देस बिराना / अध्याय 3 / भाग 1 / सूरज प्रकाश

Gadya Kosh से
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अलका दीदी छेड़ रही हैं - कैसी लगती है गोल्डी?

- क्यों क्या हो गया हो उसे? मैं अनजान बन जाता हूं।

- ज्यादा उड़ो मत, मुझे पता है आजकल दोनों में गहरी छन रही है।

- ऐसा कुछ भी नहीं है दीदी, बस, दो-एक बार यूं ही मिल गये तो थोड़ी बहुत बात हो गयी है वरना वो अपनी राह और मैं अपनी राह?

- अब तू मुझे राहों के नक्शे तो बता मत और न ये बता कि मुझे कुछ पता नहीं है, गोल्डी बहुत ही शरीफ लड़की है। तुझसे उसकी जो भी बातें होती हैं मुझे आ कर बता जाती है। बल्कि तेरी बहुत तारीफ कर रही थी कि इतनी ऊंची जगह पहुंच कर भी दीपजी इतने सीधे सादे हैं।

- गोल्डी अच्छी लड़की है लेकिन आपको तो पता ही है मैं जिस दौर से गुज़र रहा हूं वहां किसी भी तरह का मोह पालने की हिम्मत ही नहीं ही नहीं होती। बहुत डर लगता है दीदी अब इन बातों से। वैसे भी पांच-सात मुलाकातों में किसी को जाना ही कितना जा सकता है।

- उसकी चिंता मत कर। रोज़-रोज़ मिलने से वैसे भी प्यार कम हो जाता है। तू मुझे सिर्फ ये बता कि उसके बारे में सोचना अच्छा लगता है या नहीं?

- अब जाने भी दो दीदी, पिछले कई दिनों से उसे देखा भी नहीं।

- बाहर गयी हुई थी। आज शाम को ही लौटी है। अभी फोन आया था। पूछ रही थी तुझे। आज आयेगी यहां। जी भर के देख लेना। तुम दोनों खाना यहीं खा रहे हो।

हम दोनों गोल्डी की बात कर ही रहे हैं कि दरवाजे की घंटी बजी। दीदी ने बता दिया है - जा, अपनी मेहमान को रिसीव कर।

- आपको कैसे पता वही है? मैं हैरानी से पूछता हूं।

- अब तेरे लिए ये काम भी हमें ही करना पड़ेगा। कदमों की आहट, कॉलबैल की आवाज पहचाननी तुझे चाहिये और बता हम रहे हैं। जा दरवाजा खोल, नहीं तो लौट जायेगी।

दरवाजे पर गोल्डी ही है। हँसते हुए भीतर आती है। हाथ में मेरी किताबें हैं।

- हम तेरी ही बात कर रहे थे। दीदी उसे बताती हैं।

- दीपजी ज़रूर मेरी चुगली खा रहे होंगे कि मैं उनकी किताबें लेकर बिना बताये शहर छोड़ कर भाग गयी हूं। इसीलिए यहां आने से पहले सारी किताबें लेती आयी हूं।

- आपको हर समय यही डर क्यों लगा रहता रहता है कि आपकी ही चुगली खायी जा रही है। आपकी तारीफ भी तो हो सकती है।

- आपके जैसा अपना इतना नसीब कहां कि कोई तारीफ भी करे। खैर, तो क्या बातें हो रही थी हमारी?

- आज दीप तुझे आइसक्रीम खिलाने ले जा रहा है।

- वॉव !! सिर्फ हमें ही क्योंह ? आपको भी क्यों नहीं।

- आपके जैसा अपना नसीब कहां । दीदी ज़ोर से हँसती हैं।

हम देर तक यूं ही हलकी-फुलकी बातें करते रहे हैं। जब आइसक्रीम के लिए जाने का समय आया तब तक चुन्नू सो चुका है। मैं आइसक्रीम वहीं ले आया हूं।

वापिस जाते समय पूछा है गोल्डी ने - कुछ किताबें बदल लें क्या?

