असर पड़ता रहता है। जरा सोचो, अकेले यहाँ की जलवायु का ही कितना असर पड़ता होगा! और यह रूस के प्रशासन का केंद्र भी है, और इसके चरित्र की झलक हर चीज में दिखाई देना लाजमी है। लेकिन इस वक्त मैं यह बात समझाना नहीं चाहता। बात यह है कि तुम्हारे जाने बिना ही मैं अब तक कई बार तुम्हें गौर से देख चुका हूँ। जब तुम अपने घर से निकलते हो, तब तुम अपना सर ऊँचा किए रखते हो। बीस कदम के बाद तुम्हारा सर झुक जाता है और तुम अपने हाथ पीठ पीछे बाँध लेते हो। आँखें खोले चीजों पर तुम नजर तो डालते हो लेकिन साफ मालूम होता है कि न तो अपने सामने की कोई चीज देखते हो और न अपने दोनों तरफ की। आखिर में तुम्हारे होठ हिलने लगते हैं और तुम खुद से बातें करने लगते हो। इसके ही साथ अकसर तुम अपना एक हाथ दूसरे से छुड़ा कर कविता-पाठ जैसा कुछ करने लगते हो। आखिर में तुम बीच सड़क रुक जाते हो और देर तक वहीं खड़े रहते हो। पर जनाब, बहुत बुरी बात है यह। मेरे अलावा दूसरे लोगों का ध्यान भी इस बात की ओर जा सकता है, और हो सकता है कि तुम ऐसा न चाहो। जाहिर है, मैं इसकी जरा भी परवाह नहीं करता, न ही यह उम्मीद करता हूँ कि मैं तुम्हारी यह बीमारी ठीक कर सकता हूँ। अलबत्ता तुम मेरा मतलब समझ गए होगे, कि नहीं?'

'आप क्या यह बात जानते हैं कि मेरा पीछा किया जा रहा है?' रस्कोलनिकोव ने पैनी नजरों से स्विद्रिगाइलोव को देखते हुए पूछा।

'नहीं, मुझे इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं,' स्विद्रिगाइलोव ने इस तरह जवाब दिया, गोया उसे यह सुन कर ताज्जुब हुआ हो।

'खूब, तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए,' रस्कोलनिकोव माथे पर बल डाल कर बुदबुदाया।

'अच्छी बात है, तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ देते हैं।'

'मुझे तो आप यह बताइए कि अभी जब मैं सड़क से ऊपर खिड़की की ओर देख रहा था तो मुझसे आप छिप क्यों रहे थे। आप अगर यहाँ आम तौर पर पीने आते हैं और दो बार मुझसे यहाँ आ कर मिलने को कह चुके हैं तो आपने मुझसे नजर चुरा कर यहाँ से खिसकने की कोशिश क्यों की? मैं सब देख रहा था।'

'हा-हा! और जब मैं तुम्हारे चौखट पर खड़ा था और तुम आँखें बंद किए सोफे पर पड़े थे तो सोने का बहाना क्यों कर रहे थे, जबकि तुम सो नहीं रहे थे मैंने भी अच्छी तरह सब कुछ देखा था।'

'हो सकता है कि... मेरे ऐसा करने की कोई वजह रही हो, जैसा कि आप खुद जानते हैं।'

'मेरे पास भी ऐसा करने की वजह हो सकती है, हालाँकि तुम उसे नहीं जान सकोगे।'

रस्कोलनिकोव ने अपनी दाहिनी कुहनी मेज पर टिका ली और दाहिने हाथ की उँगलियों से ठोड़ी को नीचे से सहारा दे कर गौर से स्विद्रिगाइलोव को घूरने लगा। वह लगभग एक मिनट तक उसके चेहरे को नजरें जमा कर देखता रहा, क्योंकि हमेशा से ही वह उसके चेहरे से बहुत प्रभावित था। वह एक अजीब किस्म का चेहरा था जो देखने में मुखौटे जैसा लगता था : सफेद चेहरा, लाल गाल, गहरे लाल होठ, हलके रंग के सन जैसे बालों की दाढ़ी और सुनहरे बाल जो अभी तक काफी घने थे। लेकिन उसकी आँखें जरूरत से कुछ ज्यादा ही नीली लगती थीं, और नजर जरूरत से ज्यादा बोझिल और निश्चल थी। इस खूबसूरत चेहरे में, जो उसकी उम्र को देखते हुए बेहद नौजवान चेहरा था, कोई बात ऐसी जरूर थी जिससे नफरत पैदा होती थी। स्विद्रिगाइलोव की पोशाक गर्मियोंवाले हलके कपड़े की बनी हुई थी और लगता था, उसे अपनी कमीज पर खास गर्व था। उसकी एक उँगली पर बड़ी-सी अँगूठी थी, जिसमें कीमती नग जड़ा हुआ था।

