दंगे का षड्यंत्र / भाग-4 / राजनारायण बोहरे

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शेख जमाल बोला-”ये है अरब देश से पधारे शेख बिन कमाल, आप ही ने वह सारे हथियार खरीदे थे और हमको अता किये।

नफर बोला ्र‘‘माफी चाहता हूँ, जनाब ।”

शेख जमाल बोला ‘‘तो सुनो ,अब की बार चूक नहीं होनी चाहिए, इस बार तुम लोग मिलकर ऐसा करना कि हिन्दू दहल उठे।”

इसके बाद शेख जमाल उन लोगों को एक भयानक स्कीम बताता रहा पीछे खड़े जफर ने अपने जेब मे ंरखा छोटा सा टेपरिकार्डर चालू कर लिया था जिसमें शेख कमाल की आवाज समाती जा रही थी।

तब जबकि सुबह का धुंधलका शुरू होना चाहता था, कोठी से ये लोग वापिस हुये।

जफर का मस्तिष्क तेजी से आगे की योजना सोच रहा था।

अजय के साथ बुरी बीती।

शेरा पहलवान अजय के पापा को जानता थ और एक दिन अजय को पापा के साथ देखा तो उसने पिछले दिनों बीती दुर्घटना का कुछ-कुछ अन्दाजा लगाया और विजय सिंह को अजय का पूरा परिचय दे दिया।

दूसरे दिन।

अजय अभय के स्कूल का साथी मेहरबान नाम का एक लड़का अजय के पास आया और विजय सिंह के बुलाने का कहके उस को स्कूल के बाहर ले आया । बाहर आकर उसने देखा कि सामने विजयसिंह खड़ा था । विजय सिंह बोला ‘‘ आओ हम सबको एक जरूरी काम से बात करना है।”

“हम लोग कहां चल रहे हैं ,भाई साहब” अजय ने रूकते हुए पूंछा।

“बस, वहाँ मैटाडोर तक” कहते हुये विजय ने अजय के कंधे पर हाथ रखा।

सामने एक काली मैटाडोर खड़ी थी जिसके सभी शीशे काले पुते थे।

पिछला दरबाजा खुला और विजयसिंह ने अजय को भीतर चढ़ा दिया। पीछे से विजयसिंह के दो दोस्त एवं खुद विजयसिंह भी चढ़ा।

ये क्या ? मैटाडोर का दरवाजा अचानक ही बंद हुआ और मैटाडोर-स्टार्ट।

‘‘ ये क्या ? गाड़ी रोको । हमको अभय से तो कह लेने देते भैया कि हम आपके साथ जरूरी काम से जा रहे हैं ।”अजय ने विजय सिंह से कहा।

“साले चुप बैठा रह” विजयसिंह के तेवर बदले ‘‘पुलिस को सारी जानकारी देकर हमारा नुकसान करा दिया, चल अब नेताजी तेरी ऐसी तैसी करेंगे।”

अजय चुप हो गया और तेजी से सोचने लगा।

मेटाडोर भागी जा रही थी।

अजय बिल्कुल शांत था, वह तो सोच रहा था उस टेप रिकार्ड के बारे में जो उसके पास जापान से खरीद कर लाये थे। तीन छोटे छोटे टेप रिकार्ड, ऐसे कि जेब में रखे जा सकें। और उनमें से एक टेपरिकार्ड अजय की जेब में था बांकी दो टेपरिकार्ड जफर और अभय के पास थे।

मैटाडोर के बाहर देखना संभव नहीं था अजय बेफ्रिक सा बैठा एक-एक के चेहरे घूर रहा था।

मैटाडोर की रफ्तार बढ़ती जा रही थी।

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ठीक वहीं, जहाँ कि जफर नफर के साथ मौजूद था।

