कृपया दायें चलिए / अमृतलाल नागर / पृष्ठ 20

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जय बम्भोला

शिवरात्रि के मेले की मौज-बहार लेने के लिए झोला कन्धे पर और सोटा हाथ में लिए हम भी मगन-मस्त चाल से दिग्गज के समान झूमते-झामते महादेवा के पावन क्षेत्र की ओर बढ़े चले जा रहे हैं। ये देखो, दसों दिशाओं से घेरकर महादेव की दर्शनार्थी, ग्रामीण जनता बम-बम भोला महादेव की जै जै कारे करती चली आ रही है। लाखों भगत चले आ रहे हैं; गंगाजल की कांवरों पर कांवरे कन्धों पर लादे चले आ रहे हैं। हर एक को बस एक ही लगन लगी है। भोलानाथ, तुम्हारे दर्शन कर लें, तुम्हें जल चढ़ा दें, और तुम्हारे सामने गाल बजाकर उलु-उलु-हरहर बमबम के नारों से आकाश गुंजाकर अपना जीवन सार्थक कर लें। क्यों नहीं भगवान्, आखिर तुम ब्रह्मा, विष्णु महेश की हाई कमाण्ड में से एक हो, लय-प्रलय के देवता हो, और वरदानी हो। ऐसे बोले कि भगत की एक सच्ची –झूठी मनुहार, पर रीझकर मनमाने वरदान दे देते हो रावण, बाणासुर, भस्मासुर, आदि सभी दुष्ट जन तुम्हीं को अपनी तपस्या से फुसलाकर बड़े-बड़े वरदान पा गए और बाद में स्वयं तुम्हें ही कष्ट देने लगे। तब क्यों न लोगबाग तुम्हारी सच्ची-झूठी खुशामद में लगे। लेकिन हे देवाधिदेव, भारत की अनपढ़ गरीब भोली जनता बड़े भाव से तुम्हारी स्तुति करती है, बड़ी अनोखी महिमा बखानती है

‘‘बम बम भोले नाथ की जिनके कौड़ी नहीं खोजने में।

तीन लोक बस्ती में बसाये आय बसे वीराने में।’’


वाह, बिना कौड़ी के महिमामय भगवान तुम्हारी ऐसी निलारी स्तुति भारत की जनता ही कर सकती है। वो देखो, वो मंझोले कद का वह भस्म-जटा-दाढ़ी चिमटाधारी साधु किस ठाठ के साथ अपनी कड़कदार आवाज में सुना रहा है :

डमरू डिमिकि डिमिकि डिम बोला।

नाचें अगड़धत्त बम्भोला

पहिंदे आसमान का चोला

माथे गंग नाग तन डोला

छानैं सौ मन भोग का गोला।।

नाचें अगड़धत्त।।

कमाल है विश्वनाथ, तुम्हारे भक्तजन तुम्हें सौ-सौ मन भंग के गोले छना देते हैं, आक-धतूरे का भोग लगाते हैं—यही नहीं, एक कवि ने तुम्हारी भंग-ठण्डाई का जो नुस्खा लिखा है उसे तो पढ़ने मात्र से ही जब हमें घनघोर नशा आ जाता है तब तुम्हारा क्या हाल होता होगा, ये तुम्हीं जानो। कवि जी ने तुम्हारे श्रीमुख से भगवती पार्वती जी को क्या कहलाया है, सुनोगे प्रभु ?—सुनो :

एक समय अति मगन मन बोले बिहंसि महेस।

मैं जइहौं प्रिय गोकुले सुनहु उमा उपदेश।।

घर बम में विजया नहीं मिले न हाट बाजार।

मोहि भांग बिन भामिनी कौन करेगा प्यार।।