'मुझे क्या आपके पीछे भी वक्त बर्बाद करना होगा?' रस्कोलनिकोव ने अचानक ब्रेसब्री से कसमसाते हुए सीधे मतलब की बात कही। 'हो सकता है आप कोई मुसीबत खड़ी करना चाहें और बहुत ही खतरनाक साबित हों, लेकिन आपकी वजह से मैं अपनी जिंदगी में कोई उलझाव पैदा करने को तैयार नहीं हूँ। आपको मैं साफ-साफ बता देना चाहता हूँ कि मुझे अपनी उतनी चिंता कतई नहीं जितनी आप शायद समझते हैं। इतना समझ लीजिए जनाब, मैं आपसे साफ-साफ यह कहने आया हूँ कि अगर आप अभी भी मेरी बहन की तरफ वही पहलेवाले इरादे रखते हैं, और अगर यह समझते हैं कि आपको अभी हाल में मेरे बारे में जिस बात का पता लगा है उसे इस्तेमाल करके आप अपनी मंशा पूरी कर लेंगे, तो इससे पहले कि आप मुझे जेल भिजवाएँ, मैं आपको जान से मार दूँगा। मेरी कोरी धमकियाँ देने की आदत नहीं है और मैं समझता हूँ, आप यह जानते ही होंगे कि मैं अपनी बात का पक्का हूँ। दूसरे, अगर आपको मुझसे कोई बात कहनी है -क्योंकि मुझे हर वक्त ऐसा लगता रहता है कि आपको मुझसे कोई बात कहनी है - तो वह बात आप मुझे फौरन बता दीजिए। इसलिए कि वक्त बहुत कीमती है और बहुत मुमकिन है कि जल्द ही देर हो जाए और वह बात बताने का वक्त न रहे।'

'ऐसी जल्दी क्या है? कहीं जाना है क्या?' स्विद्रिगाइलोव ने हैरानी से उसे देखते हुए पूछा।

'हर आदमी का काम करने का अपना ढंग होता है,' रस्कोलनिकोव ने बेचैनी से और गंभीर हो कर जवाब दिया।

'अभी तुमने खुद मुझे ललकारा था कि मैं तुमसे साफ-साफ बातें करूँ और अब तुम मेरे पहले ही सवाल का जवाब देने से इनकार कर रहे हो,' स्विद्रिगाइलोव ने मुस्कराते हुए अपनी राय जाहिर की। 'मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि तुम समझते हो, मेरे मन में कोई बात है, और इसीलिए तुम मुझे शक की नजर से देखते हो। खैर तुम्हारी हालत को देखते हुए यह बात पूरी तरह समझ में आती है। लेकिन यह चाहते हुए भी कि मैं तुम्हारे साथ दोस्ती निभाऊँ, मैं तुम्हें यह समझाने की कोशिश नहीं करूँगा कि ऐसा समझना तुम्हारी भूल है। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि यह कोई ऐसी बात नहीं जिसमें दिमाग खपाया जाए। सच तो यह है कि तुमसे किसी खास बात के बारे में चर्चा करने का मेरा कोई इरादा भी नहीं था।'

'तो फिर आपको मेरी इतनी क्या जरूरत पड़ी थी आप ही तो मुझे तलाश करते घूम रहे थे, कि नहीं?'

'तुम्हें बस देखने-समझने की एक दिलचस्प चीज मानते हुए। तुम्हारे लिए मेरे मन में सिर्फ इसलिए दिलचस्पी पैदा हुई थी कि तुम जिस हालत में थे, वह अजीब थी। जी, यही बात थी! अलावा इसके तुम एक ऐसी नौजवान महिला के भाई हो जिनमें मेरी काफी दिलचस्पी रही है और जिनसे मैंने तुम्हारे बारे में इतना कुछ सुना था कि मैं लाजमी तौर पर इसी नतीजे पर पहुँचा कि उन पर तुम्हारा गहरा असर रहा है। क्या इतना काफी नहीं है? हा-हा-हा! तो भी मैं यह मानने को तैयार हूँ कि तुम्हारा सवाल कुछ टेढ़ा है और उसका जवाब देना मेरे लिए मुश्किल है। मिसाल के लिए, तुम मेरे पास न सिर्फ एक खास मकसद से आए हो, बल्कि इसलिए भी आए हो कि तुम कोई नई बात जानने के लिए बेचैन हो। है न यही बात है न?' स्विद्रिगाइलोव काइयाँ मुस्कराहट के साथ बार-बार अपना सवाल पूछता रहा। 'अच्छा, तब तुम क्या कहोगे अगर मैं कहूँ कि यहाँ आते वक्त रास्ते में रेल पर मैं यही आस लगाए हुए था कि तुम मुझे कोई नई बात बताओगे और मुझे तुमसे कोई अनमोल चीज मिलेगी देखा न, हम दोनों किस कदर दौलतमंद हैं!'

