एक थी तरु / भाग 26 / प्रतिभा सक्सेना

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असित के गैर-जात में ब्याह करने की बात अब ठंडी पड़ने लगी है। अब तो उन्हें रश्मि की चिन्ता है। निपट जाए अच्छी तरह से -फिर तो उन्हें असित से कोई आशा नहीं रहेगी। उन्हें लगता है अभी तो मियाँ-बीवी दोनों कमाते हैं, ज़िम्मेदारी कोई नहीं, कोई हमेशा थोड़े ही करते रहेंगे।

खटका तो उन्हें पहले ही था कि असित करेगा अपने मन की ही। सौतेली लड़की की शादी में भर-भर कर देने के लिए वे हैं और असित की बार कुछ आस लगा सकें इसके लिए वे कोई नहीं!

पहले बड़ी दुखी हुईं थीं फिर श्यामा ने आकर मध्यस्थता की, उन्हें समझाया, ’अरे माँजी, तुम नहीं करोगी तो वे कोर्ट में जा कर कर लेंगे

हमेंई कौन अच्छा लग रहा है। पर अच्छाई इसी में है कि तुम्हीं करवा दो शादी।

तब उनने भी सोचा कौन बिगाड़ करे, रश्मि की नैया तो उसी की मदद से पार लगनी है। दो-चार साल में राहुल भी लग जाएगा तब तक इसी का आसरा है।

'काहे बहू को का हाल है’शुक्लाइन ने पूछा।

“हाल का हुइये -आप अच्छे तो जग अच्छों, । अभै तो पुछती हैं, रसमी से भी पटत हैगी।’

'सोतो है। ननद को बाजार लै जाय के खरीदारी करवाय रही हैं। रसमी तो बहुतै खुस है।’

तरल ननद को हर बार कुछ न कुछ, शादी के लिए, खरिदवा जाती है, उसकी पसंद का पूरा ख़याल रख रही है।

वह भी भाभी के साथ उत्साह से खरीदारी कर रही है।

जेवर, कपड़ा बर्तन, असित-तरल कर रहे हैं, नाज-पानी, घी-शक्कर वगैरा रश्मि की अम्माँ के जिम्मे।

लड़कों के बारे में बात होने लगी -दो जगह से हाँ हो रही है। अभी फ़ाइनल नहीं हुआ है। असित को बैंकवाला ज्यादा ठीक लगता है। कॉलेज में पढ़ाता है वह इतना अच्छा नहीं। बात कुछ लेन-देन पर अटकी है।

शुक्लाइन को उठने का उपक्रम करते देख उन्होंने रश्मि को आवाज़ लगाई -चाची के लै पान लगाय लाओ।

रश्मि पान लगा रही है कान बाहर लगे हैं -अपनी शादी की बात पर।

'राजुल आ कर खड़ा हो गया है, ’ये कैसे लगा रही हो। ठीक से लगाओ।’

'तू चुप रह, हमें आता है।’

'ये कैसा उलटा-सीधा लपेटा है, ठीक करो।’

'चुप नहीं रहेगा। बक-बक किये जा रहा है, तू हमें मत सिखा।’

'अच्छा समझ गए, तुम्हारी शादी की बात हो रही है वही सुन रही हो।’

'झूठ बोलता है। ले, ले जा पान।’

'तभी न बार-बार चुप कर रही हो और भगा रही हो।’

रश्मि रुआँसी हो आई।

'झूठा नाम लगा रहा है हम कहाँ सुन रहे हैं?’

पान लेने दरवाज़े तक आ पहुँची माँजी बोल उठीं, ’अच्छा वह सुन रही है तो तुम्हारा का जाय रहा है, जाय के अपना काम करो।’

वे पान ले कर चली गईं।