बंद कमरा / भाग 10 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

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"सो मच क्लाइम्बिंग फॉर सच ए नेगलीजीबल हाइट।"कूकी सोते वक्त अनिकेत को देखकर सोच रही थी कि सोते हुए हर इंसान ही मासूम लगता है अनिकेत गहरी नींद में सो रहा था। उसका चेहरा बड़ा ही शांत और मासूम लग रहा था। एक अद्भुत सी शांति उसके चेहरे पर छाई हुई थी।

जैसे ही उसकी नींद खुलेगी, संसार का सारा मायाजाल उसके मन और शरीर पर हावी होने लगेगा। और फिर से वह अपना रुख उन अंतहीन सपनों की तरफ करेगा, जिनकी कोई थाह नहीं है। वही मायाजाल उसे लड़ने के लिए उकसाएगा और वह सजग होते हुए भी निनान्वें के चक्कर में झूलकर रह जाएगा।

कुछ घण्टे पहले ही डॉक्टर अनिकेत का चेकअप करके गए हैं तथा कहकर गए हैं, "उन्हें सोने दीजिए। जब तक अपने आप नींद नहीं खुलती तब तक उन्हें आराम से सोने दीजिए। किसी भी प्रकार की ऐसी बात मत कहिएगा कि उन्हें टेंशन हो जाए। जितना टेंशन-फ्री रहेंगे उतना ही जल्दी ठीक होंगे। घर में कुछ दिनों से टेंशन चल रहा था क्या?

कूकी क्या उत्तर देती? आज के जमाने में हर किसी को हजारो टेंशन हैं। पहले लोग खाने को रोटी, पहनने को कपड़ा और रहने को छोटा-मोटा मकान मिल जाने पर खुशी से जिंदगी बिताते थे। उन्हें किसी प्रकार का कोई टेंशन नहीं होता था। थोड़ा बहुत समय मिलने पर भजन-कीर्तन तथा नाच-गाने में व्यस्त रहते थे। मगर आज के आदमी की इच्छाओं की कमी नहीं। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में वह अपने आपको भी भूल जाता है। उसे तो यह भी याद नहीं रहता कि आखिर उसके जीवन का उद्देश्य क्या है?

कूकी को समझ में नहीं आ रहा था कि किन कारणों की वजह से अनिकेत का ब्लड-प्रेशर बढ़कर खतरनाक 230 मिमी (पारा) के स्तर तक पहुँच गया है। उसे ऐसी कौन सी बात की चिंता सता रही थी? दुनिया में समस्याओं की कमी तो किसी के पास नहीं हैं।कूकी ने सुबह चाय पीते समय अनिकेत को बहुत समझाया था, "ऐसा कोई जरुरी नहीं होता कि हर बच्चा इंटेलीजेंट ही निकले ?क्यों ऐसा सोचते हो कि सब बच्चें क्लास में टॉप ही करेंगे? आजकल तो बहुत सारे मेडिकल और इंजिनियरिंग के प्राइवेट कॉलेज खुल गए हैं। थोड़ा बहुत पैसा खर्च करने से अपने बच्चों का बंगलूरू या पूना के किसी भी अच्छे कॉलेज में दाखिला करवाया जा सकता है।"

अनिकेत ने झल्लाकर उत्तर दिया था, "तुम क्या यह सोच रही हो, कि मुझे पैसा खर्च करने में डर लग रहा है? ऐसी बात नहीं है। मेरा कहने का मतलब था, हमारा बेटा पूरी तरह से बर्बाद हो गया है। अगर वह मन लगाकर पढ़ता तो आज उसे अच्छे गवर्मेंट कॉलेज में एडमिशन मिल जाता। प्राइवेट कॉलेजों का स्टेंडर्ड बहुत ही खराब है। कालोनी के लोग क्या कहेंगे, तुम्हारा बेटा प्राइवेट कॉलेज से इंजिनियरिंग कर रहा है? उसका आई.आई.टी. में सलेक्शन नहीं हुआ। खैर कोई बात नहीं, कम से कम एन.आई.टी या गवर्नमेंट इंजिनियरिंग कॉलेज में तो हो जाना चाहिए था।"

कूकी ने अनिकेत को समझाने का प्रयास किया "आप चिंता मत कीजिए। लड़के का कैरियर चौपट नहीं होगा। ऊपर भगवान है ना? अगर भगवान ने हाथ-पाँव दिए हैं तो खाना-पीना भी जरुर देगा।"

अनिकेत का पारा आसमान छूने लगा।

"भोंदू माँ का भोंदू बेटा।"

"मतलब?"

