देस बिराना / अध्याय 2 / भाग 4 / सूरज प्रकाश

Gadya Kosh से
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मैं भी उससे उसकी डेट ऑफ बर्थ पूछता हूं। बताती है - बीस जुलाई सिक्सटी नाइन।

मैं हँसता हूं - मुझसे छः साल छोटी हैं।

वह जवाब देती है - दुनिया में हर कोई किसी न किसी से छोटा होता है तो किसी दूसरे से बड़ा। अगर सब बराबर होने लगे तो चल चुकी दुनिया की साइकिल....।

काफी इंटेलिजेंट है और सेंस ऑफ ह्यूमर भी खूब है। आज से ठीक बीस दिन जनम दिन है गोल्डी का। देखें, तब यहां होती भी है या नहीं....!

- आपका ऑफिस तो बांद्रा कुर्ला कॉम्पलैक्स में है। सुना है बहुत ही शानदार बिल्डिंग है।

- हां बिल्डिंग तो अच्छी है। कभी ले जाऊंगी आपको। अभी तो नयी हूं इसलिए हैड क्वार्टर्स दिया है। मैं तो फील्ड स्टाफ हूं। अपने काम के सिलसिले में सारा दिन एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ेगा।

- बंबई से बाहर भी?

- हां, बाहर भी जाना पड़ सकता है।

हम लदे फदे वापिस पहुंचे हैं। गोल्डी का काफी सारा सामान मेरे दोनों हाथों में है। उसे चाची के घर के नीचे विदा करता हूं तो पूछती है - ये सारा सामान लेकर मैं अकेली ऊपर जाऊंगी तो आपको खराब नहीं लगेगा!

- ओह, सॉरी, मैं तो ये समझ रहा था मेरा ऊपर जाना ही आपको खराब लगेगा, इसलिए चुप रह गया। लाइये, मैं पहुंचा देता हूं सामान।

चाची को नमस्ते करता हूं। उनसे अक्सर दीदी के घर मुलाकात हो जाती है। हालचाल पूछती हैं। गोल्डी का सामान रखवा कर लौटने को हूं कि वह कहती है - थैंक्स नहीं कहूंगी तो आपको खराब लगेगा और थैंक्स कहना मुझे फॉर्मल लग रहा है।

- इसमें थैंक्स जैसी कोई बात नहीं है। इस बहाने मेरा भी घूमना हो गया। वैसे भी कमरे में बैठा बोर ही तो होता।

हँसती है - वैसे तो दीदी ने मुझे डरा ही दिया था कि आप बिलकुल बात ही नहीं करते। एनी वे थैक्स फॉर द नाइस डिनर। गुड नाइट।

किसी लड़की के साथ इतना वक्त गुज़ारने का यह पहला ही मौका है। वह भी अनजान लड़की के साथ पहली ही मुलाकात में। ऋतुपर्णा के साथ भी कभी इतना समय नहीं गुज़ारा था। गोल्डी के व्यक्तित्व के खुलेपन के बारे में सोचना अच्छा लग रहा है। कोई दुराव छुपाव नहीं। साफगोई से अपनी बात कह देना।

चलो, अलका दीदी ने जो ड्यूटी सौंपी थी, उसे ठीक-ठाक निभा दिया।

सुबह सुबह ही मकान मालिक ने बताया है कि दरवाजे पर कोई सिख लड़का खड़ा है जो तुम्हें पूछ रहा है। मैं लपक कर बाहर आता हूं।

सामने बिल्लू खड़ा है। पास ही बैग रखा है। मुझे देखते ही आगे बढ़ा है और हौले से झुका है।

मैं हैरान - न चिट्ठी न पत्री, हज़ारों मील दूर से चला आ रहा है, कम से कम खबर तो कर देता। उसे भीतर लिवा लाता हूं। मकान मालिक उसे हैरानी से देख रहा है। उन्हें बताता हूं - मेरा छोटा भाई है। यहां एक इन्टरव्यू देने आया है। मकान मालिक की तसल्ली हो गयी है कि रहने नहीं आया है।

उसे भीतर लाता हूं। पूछता हूं - .. इस तरह .. अचानक ही.. कम से कम खबर तो कर ही देता.. मैं स्टेशन तो लेने आ ही जाता..।

हंसता है बिल्लू - बस, बंबई घूमने का दिल किया तो बैग उठाया और चला आया।

मैं चौंका हूं - घर पर तो बता कर आया है या नहीं ?

