टाइम ट्रैवलर / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
अर्जेंतीना ने दो 'एलीयन्स' को जन्म दिया है : एक है लियोनल मेस्सी और दूसरा है ख़ोर्ख़े लुई बोर्ख़ेस!
बोर्ख़ेस एक साधारण चेतना नहीं था। दुनिया में अनेक लेखक हुए हैं, लेकिन बोर्ख़ेस एक दूसरी ही चीज़ था, और टाइम, आइडेंटिटी और पर्सपेक्टिव को लेकर जैसी कहानियाँ उसने लिखी हैं, वह किसी साधारण व्यक्ति के बस का रोग नहीं था। वर्ष 1972 में प्रकाशित बोर्ख़ेस की एक कहानी टाइम ट्रैवल के बारे में है।
कहानी कुछ इस प्रकार है :
फ़रवरी 1969 की बात है। कैम्ब्रिज में सत्तर साल का जॉर्ज ल्वीस बी. एक बेंच पर बैठा हुआ है (ध्यान रहे, यह जॉर्ज ल्वीस बी. ख़ुद बोर्खेस है, वह स्वयं को एक अंग्रेज़ी नाम से पुकार रहा है)। उसका ध्यान सीटी बजा रहे एक नौजवान की ओर आकृष्ट होता है। वह यह पाकर चौंक जाता है कि वह धुन तो आधी सदी पहले अर्जेंतीना में ख़ासी लोकप्रिय हुआ करती थी! बूढ़ा नौजवान से पूछता है कि वह यूरुग्वेयन है या अर्जेंताइन, जिस पर वह जवाब देता है : "अर्जेंताइन", लेकिन साथ ही यह भी जोड़ देता है कि "मैं 1914 से ही जेनेवा में रह रहा हूं।" 1914 से? बूढ़ा सोच में डूब जाता है। फिर वह पूछता है : "जेनेवा में रूसी गिरजे के क़रीब वाली गली में, 17 मालाग्नू वाले पते पर?" नौजवान हामी भरता है। बूढ़ा कहता है : "तब तो तुम जॉर्ज ल्वीस बी. हो।" नौजवान कहता है, "हां।" बूढ़ा कहता है, "तुमसे मिलकर अच्छा लगा, मैं भी जॉर्ज ल्वीस बी. हूं। यह 1969 है और हम कैम्ब्रिज में हैं।"
नौजवान बेरुख़ी से जवाब देता है : "नहीं, मैं जेनेवा में हूं, रोन से थोड़े ही फ़ासले पर।" उसकी उम्र कुल जमा 20 बरस भी न रही होगी। बूढ़ा तुरंत समझ जाता है कि वह नौजवान एक टाइम ट्रैवलर है और भविष्य में चला आया है। और इस एक क्षण में विगत और वर्तमान एक साथ घट रहे हैं। इसका मतलब यह है कि जो कुछ उसकी स्मृति का हिस्सा है, वह इस नौजवान के साथ घटित होना अभी शेष है। बूढ़ा इस मुलाक़ात की यादगार बतौर उस नौजवान से चाँदी का एक सिक्का माँगता है और उससे अगले दिन उसी बेंच पर फिर से मिलने का वादा लेकर लौट आता है। लेकिन बूढ़ा और नौजवान दोनों ही उसके बाद वहाँ लौटकर नहीं जाते : शायद भयवश। या शायद, ऐसा दोबारा सम्भव ही न था।
आप कह सकते हैं कि बोर्ख़ेस पर एचजी वेल्स का प्रभाव था, जिन्होंने सबसे पहले टाइम मशीन की परिकल्पना की थी। या शायद बोर्ख़ेस आइंस्टाइन की उस फ़ील्ड इक्वेशन थ्योरी से मुतास्सिर था, जिसमें उसने कहा है कि अगर स्पेसटाइम किसी फ़ैब्रिक की तरह है और एब्सोल्यूट नहीं है तो सापेक्षता में यह सम्भव है कि समय के दो बिंदुओं के बीच यात्रा की जा सके। कौन जाने, शायद, बोर्ख़ेस ख़ुद एक टाइम ट्रैवलर था और समय और स्पेस के बेमाप विस्तार में निरंतर यात्राएँ करता रहता था, और उसकी कहानियाँ इसका सबूत हैं।
स्टीफ़न हॉकिंग कहता है कि यह पूरी तरह से सम्भव है कि हम भविष्य में यात्रा करें, लेकिन अतीत में लौटकर जाना असम्भव है। लेकिन ऐसे बीसियों लोग हैं, जो यह दावा करते हैं कि उन्होंने अतीत में यात्रा की हैं और ऐसे अनेक वाक़िये हैं, जो टाइम ट्रैवल की ओर इशारा करते हैं।