"भोंदू मा का भोंदू बेटा नहीं तो और क्या? तुमने मैट्रिक सेकेण्ड़ डिवीजन में पास की है ना? और आर्टस में एम.ए. करके कौन-सा निहाल कर दिया है ? ऐसे भी आर्टस कोई सब्जेक्ट होता है क्या?"

छोटी-छोटी बातों में अनिकेत इस तरह बार- बार कूकी को अपमानित करता रहता था। कूकी यह नहीं समझ पा रही थी,कि अनिकेत ने उसमें ऐसा क्या देखकर शादी की थी? शादी से पहले का सारा प्यार कहाँ हवा हो गया। उसे ऐसा लग रहा था मानो वे प्यार की सारी बातें पिछले जन्म की कोई दास्तान हो।कूकी अब अनिकेत के साथ एक अलग जीवन जी रही है । सवेरे-सवेरे बहस करके मूड़ खराब करना ठीक नहीं है। यही सोचकर कूकी अपमान के सारे घूँट पी गई और अनिकेत के साथ बातचीत को वहीं विराम दे दिया। मगर वह अनिकेत की परेशानी के कारणों को समझ नहीं पाई। कैसे उसके मन की बात सामने आती? वह समझ नहीं पा रही थी, अनिकेत वास्तव में क्या चाहता था? कई सालों से प्रमोशन के पीछे वह भागा दौड़ी कर रहा था।उसने बहुत ही अशांति में वे दिन बिताए थे। हर साल जब प्रमोशन का समय आता था और उसे प्रमोशन नहीं मिल पाता था, तब घर में क्या हुडदंग मचता था वह कूकी ही जानती थी। मगर जब अनिकेत को प्रमोशन मिल भी गया तो क्या वह खुश रह पाया? नहीं, उसके स्वभाव में कोई फर्क नहीं पड़ा था। पुराने तौर तरीके से ही जिंदगी की गुजर बसर हो रही थी। भले ही, तनख्वाह पैंतीस हजार प्रति महीने से बढ़कर बयालीस हजार हो गई थी, मगर जीवन शैली में कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा था। हेडआफिस से तबादला फील्ड में हो गया। फील्ड में जाकर वह प्रोडक्शन लाइन में काम करने का सोचकर मन ही मन बल्लियों उछल रहा था। जब वह हेडआफिस मे काम करता था तब वहाँ बैठकर/फील्ड में काम करने वाले आफिसरों के ठाट-बाट देखकर चकित रह जाता था। फील्ड़ में रहने से खूब सुविधाएँ मिलती हैं।उसके नीचे कई आदमी काम करने के लिए मिलेंगे। एक टीम के साथ मिलकर काम करने का मजा कुछ और ही होता है, जबकि हेडआफिस में कंप्यूटर पर बैठकर केवल डाटा भरने का काम उसे बहुत ही नीरस और उबाऊ लगता था ।

