कृपया दायें चलिए / अमृतलाल नागर / पृष्ठ 21

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवित्त-1

जैहौं ग्राम गोकुले गोविन्द पद बन्दन को

मोहिं जलपान को सामान करवाय दे

सुकवि शिवराम सौंफ कासनी पछोरि फोरि

घोरिकै अफीम तीन तामैं मिलाय दे।

काली मिर्च कालकूट सिंघिया धतूर तोरि

संखिया सुफैद रंग डैल से डराय दे।

लाय दे करोर बोर केसर सो सरोबोरि

एती थोरी भांग मेरी झोरी भराय दे।

देख रहे हो भोलानाथ एक भगत ने तो सौ मन भंग का गोला छनाकर ही संतोष कर लिया था पर दूसरे को तो करोड़ बोरे भंग भी थोड़ी ही मालूम पड़ रही है, जिसमें संखिया, धतूरा, कालकूट और अफीम भी मिलाई गई है ऐसी गहरी पंचरत्नी को भी मात्र तुम्हारे जलपान का ही साधन बतलाया गया है। हद हो गई योगेश्वर, हद हो गई—भला एक बात तो बताओ, इतनी भांग पीकर तुम्हें हाई या लो ब्लडप्रेशर तो नहीं होता ? अजब हाल कर रखा है तुम्हारे भक्तों ने, एक ओर तो तुम्हें इतनी नशे की गर्मी देते हैं और दूसरी ओर लोटों पर लोटे और कलसों पर कलसे गंगाजल चढ़ाते हैं। इस मार्च के महीने यदि और किसी को इतना नहलाया जाए तो उसे डबल निमोनिया ही हो जाए। मगर आप तो भूतनाथ हैं, सर्दी-गर्मी सब एक समान ही अपने अंदर लय कर लेते हैं। आपके इसी विकट महादेवपन के कारण ही तो बड़े-बड़े कवियों ने आपके साथ बड़े-बड़े मजाक किए हैं। अरे संत शिरोमणि, गोस्वामी तुलसीदास जी तक आपकी ब्याह-बारात का रंगीला वर्णन करने से नहीं चूके। राष्ट्रीय आंदोलन के ज़माने में भी आपके भक्तों ने आपकी नशेबाजी की आदत का खूब मज़ाक उड़ाया है। उस ज़माने का किसी कवि का बनाया हुआ एक कवित्त मुझे याद आ गया— सुनियेगा भगवान्, सुनिए :

गांधी की न आज्ञा गांजा भांग आदि पीने की

भूतनाथ आप अब भंग न पिया करें

छोड़ें पुरानी अपनी अडबंगी चाल

जोरू के साथ बैठ न चकल्लस किया करें

छिड़ा है भारत में स्वतंत्रता का घोर युद्ध

भारतीय नाते भाग इसमें लिया करें

आप बनें लीडर गनेश वालंटियर बनें

कह दें उमा से जाके पिकेटिंग किया करें।।

यह सब हंसी-मजाक सिद्ध करता है कि जनता आपको बेहद चाहती है। आपकी श्रद्धा से सरोबोर होकर कोसों और मीलों से चली आ रही है—बम बम भोले। बम्भोले। हर हर महादेव।