- ज़रूर .... ज़रूर। चलिये।

किताबें चुन लेने के बाद वह जाने के लिए उठी है। जब हम दरवाजे पर पहुंचे हैं तो उसने छेड़ा है - आज अपने मेहमान को फिर चाय पिलाना भूल गये जनाब....और वह तेजी से नीचे उतर गयी है।

मैं हँसता हूं - ये लड़की भी अजीब है। रिश्तों में ज़रा सी भी औपचारिकता का माहौल बरदाश्त नहीं कर सकती। अब उसे ले कर मेरे मन में अक्सर धुकधुकी होने लगती है। - गोल्डी आइ हैव स्टार्टेड लविंग यू.. लेकिन क्या मैं ये शब्द उससे कभी कह पाऊंगा !

दीदी को पता चल गया है कि हम दोनों अक्सर मिलते हैं। इसी चक्कर में हम दोनों ही अब उतने नियमित रूप से दीदी के घर नहीं जा पाते। गोल्डी कभी चर्चगेट आ जाती है तो हम मैरीन ड्राइव पर देर तक घूमते रहते हैं। खाना भी बाहर एक साथ ही खा लेते हैं। मैं और गोल्डी रोजाना नयी जगह पर नये खाने की तलाश में भटकते रहते हैं। दोनों पूरी शाम खूब मस्ती करते हैं। उसके जन्म दिन पर मैंने उसे जो वॉकमैन दिया था, वह उसे हर समय लगाये रहती है। मेरी बात सुनने के लिए उसे बार-बार ईयर फोन निकालने पड़ते हैं लेकिन बात सुनते ही वह फिर से ईयर फोन कानों में अड़ा लेती है।

गोल्डी ने मेरे जीवन में रंग भर दिये है। एक ही बार में कई कई रंग। उसके संग-साथ में अब जीवन सार्थक लगने लगा है। उसने जबरदस्ती मेरा जनम दिन मनाया। सिर्फ हम दोनों की पार्टी रखी और मुझे एक खूबसूरत रेडीमेड शर्ट दी। मेरी याद में मेरा पहला जनमदिन उपहार। उसके स्नेह से अब जीवन जीने जैसा लगने लगा है और बंबई शहर रहने जैसा। शामें गुज़ारने जैसी और दिन उसके इंतज़ार करने जैसा। बेशक हम दोनों ने ही अभी तक मुंह से प्यार जैसा कोई शब्द नहीं कहा है लेकिन पता नहीं, इतने नज़दीकी संबंध जीने के बाद ये ढाई शब्द कोई मायने भी रखते हैं या नहीं। कुल मिला कर मेरे जीवन में गोल्डी की मौजूदगी मुझे एक विशिष्ट आदमी बना रही है।

कमरे पर पहुंचा ही हूं कि मेज पर रखा लिफाफा नज़र आया है। गोल्डी का खत है। उससे आज मिलना ही है। वह डिनर दे रही है। उसके लिए मैंने कुछ अच्छी किताबें खरीद रखी हैं। कमरे पर किताबें लेने और चेंज करने आया हूं। हैरान हो रहा हूं, जब मिल ही रहे हैं तो खत लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ गयी है।

लिफाफा खोलता हूं। सिर्फ तीन पंक्तियां लिखी हैं -

- दीप

आज और अभी ही एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में हैदराबाद जाना पड़ रहा है। पता नहीं कब लौटना हो। तुमसे बिना मिले जाना खराब लग रहा है, लेकिन सीधे एयरपोर्ट ही जा रही हूं।

कान्टैक्ट करूंगी।

सी यू सून..

लॉट्स ऑफ लव।

गोल्डी।

मैं पत्र हाथ में लिये धम्म से बैठ गया हूं। तो ....गोल्डी भी गयी..। एक और सदमा...। कम से कम मिल कर तो जाती!! फोन तो कर ही सकती थी। रोज़ ही तो करती थी फोन। कहीं भी होती थी बता देती थी और वहां से चलने से पहले भी फोन ज़रूर करती थी। आज ही ऐसी कौन सी बात हो गयी। पता नहीं क्यों लग रहा है, यह सी यू सून शब्द भी धोखा दे गये हैं। ये शब्द अब हम दोनों को कभी नहीं मिलायेंगे।

