देस बिराना / अध्याय 3 / भाग 3 / सूरज प्रकाश

Gadya Kosh से
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- प्यारी बहना गुड्डी,

जब तक तुझे यह पत्र मिलेगा मैं यहां से बहुत दूर जा चुका होऊंगा। मैंने बहुत सोच समझ कर देश छोड़ कर लंदन जाने का फैसला किया है। बेशक आखरी उपाय के रूप में ही किया है। मेरे सामने और कोई रास्ता नहीं था। वैसे मेरी बहुत इच्छा थी कि कम से कम तेरी पढ़ाई पूरी होने तक और कहीं ठीक-ठाक जगह तेरी नौकरी का पक्का करके और तेरा अच्छा सा रिश्ता कराने के बाद ही मैं यहां से जाता लेकिन मैं ये दोनों ही काम पूरे किये बिना भाग रहा हूं। इसे मेरा एक और पलायन समझ लेना लेकिन मुझसे अब और बरदाश्त नहीं होता। दारजी की धमकी भरी चिट्ठियां और बिल्लू के हिकारत भरे खत अब मुझसे और बरदाश्त नहीं होते। ये लोग मुझे क्यों चैन से नहीं रहने देते। मैं किसी दिन पागल हो जाऊंगा ये सब पढ़ पढ़ कर। मुझे अभी भी अफसोस होता है कि एक बार घर छोड़ देने के बाद मैं क्यों वापिस लौटा जबकि मुझे पता था कि दारजी जिस मिट्टी के बने हुए हैं उनमें कम से कम इस उम्र में बदलाव की तो कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती। अफसोस तो यही है कि बिल्लू भी दारजी के नक्शे कदम पर चल रहा है। वह भी अभी से वही भाषा बोलने लगा है। तो हालात अब इतने बिगड़ गये है कि मेरे लिए और निभाना हो नहीं हो पायेगा। जब से दारजी वगैरह को मेरा पता मिला है, हर महीने कोई न कोई डिमांड आ जाती है। अब तक मैं सत्तर अस्सी हज़ार रुपये भेज चुका हूं और तकलीफ की बात यही है कि मेरा छोटा भाई मुझे धमकी दे जाता है कि मैं उसकी शादी में रोड़े अटका रहा हूं। मेरी तरफ से वो एक की जगह चार शादियां करे। मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूंगा भी लेकिन कम से कम तरीके से तो पेश आये। मैंने तुझे जानबूझ कर नहीं लिखा था कि जब वह यहां आया था तो किस तरह की भाषा में मुझसे क्या-क्या बातें करके गया था। मुझे लिखते हुए भी शर्म आती है। जब वह जाते समय स्टेशन पर मुझे इस तरह की बातें सुना रहा था तो मैंने उससे कहा था - तू कहे तो मैं लिख के दे देता हू कि तू मुझसे पहले शादी कर ले लेकिन फार गॉड सेक, मुझे ये मत बता कि कहां ज्यादा दहेज मिल रहा है और मैं कहां शादी कर लूं। तू अपनी फिकर कर। मेरी रहने दे। तो पता है उसने क्या कहा। कहने लगा - ठीक है, आप दारजी को यही बात लिख दो। मैंने ये सारी बातें एक खत में लिखी थीं लेकिन वह खत तुझे डालने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया और वह खत मैंने फाड़ दिया दिया था।

तो गुड्डी, अब मैं इस इकतरफा पैसे वाले प्यार से थक चुका हूं। वैसे सच तो यह है कि मैं इस खानाबदोशों वाली जिंदगी से ही थक चुका हूं। कितने साल हो गये संघर्ष करते हुए। अकेले लड़ते हुए और हासिल के नाम पर कुछ भी नहीं। मैं यहां से सब कुछ छोड़-छाड़ कर कहीं दूर निकल जाना चाहता हूं। मै जिम्मेवारियों से नहीं भागता लेकिन मुझे भी तो लगे कि मेरी भी कहीं कदर है। मुझे नहीं पता था कि मुझे घर लौटने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। शायद मेरे हिस्से में घर लिखा ही नहीं है।