लेकिन भोलेनाथ! एक बात सच्ची बताना। क्या तुम अपने इन बड़े-बड़े मन्दिरों में सचमुच विराजमान हो ? यहां तो तुम्हारे नाम पर तुम्हारे पण्डे-पुजारी तुम्हारे भक्तों को लूट रहे हैं। ये देखो, तुम्हारे मन्दिर के अंदर क्या मारा-मारी मची हुई है। तुम्हारे पुजारी लोग तुम्हारी अपढ़ भोले भक्तों के हाथों से झपाझप प्रसाद और पूजा-सामग्री छीन-छीनकर कोने में घरते जा रहे हैं। इन पुजारियों के चेहरों पर भक्ति-भावना की एक धुंधली-सी छाया भी नहीं पड़ी है। सूरत से ही ये लोग डाकू लग रहे हैं, डाकू। तुम्हारे इस मन्दिर में चांदी के किवाड़ हैं संगमरमर की फर्श है, चांदी का विशाल सर्प और सोने का छत्र है, बांस-बल्लियों की आड़ें लगी होने पर भी भक्तों की भीड़ तुम्हारे दर्शनों के लिए टूटी पड़ रही है—पर तुम यहाँ कहाँ हो भगवान्। कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे हो, फूल, बेल-पत्र और धतूरे के फलों का एक पहाड़ तो अवश्य दिखलाई देता है—तो क्या इसी के नीचे तुम दबे हुए हो? तुम अपने भक्तों की अंध श्रद्धा से दबे हुए देवता? नहीं, तुम यहाँ हरगिज-हरगिज़ नहीं हो सकते। शिव ! तुमने तो सदा इन लुटेरे पण्डे-पुजारियों के कर्म-काण्ड का विरोध कर भक्तिरस की अमृत धारा प्रवाहित की है। अपनी मोटी दक्षिणा की लालच से इन पोपपंथी कठमुल्लों ने राजा-प्रजा का कीमती धन और समय यज्ञ पर यज्ञ करके स्वाहा करना शुरू किया, राष्ट्र को अंधा और अपंगु बना डाला तब तुमने भक्ति की महिमा बढ़ाई। तुमने उपदेश दिया कि जो व्यक्ति अपने घर से चलकर नित्य जितनी दूर गंगा-स्नान करने जाता है, जितने कदम चलता है, वह एक-एक कदम पर सौ-सौ वाजपेय यज्ञों का पुण्यफल पाता है। वाह रे त्रिलोचन भगवान् तुमने हजारों-लाखों रुपयों का घी-यव-घान्य आग में जलाकर दक्षिणा से मोटे बननेवालों के धर्म को निकम्मा सिद्ध कर दिया।

दक्षिण भारत के मीनाक्षी मंदिर की दीवार पर तुम्हारी ‘पुट्टू लीला’ के चित्र भी मैंने देखे हैं—कैसी सुन्दर कथा है ! एक बुढ़िया थी, बिचारी के कोई नहीं था, बड़ी गरीब थी, रोज़ चावल के पुट्टी बनाकर बेचती और तुम्हारा भोग लगाती थी। एक बार तमिलनाडु में अकाल पड़ा, बारह बरस, तक पानी न बरसा तो राजा ने हुकुम लगाया कि प्रजा के सब लोग मिलकर तालाब खोदें। धनी लोग मजदूरों को पैसे दे-देकर अपनी सेंती काम कराने लगे पर बिचारी बुढ़िया कहां से पैसे पाए, और उसके शरीर में उतनी शक्ति भी नहीं थी कि फावड़ा चला सके। बेचारी बुढ़िया दुखी थी। तुम्हारी पूजा करके वह कहने लगी कि हे महादेव बाबा, मेरे तो कोई बेटा नहीं, मेरी सेंती कौन काम करेगा। उसका ये कहना था कि तुम झटपट एक जवान मजदूर का भेष धरकर वहां आ पहुंचे और कहा कि मां, मैं तुम्हारा बेटा हूं। ये प्रसाद के पुट्टू तुम मुझे खिला दो तो मैं तुम्हारे बदले तालाब खोद आऊंगा। बुढ़िया बोली कि ये पुट्टू तो शिवजी को भोग लगाऊंगा। तुम्हें नहीं दे सकती। पर तुम भी ठहरे नटखट, तुमने कहा कि नहीं मैया, मैं तो यही पुट्टू खाऊंगा तब तालाब खोदने जाऊंगा। बुढ़िया बोला

‘‘मैं चाहे आप फावड़ा चला लूंगा पर ये शिवजी का भोग है सो उन्हें ही चढ़ाऊंगी।’’

फिर जैसे ही वह तुम्हारी मूर्ति पर पुट्टू चढ़ाने लगी वैसे ही वह पुट्टू उड़कर मजदूर के मुँह में चला गया और मजदूर यानी कि तुम हंसने लगे बुढ़िया चकित हो गई। तुम्हें पहचान कर वह जैसे ही तुम्हारे चरणों में गिरने लगी कि तुमने कहा:

‘‘नहीं तुम मेरी मां हो।’’

और एक ही दिन में तुमने तालाब खोदकर पानी निकाल दिया। तुम गरीबों के भगवान् हो, असहायों के सहायक हो, दीनबंधु दीनानाथ हो। अपने भक्तों की तीखी बातें सुनकर भी तुम उन्हें निहालकर देते हो।