'आप मुझसे क्या पाना चाहते थे?'

'मैं भला क्या बताऊँ सच पूछो तो मुझे खुद मालूम नहीं। तुम देख रहे हो न कि मैं किस तरह के गंदे होटल में अपना वक्त बिताता हूँ, और यह मुझे अच्छा भी लगता है या शायद यह कहना बेहतर होगा कि यह जगह मुझे उतनी अच्छी नहीं लगती है जितनी यह बात लगती है कि कोई ऐसी जगह हो जहाँ मुझे सुख मिल सके। मिसाल के लिए, उस बेचारी कात्या को लो-तुमने देखा था न उसे ...अगर मैं कोई पेटू होता, या क्लबों में अच्छा खाने का शौकीन होता तो कोई बात भी होती, लेकिन यह रहा वह खाना जो मैं खाता हूँ।' (यह कह कर उसने कोने में रखी एक छोटी-सी मेज की तरफ इशारा किया जिस पर टीन की एक तश्तरी में बहुत ही बुरी बीफस्टेक का बचा हुआ टुकड़ा और आलू के कुछ कतले पड़े थे।) 'अरे हाँ, तुमने खाना खा लिया है क्या? मैं अभी थोड़ा-सा खा चुका हूँ, अब कुछ खाने को जी नहीं चाहता। मिसाल के लिए, मैं शराब नहीं पीता। शैंपेन छोड़ कोई हल्की शराब भी नहीं पीता और उसका भी पूरी शाम में एक गिलास। उतने से ही मेरे सर में दर्द होने लगता है। इस वक्त तो मैंने बस अपना हौसला बढ़ाने के लिए थोड़ी-सी मँगा ली थी, क्योंकि अभी मुझे किसी से मिलने जाना है। इसीलिए तुम मुझे एक खास किस्म की दिमागी हालत में देख रहे हो। मैंने स्कूली लड़कों की तरह छिपने की कोशिश इसीलिए की थी कि मुझे डर था, तुम इस वक्त मेरे लिए मुसीबत बन जाओगे। लेकिन,' उसने घड़ी निकाल कर देखा, 'मैं समझता हूँ तुम्हारे लिए एक घंटे का वक्त अभी मेरे पास है। इस वक्त साढ़े चार बजे हैं। देखो, बात यह है कि मेरा बहुत जी चाहता है कि मेरे पास करने को कुछ होता। काश, मैं जमींदार होता, या बाप होता, या घुड़सवार फौज का अफसर होता, या फोटोग्राफर होता, या पत्रकार होता... लेकिन मैं तो कुछ भी नहीं हूँ... मुझे कोई काम भी नहीं आता। कभी-कभी मैं बेहद ऊब जाता हूँ। मैं सोच रहा था कि तुम मुझे नई बात बताओगे।'

'लेकिन आप हैं कौन और यहाँ किसलिए आए हैं?'

'मैं कौन हूँ क्यों, तुम्हें मालूम नहीं? मैं एक शरीफ आदमी हूँ, दो साल तक घुड़सवार फौज में नौकरी की, उसके बाद कुछ समय तक यहाँ पीतर्सबर्ग में भटकता रहा, फिर उस औरत से शादी कर ली जो अब मर चुकी है और देहात में रहने लगा। मेरी जिंदगी की कहानी बस यही है!'

'मैं समझता हूँ आप जुआरी भी हैं!'

'नहीं, भला किस तरह का जुआरी मैं हो सकता हूँ! मैं पत्तेबाज हूँ, जुआरी नहीं।'

'आप सचमुच पत्तेबाज रह चुके हैं?'

'हाँ, पत्तेबाज भी रह चुका हूँ।'

'और कभी आपकी पिटाई भी हुई है?'

'हुई है। क्यों?'

