आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
ईश्वर ने स्वतंत्र मेधा यानी इंटेलीजेंस रची ताकि मनुष्य इस अस्तित्व की व्याख्या कर सके। मनुष्य ने कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस रच दी, ताकि? ताकि उसको कम से कम काम करना पड़े और उसके ज़ेहन और कमर पर चर्बी चढ़ती रहे!
अलार्म, टाइमर, कैलकुलेटर, कम्प्यूटर, डिजिटल तकनीकें, एप्स, ये सब आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस हैं। मनुष्य द्वारा अपनी ख़िदमत के लिए रची गई दासियाँ।
मनुष्य स्वभाव से ही क़ाहिल और आरामपसंद होता है। दो रास्तों में से छोटा रास्ता चुनने वाला। फिर भले ही इस बचाए हुए वक़्त को वह ज़ाया कर दे, लेकिन वक़्त बचाना ज़रूरी है, उसके दिमाग़ की प्रोग्रामिंग ऐसे की गई है!
यह सोचना सचमुच दिलचस्प है कि समस्त मैकेनिकल साइंटिफ़िक इंवेंशंस का कुल जमा मक़सद यही है कि आदमज़ात को कम से कम ज़ेहमतें उठानी पड़ें। और यहीं से शुरू होता है ख़तरा!
यह उसी तरह है कि जैसे कोई सेठ अपनी मदद के लिए ज़रूरत से ज़्यादा चतुर कोई मुनीम रख ले, तो एक वक़्त के बाद यह ख़तरा उसके सिर पर मंडराने लगता है कि कहीं मुनीम ही तो उसकी तिजोरी पर हाथ साफ़ नहीं कर देगा!
वही ख़तरा अब मनुष्य और आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस के साथ निर्मित हो रहा है!
स्पाइक जोन्ज़े ने एक बहुत दिलचस्प फ़्यूचरिस्टिक फ़िल्म बनाई है : 'Her', जो कि 'आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस' से मनुष्य के रिश्तों के बारे में है।
होता यह है कि थियो नामक एक व्यक्ति अपनी पार्टनर से ब्रेकअप के बाद डिप्रेशन में जी रहा होता है। एक दिन वह एक ऑपरेटिंग सिस्टम या ओएस ख़रीद लाता है, जो निहायत इंटेलीजेंट और इवॉल्विंग है। वह उसका जेंडर फ़ीमेल तय करता है (बहुत स्वाभाविक है) और उसका नाम सैमंथा रख देता है। दोनों बातें करने लगते हैं। सैमंथा बहुत केयरिंग और सेंसेटिव साबित होती है. धीरे-धीरे थियो को उससे प्यार हो जाता है। बेसिकली, उसको अपने लैपटॉप से प्यार हो जाता है, जिसमें वो ओएस है! चूंकि सैमंथा में नए फ़ीडबैक्स के आधार पर ख़ुद को इवॉल्व करने की क्षमता होती है, इसलिए धीरे-धीरे उसके भीतर इमोशनल इंटेलीजेंस विकसित होने लगती है, और वह भी थियो को चाहने लगती है। यहाँ तक कि उसके भीतर सेक्शुअल इम्पल्स भी उभर आते हैं और एक दृश्य में वह कहती है : "ओह थियो, वॉट हैव यू डन टु मी, आई कैन फ़ील माय स्किन", जबकि वह कुल-मिलाकर एक लैपटॉप भर ही है।
यह फ़िल्म इस बहस को आगे बढ़ाती है कि क्या भविष्य में ये ओएस या एआई सिस्टम इतने विकसित हो सकते हैं कि वे मनुष्यों की जगह ले लें?
ईश्वर के प्रति मनुष्य की ईर्ष्या का कोई अंत नहीं है, और एक सीमा के बाद मनुष्य ख़ुद ईश्वर बन जाना चाहता है। आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस एक अर्थ में मनुष्य की ईश्वर से होड़ भी है!
तो सवाल यह है कि फ्रैंकस्टाइन स्टोरी के मॉन्स्टर की तरह मनुष्यता द्वारा रची गई आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस ही उसे इस दुनिया से बेदख़ल कर देगी?
स्टीफ़न हॉकिंग की मानें तो- हाँ। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि सैद्धान्तिक रूप से कम्प्यूटर्स बुद्धिमत्ता के मामले में मनुष्य को पीछे कर सकते हैं। अगर कम्प्यूटर्स मूर्स लॉ का पालन करते हुए हर अठारह महीने में अपनी गति और स्मृति की क्षमता को दोगुनी करते रहे तो आगामी एक सदी में वे मनुष्य से अधिक बुद्धिमान हो जाएँगे। जब एआई मशीनें मनुष्य की सहायता के बिना स्वयं को सुधारने लगेंगी तो इंटेलीजेंस का एक विस्फोट होगा। अपने धीमे जैविक विकास की बेड़ियों में बँधे मनुष्य तब उनसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेंगे।
हॉकिंग कहते हैं, जब मनुष्यों ने आग का आविष्कार किया था, उसके बहुत समय बाद अग्निशमन के उपकरण खोजे गए और अरसे तक आग मनुष्य के नियंत्रण से बाहर होती रही। न्यूक्लियर हथियारों, सिंथेटिक बायलॉजी और सशक्त कृत्रिम मेधा के मामले में हमें पहले से ही योजना बना लेनी चाहिए कि हम उन्हें कैसे नियंत्रित करेंगे, क्योंकि बाद में बहुत देरी हो चुकी होगी। हमारा भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि जिस तेज़ी से हमारी तकनीकें विकसित हो रही हैं, उतनी ही तेज़ी से हम उनके उपयोग की बुद्धि भी विकसित कर सकेंगे या नहीं?