एक और मोरचे पर भी मुझे करारी हार का सामना कर पड़ा है। उस बात ने भी मुझे भीतर तक तोड़ दिया है। मैं तुझे यह खबर देने ही वाला था कि एक बहुत ही सुंदर और गुणी लड़की से मेरा परिचय हुआ है और आगे जा कर शायद कुछ बात बने। इस रिश्ते से मुझे बहुत मानसिक बल मिला था और मैं उम्मीद कर रहा था कि ये परिचय मेरी ज़िंदगी में एक खूबसूरत मोड़ ले कर आयेगा, लेकिन अफसोस, इस रिश्ते का महल भी रेत के घर की तरह ढह गया और मैं एक छोटे बच्चे की तरह बुरी तरह छला गया। मैं हद दरजे तक अकेला और तनहा हूं, पहले भी अकेला था और आज भी हूं। एक तू ही है जिससे मैं अपने दिल की बात कह पाता हूं। इस अकेलेपन और बार-बार की ठोकरों के बाद ही सोच समझ कर मैंने लंदन जाने का फैसला कर लिया है। फैसला सही है या गलत यह तो वक्त ही बतायेगा। यूं समझ ले कि मैंने खुद को हालात पर छोड़ दिया है। जो भी पहला मौका सामने आया है, उसके लिए हां कर दी है।

लंदन का कोई हांडा परिवार है। वे लोग पिछले दिनों यहां आये हुए थे। वहां उनकी कई कंपनियां हैं, बीस पच्चीस। उनकी लड़की है गौरी। वह भी आयी हुई थी। लड़की ठीक-ठाक लगी। उसी से मेरी शादी तय हुई है। शादी की कोई शर्तें नहीं हैं। मैं चाहूं तो अपना कोई काम काज तलाश सकता हूं या चाहूं तो उनकी किसी कम्पनी में भी अपनी पसंद का काम देख सकता हूं। सब कुछ मुझ पर छोड़ दिया गया है। ट्रेवल फार्मेलिटीज पूरी होते ही निकल जाऊंगा। गौरी की एक तस्वीर भेज रहा हूं।

मैं जानता हूं कि यह मेरी वादा खिलाफी है और मैं अपने वादे पूरे किये बगैर तुझे इस हालत में छोड़ कर जा रहा हूं। मुझे पता है तेरी लड़ाई बहुत मुश्किल है। जब मैं ही नहीं लड़ पाया इनसे, फिर तू तो लड़की है। मैं सोच-सोच कर परेशान हूं कि तू अपनी लड़ाई अकेले के बलबूते पर कैसे लड़ेगी। लेकिन एक बात याद रखना, हम सब को कभी न कभी, कहीं न कहीं जीवन के इस महाभारत में अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होती है। यह महाभारत बहुत ही अजीब होता है। इस महाभारत में हर योद्धा को अपनी लड़ाई खुद ही तय करनी और लड़नी पड़ती है। यहां न तो कोई कृष्ण होता है न अर्जुन। हमें अपने हथियार भी खुद चुनने पड़ते हैं और अपनी रणनीति भी खुद ही तय करनी पड़ती है। कई बार हार-जीत भी कोई मायने नहीं रखती क्योंकि यह तो अंतहीन लड़ाई है जो हमें हर रोज सुबह उठते ही लड़नी होती है। कभी खुद से, कभी सामने वाले से तो कभी अपनों से तो कभी परायों से। तुझे भी आगे से अपनी सारी लड़ाइयां खुद ही लड़नी होंगी। कई बार ये लड़ाई खुद से भी लड़नी पड़ती है। सबसे मुश्किल होती है ये लड़ाई। लेकिन अगर एक बार आप अपने भीतर के दुश्मन से जीत गये तो आगे की सारी लड़ाइयां आसान हो जाती हैं। तू समझदार है और न तो खुद के खिलाफ़ ही कोई अन्याय होने देगी। पहले तुझे अपनी कमजोरियों के खिलाफ, अपने गलत फैसलों के खिलाफ और अपने खिलाफ गलत फैसलों के खिलाफ लड़ना सीखना होगा। तय कर ले कि न गलत फैसले खुद लेगी और न किसी को गलत फैसले खुद पर थोपने देगी। तू तो खुद कविताएं लिखती है और तेरी कविताओं में भी तो बेहतर जीवन की कामना ही होती है। कर सकेगी ना यह काम अपनी बेहतरी के लिए। खुद को बचाये रखने के लिए?

