चाणक्य / सुनो बकुल / सुशोभित
सुशोभित
चाणक्य की मेधा दीप्त थी, किंतु देह नहीं थी कांतिमान!
तब भी, विरूप मुखाकृति, भग्न दंतपंक्ति, अर्धनिमीलित नेत्र एवं श्यामवर्ण देह वाले चाणक्य धननंद की राजसभा में उच्च पद पर अधिकारपूर्वक आसीन हो गए!
चाणक्य को अपनी दीप्त मेधा की प्रतीति थी, कुरूप देह की नहीं।
कदाचित पाटलिपुत्र में तब इतने दर्पण ही नहीं हुआ करते होंगे और धननंद भी तो आत्मचिंतन से विरत ही था।
कुरूप विप्रवर को अग्रपंक्ति में देखकर कुपित हो उठे नरेश। दे दिया आदेश : "पूर्व दिशा के द्वारपालो, इस चांडालसदृश काले बामण को निकाल बाहर करो!"
तिरस्कार से तिलमिला उठा कूटनीति का कौटिल्य!
विद्वान पंडित को उदरपूर्ति जितना भात ना दो, कोई बात नहीं! उसे काष्ठ का पदत्राण तक ना दो, तब गजदंत के धर्मदंड की बात ही क्या करें! किंतु अपना अपमान उसे स्वीकार नहीं!
और कौटिल्य तो क्रोध का विग्रह थे। कुशा पर भी कुपित हो उठते तो उसका समूल नाश कर देते, जबकि वह तो कितनी निरापद!
बांध ली शिखा। ले लिया प्रण। जब तक नंदवंश का नाश नहीं करूंगा, नहीं बांधूंगा चोटी, कि राजपुत्रों से यह एक कुपित ब्राह्मण का वचन है!
चंद्रगुप्त मौर्य से अधिक कौन जान सकता था कि क्या है कौटिल्य का प्रताप! चंद्रगुप्त चंद्रगुप्त ना होता जो अगर कौटिल्य ना होता।
चंद्रगुप्त ने अपने राज्य में कौटिल्य को उससे भी ऊंचे पद पर आसीन किया, जहां से धननंद ने उन्हें निकाल बाहर कर दिया था।
चंद्रगुप्त चतुर था!
जानता था भलीभांति कि विद्याव्यसनी विप्र की अवमानना उचित नहीं।
किंतु क्या होता अगर चंद्रगुप्त आवेश या दर्प या आत्मविस्मरण के किसी क्षण में कर बैठता चाणक्य का अपमान? क्या चाणक्य तब मौर्य वंश के भी समूल नाश का प्रण लेता?
विशाखदत्त जैसी प्रतिभा तो मुझमें नहीं, जो विष्णुगुप्त की मति-गति की कर सकूं ठीक-ठीक कल्पना, फिर भी यह तो स्पष्ट है कि तब दो बातें हो सकती थीं :
1) अगर चाणक्य में युगबोध होता, राष्ट्रचिंतन होता तो वह कहता कि भारतवर्ष को मौर्यों के संबल की आवश्यकता है, मैं नहीं बनूंगा मौर्य वंश के पतन का कारण!
2) किंतु किसी ना किसी रीति-भांति से वह अपने अपमान का प्रतिशोध अवश्य लेता और आप जानते हैं कि कौटिल्य के पास रीतियों का कभी अभाव नहीं रहा!
कौटिल्यों को कुपित कर देना मूढ़ता है!
कौटिल्यों में सामर्थ्य होती है कि बड़े से बड़े साम्राज्य का समूल नाश कर दें, अतएव अत्यंत सचेत होकर ही करें उनके आत्मगौरव का स्पर्श।
"नंद" की अल्पमति "चंद्र" के राजतिलक का उपाय बन सकती है।
किंतु जिसने नंदवंश को उखाड़ फेंका, उसके लिए मौर्यवंश क्या था!
फिर मौर्यों की तो कुंडली भी कौटिल्य के पास ही थी!