अनिकेत का जब से फील्ड़ में तबादला हुआ है, वह सुबह जल्दी घर से बाहर निकल जाता है, मगर घर आने का कोई ठिकाना नहीं। बीच-बीच में कभी ब्रेक -डाऊन होने से अथवा कोई इमरजेन्सी पड़ जाने से आधी रात को भी ड्यूटी जाना पड़ सकता था। इस प्रकार की दिक्कतें नौकरी के शुरुआती दौर में भी आती थी, मगर उस समय अनिकेत जवान था और बच्चें भी छोटे थे। आजकल इस प्रकार के ब्रेक -डाऊन अटैंड करने से अनिकेत चिड़चिड़ा जाता है। घर की तरफ आवश्यक ध्यान नहीं दे पाने के कारण उसका मन दुखी हो जाता है। कभी-कभी दुखी होकर कहने लगता है, इस फील्ड की तुलना में तो आफिस का काम ही ठीक था। कम से कम ए.सी. रुम में आराम से बैठने को समय मिल जाता था। सही देखा जाए तो कोई भी इंसान किसी भी परिस्थिति में ज्यादा समय तक खुश नहीं रह सकता। ना दाल-रोटी खाने में और ना ही हलवा-पूरी खाने में। ना चाँद के ऊपर रहने में और ना ही जल-महल में रहने से। हमेशा मन किसी न किसी चीज को ना पाने के दुख से दुखी रहता है।

उस दिन कूकी ने हँस कर कहा था, "तुम किसी भी परिस्थिति में खुश नहीं रह सकते हो। जब कोई एक लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है तो दूसरा लक्ष्य मुँह खोले खड़ा रहता है। अगर भगवान् दुनिया की सारी सुख-सुविधाएँ भी तुम्हें दे दे तो भी तुम खुश नहीं रह पाओगे?"

कूकी की बात सुनकर अनिकेत का क्रोध भड़क उठा, "तुम्हें कहने में क्या जाता है? तुम्हें तो कुछ करना नहीं पड़ता है। तुम क्या जानो पीर पराई ? तुम्हें तो केवल घर में बैठकर रोटियाँ ही तोड़ना है। चूल्हे-चौके से बाहर निकलोगी तब न बाहरी दुनिया का पता चलेगा? और वैसे भी तुम्हारी आधी से ज्यादा जिंदगी तो बीमारी में पार हो गई। अगर तुम्हें मेरी तरह मेहनत करनी पड़ती तो ये सब बातें तुम्हारे मुँह से कभी नहीं निकलती ।"

कूकी चुपचाप अनिकेत की डाँट सुनती रही। वह उसके मुँह नहीं लगना चाहती थी, वह जानती थी कि अगर वह कुछ कहने लगेगी तो अनिकेत क्रोधित होकर जोर-जोर से चिल्लाने लगेगा। और मोहल्ले वाले भी अनिकेत का तमाशा देखने लगेंगे। अनिकेत का यह चिड़चिड़ा स्वभाव आज का नहीं था, इसी वजह से अनिकेत की तबीयत खराब हुई होगी, कूकी के लिए सोचना बेबुनियाद था। कहीं अनिकेत घर की कुछ समस्याओं को लेकर तो चिंतित नहीं हो गया? कुछ दिन पहले भुवनेश्वर में उनके मकान को किसी गुंडे आदमी ने दबा दिया है। शुरु-शुरु में वह मकान का किराया समय पर दे देता था। मगर आजकल उसने किराया देना बंद कर दिया है। जब भी कोई भाड़ा माँगने जाता है तो जान से मारने की धमकी देने लगता है, इसलिए कोई भी उसके पास दोबारा जाने की हिम्मत नहीं करता था। कोई सगा-संबंधी भी उसके पास जाने का खतरा उठाना नहीं चाहता था। अनिकेत ने अपने खून-पसीने की कमाई के सात-आठ लाख रुपए खर्च करके एक सुंदर सा डुप्लेक्स घर बनावाया था। पता नहीं, अनिकेत का छोटा भाई कैसे उस गुंडे आदमी के चंगुल में फंस गया। उसने बिना कुछ लिखा-पढ़ी किए वह घर उसको किराए पर दे दिया। उस आदमी का भी उसी कॉलोनी में मकान बन रहा था। उसने अनिकेत के छोटे भाई को यह भी कहा था कि जैसे ही उसका मकान पूरा हो जाएगा, वह यह मकान छोड़ देगा। मगर उस बात को हुए पूरे आठ साल बीत गए। उस आदमी ने एक यक्ष की भाँति उस मकान को अपने कब्जे में कर रखा है।