'खूब, तो मैं समझता हूँ कि आपके सामने ऐसे मौके भी आए होंगे जब आपने किसी को द्वंद्व के लिए भी ललकारा होगा... आम तौर पर इस तरह की बातों से जिंदगी में आदमी की दिलचस्पी बनी रहती है।'

'मैं तुम्हारी बात को झुठलाना नहीं चाहता। इसके अलावा मैं दार्शनिकों जैसी बातें करने में भी कोई माहिर नहीं हूँ। लेकिन यह मान लेने में मुझे कोई एतराज नहीं है कि यहाँ मैं खास तौर पर औरतों की वजह से ही आया।'

'कुछ ही दिन पहले अपनी बीवी को दफन करके यहाँ आए, क्यों?'

'हाँ, तो,' स्विद्रिगाइलोव निहत्था कर देनेवाली मुस्कान मुस्कराया। 'तो क्या हुआ मुझे लगता है, तुम यह सोचते हो कि औरतों के बारे में मेरा इस तरह बातें करना कोई बेहूदा बात है। क्यों?'

'आपका मतलब यह है कि मैं बदकारी को कोई बुराई समझता हूँ कि नहीं?'

'बदकारी तो तुम यह सोच रहे हो! लेकिन पहले मैं आम तौर पर औरतों के बारे में अपनी राय साफ-साफ बता दूँ। तुम जानते हो, इस वक्त मेरा थोड़ा दिल खोल कर बातें करने को जी चाह रहा है। अब तुम ही बताओ, मैं किसलिए अपने आपको काबू में रखूँ अगर औरतें अच्छी लगती हैं तो मैं उन्हें क्यों छोड़ दूँ कम-से-कम मेरा वक्त तो कट जाता है।'

'तो आप यहाँ सिर्फ बदकारी की उम्मीद ले कर आए हैं?'

'अच्छा, तो क्यों नहीं? इसी को रटने से फायदा! तुम्हारे दिमाग पर बदकारी ही सवार है। हाँ, मैं बदकारी को पसंद करता हूँ। सवाल कम-से-कम सीधा तो पूछा गया। इस बदकारी में कोई चीज ऐसी है जो हमेशा रहती है। कोई ऐसी चीज जिसकी बुनियाद प्रकृति पर होती है, जो महज कल्पना की उड़ान की पाबंद नहीं होती। कोई ऐसी चीज जो खून में हमेशा एक दहकते अंगारे की तरह मौजूद रहती है। कोई ऐसी चीज जो ऐसी आग भड़काती है जिसे उम्र गुजरने के साथ भी एक अरसे तक बुझाया नहीं जा सकता। तुम्हें मानना पड़ेगा कि यह भी वक्त काटने का एक ढंग है, क्यों?'

'इसमें इतना खुश होने की क्या बात है यह एक बीमारी है, सो भी खतरनाक बीमारी।'

'अच्छा, तो तुम यह सोच रहे हो मैं मानता हूँ कि यह एक बीमारी है, हद से आगे बढ़ी, हर चीज की तरह और इस तरह के सिलसिलों में कोई भी आदमी हद से आगे बढ़े बिना रह नहीं सकता। लेकिन पहली बात तो यह है कि इसका दारोमदार इस पर होता है कि कौन किस किस्म का है। दूसरे, हर बात में आदमी को कुछ-न-कुछ संतुलन, कोई-न-कोई हिसाब तो रखना ही पड़ता है, चाहे वह हिसाब कितना ही बुरा हो! अगर ऐसा न हो तो आदमी अपने भेजे में गोली मार कर मर जाए। याद रखना, मैं इस बात को पूरी तरह मानता हूँ कि शरीफ आदमी का कर्तव्य होता है ऐसी ऊब झेलना, लेकिन बहरहाल...'

'तो आप अपने भेजे में गोली मार कर मर सकते हैं?'

'हे भगवान!' स्विद्रिगाइलोव ने उकता कर उसका सवाल टालते हुए कहा। 'मेहरबानी करके इसकी बात न करो,' उसने जल्दी से कहा। उसमें अब वह पहलेवाला डींग मारने का भाव नहीं था; चेहरे का भाव भी बदला हुआ लग रहा था। 'माफ करना, लेकिन मुझे डर है कि मैं एक ऐसी कमजोरी का अपराधी हूँ जिसे माफ नहीं किया जा सकता। मेरे दिल में मौत का डर है और मैं नहीं चाहता कि लोग उसकी चर्चा करें। क्या तुम जानते हो कि मैं थोड़ा-सा रहस्यवादी हूँ?'

'खूब! और वह आपकी बीवी का भूत! वह अब भी आता है?'