- उसकी चिंता मत करो वीर, उन्हें पता है, मैं यहां आ रहा हूं।

मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि घर वह कह कर आया है। सोच लिया है मैंने, रात को नंदू को फोन करके बता दूंगा - घर बता दे, बिल्लू यहां ठीक ठाक पहुंच गया है। फिकर न करें।

- बेबे कैसी है? दारजी, गुड्डी और गोलू?

- बेबे अभी भी ढीली ही है। ज्यादा काम नहीं कर पाती। बाकी सब ठीक हैं।

मकान मालिक ने इतनी मेहरबानी कर दी है कि दो कप चाय भिजवा दी है।

बिल्लू नहा धो कर आया है तो मैं देखता हूं कि उसके कपड़े, जूते वगैरह बहुत ही मामूली हैं। घर पर रहते हुए मैंने इस तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया था। आज-कल में ही दिलवाने पड़ेंगे। घुमाना-फिराना भी होगा। यही काम मेरे लिए सबसे मुश्किल होता है। मैंने खुद बंबई ढंग से नहीं देखी है, उसे कैसे घुमाऊंगा। पता नहीं कितने दिन का प्रोग्राम बना कर आया है।

पूछ रहा है बिल्लू - क्या सोचा है वीर शादी के बारे में। उसने अपने बैग में से संतोष की तस्वीर निकाल कर मेरे आगे रख दी है। लगता है मुझे शादी के लिए तैयार करने और लिवा लेने के लिए आया है। उसे लिखा-पढ़ा कर भेजा गया है। वह जिस तरह से मेरी चीजों को उलट-पुलट कर देख रहा है और सारी चीजों के बारे में पूछ रहा है उससे तो यही लगता है कि वह मेरा जीवन स्तर, रहने का रंग ढंग और मेरी माली हालत का जायजा लेने आया है। कहा उसने बेशक नहीं है लेकिन उसके हाव-भाव यही बता रहे हैं।

परसों अलका दीदी ने दोनों को खाने पर बुला लिया था। गोल्डी भी थी। वहां पर भी वह सबके सामने मेरे घर छोड़ कर आने के बारे में उलटी-सीघी बातें करने लगा। जब मैं चुप ही रहा तो अलका को मेरे बचाव में उसे चुप करना पड़ा तो जनाब नाराज़ हो गये - आपको नहीं पता है भैनजी, ये किस तरह बिना बताये घर छोड़ कर आ गये थे कि सारी बिरादरी इनके नाम पर आज भी थू थू कर रही है। सगाई की सारी तैयारियां हो चुकी थीं। वो तो लोग-बाग दारजी का लिहाज कर गये वरना..इन्होंने कोई कसर थोड़े ही छोड़ रखी थी।

वह ताव में आ गया था। बड़ी मुश्किल से हम उसे चुप करा पाये थे। हमारी सारी शाम खराब हो गयी थी। गोल्डी क्या सोचेगी मेरे बारे में कि इतना ग़ैर-जिम्मेवार आदमी हूं। उससे बात ही नहीं हो पायी थी। मैं देख सकता था कि वह भी बहुत आक्वर्ड महसूस कर रही थी।

इस बीच देवेन्द्र और अलका जी ने दोबारा बुलाया है लेकिन मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही कि उसे वहां ले जाऊं। ले ही नहीं गया। अब तो बिल्लू से बात करने की ही इच्छा नहीं हो रही है। इसके बावजूद बिल्लू को ढेर सारी शापिंग करा दी है। घुमाया-फिराया है और हजारों रुपयों की चीज़ें दिलवायीं हैं। वह बीच-बीच में संतोष कौर का जिक्र छेड़ देता है कि बहुत अच्छी लड़की है, मैं एक बार उसे देख तो लेता। आखिर मुझे दुखी हो कर साफ-साफ कह ही देना पड़ा कि अगली बार जो तूने उस या किसी भी लड़की का नाम लिया तो तुझे अगली ट्रेन में बिठा दूंगा। तब कहीं जा कर वह शांत हुआ है।

अब उसकी मौजूदगी मुझमें खीज पैदा करने लगी है।