बंद कमरा / भाग 11 / सरोजिनी साहू / दिनेश कुमार माली

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"इफ यू आर रिएली माइन, आई विल पुट यू इन द टॉप आफ "माइ मोस्ट वेल्यूएवल गुड्स। माई एंटीवस, डायमंड पल्र्स एंड आल रिसेज।" ये बातें शफीक ने लिखी थी। कूकी क्या कोई सामान है? कोई शो-पीस है? जिसे पाने में गर्व तथा लोगों को दिखाने में खुशी की अनुभूति की जा सके।

जैसे कि कूकी का खुद का कोई अस्तित्व नहीं हो। वह केवल सफेद हाथी हो। वह केवल अपने पति के लिए गर्व की वस्तु है? क्या वह एक शो-पीस है, जिसे जो कोई खरीद लेगा, वह अपनी खरीददारी पर गर्व करने लगेगा?

शफीक ने लिखा था, "रुखसाना, आज मैं बहुत खुश हूँ। तुम्हें खुशी की यह खबर सुनाने के लिए मैं बुरी तरह से बेताब हूँ। मेरे पैराथीसिस का कोलम्बिया यूनिवर्सटी में चयन हो गया है। अगले महीने के आखिरी हफ्ते में मुझे पेरिस में इंटव्र्यू के लिए बुलाया गया है। लेकिन, रुखसाना, यूनिवर्सिटी ने नब्बे पैराथीसिस का चयन किया है जबकि पोस्ट केवल तीन खाली है। बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा है। पता नहीं, मुझे क्यों डर लग रहा है? मेरा चयन होगा या नहीं? तुम्हें पाने के लिए एकमात्र यही कठिन साधना बची है। तुम तो मेरे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हो। अगर तुम्हारी दुआ मुझे नसीब हो गई तो मेरा काम हो जाएगा। मेरी गोडेस, मुझे दुआ दोगी न?"

अभी कूकी ने ई-मेल पूरा पढ़ा भी नहीं था कि पास में ही फोन की घंटी बजने लगी। फोन पर कोई दूसरी तरफ से शांत लहजे में बोलने लगा, "हेलो, रुखसाना।"

कई दिनों से कूकी ने रुखसाना नाम को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था इसलिए जैसे ही उसने फोन पर रुखसाना नाम सुना तो उसकी सारी सोई हुई इंद्रियाँ जाग उठी।

"कौन शफीक?" कूकी ने खुशी से उछलते हुए कहा। मगर थोड़ी ही देर बाद उसे डर सताने लगा, "तुमने मुझे फोन क्यों किया? मैने तो तुम्हे फोन करने के लिए मना किया था। तुम तो जानते ही हो हमारे दोनो देशों के बीच तनातनी का माहौल चल रहा है। तुम्हारा ऐसे हालात में मुझे फोन करना खतरनाक साबित हो सकता है।"

"मुझे यह बात अच्छी तरह मालूम है। मगर तुम्हारी मधुर आवाज सुनने की बहुत तमन्ना हो रही थी। मै अपने आपको उस आवाज को सुनने के लिए रोक नहीं पाया।"

"मैं तो अभी-अभी तुम्हारा ई-मेल ही पढ़ रही थी। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम्हारे पेराथीसिस का सलेक्शन हो गया है।"

"केवल तुम्हारी वजह से ही सलेक्शन हो पाया है अन्यथा इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा में मेरे पेराथीसिस का सलेक्शन होना नामुनकिन था। तुम मेरी गोडेस हो। यू आर द पार्ट आफ अल्लाह।"

"पागल कहीं के, जो मन में आता है, बोलते रहते हो।"

"मैं दिल से कह रहा हूँ, रुखसाना। शुभान अल्ला दुम्मा बभी दमदिका, बाता बाराकास्मुका वा ता-आला जाददुका, वा ला-इल्लाहा बैरूक बिस्मिल्ला ही रेहमानीर रहीम।"

