देस बिराना / अध्याय 2 / भाग 3 / सूरज प्रकाश

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- घबराओ नहीं, ऊपर वाले ने तृम्हारे नाम भी एक खूबसूरत बीवी और निहायत ही सुकून भरा घर लिखा होगा। घर और बीबी दोनों ही तुम तक चल कर आयेंगे।

- पता नहीं घर की यह तलाश कब खत्म होगी।

- जल्दी ही खतम होगी भाई, अलका ने मेरे बाल बिखेरते हुए कहा है - अगर हमारी पसंद पर भरोसा हो तो हम दोनों आज ही से इस मुहिम पर जुट जाते हैं।

मैं झेंपी हँसी हँसता हूं - क्यों किसी मासूम की जिंदगी ख़राब करती हैं इस फालतू आदमी के चक्कर में।

- यह हम तय करेंगे कि हीरा आदमी कौन है और फालतू आदमी कौन?

गुड्डी की चिट्ठी आयी है। समाचार सुखद नहीं हैं ।

- वीरजी,

आपकी चिट्ठी मिल गयी थी। बेबे बीमार है। आजकल घर का सारा काम मेरे जिम्मे आ गया है। बेबे के इलाज के लिए मुझे अपनी बचत के काफी पैसे खर्च करने पड़े जिससे दारजी और बेबे को बताना पड़ा कि मुझे आपसे काफी पैसे मिले हैं।

वीरजी, यह गलत हो गया है कि सबको पता चल गया है कि आप मुझे पैसे भेजते रहते हैं। अब बीमार बेबे के एक्सरे और दूसरे टैस्ट कराने थे और घर में उतने पैसे नहीं थे, मैं कैसे चुप रहती। अपनी सारी बचत निकाल कर दारजी के हाथ पर रख दी थी। वैसे भी ये पैसे मेरे पास फालतू ही तो रखे हुए थे।

आप यहां की चिंता न करें। मैं सब संभाले हुए हूं। अपने समाचार दें। अपना कॉटैक्ट नंबर लिख दीजियेगा।

आपकी

गुड्डी

मैं तुरंत ही पांच हजार रुपये का ड्राफ्ट गुड्डी के नाम कूरियर से भेजता हूं और लिखता हूं कि मुझे फोन करके तुरंत बताये कि अब बेबे की तबीयत कैसी है। एक पत्र मैं नंदू को लिखता हूं। उसे बताता हूं कि किन हालात के चलते मुझे दूसरी बार मुझे बेघर होना पड़ा और मैं आते समय किसी से भी मिल कर नहीं आ सका। एक तरह से खाली हाथ और भरे मन से ही घर से चला था। बेबे बीमार है। ज़रा घर जा कर देख आये कि उसकी तबीयत अब कैसी है। गुड्डी को पैसे भेजे हैं। और पैसों की जरूरत हो तो तुरंत बताये।

सोचता हूं, जाऊं क्या बेबे को देखने? लेकिन कहीं फिर घेर लिया मुझे किसी करतारे या ओमकारे की लड़की के चक्कर में तो मुसीबत हो जायेगी। फिर इस बार तो बेबे की बीमारी का भी वास्ता दिया जायेगा और मैं किसी भी तरह से बच नहीं पाऊंगा। गुड्डी की चिट्ठी आ जाये फिर देखता हूं।

नंदू का फोन आ गया है।

बता रहा है - आप किसी किस्म की फिकर मत करो। बेबे अब ठीक है। घर पर ही है और डॉक्टरों ने कुछ दिन का आराम बताया है। वैसे चिंता की कोई बात नहीं है।

पूछता हूं मैं - लेकिन उसे हुआ क्या था ?

- कुछ खास नहीं, बस, ब्लड प्रेशर डाउन हो गया था। दवाइयां चलती रहेंगी। बाकी मुझे गुड्डी से सारी बात का पता चल गया है। आप मन पर कोई बोझ न रखें। मैं गुड्डी का भी ख्याल रख्गां और बेबे का भी। ओके, और कुछ !!

- जरा अपने फोन नम्बर दे दे।

- लो नोट करो जी। घर का भी और रेस्तरां का भी। और कुछ?