'भगवान के लिए उसकी चर्चा न करो! पीतर्सबर्ग में तो वह अभी तक नहीं आया है। लानत है उस पर!' उसने अचानक चिढ़ कर जोर से कहा। 'नहीं, बेहतर हो हम लोग कुछ और बातें करें... लेकिन... अफसोस कि मेरे पास वक्त नहीं है। मैं तुम्हारे पास अब और ज्यादा देर नहीं रुक सकता। वक्त होता तो मैं तुम्हें कुछ-न-कुछ बताता।'

'जा क्यों रहे हैं? कोई औरत है?'

'हाँ, एक औरत है। इत्तफाक से ही मुलाकात हो गई थी... लेकिन मैं उसकी बात नहीं कर रहा था।'

'लेकिन इस सारे घिनौनेपन का आप पर क्या कोई असर नहीं होता? क्या आपमें इस सिलसिले को रोकने की काबिलियत नहीं रही?'

'तुम काबिलियत की बात कर रहे हो? हा-हा! मानना पड़ेगा, दोस्त, कि तुमने मुझे हैरत में डाल दिया, हालाँकि मैं पहले से जानता था कि ऐसा ही होगा। तुम मुझसे बदकारी और जिंदगी की खूबसूरती की बातें कर रहे हो! तुम शिलर हो... आदर्शवादी हो! खैर, यह सब कुछ वैसा ही है जैसा कि होना चाहिए। ताज्जुब तो तब होता जब ऐसा न होता। फिर भी जब जिंदगी में इस तरह की किसी चीज से पाला पड़ता है तो ताज्जुब होता है... अफसोस है कि मेरे पास बहुत थोड़ा वक्त है, जबकि तुम बहुत ही दिलचस्प आदमी हो! अच्छा, यह बताओ, शिलर तुम्हें पसंद है क्या? मुझे तो बेपनाह पसंद है।'

'हे भगवान, आप भी किस कदर शेखीबाज हैं!' रस्कोलनिकोव ने कुछ बेजारी से कहा।

'नहीं दोस्त,' स्विद्रिगाइलोव ने हँसते हुए जवाब दिया। 'लेकिन मैं बहस नहीं करूँगा। शेखीबाज शायद मैं हूँ। अगर किसी को कोई नुकसान न हो तो थोड़ी-सी शेखीबाजी में हर्ज क्या है? देखो, मैंने अपनी बीवी के साथ सात साल देहात में बिताए हैं। इसलिए अब जबकि मेरी मुलाकात तुम्हारे जैसे होशियार, समझदार और बेहद दिलचस्प आदमी से हुई है, तो मुझे बातचीत करके खुशी हो रही है। अलावा इसके, मैंने आधा गिलास शराब भी पी रखी है, और मुझे लगता है वह मुझे कुछ चढ़ भी गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक ऐसी बात हुई है जिसने मेरे अंदर काफी जोश भर दिया है, लेकिन जिसके बारे में मैं... एक शब्द भी नहीं कहूँगा। तुम चले कहाँ?' स्विद्रिगाइलोव ने अचानक घबरा कर पूछा।

रस्कोलनिकोव उठने ही वाला था। वह न जाने क्यों उदास हो गया था। उसका दम घुट रहा था और वह कुछ अटपटा-सा महूसस कर रहा था। मन-ही-मन वह पूछ रहा था कि वह यहाँ आया ही क्यों। अब उसे पक्का यकीन हो चुका था कि स्विद्रिगाइलोव दुनिया का सबसे निकम्मा और सबसे बेकार, दुष्ट आदमी था।

'ऐ भले आदमी, भगवान के लिए बैठ भी जाओ! कुछ देर तो और ठहरो,' स्विद्रिगाइलोव ने गिड़गिड़ा कर कहा। 'मुझे कम-से-कम चाय पिलाने का मौका तो दो। थोड़ी देर और बैठो मेरे साथ, और मैं कोई बकवास नहीं करूँगा... मेरा मतलब है अपने बारे में। मैं तुम्हें कुछ और बातें बताऊँगा। चाहो तो मैं तुम्हें यह बताऊँ कि किस तरह एक औरत ने, तुम्हारे शब्दों में, मुझे 'बचाने' की कोशिश की थी... यही सचमुच तुम्हारे पहले सवाल का जवाब होगा क्योंकि वह औरत तुम्हारी बहन थी। तुम्हें बताऊँ वह बात? इससे वक्त काटने में भी मदद मिलेगी।'

'अच्छी बात है, लेकिन उम्मीद है कि आप...'

'अरे, तुम परेशान मत हो! मेरे जैसे गंदे और खोखले इनसान के दिल में भी अव्दोत्या रोमानोव्ना के लिए भरपूर गहरी इज्जत के अलावा और कोई जज्बा नहीं हो सकता।'