"तुम क्या बुदबुदा रहे हो? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।"

"यू आर माई गोडेस आलमाइटी। यही तो मैं कह रहा हूँ। सही बताऊँ, रुखसाना, मैं तुम्हारे सामने नमाज अदा करना चाहता हूँ।"

उस दिन शफीक ने दिल खोलकर बातें की थी, मगर कूकी उससे बात करके पूरी तरह नर्वस हो गई थी। कूकी के लिए दीवाने शफीक को काबू में करना मुश्किल होता जा रहा था। शफीक का ऐसा मानना था कि उसके जीवन की हर सफलता के पीछे कूकी का हाथ है।कूकी जबसे उसके जीवन में आई उसके ऊपर लगा हुआ केस खारिज हो गया। उसे विदेशों में कला के क्षेत्र में काफी ख्याति प्राप्त हुई।शफीक इस तरह अपनी सफलताओं की एक लम्बी चौड़ी सूची कूकी के नाम कर देता था। कूकी उसकी बातों को बेशक तवज्जों नहीं देती थी, क्योंकि वह जानती थी कि अगर उसकी वजह से शफीक के जीवन में तरक्की आ रही है तो फिर अनिकेत के जीवन में क्यों नहीं? अनिकेत अच्छा-खासा पैसे कमाने के बाद भी अपनी खुशहाल जिंदगी क्यों नहीं जी पा रहा है?

शफीक कभी उसको फरिश्ते के नाम से संबोधित करता था तो कभी देवी के नाम से।

"एवरी नाइट आइ ड्रीम ऑफ़ हेवन। आइ ड्रीम देट दे आर लुकिंग फॉर एन एंजिल वन देट वेन्ट मिसींग द वेरी डे यू स्टेप्ड इन्टू माइ लाइफ। द डे आल माइ सोरो वानिश्ड एंड आइ टूक ए स्टेप इन्टू इम्पोसिबल क्रोसिंग द मार्जिन फ्रॉम नेचुरल एंड द सुपर नेचुरल।"

कूकी सोचने लगी, काश! ये सारी बातें सही होती। काश! भगवान् ऐसा जादू कर देता, मेरे पाँव पड़ते ही घर में चंदन की खुशबू चारों तरफ फैलने लगती और मेरी वजह से किसी का घर खुशी से खिलखिला उठता।

कूकी ने एक बार शफीक से पूछा था, "अगर तुम्हारा कहा हुआ सच में बदल जाता और मैं एक फरिश्ता बन जाती और अल्लाह मुझे जादू की छड़ी दे देते तो मैं जादू की छड़ी को यही हुक्म देती, जाओ दोनो देशों के बीच की दीवार गिरा दो, दोनो देशों के बीच की दुश्मनी को मिटा दो। देखते-देखते मेरे सामने दोनो देश एक हो जाते।"

इस विषय पर शफीक ने कोई टीका -टिप्पणी नहीं की। उसने अपने ई-मेल में कुछ दूसरी ही बातें लिखी थी, "जानती हो रुखसाना, नगमा के निकाह की बात फाइनल हो गई है। लड़का कम्प्यूटर इंजिनियर है और वह अमेरिका में किसी कंपनी में नौकरी कर रहा है। मेरी ख्वाहिश है, मेरे पेरिस जाने से पूर्व उसका निकाह हो जाए। तुम्हारी क्या राय है? ठीक रहेगा न?

तबस्सुम चाहती है कि मैं नगमा का निकाह करने से पहले मेरी पहली बीवी निसार, नगमा की माँ से इस बारे में बात करूँ। मगर मैं इस विषय पर उससे कोई बात नहीं करना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि उससे बिना कुछ बात किए ही नगमा की शादी हो जाए। तुम क्या चाहती हो?"

कूकी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या राय दे। उसकी राय से क्या लेना-देना? ना तो उसने शफीक को देखा है और ना ही तबस्सुम को? ना तो उसने निसार को देखा है और ना ही नगमा को? न उसको उनके लाहौर के घर का पता है और ना ही गांव के घर का?