मैटाडोर रूकी और उसमें से फटाफट तीन चार मुसतण्डे उतरे। उन्होंने अजय को दबोच लया।

उसे कोठी के भीतर घसीटते हुए ले जाया गया।

एक अंधेरे से कमरें में उसे धंकेल दिया और उसे लाने वाले लोग लौट भी गये। पास के कमरे में से कुछ आवाज आई तो अजय ने सुना । अरे, ये तो नफर की आवाज है, उसे विश्वास हो गया कि जफर भी उसके साथ होगा।

सचमुच जफर वहां आया था। अजय भी पास वाले कमरे की सारी बाते सुन पा रहा था और टेपरिकार्ड में टेप भी करता जा रहा था।

जफर जब लौट गया तो मियां शेख जमाल अकेले रह गये।

कुछ देर बाद खटखट की ध्वनि हुई।

“कौन” जमाल चीखा।

“मददगार” जबाब मिला।

“ओहो पंडित जी पधारे है, आईये शेख अचानक खुश होकर बोला।

कोई देखे तो आश्चर्य करे सचमुच ही शांति समिति के सदस्य पण्डित चतुर्भुज कोठी में प्रविष्ट हो रहे थे।

इसके बाद दोनों ने नगर की शांति भंग करने की स्कीम बनानी शुरू कर दी जो बराबर अजय के टेप रिकार्डर में टेप होने लगी थी।

पंडित जी एक घंटे बाद विदा हुये तो शेख जमाल भी उठे और कोठी के एक अंधेरे कमरे में प्रविष्ट हो गये।

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आधी रात के बाद अचानक पुलिस ने उस कोठी पर छापा मारा।

अजय को छुड़ा लिया गया। साथ में कुल मिलाकर सत्तर लोग उस रात गिरफ्तार हुये जिनमें शेख जमाल और पंडित चतुर्भुजजी भी थे। आस पास के तमाम नगरों मेें पुलिस फोर्स बुलाई गई थी जो बराबर शहर की सड़कों पर गश्त कर रही थी।

नागरिक लोग परेशान थे कि आखिर इन सत्तर लोगों में शरीफ लोगों को क्यों सम्मिलित किया गया है।

उधर पुलिस कार्यालय में गिरफ्तार लोगों के ब्यान लिये जा रहे थे जिन्हें सुनकर पुलिस अधिकारी चौंक उठे थे।

दोपहर को पुलिस कमिश्नर ने पत्रकारों तथा प्रतिष्ठित नागरिकों को चर्चा के लिये अपने कार्यालय में बुलाया और चाय पानी के बाद उन सबको पिछली रात गिरफ्तार किए गए लोगों के टेप रिकॉर्ड में लिये गये बयान सुनाये जाने लगे जिन्हें सारा शहर शरीफ समझता था जो शहर के व्यापारी वकील और नेताओं के रूप में काम धाम करते थे लेकिन भीतर ही भीतर दंगे के कर्ता- धर्ता थे।

बयान सुनाने के बाद आखिरी में कमिश्नर बोले-” ये लोग तो बेचारे पैसे के लिए काम करने वाले छोटे लोग हैं । मैं आप लोगों को इस दंगा काण्ड के खास अपराधी से मिलाने के लिये एक संदेश का इंतजार कर रहा हूँ।”

सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर कौन से संदेश आने वाला है।

तभी वायरलेस कर्मचारी दौड़ा हुआ आया-”सर, बम्बई से वायरलैस आया है कि काम निपटाकर हम आ रहे हैं।

“ओ के थैक्यू” कमिश्नर बोले ‘‘हां मेरे मेहमानों, कुछ देर बाद ही हमारा हेलीकॉप्टर इस दंगा काण्ड के खास अपराधी के साथ आ रहा है, जैसा कि मैंने बताया कि अभी हमने जिन लोगों को गिरफ्तार किया यह सब किराये के टट्टू हैं। जिन्होंने पैसे के लोभ में नगर की शांति भंग की थी। जोे असली अपराधी है वह बम्बई बंदरगाह पर जहाज में बैठते हुये पकड़ लिया गया है।

