गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 17 / असगर वज़ाहत

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(मंच पर अँधेरा)

उद् घोषणा : ऊपर से नीचे तक खादी के कपड़े पहने, सिर पर सेहरा बाँधे, सफेद घोड़े पर सवार, नवीन जेल के फाटक पर पहुँचता है। शहनाई की आवाज, जेल की दीवारों पर टकराई। गैस बत्ति‍यों की रोशनी में जेल का फाटक आलोकित हो गया। पाँच बारातियों के साथ दूल्‍हा जेल के अंदर गया, जहाँ वार्ड नंबर पाँच में लाल खादी की साड़ी बाँधी दुल्‍हन उसका इंतजार कर रही थी।

(मंच पर धीरे-धीरे प्रकाश आता है। गांधी शादी की रस्‍में पूरी कराते हैं। गोडसे भी वहीं मौजूद है। अग्नि के सामने दूल्‍हा-दुल्‍हन बैठते हैं। गांधी मंत्र पढ़ते हैं। अग्नि के चारों तरफ फेरे लगाते हैं। जयमाला डाली जाती है।)

गांधी : मैं हर नवविवाहिता जोड़े को सदा भेंट देता हूँ... तुम लोगों को भी दे रहा हूँ... 'गीता'... है।

(दोनों गीता ले लेते हैं)

गांधी : जाओ... ब्रह्मचारियों जैसा जीवन बिताओ।

निर्मला : अरे महात्‍मा, आज तो इन्‍हें संतान का आशीर्वाद दे देता

गांधी : (प्‍यारेलाल से) ... इन्‍हें मेरी किताब 'विवाह का अर्थ' की एक कॉपी देना...

निर्मला : दो-चार दिन की छुट्टी ही दे दे इन्‍हें।

गांधी : (प्‍यारेलाल से)... अब तुम लोग जाओ... समय हो गया है।

(गांधी और गोडसे को छोड़ कर सब बाहर निकल जाते हैं।)

गोडसे : तुमने गीता भेंट की है?

गांधी : हमेशा... हर जोड़े को गीता भेंट करता हूँ। और ये भी जानता हूँ कि तुम भी...

गोडसे : गीता मेरा जीवन दर्शन है।

गांधी : गीता मेरा भी दर्शन है।... कितनी अजीब बात है गोडसे।... गीता ने तुम्‍हें मेरी हत्‍या करने की प्रेरणा दी और मुझे तुम्‍हें क्षमा कर देने की प्रेरणा दी... ये कैसा रहस्‍य है?

गोडसे : तुमने गीता को तोड़-मरोड़ कर अहिंसा से जोड़ दिया है, जबकि गीता निष्‍फल कर्म का दर्शन है। युद्ध के क्षेत्र में निष्‍फल कर्म से प्रेरित अर्जुन अपने प्रियजनों तक की हत्‍या कर देते हैं।

गांधी : लड़ाई के मैदान में हत्‍या करने और प्रार्थना सभा में फर्क है गोडसे।

गोडसे : कर्म के प्रति सच्‍ची निष्‍ठा ही काफी है। स्‍थान का कोई महत्‍व नहीं है। महाभारत तो जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है।

गांधी : गोडसे... मैंने पूरे जीवन जितनी मेहनत गीता को समझने में की है... उतनी कहीं और नहीं की है... गीता कर्म की व्‍याख्या भी करती है... गीता के अनुसार यज्ञ कर्म मतलब, दूसरों की भलाई के लिए किया जाने वाला काम ही है। हत्या किसी की भलाई में किया जाने वाला काम नहीं हो सकती।

गोडसे : मुद्दा यह है कि हत्‍या क्‍यों की जा रही है? उद्देश्‍य क्‍या है? कितना महान है, कितना पवित्र है?

गांधी : गोडसे... तुमसे शिकायत है... तुमने मेरी आत्‍मा को मारने का प्रयास क्‍यों नहीं किया?

गोडसे : आत्‍मा? वो तो अजर और अमर है...

गांधी : और शरीर का कोई महत्‍व नहीं है। तुमने कम महत्‍व के शरीर पर हमला किया... और आत्‍मा को भूल गए।

गोडसे : तुम्‍हारा वध हिंदुत्व की रक्षा के लिए जरूरी था।

गांधी : इसका निर्णय किसने किया था?

गोडसे : देश की हिंदू जनता ने...

गांधी : कौन सी हिंदू जनता?... जिसमें मेरे अलावा सभी हिंदू शामिल थे...

गोडसे : वे सब जो सच्‍चे हिंदू हैं... तुम तो हिंदुओं के शत्रु हो...

गांधी : तुम मुझे शत्रु मानते हो?

गोडसे : बहुत बड़ा, सबसे बड़ा शत्रु...

गांधी : गीता शत्रु और मित्र के लिए एक ही भाव रखने की बात करती है... यदि मैं तुम्‍हारा शत्रु था भी तो तुमने शत्रु भाव क्‍यों रखा?...गोडसे, गीता सुख-दुख, सफलता-असफलता, सोने और मिट्टी, मित्र और शत्रु में भेद नहीं करती... समानता, बराबरी का भाव है गीता में...

गोडसे : मैं महात्‍मा नहीं हूँ... उद्देश्‍य की पूर्ति...

गांधी : अच्‍छे काम भी गलत तरीके और भावना से करोगे तो नतीजा अच्‍छा न‍हीं निकलेगा... सब खराब हो जाएगा।

गोडसे : मैं नहीं मानता।

गांधी : हम सब अपने विचारों के लिए आजाद हैं... लेकिन हत्‍या करने की आजादी नहीं है।