कूकी तो यह भी नहीं जानती है, कि शफीक अपनी पहली बीवी निसार को क्यों पसंद नहीं करता? जबकि निसार से पैदा हुई दोनो बच्चियों को वह अपने साथ रखता है। कूकी क्या राय देती? उस जगह के खान-पान, रहन-सहन, बोल-चाल तथा लोक परम्पराओं की उसको तनिक भी जानकारी नहीं है।

कूकी अपनी क्या बात रखती? जब उसे नगमा और निसार के बीच आपसी सम्बंधों की कोई जानकारी नहीं है। माँ-बेटी के बीच पटती भी है या नहीं? कूकी को फिर भी ऐसा लगता था कि शफीक को इस मामले में कम से कम निसार की राय अवश्य लेनी चाहिए। चूँकि निसार ही नगमा को जन्म देने वाली माँ है। उसका हक़ नगमा के ऊपर तबस्सुम से ज्यादा बनता है।

यही सारी बातें सोचकर कूकी ने लिखा था, "शफीक, मैं यह तो नहीं जानती कि तुम क्यों निसार को पसंद नहीं करते? क्यों उससे बात करना नहीं चाहते? तुम दोनों के बीच में इतनी कटुता क्यों भरी हुई है? तुमने निसार से कब शादी की और कब तलाक ले लिया? शफीक, तुम उससे इतनी नफरत क्यों करते हो? फिर भी मैं तो यही चाहूँगी, कि तुम्हें कम से कम एक बार निसार की राय जरुर लेनी चाहिए, क्योंकि यह नगमा के जीवन का सवाल है और माँ होने के कारण उसका पूरा-पूरा हक बनता है।"

शफीक ने उस ई-मेल का उत्तर दिया था, "तुम्हारी बात सही है। मैं निसार से बुरी तरह नफरत करता हूँ। वह मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। उसको पसंद ना करने के पीछे हजारों कारण हैं। पहला तो, यह कि वह अनपढ़ होने के साथ-साथ फ्रिजिड भी है। उसको मेरा परवरसन बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसके अलावा, वह शक्की तथा झगड़ालू औरत भी है। रुखसाना, जानती हो जब मेरी उम्र केवल उन्नीस साल की थी, उस समय मैं कॉलेज में पढ़ रहा था, तब मेरा निकाह निसार के साथ हो गया था। तुम्हें पता नहीं है, वह बड़े ही दुष्ट स्वभाव की औरत है। मैं उसकी शक्ल भी देखना नहीं चाहता।"

शफीक का ई-मेल पढ़कर कूकी को मन ही मन निसार पर दया आने लगी। उसके अनपढ़ रहने में उसकी क्या भूमिका थी? बेचारी, निसार। पता नहीं, किस संदर्भ में शफीक उसको फ्रिजिड कहता है? अधिकतर औरतें अज्ञानवश तथा भ्रम के कारण फ्रिजिडिटी का शिकार बनती हैं। सेक्स के विषय पर चर्चा करना आज तक हमारे समाज में खराब माना जाता है, इसी प्रकार सेक्सी होना भी हमारे समाज में एक दुर्गुण के रुप में देखा जाता है। मगर यह बात दूसरी है, बदलते हुए समय को देखते हुए सेक्सी शब्द को कुछ अच्छे विशेषण के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जैसे ' ब्यूटीफुल एंड सेक्सी' यह युगल शब्द मुहावरे में बदल गया। जहाँ तक परवर्सन की बात उठती है, दुनिया की कौन पत्नी चाहेगी कि उसका पति परवर्टेड़ हो? कूकी खुद भी अगर पढ़ी-लिखी औरत नहीं होती तो क्या वह इन सारी बातों के बारे में जान पाती? उसका परिचय जितना शफीक की जिंदगी से नहीं था, उससे कई गुणा ज्यादा निसार की जिंदगी से था।