जब भी अनिकेत उसको मिलने जाता है वह आदमी कोई न कोई बहाना बनाकर इधर-उधर गायब हो जाता है। उसकी सुंदर बीवी अनिकेत से मीठी-मीठी बातें करके मुख्य मुद्दे से उसे घुमा देती है। वह कहने लगती है, "आप चिंता मत कीजिए। जल्दी ही हम यह घर छोड़ देंगे। मेरे पति जिस झिंगा कंपनी में काम करते हैं, वह कंपनी घाटे में चल रही है। इस वजह से भाड़ा देने में देर हो रही है। अगले महीने तक पुराना सारा बकाया चुका देंगे। आपको यहाँ आने की भी जरुरत नहीं पड़ेगी।हम सारा पैसा बैंक ड्राफ्ट बनाकर आपके पते पर भेज देंगे।"

उसकी बीवी की ये बातें सुनकर अनिकेत खाली हाथ लौट आया था। वह केवल उसके हाथों से बनी हुई अदरक की चाय पीकर ही संतुष्ट हो जाता था।

कूकी को उसके पास जाना बिल्कुल पसंद नहीं था। फिर भी एक बार वह किराया वसूलने उनके पास गई थी। तब उसकी बीवी बाहर नहीं निकली थी बल्कि वह गुंडा आदमी बाहर निकल कर आया था। कहने लगा था, "मैड़म, चाय पीकर जाइएगा। मिसेज पड़ोस में गई हुई है। जल्दी ही आ जाएगी।" उस आदमी की लाल-लाल आँखें देखकर कूकी ड़र जाती थी। केवल इतना ही पूछ पाती थी, "आप घर कब खाली कर रहे हैं?"

भर्राए हुए गले से वह आदमी कहने लगता था, "अचानक बोल देने से तो घर खाली नहीं किया जा सकता है। कुछ समय लगेगा। कुछ दूसरा जुगाड़ भी करना पड़ेगा। आपका भाड़ा देढ़ साल से हमारे पास रखा हुआ है। अगले हफ्ते आइए, सारा भाड़ा मैं चुकता कर दूँगा।"

"अगले हफ्ते क्यों? अगले हफ्ते तो मुझे मुंबई जाना है।"

"ठीक है। कोई बात नहीं। आप वहाँ का पता बता दीजिएगा, मैं ड्राफ्ट भेज दूंगा।"

और बिना कुछ ज्यादा बोले कूकी घर लौट आती थी। उसे मन ही मन डर लग रहा था, वह गुंडा आदमी कुछ भी कर सकता था। कूकी के लिए कोर्ट-कचहरी में जाने के सिवाय और कोई रास्ता शेष नहीं था। मगर कोर्ट-कचहरी में इतनी भागा-दौड़ी कौन करेगा? तब वह सोचने लगी थी, स्थानीय पुलिस को कुछ खिला पिला कर मदद ली जाए। मगर इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी कि पुलिस भी उसको मकान खाली करवाने में मदद करेगी।

लौटते समय ट्रेन पर छोड़ने आए उसके एक भतीजे ने कूकी से कहा था, "चाची, आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। लोहे को लोहा काटता है। मैं अपने साथ कुछ दादा लोगों को लेकर जाऊँगा। देखता हूँ कितना दम है उसमें?" साला, कैसे घर खाली नहीं करेगा?"

कूकी ने भतीजे से कहा था, "ऐसा करना क्या उचित होगा? कहीं मारपीट हो गई तो फौजदारी केस हो जाएगा। तब मुश्किल में फँस जाएँगे हम लोग?"

