अपोलो-13 / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
माइकल कोलिन्स ने एक बार चाँद को खोया था, जेम्स लोवेल ने दो बार!
जेम्स लोवेल अपोलो-13 का कमांडर था। यह वो बदनसीब मिशन था, जो चाँद तक जाकर लौट आया था, लेकिन एक हादसे के कारण चाँद पर उतर नहीं सका था।
अपोलो-11 से अपोलो-17 तक नासा ने चाँद पर कुल सात मिशन भेजे थे, इनमें से छह चाँद पर उतरने में क़ामयाब रहे, अकेला अपोलो-13 ही वहाँ से ख़ाली हाथ लौटा था।
अलबत्ता, जब अपोलो-13 चाँद से लौटकर आया तो जश्न मनाया गया था, क्योंकि उसका लौट आना ही उसकी क़ामयाबी थी। इस मिशन को 'सक्सेसफ़ुल फ़ेल्योर' बताया गया।
फ़ेल्योर इसलिए कि इसका जो मक़सद था, उसको वह हासिल नहीं कर सका। सक्सेसफ़ुल इसलिए कि यह सही-सलामत धरती पर लौट आया, और यह कोई छोटी चीज़ नहीं थी।
अपोलो-13 ने सबको बताया था कि चाँद पर जाना जितनी बड़ी बात है, धरती पर लौट आना उससे मामूली बात नहीं।
शायद इसीलिए चाँद के ओर्बिट से 'अर्थराइज़' की पहली तस्वीर ख़ींचने वाले अपोलो-8 मिशन के क्रू-मेम्बर विलियम एन्डेर्स ने कहा था- "हम इतनी दूर चाँद की खोज में आए थे, लेकिन हमको मिली पृथ्वी!"
अपोलो-8 में जेम्स लोवेल भी शामिल था, जो चाँद की परिक्रमा करके लौट आया था। फिर उसने नील आर्मस्ट्रॉन्ग को चाँद पर क़दम रखते हुए देखा और मन मसोसकर रह गया कि वो इसी चाँद के कितने क़रीब था। एक हसरत उसके दिल में गूँजी कि मैं फिर चाँद पर जाऊँगा, मैं भी चाँद पर क़दम रखूँगा। उसे फिर मौक़ा मिला, अपोलो-13 के ज़रिये, लेकिन उसने दूसरी बार चाँद को गँवा दिया। अपोलो-13 तकनीकी गड़बड़ी का शिकार हो गया और चाँद की परिक्रमा करके लौट आया। जेम्स लोवेल दो बार चाँद की परिक्रमा करके लौट आने वाला दुनिया का इकलौता शख़्स बन गया।
अपोलो प्रोग्राम के तहत 24 एस्ट्रॉनाट्स चाँद पर भेजे गए थे। इनमें से अपोलो-11 से लेकर अपोलो-17 तक 12 ने चाँद पर क़दम रखा। 6 एस्ट्रॉनाट चाँद की कक्षा में परिक्रमा करते रहे। अपोलो-11 से पहले अपोलो-8 और अपोलो-10 चाँद की परिक्रमा करने के लिए ही भेजे गए थे और एक अपोलो-13 ही ऐसा दुर्भागा था, जिसे चाँद पर उतरना था, लेकिन वो इसमें नाकाम रहा था। क्या ही अचरज है कि अपोलो मिशंस में से सबको अपोलो-11 के बारे में मालूम है, जो सबसे पहले चाँद पर उतरा था और उसके बाद अपोलो-13 किंवदंतियों का विषय बना, जो चाँद पर नहीं उतर सका। कोई भी अपोलो-12, 14, 15, 16, 17 की सफलताओं को याद नहीं करता।
जब हासिल करना एक दस्तूर बन जाता है, तब इंसान का दिल अपनी किसी हार में रमने लगता है। इंसान के दिल में हार-जीत की यह लड़ाई चलती रहती है। उसे जीत की चाह है, लेकिन हार से भी लगाव है। हार को वो दिल से लगाकर बैठता है। तब हज़ार हासिल की गई चीज़ों से बड़ी वो एक चीज़ हो जाती है, जो हम पा नहीं सके थे।
रबींद्रनाथ ने इसीलिए कहा था- "यों तो सृष्टि में सबकुछ सुंदर है, सबकुछ सम्पूर्ण है, लेकिन वो जो एक तारा खो गया, वो सबसे सुंदर था, उसके बिना कुछ भी पूरा नहीं लगता।"
जब अपोलो-13 को लॉन्च किया गया तो किसी ने कहा- 13 का अंक तो अशुभ होता है ना, आपने इस मिशन का यह नाम क्यों रखा? जेम्स लोवेल इस बात का कोई जवाब नहीं दे पाया, सिवाय इसके कि इससे पहले वाला मिशन 12 था, इसलिए इसे 13 के सिवा और क्या कहते?