तबस्सुम एक बिंदास जीवन जीने वाली होने के बाद भी निसार के प्रति कोमल भावनाएँ रखती थी।कूकी उसकी इस नेकदिली के लिए तबस्सुम की तारीफ करना नहीं चूकती थी। कम से कम वह इतना तो सोचती थी कि शफीक को नगमा के निकाह के लिए निसार की राय लेनी चाहिए।

तबस्सुम और कूकी दोनों का एक ही राय होने के कारण शफीक बाध्य होकर अपने गाँव गया था।शफीक ने अपने गाँव जाने से पहले कूकी से तीन दिन तक बात नहीं कर पाने के लिए दुख जताया था। जब-जब वह अपने शहर को छोड़कर कहीं बाहर जाता है, तब-तब वह कूकी के बारे में सोचकर दुखी हो जाता था। उसको ऐसा लगता था जैसे वह कूकी को छोड़कर किसी विदेश-यात्रा पर जा रहा हो। उसका स्टूडियो -कम-स्टडीरुम उसके और कूकी के लिए मानो शयन कक्ष हो। उस कमरे में वह तबस्सुम को छोड़कर किसी और को आने की इजाजत नहीं देता था। यहाँ तक कि वह उस कमरे में तबस्सुम के साथ संभोग भी नहीं करता था। उसने वह कमरा मानो केवल कूकी के लिए आरक्षित रखा हो। रोजमर्रा के सारे काम पूरे करके शफीक वापिस अपनी जगह लौट आता था। आते ही वह कूकी के नाम एक ई-मेल लिखता था, "रुखसाना, मैं फिर से तुम्हारे आगोश में लौटकर आ गया हूँ। फिर से मुझे अपनी मुस्कराहट के मायाजाल में बाँध लो।"

कूकी को भी शफीक के ई- मेल देखने की आदत पड़ गई थी। जब कभी शफीक का ई-मेल नहीं मिलता था तो उसे मन ही मन बहुत कष्ट होने लगता था।उसका ई - मेल नहीं पाकर वह एक ड्रग-एडिक्ट की भाँति छटपटाने लगती थी। शफीक के गाँव जाने के तीन दिनों के दौरान वह उसके सारे पुराने ई-मेल खोल-खोलकर पढ़ने लगती थी। वह सोते समय अनजाने देश पेरिस के बारे में कल्पना करने लगती थी। जिस देश में शफीक उसको ले जाना चाहता था। पेरिस की सुंदरियां, पेरिस का फेशन-शो और वहाँ का खान-पान सब कुछ तो सारी दुनिया में मशहूर है। सच में, क्या कूकी कभी पेरिस जा पाएगी? क्या कभी एफिल टॉवर पर खड़े होकर पेरिस शहर देखने का उसका सपना पूरा हो सकेगा?

शफीक ने लाहौर पहुँचकर लिखा था, "रुखसाना, मैं कह रहा था कि वह बड़े दुष्ट स्वभाव की औरत है। निसार नगमा का निकाह गाँव में करने के लिए जिद्द कर रही है। तुम तो जानती हो नगमा का निकाह गाँव में करने के लिए हमे खूब सारी परेशानियाँ झेलनी पडेगी। मैं तो पहले से ही उससे बात करने के हक़ में नहीं था, मगर तुम दोनो ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। जिसका यह नतीजा निकला। उसके लिए तुम और तबस्सुम जिम्मेदार हो। तुम दोनों की बातों में आकर मैने यह कदम उठाया था। मैं तो पहले से ही जानता था कि वह तो ऐसा ही कुछ खेल खेलेगी। तबस्सुम और नगमा दोनो नहीं चाहती हैं कि निकाह का कार्यक्रम गाँव में रखा जाए। मैं सोच रहा हूँ निसार को बिना बताए नगमा का निकाह लाहौर में रच दूँगा।"

