देस बिराना / अध्याय 3 / भाग 4 / सूरज प्रकाश

Gadya Kosh से
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तो...मैं .. आखिर देस छोड़ कर परदेस में आ ही पहुंचा हूं। कब चाहा था मैंने - मुझे इस तरह से और इन वज़हों से घर और अपना देस छोड़ना पड़े। घर तो मेरा कभी रहा ही नहीं। दो-दो बार घर छूटा। गोल्डी ज़िंदगी में ताजा फुहार की तरह आकर जो तन-मन भिगो गयी थी उससे भी लगने लगा था, ज़िंदगी में अब सुख के पल बस आने ही वाले हैं, लेकिन वह सब भी छलावा ही साबित हुआ।

अब मेरे सामने एक नया देश है, नये लोग और एकदम नया वातावरण है। एक नयी तरह की ज़िंदगी की शुरूआत एक तरह से हो ही चुकी है। जिंदगी को नये अर्थ मिल रहे हैं। इतने बरस तक उपेक्षित और अकेले रहने के बाद सारा संसार भरा पूरा और अपनेपन से सराबोर लग रहा है। शादी के पहले दिन से लगातार दावतों का सिलसिला चल रहा है। गौरी बहुत खुश है। जैसे-जैसे हम दोनों एक दूसरे के नज़दीक आ रहे हैं, एक दूसरे के साथ ज्यादा वक्त गुजार रहे हैं, हमें एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का मौका मिल रहा है। वह मेरे डरावने अतीत के बारे में कुछ भी नहीं जानती। उसे जानना भी नहीं चाहिये। मैंने उसे अपने घर-परिवार के बारे में बहुत कम बातें ही बतायी हैं। सिर्फ गुड्डी के बारे में बताया है कि वह किस तरह से पढ़ना चाहती है और कविताएं लिखती है। मैंने गौरी को जब गुड्डी का बनाया स्वेटर दिखाया तो उसने तुरंत ही वह स्वेटर मुझसे हथिया लिया और इठलाती हुई बोली थी - हाय, कितना सॉफ्ट और शानदार बनाया है स्वेटर। अब ये मेरा हो गया। तुम उसे मेरी तरफ से लिख देना कि तृम्हें एक और बना कर भेज देगी। जब लैटर लिखो तो मेरी तरफ से खूब थैंक्स लिख देना और मेरी तरफ से ये गिफ्ट भी भेज देना। और उसने अपनी अलमारी से गुड्डी के लिए एक शानदार गिफ्ट निकाल कर दे दिया था।

मुझे गुड्डी पर गर्व हो आया था कि उसकी बनायी चीज़ किस तरह से गौरी ने प्यार से अपने लिए रख ली है।

गुड्डी के अलावा गौरी और किसी के नाम वगैरह भी नहीं जानती। वैसे मैंने उसके चाचा और कजिन को भी तो सिर्फ यही बताया था कि मैं बंबई में अकेला ही रहता हूं और जब उन्होंने मेरे मां-बाप से मिलने की इच्छा जाहिर की थी तो मैंने उन्हें यही बताया था कि अपनी ज़िंदगी के सारे फैसले मुझे खुद ही करने हैं। मैंने न उन्हें अपने संघर्षों के बारे में बताया था न गौरी को ही अपने संघर्षों की हवा लगने दी थी।

गौरी को दुनियादारी की बातों से कोई लेना-देना नहीं है। आजकल तो वैसे भी उसकी ज़िदंगी के बस दो-चार ही मकसद रह गये हैं। खूब खाना, सोना और भरपूर सैक्स। इनके अलावा उसे न कुछ सूझता है और न ही वह कुछ सोचना ही चाहती है। वह भीतर-बाहर की सारी प्यास एक साथ ही बुझा लेना चाहती है। ज़रा-सा भी मौका मिलते ही वह बेडरूम के दरवाजे बंद कर लेने की फिराक में रहती है। कई बार मुझे खराब भी लगता है, लेकिन वैसे भी हमारे पास करने-धरने को कुछ भी काम नहीं है। दावतें खाना और सैक्स भोगना। वैसे मेरे साथ दूसरा ही संकट है। ज़िंदगी में कभी भी किसी के भी साथ इतना वक्त एक साथ नहीं गुज़ारा। अकेलेपन के इतने लम्बे-लम्बे दौर गुज़ारे हैं कि अब कई बार लगातार गौरी के साथ-साथ रहने से मन घबराने भी लगता है। आजकल तो यह हालत हो गयी है कि हम बाथरूम जाने के अलावा दिन-रात लगातार साथ-साथ ही रहते हैं।

