गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 18 / असगर वज़ाहत

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(मंच पर अँधेरा। धीरे-धीरे रोशनी आती है। तेज पानी बरसने, बिजली कड़कने, टीन की छत पर पानी गिरने का आभास। आँधी और तूफान की आवाज का आभास। मंच पर गांधी और नाथूराम गोडसे बातें करते आते हैं। उनके पीछे बावनदास छाता लगाए साथ-साथ चल रहा है। गांधी और गोडसे क्‍या बात कर रहे हैं, यह सुनाई नहीं देता। बिजली कड़कने और पानी गिरने की आवाजें बढ़ जाती हैं। गांधी देखते हैं कि बावनदास ने पूरा छाता केवल उनके ऊपर तान रखा है। नाथूराम गोडसे पानी में भीग रहा है। गांधी मुड़ कर छाते को ठीक कर देते हैं ताकि वे और गोडसे दोनों पानी से बच सकें लेकिन बावनदास फिर छाते को सिर्फ गांधी पर ले आता है।)

उद् घोषणा : गांधी और गोडसे का संवाद चलता रहा... दिन पर दिन, महीने पर महीने और साल पर साल बीतते चले गए... बातचीत के दौरान कभी-कभी गोडसे की आवाज ऊँची हो जाया करती थी तो गांधी चुप हो जाया करते थे क्‍योंकि उनका मानना था कि कमजोर आदमी ही ऊँची आवाज में बोलता है। बावनदास इस बहस का गवाह बनता रहा। वह गांधी और गोडसे की बहस में ' गीता ' और ' हिंदुत्व ' पर कुछ बोल कर, दोनों को खामोश कर देता था... गांधी परमेश्‍वर की सबसे बड़ी रचना यानी मनुष्‍य को खोजने पहचानने और समझने की कोशिश करते रहे...

धीर-धीरे मंच पर अँधेरा हो जाता है। सुबह के समय, चिड़ि‍या के बोलने की आवाजें, सूरज के निकलने का आभास। गांधी और नाथूराम गोडसे मंच पर टहलते दिखाई देते हैं। उनके बीच बातचीत हो रही है लेकिन सुनाई नहीं देती।

मंच पर धीरे-धीरे अँधेरा होने के बाद रोशनी आती है। गर्मी के मौसम में चाँदनी रात और आसमान में तारों का आभास। गांधी और गोडसे सी‍ढ़ि‍यों पर बैठे हैं। दोनों के बीच बातचीत का दृश्‍य। हाव-भाव से ऐसा लगता है कि गोडसे गांधी पर चीख-चिल्‍ला रहा है।

मंच पर अँधेरा होता है। रोशनी आती है। जाड़े का मौसम, ठंडी हवा का आभास। मंच पर गांधी लाठी लिए ऊनी चादर ओढ़े गोडसे के साथ टहल रहे हैं। गोडसे ने भी गर्म कपड़े पहन रखे हैं। दोनों के बीच बातचीत का दृश्‍य।

मंच पर अँधेरा है। धीरे-धीरे प्रकाश आता है। गांधी और गोडसे जेल के वार्ड में बैठे हैं, बातचीत का आभास हो रहा है। सुषमा दो गिलास दूध लिए आती है। एक गांधी को और दूसरा गोडसे को को देती है।

(मंच पर अँधेरा और उद्घोषणा शुरू होती है।)

'कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसा घट जाता है जिसकी कल्‍पना भी नहीं की जाती... 5 जुलाई 1960 को भी कुछ ऐसा ही हुआ। मोहनदास करमचंद गांधी और नाथूराम गोडसे की सजा एक ही दिन पूरी हुई... एक ही दिन दोनों रिहा हुए... एक ही दिन दोनों जेल की फाटक के बाहर निकले... '

(धीरे-धीरे प्रकाश आता है। जेल का फाटक खुलता है। गांधी और गोडसे बाहर आते हैं। दोनों रुक जाते हैं।)

गांधी : नाथूराम... मैं जा रहा हूँ। वही करता रहूँगा जो कर रहा था। तुम भी। शायद वही करते रहोगे, जो कर रहे थे।

(गोडसे गांधी की तरफ अर्थपूर्ण ढंग से देखता है। दोनों एक-दूसरे की आँखों में नजरें गड़ा देते हैं। गांधी, गोडसे को हाथ जोड़ कर नमस्‍कार करते हैं। गोडसे भी हाथ जोड़ देता है। गांधी मंच पर बाईं तरफ आगे बढ़ते हैं। गोडसे दाहिनी तरफ जाता है। दोनों की पीठ दर्शकों की तरफ है। अचानक गांधी रुक जाते हैं, पर पीछे मुड़ कर नहीं देखते। गोडसे भी रुक जाता है और घूम कर गांधी के पीछे आता है। जब वह गांधी के बराबर पहुँचता है। गांधी बिना उसकी तरफ देखे अपना बायाँ हाथ बढ़ा कर उसके कंधे पर रख देते हैं और दोनों आगे बढ़ते हैं... मंच पर धीरे-धीरे अँधेरा हो जाता है।)

(धीरे-धीरे उद् घोषणा के साथ मंच पर प्रकाश आता है। अभिनेता मंच पर एक-एक कर आते हैं। सबसे अंत में गांधी और गोडसे अभिनेताओं की लाइन में शामिल हो जाते हैं।)

'...जो धीर मनुष्‍य दुख-सुख को बराबर समझता है, जो मिट्टी के ढेले और सोने के टुकड़े को एक जैसा मानता है, जो मनुष्‍य प्रशंसा और निंदा, मान और अपमान में एक जैसा रहता है, जो मित्र और शत्रु के लिए समान है, जिसमें त्‍याग की भावना है वह मनुष्‍य सब गुणों का स्‍वामी माना जाता है।"

समाप्त