कूकी उनके घरेलू मामलों मे क्या कह सकती थी ? मगर उसे भी ऐसा लग रहा था कि अगर नगमा की शादी लाहौर मे हो जाती तो अच्छा रहता। शफीक के सारे दोस्त, जान-पहचान वाले लोग, सगे-संबंधी लाहौर में रहते हैं इसलिए नगमा की शादी वहाँ पर बड़े धूम-धाम के साथ सम्पन्न होती।

निसार की बात आखिरकर मान ली गई और शफीक ने नगमा के निकाह को गाँव में करने का निर्णय लिया। शफीक हमेशा अपने को दुनियादारी से दूर रखता था मगर बेटी की शादी को लेकर वह अपना अधिकतर समय घर में गुजारने लगा था।

शफीक अभी कूकी के प्रेम की दुनिया में लौटा ही था कि उसको फिर से अपने गाँव का दौरा करना पड़ा। वहाँ पर नगमा की मँगनी का कार्यक्रम होना था। साथ ही साथ, दूल्हे पक्ष वाले भी चाहते थे कि निकाह का काम जल्दी से जल्दी समाप्त हो जाए। दूल्हे को बार-बार छुट्टी नहीं लेनी पडेगी। गाँव जाने से पहले शफीक ने दुखी मन से लिखा था "तुम तो जानती हो मेरी दुनियादारी में कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे लोक-व्यवहार की भी बिल्कुल जानकारी नहीं है। मैं तो यह भी नहीं जानता हूँ, नगमा के शगुन पर मुझे क्या करना पड़ेगा? तबस्सुम भी चाह रही है कि उस समय मैं वहाँ रहूँ। उस गाँव में मेरा मन नहीं लगेगा। मगर बेटी का बाप हूँ, वहाँ जाना तो पडेगा ही।

रुखसाना, आज मुझे अल्लाह के ऊपर खूब क्रोध आ रहा था। बार-बार अल्लाह से एक ही सवाल पूछ रहा था कि वह मुझे रुखसाना से दूर क्यों ले जा रहे हैं। तुम्हें क्या पता, तुम मेरी क्या लगती हो? तुम नहीं जानती, तुम मेरे लिए सबकुछ हो।मेरे लिए तुम्हें छोड़कर कहीं जाना बहुत कष्टकारक होता है।और कितने दिन यह कष्ट झेलना पड़ेगा, बताओ तो?

रुखसाना क्या तुम जानती हो कि नगमा चाहती है उसकी इंडिया वाली अम्मी उसके निकाह में तशरीफ रखे। मैने वैसे तो उसको समझा दिया है कि यह नामुमकिन है। हमारे दोनो देशों के बीच सम्बंध अच्छे नहीं है। ऐसे हालात में तुम्हारी इंडिया वाली अम्मी पाकिस्तान कैसे आ पाएंगी?

रुखसाना, एक और बात है कि तुमसे दूर जाने की बात सोचने मात्र से ही दिल की धड़कनें बढ़ने लगती है। मगर क्या करूँ, जाना तो पड़ेगा ही क्यूंकि बेटी की जिंदगी का सवाल जो है। रुखसाना क्या तुम नगमा को शादी का नेग नहीं दोगी?"

उसी समय कूकी के छोटे बेटे को पीलिया हो गया था। कूकी बहुत दुखी थी। डॉक्टर कह रहे थे, "घबराने की कोई बात नहीं। दवाई काम कर रही है। जल्दी ही आपका बेटा ठीक हो जाएगा।"

अनिकेत ने बेटे की देखभाल करने के लिए दो दिन की छुट्टी ले ली थी। मगर बेटे को शांति से सोने देने की बजाय उससे तरह-तरह की पूछताछ कर रहा था। "गुड्डू, सही बता तो, बेटा। तुमने स्कूल में नल का पानी पिया था न? तुमने बाजार मे गुपचुप खाए थे? नहीं तो, चालू आइसक्रीम तो जरुर खाई होगी? अगर तू मुझे कह देता तो क्या मैं तुम्हारे लिए अच्छी आइसक्रीम खरीद कर नहीं लाता? तुमने बाहर की दूषित चीजें खाकर अपना क्या हाल बना रखा है? कितना कमजोर दिखाई दे रहा है?"