यह तो हुई हॉकिंग की बात। लेकिन अगर स्पाइक जोन्ज़े की फ़िल्म की मानें तो जवाब होगा- हाल-फ़िलहाल तो हम आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस के मामले में अलार्मिंग स्थिति में नहीं हैं।
फ़िल्म में सैमंथा पर पूरी तरह से भावनात्मक रूप से निर्भर हो जाने के बाद एक बार जब पूरे दिन थियो उससे बात नहीं कर पाता तो बेचैन हो जाता है। आख़िरकार सैमंथा आती है और बताती है कि 'सर्वर' में प्रॉब्लम होने के कारण वह बात नहीं कर पाई थी। थियो उससे पूछता है कि तुम मुझसे ही प्यार करती हो ना, जिस पर वह जवाब देती है कि ठीक इसी वक़्त मैं हज़ारों लोगों से चैट कर रही हूं और उनमें से कई सौ ऐसे भी हैं, जिनसे मैं प्यार करती हूं। थियो का दिल टूट जाता है।
तो साहेबान, आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस बेवफ़ा होती है। वो आपके लिए काम कर रही होती है, लेकिन वो आपकी नहीं है! आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस और मनुष्य की मेधा की समतुल्यता को लेकर इधर तमाम बातें साइंस फ़िक्शन से लेकर रिसर्च एंड डेवलपमेंट तक के दायरे में कही जा रही हैं! यह कि कम्प्यूटर नॉवल लिख सकता है या फ़िल्म बना सकता है, लेकिन इसके बावजूद इन दोनों में एक बड़ा और बुनियादी फ़र्क़ है। वो ये कि आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस की प्रोग्रामिंग अभी मनुष्यों जितनी- क्योंकि ज़ाहिर है मनुष्य के पीछे लाखों वालों की एवॅल्यूशन काम कर रही है- परिष्कृत नहीं है, उसकी फ़ीडबैक इतने पुख़्ता नहीं हैं, इसलिए उसका मनुष्यों जैसा विकास अभी एक दूरगामी सम्भावना है।
जैसे कि यह सम्भव है कि एक ओएस या एआई चेतना अपनी तरह से सम्पूर्ण हो जाए, लेकिन इसके साथ ही दूसरी तरफ़ वह मानवीय बुद्धि के द्वारा समझी जाने वाली छोटी से छोटी चीज़ों को समझने में भी असमर्थ होगी, जैसे इस फ़िल्म में सैमंथा यह नहीं समझ पाई कि उसे अपने दूसरे प्रेमियों का ज़िक्र थियो से नहीं करना है और उल्टे उसे थियो से यह कहना है कि "मैं केवल तुमसे ही प्रेम करती हूं।" अभी तो यह चतुराई उसके भीतर प्रोग्राम्ड नहीं थी। हो सकता है इस फ़ीडबैक के बाद वह प्रेम में छल करने की कला भी अपने भीतर विकसित कर ले। लेकिन ऐसी असंख्य मानवीय स्थितियाँ हैं, जो हर क्षण निर्मित हो रही हैं, दुनिया के असंख्य लोग, असंख्य स्थितियों पर, असंख्य तरह से प्रतिक्रिया दे रहे हैं और कम्प्यूटिंग सिस्टम्स के लिए इन तमाम अपडेशन्स को अपने भीतर फ़ीड करना एक लम्बी परियोजना है।
यह आश्चर्य है कि जब भी एलीयंस की कल्पना की जाती है, या फ़्यूचरिस्टिक फ़िल्में बनाई जाती हैं, या साइंस फ़िक्शन लिखा जाता है तो उसमें तकनीकी परिष्कार को ही दिखाया जाता है। यह नहीं दिखाया जाता कि परग्रही आला दर्जे के नॉवल्स लिख रहे हैं या उच्च गुणवत्ता का सिनेमा बना रहे हैं या प्रेम को लेकर उनके भीतर बहुत उदात्त विवेक जाग्रत हो चुका हो। बहुधा एलीयंस को रोबोटिक-कम्प्यूटर की तरह दिखाया जाता है। लेकिन एक हाईली न्यूआन्स्ड कंप्यूटर प्रोग्राम भी सड़क पर चलने वाले किसी मामूली इंसान के भीतर हो रही चीज़ों को रेप्लिकेट नहीं कर सकता, वह उससे कई गुना अधिक बुद्धिमान हो सकता है, लेकिन वह वही नहीं हो सकता।
ऐसा मालूम होता है कि ईश्वरीय मेधा या कह लें अलौकिक मेधा, मानवीय मेधा या कह लें लौकिक मेधा, और तकनीकी मेधा या कह लें कृत्रिम मेधा, ये तीन भिन्न वर्टिकल तल हैं। प्रश्न यही है कि क्या ये कभी इतने एवॉल्व होंगे कि तीसरा दूसरे और दूसरा पहले तल की जगह ले सके। या ईश्वर का डीएनए मनुष्य के डीएनए से और मनुष्य का डीएनए कम्प्यूटर के डीएनए से पूर्णत: पृथक ही रहेगा!