चार दिन के बाद भतीजे ने फोन किया था, "चाची, मैं भाड़े के कुछ दादा लोगों को लेकर उसके पास गया था। मगर बदकिस्मती से वे भाई लोग भी उसके जानने वालों में से निकले। उल्टा उसके घर चाय-नाश्ता किए और वापस मेरे पास आ गए। वे भाई लोग कह रहे थे "अनिल भाई, तुम्हें चिंता करने की जरुरत नहीं है। वह ऐसा आदमी नहीं है। जल्दी ही घर छोड़ देगा। तब भी अगर नहीं छोड़ता है तो हम लोग हैं ना?हम उसे समझा-बुझाकर घर खाली करवा देंगे।"

टेलिफोन पर बात करते हुए भतीजे से अनिकेत को पता चला था कि वह आदमी ब्लू प्राऊन कंपनी में सिक्युरिटी का काम करता है। गाँव वालों और ब्लू प्राऊन कंपनी के बीच बार-बार टकराव होता रहता है, इसलिए इस कंपनी ने उस गुंडे आदमी को सिक्युरिटी के रुप में वहाँ रखा है। ताकि गाँव वाले उससे डर कर शांत रहें तथा कोई दंगा-फसाद न करें।

टेलिफोन का रिसीवर नीचे रखकर अनिकेत सिर पकड़कर बैठ गया, "कूकी, ऐसा लगता है मकान हाथ से निकल गया। आज उस मकान की कीमत कम से कम सोलह-सत्रह लाख होगी और अगर यह मकान बेच दें तो कम से कम बीस-बाईस लाख रुपए मिल जाएँगे।"

अनिकेत की बात सुनकर कूकी के दिल को भयंकर आघात लगा था। वह भी जानती थी, कोई घर बनाना बच्चों का खेल नहीं है। लाखों रुपए की संपत्ति से उसे हाथ धोना पड़ेगा, सोचकर वह देवर को इस मूर्खतापूर्ण काम के लिए कोसने लगी थी। उसको कोसते देखकर अनिकेत ने अपने भाई की तरफदारी करते हुए कूकी को बहुत डाँटा था। फिर भी कूकी ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए अनिकेत को समझाया था, "हमारा मकान कोई भी हमसे छीन नहीं सकता है। अभी तक हमने किसी का बुरा नहीं किया है तो क्यों भगवान हमारा बुरा करेगा?"

तब भी अनिकेत के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ साफ-साफ दिखाई दे रही थी, "आप चिंता मत कीजिए। जो किस्मत में होगा, देखा जाएगा। अगर मकान जाना लिखा होगा, तो चला जाएगा। ऐसा ही समझ लेंगे कि हमने अपना मकान कभी बनाया ही नहीं था। और वैसे भी उस मकान में हम कितने दिन रुके हैं? एक दिन से ज्यादा नहीं। उस मकान के प्रति हमारा कोई मोह भी नहीं है। अगर हाथ से निकल भी गया तो कोई दुःख की बात नहीं है। ऐसा ही सोचेंगे हमारे नसीब में यह मकान लिखा ही नहीं था। वैसे भी हमारा जीवन तो कंपनी के क्वार्टर में कट जाएगा। रही बच्चों की बात, बच्चें कौन-कहाँ रहेंगे? उनका भी कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। कितने साल और जिएंगे, जो इतनी चिंता करेंगे। मेरी तो बहुत पहले से इच्छा हो रही है, जीवन का शेष भाग हिमालय पर स्थित किसी आश्रम या गुफा में बिताऊँ। तुम देखोगे, अंत में, मैं हिमालय पर चली जाऊँगी।"

"ऐसे जो तुम्हारे मन में आता है, वह बोलती जाती हो।" अनिकेत ने कूकी को फटकारते हुए कहा।

"पता नहीं, तुम्हारे मन में क्या है? घर-संसार बसाने के बाद भी तुम्हारा मन घर-संसार में नहीं लगता है। जरा सा भी सांसारिक दायित्वों की जानकारी नहीं है। कभी गृहस्थ का बोझ अपने कंधों पर उठाई हो? बच्चों की पढ़ाई पूरी कराने से लेकर उनके कैरियर बनाने तक की बातों के बारे में कभी सोचा है? जो घर हाथ से निकल रहा है, उसका अभी तक लोन भी खत्म नहीं हुआ है। कभी बैंक जाकर पैसे निकलवाई हो? अगर बैंक जाती, तब पता चलता कि लोन कटने के बाद मुझे कितने पैसे मिलते हैं? कभी अनिकेत के साथ कंधे-से कंधा मिलाकर चलने की सोची हो? घर में खाली बैठे-बैठे केवल इधर-उधर के सपने देखती रहती हो।