किंतु दुर्योग इतनी आसानी से पीछा छोड़ने वाला नहीं था। अपोलो-13 की लॉन्चिंग 13 बजकर 13 मिनट पर हुई थी और इसे 13 अप्रैल को चाँद पर उतरना था। अंधविश्वासों का बाज़ार गर्म था और यह मानने वाले कम नहीं थे कि यह मिशन अपशगुन से ग्रस्त है। अनेक मायनों में अपोलो-13 अंतरिक्ष में तैरने वाले टाइटैनिक की तरह था, जिसके बारे में एक अतींद्रिय अनुभूति सबके मन में थी कि इसके साथ कुछ ग़लत ज़रूर होगा। लॉन्च से मात्र तीन दिन पहले कमैंड मोड्यूल के पायलट केन मैटिंग्ले स्वास्थ्यगत कारणों से मिशन से हट गए और बैकअप क्रू का इस्तेमाल करना पड़ा। तब सबके दिल किसी अनहोनी की आशंका से काँप उठे थे।
अपोलो-13 ने 11 अप्रैल 1970 को लिफ़्ट-ऑफ़ किया। फ़र्स्ट एंड सेकंड स्टेज सेप्रेशन, डाकिंग एंड ट्रांसपोर्टेशन, ट्रान्स लूनर इंजेक्शन की तमाम रीतियाँ ठीक से निभाई गईं, जो अपोलो-प्रोग्राम्स के दिनों में किसी रिलीजीयस-रिचुअल की तरह बन गई थीं। लेकिन लॉन्च के तीसरे दिन सर्विस मॉड्यूल (ओडिसी) के ऑक्सीजन टैंक में एक विस्फोट हुआ और क्रू-मेम्बर्स ने पाया कि वो अंतरिक्ष में त्रिशंकु की तरह लटक गए हैं- ना इधर के, ना उधर के। तब लोवेल ने वो वाक्य कहा, जो अंतरिक्ष-यात्राओं के इतिहास में "द ईगल हैज़ लैंडेड" के बाद दूसरा सबसे चर्चित कथन बन गया है- "ह्यूस्टन, वी हैव अ प्रॉब्लम!"
जिस लूनर मॉड्यूल (एक्वारियास) ने चाँद पर उतरना था, उसमें तीनों क्रू मेम्बर को शिफ़्ट होना पड़ा और उसे अपनी लाइफ़-बोट बनाना पड़ा। एक्वारियास ने चंद्रमा का चक्कर लगाया, चंद्रमा की परछाईं में जो निविड़ तिमिर होता है उसमें पुरागुह्यवासियों की तरह इन तीन यायावरों ने चंद मिनट बिताए और अंतरिक्ष के आदिम अंधकार को अनुभव किया, फिर फ्री-रिटर्न ट्रैजेक्टरी का इस्तेमाल करके धरती की ओर रवाना हो गए। चाँद से धरती तक लौटने में भी अपोलो-13 के साथ हज़ार चीज़ें ग़लत हो सकती थीं और इनमें से कोई भी उसकी आख़िरी ग़लती साबित होती, लेकिन शायद अपोलो-13 अपनी बदक़िस्मती का पिटारा पहले ही ख़ाली कर चुका था, इसलिए सुरक्षित धरती पर लौट आया। वो किसी टूटे हुए तारे की तरह प्रशान्त महासागर में जा गिरा था! बहुत सालों बाद जेम्स लोवेल ने जैफ्री क्लुगर के साथ मिलकर एक किताब लिखी- 'लॉस्ट मून' (खोया चाँद)। लोवेल इस बात को कभी स्वीकार नहीं कर पाया था कि उसने दो बार चाँद को गँवा दिया था।
इस किताब पर 'अपोलो-13' शीर्षक से एक बेजोड़ फ़िल्म बनाई गई, जिसमें टॉम हैन्क्स ने जेम्स लोवेल की भूमिका निभाई। धरती से वह अँगूठे की ओट से चाँद को देखा करता था। जब वो चाँद की कक्षा में पहुँचा तो उसने अँगूठे की ओट से पृथ्वी को देखा। एक लम्बा वर्तुल पूरा हुआ। यह घर लौट आने का समय था।
यही वह लम्हा था, जब लोवेल ने महसूस किया कि चाँद को खो देना जितना बड़ा दु:ख था, धरती पर कभी लौटकर नहीं जा पाना उससे भी बड़ा दु:ख साबित हो सकता था। सहसा, धरती की बेमाप ग्रैविटी ने उसकी आत्मा को अपनी गिरफ़्त में ले लिया! अंतरिक्ष में जाने वाले हर यात्री के साथ यह होता है!
बहुत सालों तक सबको यही लगता रहा कि नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चाँद को पा लिया है। लेकिन जब नील मरा तो उसके पास से कोई चाँद बरामद नहीं हुआ था। वो अपने पीछे चाँद छोड़कर मर गया था।
तब जाकर सबको समझ में आया कि चाँद पाने की चीज़ नहीं है। चँद्रमा दूरियों का देवता है, वो दूर से देखने की चीज़ है। वो वहाँ पर इसलिए है कि हम यह जान सकें कि कुछ चीज़ें कभी पाई नहीं जा सकतीं, कुछ चीज़ें हमेशा हमारे लिए असम्भव रहेंगी, क्योंकि वो हमारे लिए नहीं हैं, केवल उनकी परछाइयाँ हमारी आत्मा में हूक बनकर गूँजती रहेगी।
चाँद को खोये बिना ये राज़ कोई जान नहीं सकता है, और इसके लिए चाँद को दो बार खोना ज़रूरी नहीं!