लगता है, सोने के मामले में हम दोनों को ही अपनी आदतें बदलनी होंगी या उसे बता देना पड़ेगा कि हम बेशक एक साथ सोयें, लेकिन गले लिपटे-लिपटे सोने से मेरा दम घुटता है। हालांकि हनीमून पर हम अगले हफते ही जा पायेंगे लेकिन इस बीच हमें जितने दिन भी मिले हैं, हम दोनों ही जी भी कर एंजाय कर रहे हैं। हनीमून के लिए बचा ही क्या है?

इतने दिनों से गुड्डी को भी पत्र लिखना बाकी है। वैसे आज मेरे पास थोड़ा वक्त है। गौरी अपनी शापिंग के लिए गयी हुई है। गुड्डी को पत्र ही लिख लिया जाये।

प्यारी बहना, गुड्डी

तो मैं आखिर लंदन पहुंच ही गया। पिछली बीस तारीख को जब मैं यहां हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरा तो हांडा परिवार के कई लोग मुझे लेने आये हुए थे। इनमें से मैं सिर्फ दो ही लोगों को पहचानता था। एक गौरी के चाचा चमन हांडा को और दूसरे गौरी के कजिन राजकुमार हांडा को। ये लोग ही मुझे बंबई में मिले थे और इनसे ही सारी बातें हुई थीं। मुझे एयरपोर्ट से सीधे ही हांडा कंपनीज के गेस्ट हाउस में ले जाया गया। वहीं मुझे ठहराया गया था।

शाम को गौरी मिलने आयी थी। थोड़ी देर हाल चाल पूछे, कॉफी पी और चली गयी। जाते-जाते अपना फोन नम्बर दे गयी थी, कहा उसने - फोन करूंगी और आपको ज़रूरत पड़े तो आप भी फोन कर लें। मेरे लिए वे लोग शोफर ड्रिवेन गाड़ी छोड़ गये थे।

खैर, दो-चार दिन मेरी खूब सेवा हुई। सबसे मिलवाया गया। हांडा परिवार के मुखिया से भी मिलवाया गया। वे गौरी के ताऊ जी हैं। सबसे पहले वे ही पचासों साल पहले यहां आये थे और धीरे-धीरे अपनी जायदाद खड़ी की। इन पचास सालों में कम से कम नहीं तो अपने कम से कम सौ आदमी तो लंदन ले ही आये होंगे। अपने आप में बेहद दिलचस्प आदमी हैं। गौरी ने अपने पापा से भी मिलवाया और मम्मी से भी। यहां इंडियन अमीरों की एक बस्ती है - कारपैंडर्स पार्क। वहीं मेरी ससुराल की भव्य इमारत है। वैसे सबके अलग अलग अपार्टमेंट्स हैं।

तो ....मेरी भी शादी हो गयी। हमारी शादी.. मेरी और गौरी की..। बिल्लू की शादी के आगे-पीछे। अब बिल्लू को यह शिकायत नहीं रही होगी कि मैंने उसके रास्ते में रोड़े अटका रखे हैं। हमारी शादी दो तरह से हुई। पहले कोर्ट में, रजिस्ट्रार ऑफ मैरिजेस के ऑफिस में और बाद में पूरी बिरादरी के सामने आर्य समाजी तरीके से। अपनी शादी में लड़के वालों की तरफ से मैं अकेला ही घा। मैं ही दूल्हा, मैं ही बाराती, सबाला और मैं ही बैंड मास्टर। हँसी आ रही थी मुझे अपनी सिंगल मैन बारात देख कर।

मुझे ससुर साहब ने नयी लैक्सस कार की चाबी दी और गौरी को फर्निश्ड अपार्टमेंट की चाबी। ये कार यहां की काफी शानदार कार मानी जाती है। जब मैंने उनसे कहा कि मुझे कार चलानी तो आती ही नहीं है तो उन्होंने गौरी का हाथ मेरे हाथ में थमा दिया और बोले - ऐ लो जी शोफर भी लो। टर्म्स खुद तय कर लेना।