- मैं अपने पड़ोसी मिस्टर भसीन का नम्बर दे रहा हूं। एमर्जेंसी के लिए। नोट कर लो और गुड्डी को भी दे देना।

फोन नम्बर नोट करता हूं और उसे थैंक्स कर फोन रखता हूं..।

तसल्ली हो गयी है कि बेबे अब ठीक है और यह भी अच्छी बात हो गयी कि अब नंदू के जरिये कम से कम तुरंत समाचार तो मिल जाया करेंगे।

इस बीच दारजी चिट्ठी आयी है। गुरमुखी में है। हालांकि उनकी हैण्ड राइटिंग बहुत ही खराब है लेकिन मतलब निकाल पा रहा हूं ।

यह एक पिता का पुत्र के नाम पहला पत्र है।

लिखा है

- बरखुरदार,

नंदू से तेरा पता लेकर खत लिख रहा हूं। एक बाप के लिए इससे और ज्यादा शरम का बात क्या होगी कि उसे अपने बेटे के पते के वास्ते उसके दोस्तों के घरों के चक्कर काटने पड़ें। बाकी तूने जो कुछ हमारे साथ किया और दूसरी बार बीच चौराहे उत्ते मेरी पगड़ी उछाली, उससे मैं बिरादरी में कहीं मुंह दिखाने केध काबिल नहीं रहा हूं..। सब लोग मुझ पर ही थू थू कर रहे हैं। कोई यह नहीं देखता कि तू किस तरह इस बार भी बिना बताये चोरों की तरह निकल गया। तेरी बेबे तेरा इंतजार करती रही और जनाब ट्रेन में बैठ कर निकल गये। बाकी आदमी में इतनी गैरत और लियाकत तो होनी ही चाहिये कि वह आमने-सामने बैठ कर बात कर सके। तेरी बेबे इस बात का सदमा बरदाश्त नहीं कर पायी और तब से बीमार पड़ी है। तुझसे तो इतना भी न हुआ कि उसे देखने आ सके। बाकी तूने अपनी बेबे को हमेशा ही दुख दिया है और कभी भी इस घर के सुख-दुख में शामिल नहीं हुआ है। छोटी-मोटी बातों पर घर छोड़ देना शरीफ घरों के लड़कों को शोभा नहीं देता। तुम्हारी इतनी पढ़ाई-लिखाई का क्या फायदा जिससे मां-बाप को दुख के अलावा कुछ भी न मिले।

बाकी मेरे समझाने-बुझाने के बाद करतार सिंह तेरी यह ज्यादती भुलाने के लिए अभी भी तैयार है। तू जल्द से जल्द आ जा ताकि घर में सुख शांति आ सके। इस बहाने अपनी बीमार बेबे को भी देख लेगा। वो तेरे लिए बहुत कलपती है। वैसे भी उसकी आधी बीमारी तुझे देखते ही ठीक हो जायेगी। तू जितनी भी ज्यादती करे हमारे साथ, उसके प्राण तो तुझमें ही बसते हैं।

तुम्हारा,

दारजी

ज़िंदगी में एक बाप पहली बार अपने बेटे को चिट्टी लिख रहा है और उसमें सौदेबाजी वाली यह भाषा!! दारजी जो भाषा बोलते हैं वही भाषा लिखी है। न बोलने में लिहाज करते हैं न लिखने में किया है।

अब ऐसे ख़त का क्या जवाब दिया जा सकता है। वे यह नहीं समझते कि इस तरह से वे मेरी परेशानियां ही बढ़ा रहे हैं।

अगले ही दिन की डाक में गुड्डी का एक और खत आया है।

लिखा है उसने

- वीरजी, पत्र लिखने में देर हो गयी है। जब नंदू वीरजी ने बताया कि उन्होंने आपको बेबे की तबीयत के बारे में फोन पर बता दिया है इसलिए भी लिखना टल गया। बेबे अब ठीक हैं लेकिन कमज़ोरी है और ज्यादा देर तक काम नहीं कर पाती। वैसे कुछ सदमा तो उन्हें आपके जाने का ही लगा है और आजकल उनमें और दारजी में इसी बात को लेकर अक्सर कहा-सुनी हो जाती है।

बेबे की बीमारी के कारण कई दिन तक कॉलेज न जा सकी और घर पर ही पढ़ती रही। वैसे निशा आ कर नोट्स दे गयी थी।

दारजी ने मुझसे आपका पता मांगा था। मैंने मना कर दिया कि जिस लिफाफे में ड्राफ्ट आया था उस पर पता था ही नहीं। पता न देने की वज़ह यही है कि पिछले दिनों करतार सिंह ने संदेसा भिजवाया था कि अब हम और इंतजार नहीं कर सकते। अगर दीपू यह रिश्ता नहीं चाहता या जवाब नहीं देता तो वे और कोई घर देखेंगे। उन पर भी बिरादरी की तरफ से दबाव है।