तो गुड्डी, मैं तुझे जीवन के इस कुरूक्षेत्र में लड़ने के लिए अकेला छोड़े जा रहा हूं। मैं अपनी लड़ाई बीच में ही छोड़े जा रहा हूं। मुझे भी अपनों से लड़ना था और तुझे भी अपनों से ही लड़ना है। मैं तीसरी बार मैदान छोड़ कर भाग रहा हूं। लड़ना आता है मुझे भी लेकिन अब मुझसे नहीं होगा। बस यही समझ लो। मैं खुद को परास्त मान कर मैदान छोड़ रहा हूं। कह लो लड़ने से ही इनकार कर रहा हूं।

मेरे पास लगभग तीन लाख रुपये हैं। इसमें से दो ढाई तेरे लिए छोड़े जा रहा हूं। साइन किये हुए पांच कोरे चैक साथ में भेज रहा हूं। जब भी तेरी शादी तय हो या तुझे पढ़ाई के लिए जरूरत हो, अपने खाते के जरिये निकलवा लेना..। इन पैसों के बारे में किसी को भी न तो बताने की ज़रूरत है और न इन्हें किसी के साथ शेयर करने की। किसी भी हालत में नहीं। ये सिर्फ तेरा हिस्सा है..। एक बेघर-बार बड़े भाई की तरफ से छोटी बहन को घर की कामना के साथ एक छोटी सी सौगात।

अपनी किताबें वगैरह जरूरतमंद स्टूडेंट्स के बीच बांट दी हैं। थोड़े से कपड़े और दूसरा सामान है, वे भी जरूरतमंद लोगों को दे जाऊंगा। यहां से मैं अपने ज़रूरत भर के कपड़े और तेरा बनाया स्वेटर ही साथ ले कर जाऊंगा। वही तो तेरी याद होगी मेरे पास। नंदू को मेरे बारे में बता देना। लंदन पहुंचते ही नया पता भेज दूंगा। अभी दारजी वगैरह को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। मैं खुद ही खत लिख कर बता दूंगा...।

मन पर किसी तरह का बोझ मत रखना और अपनी पढ़ाई में दिल लगाना।

अफसोस!! अपने वीर की शादी में नाचने-गाने की की तेरी हसरत पूरी नहीं हो पायेगी। वैसे भी अपनी शादी में मैं लड़के वालों की तरफ से अकेला ही तो होऊंगा। तो इस खत में इतना ही.. ..।

तेरा वीर,

दीप......

सारी तैयारियां हो गयी हैं। सामान से भी मुक्ति पा ली है। तनावों से भी। बेशक एक दूसरे किस्म का, अनिश्चितता का हलका-सा दबाव है। पता नहीं, आगे वाली दुनिया कैसी मिले। जो कुछ पीछे छूट रहा है, अच्छा भी, बुरा भी, उससे अब किसी भी तरह का मोह महसूस करने का मतलब नहीं है। पूरे होशो-हवास में सब कुछ छोड़ रहा हूं। लेकिन जो कुछ पाने जा रहा हूं, वह कैसे और कितना मिलेगा, या मिलेगा भी या नहीं, इसी की हलकी-सी आशंका है। उम्मीद भी और वायदा भी। वैसे तो इतना कुछ सह चुका हूं कि कुछ न मिले तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।

आज की आखरी डाक में दारजी का खत है। पत्र खोलने की हिम्मत नहीं हो रही। फिर कोई मांग होगी या मुझे किसी न किसी चक्कर में फांसने की उनकी कोई लुभावनी योजना। सोचता हूं अब जाते-जाते मैं उनके लिए क्या कर सकता हूं। पत्र एक तरफ रख देता हूं। बाद में देखूंगा।