कैम्ब्रिज में जिस बेंच पर जॉर्ज ल्वीस बी. की ख़ुद से मुलाक़ात हुई थी, भौतिकी की भाषा में उस बेंच को एक वर्महोल कहा जाएगा। वर्महोल की अवधारणा आइंस्टाइन की जनरल रेलेटिविटी के साथ सुसंगत है। यह स्पेसटाइम में एक ऐसा गलियारा है, जो आपको समय और स्पेस में किसी भी बिंदु पर ले जाने में सक्षम है। कितने ही प्रकाशवर्ष और कितनी ही सदियों के फ़ासले पर। अगर धरती की यात्रा करने वाले एलीयन्स एक्स्ट्राटेरेस्ट्रायल के बजाय एक्स्ट्राटेम्पोरल प्राणी हैं, यानी किसी दूसरे स्पेस नहीं बल्कि किसी दूसरे समय से आए हुए लोग, तो ज़ाहिर है, हमें उनसे डरने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि वे स्वयं ये कभी नहीं चाहेंगे कि उन्हें पहचान लिया जाए। बहुत सम्भव है, वे भविष्य से यहाँ केवल मनुष्यता के इतिहास का अनुसंधान करने जब-तब चले आते हों। एंड्रयू बासियाजो नामक एक व्यक्ति ने दावा किया था कि वर्ष 1972 में प्रोजेक्ट पेगासस नामक एक यूएस गवर्नमेंट प्रोग्राम के तहत उसे टाइम ट्रैवलर के रूप में वर्ष 1863 में उस दिन में भेजा गया था, जिस दिन अब्राहम लिंकन अपना सुविख्यात गेटिसबर्ग व्याख्यान दे रहे थे। उसने उस दिन अपनी एक तस्वीर भी खिंचवाई और उसे लेकर वर्तमान में चला आया। वैसा निकोला टेस्ला द्वारा विकसित एक तकनीक की मदद से किया जा सका था। बासियाजो का वह दावा अनेक वाद-विवादों-अनुसंधानों का विषय रहा है, किंतु इस संबंध में मेरी समस्या दूसरी है।
मेरी जिज्ञासा यह है कि अगर कोई व्यक्ति एक कालयात्री की तरह अतीत में यात्रा करता है, तो क्या वह इतिहास में रद्दोबदल भी कर सकता है? और अगर हाँ, तो उस स्थिति में इतिहास में निर्मित दुविधाओं का हम क्या करेंगे? क्योंकि हम तो इतिहास को अटल और अपरिहार्य मानकर ही चलते हैं। मिसाल के तौर पर, मान लीजिए अगर गेटिसबर्ग स्पीच के दौरान ही बासियाजो अब्राहम लिंकन की हत्या कर देता और सफलतापूर्वक लौटकर वर्तमान में चला आता तो हम किस इतिहास के वंशज होते, 1863 में गेटिसबर्ग में मारे गए लिंकन के इतिहास के या 1865 में वॉशिंगटन डीसी में मारे गए लिंकन के इतिहास के?
तब हमें एक बार फिर बोर्ख़ेस की ओर लौटना होगा, जो अपनी एक दूसरी कहानी में इस सवाल से जूझ चुका है। बोर्ख़ेस की उस कहानी में पेद्रो दामियान नाम के दो व्यक्ति थे। एक कायर था, जो 1946 में एंत्र रायो में चल बसा। दूसरा वीर था, जिसकी मृत्यु 1904 में लड़ाई के मोर्चे पर मासोयेर में हुई। बोर्ख़ेस पूछता है कि पेद्रो की पहेली सुलझाने के लिए हमें दो इतिहास रचना होंगे। किंतु प्रश्न यह है कि तब हम इन दोनों में से किसका हिस्सा होंगे? और तब कार्य-कारण की जटिल शृंखला का क्या होगा?
देखा जाए तो ये तमाम प्रश्न उस बुद्धि में उत्पन्न होते हैं, जो त्रिआयामी दृष्टि से चीज़ों को देखती है। लेकिन अगर स्पेस के तीन और टाइम का एक आयाम मिलाकर कुल चार आयाम हैं तो हम पाएँगे कि कोई भी चीज़ें अनिवार्यत: एकरैखिक नहीं हो सकतीं और उनमें से नए-नए पैटर्न स्वयं उभरकर सामने आ सकते हैं। एक फ़ोर डायमेंशनल पर्सपेक्टिव समय और इतिहास को लेकर हमारी पूरी समझ को ध्वस्त भी कर सकता है।
बहुत सम्भव है कि हम एक फ़ोर डायमेंशनल दुनिया को थ्री डायमेंशन से समझने की कोशिश कर रहे हों। यह ऐसा ही है, जैसे आँखों से सुनने की कोशिश करना। और शायद इसी कारण हम कभी भी सम्पूर्ण और समग्र सत्य को जान नहीं सकते। दांते गैब्रियल रोसेत्ती के शब्दों में :
"मैं यहाँ पहले भी आया हूँ / कब और कैसे मालूम नहीं / लेकिन मैं जानता हूँ कि / उस दरवाज़े के बाहर घास बिछली है / और मैं उसकी ख़ुशबू तक / पहचानता हूँ।"