लगभग तीन घंटे बाद।

पुलिस कोतवाली के सामने वाले मैदान में, पुलिस का हेलीकॉप्टर उतरा जिसमें से चार पुलिस इंसपेक्टर एक विदेशी आदमी के साथ उतरे।

पत्रकार आगे बढ़े, फोटो ग्राफरों ने कैमरे संभाले और लोगों की भीड़ में हलचल मच गई।”

पत्रकारों के सामने गोरी चमड़ी वाले उस व्यथ्ति ने अपना अपराध कुबूल करते हुए कहा-”मैं एक विदेशी आदमी हूँ और मुझे दुश्मन देश ने भेजा था। मैं आपके देश में इस आशा के साथ आया था कि गांव-गांव और मोहल्ले-मोहल्ले में साम्प्रदायिक दंगे भड़काऊंगा। कहीं हिन्दू-मुस्लिम और कहीं हिन्दू-सिख दंगे कराके मेरा देश आपके देश की शांति भंग करना चाहता था। लेकिन मेरा सपना पूरा नहीं हुआ। क्योंकि आपके देश में शेख जमाल और पण्डित जैसे देशद्रोही हैं तो अजय और जफर जैसे देश भक्त बच्चे भी हैं। जो अपनी जान पर खेलकर भी अपने देश की शांति भंग नहीं होने देना चाहते। ऐसे बच्चों को में प्रणाम करता हूँ। मैं चाहता हूं, कि अदालत इन बच्चो ंको इनाम दे और गद्दारों सख्त सजा दें। मेरा पैसा तो बर्बाद हो ही चुका है। “

इतना कहकर वह व्यक्ति रूका और उसने पानी लाने का संकेत किया। एक सिपाही दौड़कर पानी का गिलास ले आया तो उस व्यक्ति ने एक झटके से अपने हाथ की अंगूठी में जड़ा नग हटा दिया और नग के भीतर रख पीले रंग का पावडर चाट गया और ऊपर से सटाक से पानी भी पी गया।

लोग सन्नाटे में बैठे रह गये थे । पुलिस कमिश्नर ने आगे बढ़कर उसे संभाला और एक पुलिस इंसपेक्टर डॉक्टर को लेने भेजा।

वह व्यक्ति अटकते-झटकते बोला-”भारत वर्ष एक महान देश है। मुझे गर्व है कि मेरी मौत ऐसी प्यारी धरती पर हुई। मैं अपने देश का नाम आप लोगों को नहीं बताना चाहता क्योंकि वह देश भारत का मित्र देश जैसा देश है। अगर पुलिस जल्दी न करके मुझे गिरफ्तार नहीं करती तो बंदरगाह पर खड़े जहाज में बैठकर में आपके देश से दूर जा चुका होता। मैने, अब तेज जहर खा लिया है, मैं जा रहा हूँ।”

“अ- ल- वि- दा” अस्पष्ट से इतना कहते उस विदेशी व्यक्ति की गरदन लुढक गई। वहाँ मौजूद सभी लोग मृतात्मा के सम्मान में नीचा सिर किये कुछ देर वहीं खड़े रहे।

अब सारे पत्रकारों को अजय और जफर की तलाश थी जिनकी तारीफ विदेशी अपराधी ने मरते मरते की थी।

पुलिस कमिश्नर ने पत्रकारों के सामने अजय और जफर को बुलाया, वे दोनों देर तक कैमरों की जलती बुझती लाइट की चकाचोंध से आंखें चांेधियाते हुए, टुकुर टुकुर सामने देखते रहे।

अगले दिन अखबरों में उन दोनों का फोटो इस टाइटल के साथ छपा था कि इन बच्चों की मार्फत अनायास ही उस दंगे के षड़यंत्र का पर्दाफास हुआ , जिसके कारण हजारों मासूमों की जान जा सकती थी और दो धर्म के लोगों के बीच में अनावश्यक रूप से बढ़ने वाला वैमनस्य रूक गया था।

समाप्त।