हनीमून के लिए हमें अगले हफ्ते पैरिस जाना है लेकिन मेरे इंडियन टूरिस्ट पासपोर्ट पर वीसा मिलने में थोड़ी दिक्कत आ रही है। उम्मीद तो यही है कि जा पायेंगे। अगर नहीं भी जा पाये तो भी परवाह नहीं। यहीं इतना घूमना-फिरना और मौज मस्ती हो रहे हैं कि हम दोनों ही लगातार सातवें आसमान रह रहे है। ख्बा दावतें खा रहे हैं।

एक नयी ज़िंदगी की शुरूआत हुई है।

गौरी बहुत खुश है इस शादी से और मुझसे एक पल के लिए अलग नहीं होना चाहती। अकसर तेरे बारे में पूछती रहती है। शादी के और लंदन के कुछ फोटो भेज रहे हैं। तेरे लिए शादी का एक छोटा सा तोहफा मेरी तरफ से और एक गौरी की तरफ से। तेरा बनाया स्वेटर गौरी ने मुझसे छीन लिया था और तुरंत ही पहन भी लिया था। अब तुझे मेरे लिए एक और खरगोशनुमा स्वेटर बनाना पड़ेगा। बना कर भेजेगी ना....।

अपना ख्याल रखना..

दारजी और बेबे को मेरी सत श्री अकाल और गोलू और बिल्लू को प्यार। मेरी छोटी भाभी के लिए भी एक तोहफा मेरी तरफ से। बेबे की तबीयत नयी बहू के आने से संभल गयी होगी।

पता दे रहा हूं। अपने समाचार देना।

तेरा वीर

दीप

अलका दीदी और नंदू को भी इसी तरह के पत्र लिखता हूं। शादी के कुछ फोटो और लंदन के कुछ पिक्चर पोस्ट कार्ड भी भेजता हूं। दीदी को पत्र लिखते समय पता नहीं क्यों बार-बार गोल्डी का ख्याल आ रहा है। अच्छी लड़की थी। अगर मुझसे कहती - मैं शादी करने जा रही हूं। ज़रा मेरी शापिंग करा दो, शादी का जोड़ा दिलवा दो तो मैं मना थोड़े ही करता। हमेशा की तरह उसकी शॉपिंग कराता। एक पत्र अपने पुराने ऑफिस को भी लिखता हूं ताकि वे मेरे बकाया पैसों का हिसाब किताब कर दें।

गौरी मेरे लिए क्रेडिट कार्ड का फार्म लायी है। मैंने मना कर दिया है - मुझे क्या करना क्रेडिट कार्ड!

- क्यों पैरिस जायेंगे तो ज़रूरत पड़ेगी। वैसे भी यहां लंदन में कोई भी किसी भी काम के लिए कैश ले कर नहीं चलता। दिन में दस तरह के पेमेंट करने पड़ते हैं।

- देखो गौरी, मैं क्या करूंगा ये कार्ड लेकर। न मुझे कोई शॉपिंग करनी है, न कोई पेमेंट ही करने होंगे। तुम हो न मेरे साथ। तुम्हीं करती रहना सब पेमेंट।

- समझा करो दीप, तुम्हें सिर्फ खर्च करना है। तुम्हें क्रेडिट कार्ड का पेमेंट करने के लिए कौन कह रहा है।

- फिलहाल रहने दो, बाद में देखेंगे।

- जैसी तुम्हारी मर्जी।

हनीमून बढ़िया रहा। शानदार रहना और शानदार घूमना फिरना। सब कुछ भव्य तरीके से। सारी व्यवस्थाएं पहले से ही कर ली गयी थीं। चलते समय ससुर साहब ने मुझे एक भारी सा लिफाफा पकड़ाया था।

जब मैंने पूछा कि क्या है इसमें तो वे हँसे थे - भई, आप अपना तो कर लेंगे, लेकिन शोफर के लिए तो खरचा पानी चाहिये ही होगा ना.. थोड़ी बहुत करेंसी है। गौरी बता रही थी कि आपने क्रेडिट कार्ड के लिए मना कर दिया है। यहां उसके बिना चलता नहीं है, वैसे आपकी मर्जी।