पता है वीरजी, दारजी ने करतार सिंह के पास इस संदेस के जवाब में क्या संदेसा भिजवाया था - तू संतोष का ब्याह बिल्लू या गोलू से कर दे., दहेज बेशक आधा कर दे। करतार सिंह ने दारजी को जवाब दिया कि बोलने से पहले कुछ तो सोच भी लिया कर। तू बेशक व्यापारी न सही, मैं व्यापारी आदमी हूं और कुछ सोच कर ही तेरे दीपू का हाथ मांग रहा था। दारजी का मुंह इतना सा रह गया।

दारजी नंदू से आपका पता लेने गये थे। वे शायद आपको लिखें, या लिख भी दिया हो .. आप उनके फंदे में मत फंसना वीरजी।

आपके भेजे पांच हज़ार के ड्राफ्ट के लिए दारजी ने मेरा खाता खुलवा दिया है, लेकिन यह खाता उन्होंने अपने साथ ज्वाइंट खुलवाया है।

नंदू वीरजी अकसर बेबे का हालचाल पूछने आ जाते है। आपकी चिट्ठी का पूछ रहे थे। वे आपकी बहुत इज्जत करते हैं।

पत्र देंगे।

आपकी बहना,

गुड्डी

समझ में नहीं आ रहा, किन झमेलों में फंस गया हूं। जब तक घर नहीं गया था, वे सब मेरी दुनिया में कहीं थे ही नहीं, लेकिन एक बार सामने आ जाने के बाद मेरे लिए यह बहुत ही मुश्किल हो गया है कि उन्हें अपनी स्मृतियों से पूरी तरह से निकाल फेंकूं। हो ही नहीं पाता ये सब। वहां मुझे हफ्ता भर भी चैन से नहीं रहने दिया और जब वहां से भाग कर यहां आ गया हूं तो भी मुक्ति नहीं है मेरी।

अलका दीदी मेरी परेशानियां समझती हैं लेकिन जब मेरे ही पास इनका कोई हल नहीं है तो उस बेचारी के पास कहां से होगा। मुझे उदास और डिस्टर्ब देख कर वह भी मायूस हो जाती है, इसलिए कई बार उनके घर जाना भी टालता हूं। लेकिन दो दिन हुए नहीं होते कि खुद बुलाने आ जाती हैं। मजबूरन मुझे उनके घर जाना ही पड़ता है।

डिप्रैशन के भीषण दौर से गुज़र रहा हूं। जी चाहता है कहीं दूर भाग जाऊं। बाहर कहीं नौकरी कर लूं जहां किसी को मेरी खबर ही न हो कि मैं कहां चला गया हूं। एक तो ज़िंदगी में पसरा दसियों बरसों का यह अकेलापन और उस पर से घर से आने वाली इस तरह की चिट्ठियां। खुद की नादानी पर अफ़सोस हो रहा है कि बेशक गुड्डी को ही सही, पता दे कर ही क्यों आया..। मैं अपने हाल बना रहता और उन्हें उनके ही हाल पर छोड़ आता। लेकिन बेबे और गुड्डी .. यहीं आ कर मैं पस्त हो जाता हूं।

अब मैं इस दिशा में ज्यादा सोचने लगा हूं कि यहां से कहीं बाहर ही निकल जाऊं। बेशक कहीं भी खुद को एडजस्ट करने में, जमाने में वक्त लगेगा लेकिन यहां ही कौन सी जमी-जमायी गृहस्थी है जो उखाड़नी पड़ेगी। सब जगह हमेशा खाली हाथ ही रहा हूं। जितनी बार भी शहर छोड़े हैं या जगहें बदली हैं, खाली हाथ ही रहा हूं, यहां से भी कभी भी वैसे ही चल दूंगा। किसी भी कीमत पर इंगलैण्ड या अमेरिका की तरफ निकल जाना है।

ऑफिस से लौटा ही हूं कि अलका दीदी का बुलावा आ गया है। पिछले कितने दिनों से उनके घर गया ही नहीं हूं।

फ्रेश हो कर उनके घर पहुंचा तो दीदी ने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला है। भीतर आता हूं। सामने ही एक लम्बी-सी लड़की बैठी है। दीदी परिचय कराती हैं - ये गोल्डी है। सीएमसी में सर्विस इंजीनियर है। उसे मेरे बारे में बताती है। मैं हैलो करता हूं। हम बैठते हैं। दीदी चाय बनाने चली गयी है।

किसी भी अकेली लड़की की मौजूदगी में मैं असहज महसूस करने लगता हूं। समझ ही नहीं आता, क्या बात करूं और कैसे शुरूआत करूं। वह भी थोड़ी देर तक चुप बैठी रहती है फिर उठ कर दीदी के पीछे रसोई में ही चली गयी है। चलो, अच्छा है। उसकी मौजूदगी से जो तनाव महसूस हो रहा था, कम से कम वो तो नहीं होगा। लेकिन दीदी भी अजीब हैं। उसे फिर से पकड़ कर ड्राइंग रूम में ले आयी है - बहुत अजीब हो तुम दोनों? क्या मैं इसीलिए तुम दोनों का परिचय करा के गयी थी कि एक दूसरे का मुंह देखते रहो और जब दोनों थक जाओ तो एक उठ कर रसोई में चला आये।

मैं झेंप कर कहता हूं - नहीं दीदी, ऐसी बात नहीं है दरअसल .. मैं ..