कूकी का दिल रोने को कर रहा था। मन ही मन उसे डर भी लग रहा था, कहीं अनिकेत को उसके 'गर्भ-गृह' के बारे में पता तो नहीं चल गया? नहीं, ऐसा तो संभव नहीं है। अगर उसको पता चल गया होता तो क्या वह उसको घर में रहने देता? उसे दुख लग रहा था कि अनिकेत ने कभी भी उसको किसी काम के योग्य नहीं समझा। और उसने न ही उसको कुछ कर दिखाने का मौका कभी दिया। बार-बार इस चीज को लेकर वह उसे प्रताड़ित करता रहता था। उसे हर काम अपने हाथ से करने में ही अच्छा लगता था। काम पूरा होने पर वह संतुष्ट हो जाता था। वह बाहर का कोई भी काम कूकी को करने नहीं देता था। फिर भी उसे कूकी पर भरोसा नहीं हो रहा था। शायद कूकी के अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं करने के कारण तो ऐसा नहीं हुआ है? कूकी का मन अपने गृहस्थ-जीवन में बिल्कुल नहीं लग रहा था, शायद यही कारण था कि वह शफीक के प्रेम में रंग गई।वह एक किशोरी की भाँति सुदूर उड़ जाने के सपने देखती थी। अनिकेत बेचारा अकेले ही कोल्हू के बैल की तरह संसार का बोझ ढोता जा रहा था।

अनिकेत अभी भी गहरी नींद में था। उसे नींद में ना तो अपने बच्चों के कैरियर की चिंता थी, ना किसी प्रमोशन की चिंता और ना ही मकान का अपने हाथों से निकल जाने की चिंता। वह एक दम चिंता मुक्त होकर सो रहा था। कूकी यह देखकर मन ही मन अपने आपको धिक्कारने लगी। अगर अनिकेत एक अच्छा जीवन साथी होता तो क्या वह आज तक अपने घर के आधे बोझ को अपने कंधों पर नहीं उठा लेती? अगर वह उसे कुछ काम करने की आजादी देता, तो क्या अनिकेत को आज इस तरह हाथ-पैर समेटकर बिस्तर पर लेटे रहना पड़ता?

खुदा-न-खाँस्ता, अगर अनिकेत को कुछ हो जाता है तो वह क्या करेगी? उसे तो दुनियादारी की कुछ भी जानकारी नहीं है। उसे तो अनिकेत के बैंक खातों, संचित पूँजी तथा देनदारों के खातों के बारे में भी तनिक ज्ञान नहीं है। कितने पैसे उसने शेयर में लगाए हैं और कितने पैसे ईश्योरेंस में?घर के परचूनी सामान में मासिक कितना खर्च आता है? कैसे बनता है महीने का बजट? क्या बच्चे उस समय अपनी अनाड़ी माँ को झेल पाएँगे?

अनिकेत कभी-कभी उसको सफेद हाथी कहकर उसका मजाक उड़ाता था। तुम्हारा पालन-पोषण करना किसी एक सफेद हाथी के पालन-पोषण करने से कम नहीं है।मैंने लाखों रुपए तुम्हारे ऊपर पानी की तरह बहाए हैं।

शफीक ने लिखा था, "इफ यू आर रिएली माइन, आइ विल पुट यू इन द टॉप आफ माइ मोस्ट वेल्यूएवल गुड्स। माइ एंटीक, डायमंड पर्ल्स एंड आल रिसेज। आइ विल पुट इन ग्लास शो-केस एंड पॉलिश यू एवरीडे। किप यू ग्लिटरिग, एंड आइ विल आनर, चेरिश, स्कवीज, होल्ड यू टाइट एट नाइट। आइ विल लेट यू कैरी मी एंड प्लेस मी आन योर पिलो राइट बाई योर साइड, किस यू गुड नाइट एंड होल्ड आल थ्रू द नाइट।"