वह लिफाफा मैंने उनके सामने ही गौरी को थमा दिया था - हमारी तो पैकेज डील है। जितना खर्च हो वो करे और बाकी जो बचे वो टिप।

गौरी खिलखिलायी थी - पापा, आपने तो कमाल का दामाद ढूंढा है। यहां तो इतनी टिप मिल जाया करेगी कि कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।

मैं हँस दिया हूं - हमारे साथ रहोगी तो यूं ही ऐश करोगी।

पैरिस अच्छा लगा। हम दोनों ही तो सातवें आसमान पर थे। गौरी ने खूब शॉंपिंग की। अपने लिए भी और मेरे लिए भी। वैसे भी पैसे तो उसके पास ही रखे थे। मैं चाहता भी तो कुछ नहीं खरीद सकता था। इंडिया से जो थोड़ी बहुत रकम लाया था, उससे तो गौरी की एक दिन की शॉपिंग भी नहीं हो पाती। इसलिए मैं अपनी गांठ ढीली करने की हालत में नहीं था। अलबत्ता गौरी के लिए एकाध चीज़ ज़रूर खरीद ली ताकि उसे यह भी न लगे कि कैसे कंगले के साथ आयी है।

हम नये घर में सारी चीजें व्यवस्थित कर रहे हैं। गौरी यह देख कर दंग है कि मैं न केवल रसोई की हर तरह की व्यवस्था संभाल सकता हूं बल्कि घर भर के सभी काम कर सकता हूं। कर भी रहा हूं।

पूछ रही है - आपने ये सब जनानियों वाले काम कब सीखे होंगे। आपकी पढ़ाई को देख कर लगता तो नहीं कि इन सबके लिए समय मिल पाता होगा।

- सिर्फ जनानियों वाले काम ही नहीं, मैं तो हर तरह के काम जानता हूं। देख तो रही ही हो, कर ही रहा हूं। कोई भी काम सीखने की इच्छा हो तो एक ही बार में सीखा जा सकता है। उसे बार-बार सीखने की ज़रूरत नहीं होती। बस, शौक रहा, और सारी चीजें अपने आप आ गयीं।

- थैंक्स दीप, अच्छा लगा ये जान कर कि आप चीजों के बारे में इतने खुलेपन से सोचते हैं। मेरे लिए तो और भी अच्छा है। मैं तो मैंडिंग और रिपेयरिंग के चक्कर में पड़ने के बजाये चीजें फेंक देना आसान समझती हूं। अब आप घर-भर की बिगड़ी चीजें ठीक करते रहना।

कुल मिला कर अच्छा लग रहा है घर सजाना। अपना घर सजाना। बेशक यहां का सारा सामान अलग-अलग हांडा कम्पनीज़ या स्टोर्स से ही आया है, लेकिन अब से है तो हमारा ही और इन सारी चीजों को एक तरतीब देने में भी हम दोनों को सुख मिल रहा है। वैसे काफी चीजें इस बीच हमने खरीदी भी हैं।

हम दोनों में बीच-बीच में बहस हो जाती है कि कौन सी चीज़ कहां रखी जाये। आखिर एक दूसरे की सलाह मानते हुए और सलाहें देते हुए घर सैट हो ही गया है।

इतने दिनों से आराम की ज़िंदगी गुज़ारते हुए, तफरीह करते हुए मुझे भी लग रहा है कि मेरे सारे दुख दलिद्दर अब खत्म हो गये हैं। अब मुझे मेरा घर मिल गया है।

ससुर साहब की तरफ से बुलावा आया है। वैसे तो हर दूसरे तीसरे दिन वहां जाना हो ही जाता है या फोन पर ही बात हो जाती है लेकिन हर बार गौरी साथ होती है। इस बार मुझे अकेले ही बुलाया गया है। पता नहीं क्या बात हो गयी हो। शायद मेरे भविष्य के बारे में ही कोई बात कहना चाहते हों। वैसे भी अब मज़ा और आराम काफी हो लिये। कुछ काम धाम का सिलसिला भी शुरू होना चाहिये। आखिर कब तक घर जंवाई बन कर ससुराल की रोटियां तोड़ता रहूंगा।