कृष्णपक्ष / सुनो बकुल / सुशोभित

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कृष्णपक्ष
सुशोभित


श्रीजयदेवविरचित "गीतगोविन्द" के छठे सर्ग "कुण्ठवैकुण्ठ" की "अष्टपदी" के आधार पर "कांगड़ा शैली" का एक चित्र है :

श्रीराधा अंधकार का परिरम्भण कर रही हैं!

तिमिर को श्रीकृष्णस्वरूप मानकर अंक में भर रही हैं!

"श्ल‍िष्यति चुम्बति जलधरकल्पम्

हरिरूपगत इति तिमिरमनल्पम्

भवति विलम्ब‍ित विगलितलज्जा

विलपति रोदिति वासकसज्जा।"

यह कविवर जयदेव का वर्णन है!

भरतमुनि ने नायिकाभेद में जिन अष्टनायिकाओं का वर्णन किया है, उसमें "वासकसज्जा" नायिका को प्रथम क्रम में रखा है। जयदेव इस अष्टपदी में राधारानी का वर्णन एक रतिश्रांता वासकसज्जा नायिका के रूप में करते हैं, जो स्न‍िग्ध नीलकांतिवाले धूममेघ को देखकर तिमिर को अंक में भरने का यत्न करती हैं, उसे श्रीकृष्ण का बिम्ब मानकर।

इसके ठीक सामने मुझे सूरदास का यह पद याद आता है :

"हरि जू आए सो भली कीन्ही।

मो देखत कहि उठी राधिका, अंक तिमिर को दीन्ही।।"

[ "हे कृष्ण, तुम आए यह अच्छा किया, कहकर राधा उठीं और अंधकार का आलिंगन कर लिया!" ]

श्रीकृष्ण श्यामवर्ण हैं।

यह धूममेघ का भी वर्ण है और तिमिर का भी!

तिमिर प्रकाश का अभाव है या वह वर्णों की अनुपस्थिति है, ऐसा मानने वालों के उलट मीमान्सकों का आग्रह है कि तिमिर स्वतंत्र भावरूप है।

"ऋग्वेद" के "नासदीय सूक्त" में कहा गया है : "तम आसीत्तमसा गूढ़मग्रे।" यानी सृष्ट‍ि के आरंभ में अंधकार एक और बड़े अंधकार से घिरा था। जब श्रीराधा उस सर्वव्यापी तिमिर का अवगाहन करती हैं, तो मानो वे पूर्णता से कम किसी भी संज्ञा से संतोष नहीं करने का प्रण भी लेती हैं!

कालिदास ने कहा है : "दिवस इवार्धश्यामस्तात्यये जीवलोकस्य।" रागात्मकता की एक ऐसी व्यंजना, जो अर्धश्यामल दिवस की तरह है!

'रूपगोस्वामी ने श्रीकृष्णस्वरूप की व्याख्या "श्रीउज्जवलनीलमणि" की तरह की है। और "गीतगोविन्द" की भावभूमि में पूरी तरह से रचे-बसे आचार्य विद्यानिवास मिश्र और कपिला वात्स्यायन दोनों ने ही श्यामवर्ण श्रीकृष्ण की कल्पना एक विशाल अंधकार के रूप में की है। एक उज्जवल अंधकार जिसमें मृगमदरस की गंध!

अंधकार की अंकशायिनी जो श्रीराधा हैं, उनसे बड़ी वियोगिनी कौन होगी, और उनसे बड़ी परिणीता भी कौन हो सकती है? अकारण ही श्रीराधारूप को "नित्य संयुक्त नित्य विमुक्त" कहकर अभिहित नहीं किया गया है!

श्रीकृष्ण भारतीय पौराणिकता का कृष्णपक्ष हैं!

चंद्रमा की कलाओं की तरह श्रीकृष्ण की लीलाएं आपको एक-एक करके उस सूचीभेद्य तिमिर की ओर लिए जाती हैं, जो कि पूर्णस्वरूप है!

श्रीकृष्ण से अनुराग हो तो तिमिर का आलिंगन करने की सामर्थ्य भी होनी चाहिए, जैसे श्रीराधारानी में थी।