सहार एयरपोर्ट के लिए निकलने से पहले पत्र उठा कर जेब में डाल लिया था। अलका और देवेन्द्रग साथ आये थे। मैं सिक्युरिटी एरिया जा रहा हूं और वे दोनों आंखों में आंसू भरे मुझे विदा करके लौट गये हैं। मैंने आज तक किसी भी परिवार से इतना स्नेह नहीं पाया जितना इन दोनों ने दिया है। दोनों सुखी बने रहें।

उनसे वादा करता हूं - उन्हें पत्र लिखता रहूंगा।

जेब में कुछ कड़ा महसूस होता है। देखता हूं - दारजी का ही पत्र है। खोल कर देखता हूं

- बरखुरदार,

जीते रहो।

एक बार फिर तेरे कारण मुझे उस बछित्तरे के आगे नीचा देखना पड़ा। वो तो भला आदमी है इसलिए बयाने के पैसे लौटा दिये हैं वरना.... अब तेरे हाथों ये भी लिखा था हमारी किस्मत में। अच्छा खासा घर मिट्टी के मोल मिल रहा था, तेरे कारण हाथ से निकल गया। बाकी खबर यह है कि बिल्लू के लिए एक ठीक-ठाक घर मिल गया है। उम्मीद तो यही है कि बात सिरे चढ़ जायेगी। बाकी रब्ब राखा। सोचते तो यही हैं कि कुड़माई और लावां फेरे एक ही साथ ही कर लें। पता नहीं अब कैसे निभेगा। तेरी बेबे चाहती है कि तू अब भी आ जाये तो तेरे लिए भी कोई अच्छी सी कुड़ी वेख कर दोनों भराओं की बारात एक साथ निकालें। अगर तुझे मंजूर हो तो तार से खबर कर और तुरंत आ। बाकी अगर तूने क्वांरा ही रहने का मन बना लिया हो तो कम से कम बड़े भाई का फरज निभाने ही आ जा। हम लड़की वालों को कहने लायक तो हो सकें कि हमारे घर में कोई बड़ा अफसर है और हम किसी किस्म की कमी नहीं रहने देंगे। बाकी तू खुद समझदार है.।

खत मिलते ही अपने आने की खबर देना।

बेबे ने आसीस कही है।

तुम्हारा

दारजी।

तो यह है असलियत। खत लिखना तो कोई दारजी से सीखे। उन्होंने रुपये पैसे को लेकर एक भी शब्द नहीं लिखा है लेकिन पूरा का पूरा खत ही जैसे आवाजें मार रहा है - तेरे छोटे भाई की शादी है और तू घर की हालत देखते हुए मदद नहीं करेगा तो तुझे बड़ा कौन कहेगा...।

सॉरी दारजी और सॉरी बिल्लू जी...अब वाकई देर हो चुकी है। इस समय मैं एयरपोर्ट की लाउंज में बैठा आपका पत्र पढ़ रहा हूं। अब मैं बैंक, चैक या ड्राफ्ट की सीमाओं से बाहर जा चुका हूं। रात के बारह बजे हैं। सारे बैंक बंद हो चुके हैं। बैंक खुले भी होते तो भी उसमें रखे सारे पैसे किसी और के नाम हो चुके हैं। वैसे दारजी, आपने दहेज के लेनदेन की बात तो पक्की कर ही रखी होगी। मैं मदद न भी करूं तो चलेगा। वैसे भी सिर्फ एक घंटे बाद मेरी फ्लाइट है और मैं चाह कर भी न तो अपने छोटे भाई की शादी में शामिल हो पाऊंगा और न ही तुम लोगों को ही इसी महीने लंदन में होने वाली अपनी शादी में बुलवा पाऊंगा।

फलाइट का समय हो चुका है। सिक्योरिटी चैक हो चुका है और बोर्डिंग कार्ड हाथ में लिए मैं लाउंज में बैठा हूं।