मेरी आंखें नम हो आयी हैं। अचानक सब कुछ खाली-खाली सा लगने लगा है। सब कुछ इतनी जल्दी निपट गया? अपने आप पर हँसी भी आती है - पता नहीं हर बार ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है। अभी खत हाथ में लिये बैठा ही हूं कि दीदी सामने दरवाजे पर नज़र आयी है। मैं तेजी से अपनी गीली आंखें पोंछता हूं। उनके सामने कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता। मुस्कुराता हूं। आखिर अपना उदास चेहरा उन्हें क्यों दिखाऊं!! लेकिन यह क्या !! दीदी की आंखें लाल हैं। साफ लग रहा है, वे रोती रही हैं। मैं चुपचाप खड़ा रह गया हूं। दीदी अचानक मेरे पास आती हैं और मेरे कंधे से लग कर सुबकने लगती हैं। मैं समझ गया हूं कि गोल्डी उन्हें सब कुछ बता गयी है। मैं संकट में पड़ गया हूं। कहां तो अपने आंसू छुपाना चाहता था और कहां दीदी के आंसू पोंछने की ज़रूरत आ पड़ी है। मैं उनके हाथ पर हाथ रखता हूं। उनसे आंखें मिलती हैं। मैं गोल्डी का खत उन्हें दिखाता हूं और अपनी सारी पीड़ा भूल कर उन्हें चुप कराने की कोशिश करता हूं - आप बेकार में ही परेशान हो रही हैं दीदी। मुझे इन सारी बातों की अब तो आदत पड़ गयी है। आप कहां तक और कब तक मेरे लिए आंसू बहाती रहेंगी।

जबरदस्ती हँसती हैं दीदी - पगले मैं तेरे लिए नहीं, उस पागल लड़की के लिए रोती हूं।

- क्यों ? उसके लिए रोने की क्या बात हो गयी? कम से कम मैं तो उसे आपसे ज्यादा ही जानता था। वह ऐसी तो नहीं ही थी कि कोई उसके लिए आंसू बहाये।

- इसीलिए तो रो रही हूं। एक तरफ तेरी तारीफ किये जा रही थी और दूसरी तरफ तेरे लिए अफ़सोस भी कर रही थी कि तुझे इस तरह धोखे में रख कर जा रही है।

- क्या मतलब ? धोखा कैसा ? आखिर ऐसा क्या हो गया है ?

- तुझे उसने लिखा है कि वह एक प्रोजेक्ट के लिए हैदराबाद जा रही है और उसने तुझे सी यू सून लिखा है....।

- इसके बावज़ूद मैं जानता हूं दीदी वह अब कभी वापिस नहीं आयेगी।

- मैं तुझे यही बताना चाहती थी। दरअसल उसने मुझे कई दिन पहले ही बता दिया था कि वह हैदराबाद जा रही है। किसी प्रोजेक्ट के लिए। आज ही जाते-जाते उसने बताया कि दरअसल ट्रांसफर पर शादी के लिए जा रही है।

- शादी के लिए ?

- हां दीप, वह और उसका इमिडियेट बॉस शादी कर रहे हैं। उसका बॉस भी इंदौर का है और उससे सीनियर बैच का है। दरअसल वह तुम्हारी इतनी तारीफ कर रही थी और साथ ही साथ अफसोस भी मना रही थी कि इस तरह से .....।

मैंने खुद पर काबू पा लिया है। जानता हूं अब रोने-धोने से कुछ नहीं होने वाला। माहौल को हलका करने के लिए पूछता हूं

- मैं भी सुनूं, आखिर वह क्या कर रही थी मेरे बारे में?

- कह रही थी कि उसने अपनी ज़िंदगी में दीपजी जैसा ईमानदार, मेहनती, सैल्फमेड और शरीफ आदमी नहीं देखा। उनकी ज़िंदगी में जो भी लड़की आयेगी, वह दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की होगी।

मैं हँसा हूं - तो उसने दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की बनने का चांस क्यों खो दिया?

- अब मैं क्या बताऊं। वह खुद इस बात को लेकर बहुत परेशान थी कि उसे इस तरह का फैसला करना पड़ रहा है। दरअसल वह तुम्हें कभी उस रूप में देख ही नहीं पायी कि .. ....

- तो इसका मतलब दीदी, उन दोनों ने पहले से सब कुछ तय कर रखा होगा?

- यह तो उसने नहीं बताया कि क्या मामला है लेकिन तुम्हें इस तरह से छोड़ कर जाने में उसे बहुत तकलीफ हो रही थी।