यहां मुझे आंध्र के कवि श्रीनाथ की कथा याद आ रही है। बेचारे एक जंगल से चले जा रहे थे, प्यास के मारे उनका गला चिटक रहा था, न तालाब न बावड़ी, न नदी न नाला=बेचारे बड़े ही दुखी थे। चलते-चलते उन्हें दूर पर एक कुआं दिखाई दिया। दौड़ते-हांफते वहां पहुंचे कि अब पानी पीने को मिलेगा, पर वहां पहुंचकर देखा तो कुआं आधा था। श्रीनाथ बेचारे दुखी हो गए। प्यास के मारे झुंझलाकर उन्होंने अपने इष्टदेव से, यानी कि तुमसे कहा कि हे शंकर जी, तुम एक बीवी गंगा जी को अपने सिर पर चढ़ाकर और दूसरी पार्वती जी को वामांग में बिठाकर भंग के नशे में बैठे-बैठे चकल्लस कर रहे हो और यहां तुम्हारे एक भक्त की प्यास के मारे जान निकली जा रही है। तुमको लज्जा नहीं आती ? भक्त की फटकार सुनकर तुमने तुरन्त ही गंगा जी को उस अंधेकुएं में उतार दिया और प्यासे कवि श्रीनाथ की जान बचाई। यानी कथा का अर्थ ये है कि सच्चा भाव होता है वहां कर्म भी होता है और जहां भाव है, कर्म है, वहां ज्ञानगंगा भी आप ही आप प्रवाहित होने लगती है।

हे त्रिनेत्र, तुम ज्ञान देते हो, भक्ति देते हो, शक्ति देते हो। तुम्हारा यही रूप मंगलकारी है, मैं तुम्हारे इसी रुप को भजता हूं। जय भोले। भोले बम्भोले।

भोलेनाथ, क्या मरज़ी है तुम्हारी ? होली के दिन नगिचियाए हैं आजकल तो डबल गहरी छनती होगी मेरे गुरु, गुरुओं के गुरु। मगर एक बात कहें ? कहोगे कि गुरु से छेड़खानी करता है, भारतीय संस्कृति के खिलाफ काम करता है। नहीं-नहीं, विश्वंभर, सो बात नहीं। अपने यहां के भक्ति दर्शन की यही तो महिमा है

पितु मातु सहायक स्वामि सखा

तुम ही इक नाथ हमारे हो

-सो तुम गुरु भी हो, यार भी हो। इस बखत हमारा तुमसे यारी बरतने का मूड है, सो यारी बरतेंगे और इस बहाने तुम्हारे हित में कुछ खरी-खरी सुनावेंगे। हम पूछते हैं भोले, महंगाई कितनी बढ़ गई है कुछ इसकी भी खबर रखते हो कि सदा अलमस्त ही बने रहते हो। भगवती से पूछे भला कि तुम समान अलमस्त का खर्चा कैसे चलाती होंगी। ये तो कहो कि कार्तिकेय और गणेश अपने-अपने काम-धन्धे से लगे हैं। नहीं तो गुरु, ये तुम्हारा सारा नाच-हुड़दंग कब का खत्म हो जाता। हम पूछते हैं गुरु जी, इतना बढ़िया नाचते हो कि ‘नटराज’, आदि नट, कहलाते हो, एक बढ़िया-सी कम्पनी खोल के दुनिया-भर में अपना डांस ट्रुप क्यों नहीं घुमाते ? तुम्हारी नकलें उतार-उतार कर नर्तक लोग लखपती बन गए और तुम भिखारी के भिखारी ही रहे। भोलानाथ, तनिक कल्पना तो करो कि ठाठ से सूट-बूट पहने हो, गले में सर्प डोल रहा है, हाथ में सिगरेट का टिन है, चेहरे पर लापरवाही और खोएपन की अदा है, कपाल पर तीसरा नेत्र और सिर के जटाजूट में गंगा जी मानिन्द फव्वारे के मद्धिम-मद्धिम पिक्टोरियल एफेक्ट मार रही हैं। भूतनाथ, इस छवि को देखते ही सारी दुनियों तुम्हारे पीछे भूत बनी डोलेगी। जहां जाओगे फोटोग्राफरों का हुजूम पीछे जाएगा। आटोग्राफ देते-देते तुम्हारा हाथ मशीन हो जाएगा। बड़े-बड़े राजमहलों में दावतें उड़ाना, मज़ें से भारतीय संस्कृति पर लेक्चर देना और फिर ठाठ से एक महल बनवाकर रहना बैल छोड़ मोटर, हवाई जहाज़ पर सावारी करना चेला होने के नाते मै भी तुम्हारी कम्पनी का मैनेजर हो जाऊंगा मेरे भी ठाठ हो जाएंगे।