तो !! अलविदा मेरे प्यारे देश भारत। तुमने बहुत कुछ दिया मुझे मेरे प्यारे देश! बस, एक घर ही नहीं दिया। घर नाम के दो शब्दों के लिए मुझे कितना रुलाया है.. क्या क्या नहीं दिखाया है मुझे..। हर बार मेरे लिए ही घर छलावा क्यों बना रहा। मैं एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा। खोजता रहा कहां है मेरा घर!! जो मिला, वह घर क्यों नही रहा मेरे लिए !! आखिर मैं गलत कहां था और मेरा हिस्सा मुझे क्यों नहीं मिला अब तक। अब जा रहा हूं दूसरे देश में। शायद वहां एक घर मिले मुझे!! मेरी राह देखता घर। मेरी चाहत का घर। मेरे सपनों का एक सीधा सादा सा घर। चार दीवारों के भीतर घर जहां मैं शाम को लौट सकूं। घर जो मेरा हो, हमारा हो। कोई हो उस घर में जो मेरी राह देखे। मेरे सुख-दुख की भागीदार बने और अपनेपन का अहसास कराये। जहां लौटना मुझे अच्छा लगे न कि मजबूरी।

सॉरी गुड्डी, तुम्हें दिये वचन पूरे नहीं कर पाया। तुममें हिम्मत जगा कर मैं ही कमज़ोर निकल गया। अब अपना ख्याल तुम्हें खुद ही रखना है। बेबे मैं तुम्हें कभी सुख नहीं दे सका। हमेशा दुख ही तो दिया है। बाकी तेरे नसीब बेबे। देख ना तेरे दो-दो लड़कों की शादियां हो रही हैं लेकिन बड़ा लड़का छोटे की शादी में नहीं होगा और बड़े की शादी में तो खैर, तुम्हें बुलाया ही नहीं जा रहा है।

मेरी आंखों से आंसू बह रहे हैं। मैंने ऐसा घर तो नहीं चाहा था बेबे..।

मैं घड़ी देखता हूं। जहाज में चढ़ने की घोषणा हो चुकी है।

तभी अचानक सामने बने एसटीडी बूथ की तरफ मेरी निगाह पड़ती है। सोचता हूं, जाते जाते बड़े भाई का तथाकथित फर्ज भी अदा कर कर दिया जाये। मैं तेजी एसटीडी बूथ की तरफ बढ़ता हूं। नंदू का नम्बर मिलाता हूं।

घंटी जा रही है। आधी रात को आदमी को उठने में इतनी देर तो लगती ही है।

लाइन पर नंदू ही है।

- नंदू सुन, मैं दीपू बोल रहा हूं।

- बोलो भाई, इस वक्त!! खैरियत तो है। वह पूरी तरह जाग गया है।

- तू मेरी बात सुन पूरी। मेरे पास वक्त कम है, मैं बस पांच-सात मिनट में ही लंदन चला जाऊंगा। गुड्डी तुझे पूरी बात बता देगी। आज ही दारजी की चिट्ठी आयी है, बिल्लू की शादी कर रहे हैं वे। मैं यहां सारे खाते बंद कर चुका हूं और मेरे पास पैसे तो हैं लेकिन समय नहीं है।... मैंने गुड्डी के पास कुछ कोरे चैक भेजे हैं। ये पैसे मैंने गुड्डी की पढ़ाई और शादी के लिए अलग रखे थे। वो ये चैक तेरे पास रखवाने आयेगी। तू इसमें से एक चैक पर पचास हज़ार की रकम लिख कर पैसे निकलवा लेना और दारजी को देना। करेगा ना मेरा ये काम..? उसके लिए बाद में और भेज दूंगा।

- तू फिकर मत कर। तेरा काम हो जायेगा। अगर गुड्डी चैक नहीं भी लायेगी तो भी दारजी तक रकम पहुंच जायेगी। और कोई काम बोल..?

- बस, रखता हूं फोन। फ्लाइट के लिए टाइम हो चुका है।

- ओ के गुड लक, वीरा, अपना ख्याल रखना।

- ओ के नंदू। खत लिखूंगा।

मैं फोन रखता हूं और जहाज की तरफ लपकता हूं।