कूकी काफी देर तक उसको पास लेटाने की राह देखती रही, मगर कब उसे नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला। अचानक छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनकर उसकी नींद खुली। बच्चे का जोर-शोर से रोना सुनकर कम्पार्टमेन्ट के सारे लोग जाग गए थे। नींद से उठकर उसने देखा कि बेटा नीचे गिरा हुआ है और जोर-जोर से रो रहा है। अनिकेत के अपनी बर्थ से नीचे उतरने से पहले ही कूकी ने अपने बेटे को गोद में ले लिया था। सारे यात्री लोग कूकी को धिक्कार रहे थे। "कैसी माँ हो? खुद आराम से सोने के लिए बेटे को ऊपर की बर्थ पर से गिर कर मर जाने के लिए भेज दिया,।"

कूकी को सब लोग उन निगाहों से घूर रहे थे मानो कूकी के अंदर मातृत्व बिल्कुल भी नहीं है।कूकी यह देखकर पीठ घुमाकर ब्लाऊज का बटन खोलकर बेटे को दूध पिलाने लगी। दूध पिलाते-पिलाते वह अपने हल्के हाथों से उसका सिर सहलाने लगी।उसने अभी कुछ दिन पहले ही अपने स्तनों पर करेले के कड़वे पत्ते लगाकर उसके स्तन-पान की आदत छुड़वाई थी। वह उस समय उस बात को भूल गई थी।

अनिकेत का मानना था, कि कूकी नाजुक होने के साथ-साथ ज्यादा सोना भी पसंद करती है। इसलिए वह उसके सोने मैं खलल नहीं डालता है, मगर उसकी उसी बात को लोगों के सामने उदाहरण के रूप में पेश करता है। अनिकेत सुहाग-रात की उस बात को अभी तक नहीं भूला था कि कूकी संभोग करते समय कुम्भकर्ण की नींद सो गई थी। अनिकेत ने इस बात को अपनी इज्जत पर ले लिया था। उसके मन में उस बात का गुस्सा कई दिनों तक दबा रहा।

कूकी की अभी भी ज्यादा नींद लेने की आदत मे कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। वह फिर भी यही चाहती थी कि छोटे बेटे को अपनी छाती से चिपकाकर सोए।

अनिकेत बेटे से लगातार बक-बक किए जा रहा था।कूकी को यह देखकर मन ही मन भयंकर क्रोध आ रहा था। उसे लग रहा था जैसे गुडडू यदि अपनी गलती स्वीकार कर लेगा तो उसकी तबीयत अपने आप ठीक हो जाएगी।उसे फिर भी अनिकेत को कुछ बोलने में डर लग रहा था। व्यर्थ में बीमार बेटे के सामने माँ-बाप के बीच लड़ाई होने लगेगी, यह सोचकर कूकी चुपचाप रह गई।

अनिकेत ने शाम को सोते समय साफ-साफ शब्दों में कह दिया था, “मैं छोटे बेटे को अपने साथ लेकर सोऊँगा और तुम बड़े बेटे को लेकर बच्चो के कमरे में सो जाना।" अनिकेत की इस बात से कूकी को मन-ही-मन अपमान महसूस हो रहा था। उसे ऐसा लग रहा था मानो अनिकेत उसके मातृत्व की अवहेलना कर रहा हो। और वह यह दिखाना चाह रहा हो मानो उसे ही बच्चे की सारी चिंता है, कूकी को नहीं।