- हां, मुझे सब पता है कि तुम लड़कियों से बात करने में बहुत शरमाते हो और कि तुम्हारा मूड आजकल बहुत खराब चल रहा है और मुझे यह भी पता है कि ये लड़की तुझे खा नहीं जायेगी। बेशक कायस्थ है लेकिन वैजिटेरियन है। दीदी ने मुझे कठघरे में खड़ा कर दिया है। कहने को कुछ बचा ही नहीं है।

मैं बात शुरू करने से हिसाब से पूछता हूं उससे - कहां से ली थी कम्प्यूटर्स में डिग्री?

- इंदौर से। वह भी संकोच महसूस कर रही है कि उठ, कर रसोई में क्यों चली गयी थी।

- बंबई पहली बार आयी हैं?

- जॉब के हिसाब तो पहली ही बार ही आयी हूं, लेकिन पहले भी कॉलेज ग्रुप के साथ बंबई घूम चुकी हूं।

- चलो, गगनदीप के लिए अच्छा हुआ कि उसे गोल्डी को बंबई नहीं घुमाना पड़ेगा।

- आप तो मेरे पीछे ही पड़ गयी हैं दीदी, मैंने ऐसा कब कहा...

- हां, अब हुई न बात। तो अब पूरी बात सुन। गोल्डी एक हफ्ता पहले ही बंबई आयी है। बिचारी को आते ही रहने की समस्या से जूझना पड़ा। कल ही विनायक क्रॉस रोड पर रहने वाली हमारी विधवा चाची की पेइंग गेस्ट बन कर आयी है। इसे कुछ शॉपिंग करनी है। तू ज़रा इसके साथ जा कर इसे शॉपिंग करा दे।

- ठीक है दीदी, करा देता हूं। दीदी की बात टालने की मेरी हिम्मत नहीं है।

- जा गोल्डी। वैसे तुझे बता दूं कि ये बहुत ही शरीफ लड़का है। पता नहीं रास्ते में तुझसे बात करे या नहीं या तुझे चाट वगैरह भी खिलाये या नहीं, तू ही इसे कुछ खिला देना।

- दीदी, इतनी तो खिंचाई मत करो। अब मैं इतना भी गया गुजरा नहीं हूं कि ....।

- मैं यही सुनना चाहती थी। दीदी ने हँसते हुए हमें विदा किया है।

हम दोनों एक साथ नीचे उतरते हैं।

सीढ़ियों में ही उससे पूछता हूं - आपको किस किस्म की शॉपिंग करनी है? मेरा मतलब उसी तरह के बाज़ार की तरफ जायें।

- अब अगर यहीं रहना है तो सुई से लेकर आइरन, बाल्टी, इलैक्ट्रिक कैटल सब कुछ ही तो लेना पड़ेगा। पहले यही चीजें ले लें - ऑटो ले लें? बांद्रा स्टेशन तक तो जाना पड़ेगा।

दो तीन घंटे में ही उसने काफी शॉपिंग कर ली है। बहुत अच्छी तरह से शॉपिंग की है उसने। उसने सामान भी बहुत बढ़िया क्वालिटी का खरीदा है। ज्यादातर सामान पहली नज़र में ही पसंद किया गया है। दीदी की बात भूला नहीं हूं। गोल्डी को आग्रह पूर्वक शेरे पंजाब रेस्तरां में खाना खिलाया है। इस बीच उससे काफी बात हुई है। गोल्डी कराटे में ब्लू बैल्ट है। पुराने संगीत की रसिया है और अच्छे खाने की शौकीन है। उसे फिल्में बिलकुल अच्छी नहीं लगती।

उसने मेरे बारे में भी बहुत कुछ जानना चाहा है। संकट में डाल दिया है उसने मुझे मेरी डेट ऑफ बर्थ पूछ कर। कभी सोचा भी नहीं था, इधर-उधर के फार्मों में लिखने के अलावा जन्म की तारीख का इस तरह भी कोई महत्व होता है। एक तरह से अच्छा भी लगा है। आज तक यह तारीख महज एक संख्या थी। आज एक सुखद अहसास में बदल गयी है।