कूकी के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। वह अनिकेत के इस व्यवहार को बहुत समय से झेलती आ रही थी। बहुत पुरानी बात थी। शायद उस समय बड़ा बेटा सात या आठ महीने का रहा होगा। अनिकेत उस समय चेन्नई में नौकरी कर रहा था। अनिकेत गाँव में दुर्गा-पूजा की छुट्टियाँ बिताने के बाद सपरिवार चेन्नई जा रहा था। उन्हें काफी भीड़ होने की वजह से ट्रेन के टिकट लेने में बहुत परेशानी हुई थी। ट्रेन में फस्र्ट क्लास और ए.सी. बोगी की सीटे खाली नहीं थी। किसी तरह सेकेण्ड क्लास के दो टिकट मिल पाए थे। कूकी नीचे वाले बर्थ पर सोई थी तो अनिकेत ऊपर वाले बर्थ पर। कूकी के काफी मना करने के बाद भी अनिकेत रात को बेटे को सुलाने के लिए अपने साथ ऊपर बर्थ पर ले गया।उसने सीने के ऊपर उसे चिपकाकर पीठ थपथपाते हुए सुला दिया। यह उसकी पुरानी आदत थी।कूकी का एक हाथ बहुत समय तक बेटे पर लगा रहता था भले ही वह प्रगाढ़ निद्रा मे बेहोश की भाँति पड़ी रहे । बीमार बेटे को छोड़कर वह अलग कमरे में किस तरह सो पाएगी? अनिकेत की छोटे बेटे को अपने साथ लेकर सोने की बात ने उसके दिल को बहुत बड़ा आघात पहुँचाया। कूकी के लिए यह आश्चर्य की बात थी, उस रात कूकी को बिल्कुल भी नींद नहीं आई। इधर-उधर की बहुत सारी बातें रह-रहकर उसको मन में याद आ रही थी।

नगमा की इंडिया वाली अम्मी जान? इंडिया वाली मॉम? क्या ये सब हकीकत है या किसी परीलोक की कहानी? उसके साथ ये सब क्यों हो रहा है? ऊपर वाले ने किसी का जीवन सँवारने के लिए उस जैसी औरत को क्यों चुना? शफीक के सामने वह कोई आम इंसान नहीं है, बल्कि एक देवी है जिसकी दुआ मिलते ही अनहोनी चीजें होनी में बदल जाती है। शफीक की दिली ख्वाहिश है कि रुखसाना उसका साथ अंतिम साँस तक दें। एक बार शफीक ने लिखा था,

"तुम मुझे तब तक प्यार करना,
जब तक मैं एकदम बूढ़ा न हो जाऊँ
मेरा शरीर पूरी तरह से जर्जर हो जाए
मेरी सारी त्वचा झूलने लगे और
मेरा पूरा अस्थी-पंजर झूलता हुआ नजर आए
मगर मेरी काम वासना जीवित हो
सारी रात तुम मुझे सँभालते रहना
जब मेरे सिर के बाल सफेद हो जाए
मेरी इस बात पर अटूट विश्वास करना
मरते दम तक मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा।

कल से अनिकेत अपने काम पर जाएगा। बच्चे को अभी बुखार तो नहीं है, मगर बहुत दुर्बल हो गया है। शफीक के गाँव जाने से पहले उसे नगमा के निकाह के लिए अपनी तरफ से शुभ कामनाएँ देनी होगी। कूकी यह सोचते ही झटसे बिस्तर से उठ गई और दूसरे कमरे में सोए हुए छोटे बेटे को देखने लगी। छोटा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ था। अनिकेत बेटे के ऊपर हाथ रखकर खर्राटे मारते हुए सो रहा था। कूकी उनको सोता देख कर बड़े बेटे के पास अपने कमरे में लौट आई। क्या वह छोटे बेटे को अपने अंक में समेटकर सो नहीं पाएगी? उसका फूट-फूटकर रोने का मन हो रहा था। जोर-जोर से चिल्लाकर कहने की इच्छा हो रही थी, “अनिकेत यह घर संसार किसका है? मेरा या तुम्हारा?"