बीते शहर से फिर गुज़रना / तरूण भटनागर / पृष्ठ 6

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उसकी तरह का प्यार

मैं याद करने लगा। वे दिन जब हम अक्सर मिलते थे।

उसने एक फ्लैट ले रखा था। वह अपनी एक फ्रैण्ड के साथ उसे शेयर करती थी। एक कमरा और एक छोटी-सी बालकनी। बालकनी से दिखते चौरस छत वाले बेतरतीब मकान और उनके पास से गुजरने वाली रेल्वे लाइन। हर थोडी देर बाद ट्रेन की धडधडाहट फ्लैट के उस कमरे की चुप्पी को तोड देती थी।

अक्सर हम दोनों कालेज से उसके फ्लैट तक साथ-साथ आते थे। कभी उसकी फ्रैण्ड फ्लैट में होती थी,तो कभी वह खुद उस फ्लैट का लाक खोलती थी।जब उसकी फ्रैण्ड देर से लौटती तो वह फ्लैट का दरवाजा खोले बिना भीतर से ही उससे कहती कि वह थोडी देर कहीं और चली जाये,क्योंकी मैं उसके साथ हूं। वह अक्सर एडजस्ट कर लेती,पर कभी-कभी वह इरिटेट हो जाती।फिर हम लोगों ने अपनी मीटिग्स इस तरह तय कर लीं कि उसे प्राब्लम ना हो।उसे पहले से पता होता और वह कहीं और चली जाती।

जब उस फ्लैट को याद करता हूं तो कुछ भी सिलसिलेवार याद नहीं आता है। बस कुछ टूटे हुए चित्र हैं।वे चित्र किसी एक मोमेण्ट को पूरा नहीं करते हैं।

मुझे याद आया मैं और वह फ्लैट की बालकनी में खडे थे।उसने मुझसे कुछ कहा था।पर तभी ट्रेन गुजरी और मैं सुन नहीं पाया।मैंने उससे पूछा।उसने कहा-कुछ नहीं।फिर उसने दुबारा कहा।शाम घिर रही थी।चौरस छत वाले घर धुंये में घिर रहे थे।मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया।बस उस रात मैं घर नहीं गया।वह पहली रात थी।उसकी फ्रैण्ड भी उस रात नहीं आई। उसे पहले से पता था।उस रात मैंने हर धडधडाती ट्रेन को सुना था।फिर जब सुबह अपने घर गया तो घर वालों के पूछने पर उनसे झूठ बोला कि,रात भर मैं कहां रहा था।फिर बाद में यह झूठ मुझे कई बार कहना पडा।मैंने पहली बार महसूस किया,कि हेज का होना जरुरी है।पर जैसे यह मेरी कमजोरी हो।फिर इससे भी आगे मानो मैं गलत हूं।जब यूं सोचता तो खुद से चिढ सी हो जाती।मन कहता घर वालों से कह दूं,कि रात को मैं कहां था,किसके साथ सोया था,हम दोनों पूरी रात एक दूसरे सेण्ण्ण्ण्ण्।कह दूं सब कुछ।क्या जरुरत है,इस झूठ की,इस ढोंग की जो मुझे पाप लगता है।पर जैसे मैं हार रहा था।मुझे पता ही नहीं था,कि यही वह रास्ता है जहां से मौत को आने की जगह मिलती है,वरना आदमी कभी मरने के लिए पैदा नहीं होता।

उस फ्लैट में मैं उसके साथ उन रास्तों पर चला था,जहां मैं फिर किसी और लडकी के साथ नहीं चल पाया।वे रास्ते उसने खुद बनाये थे।उसने सोचा था,वह मुझे वहां अपने साथ लेकर चलेगी।उसने मुझे अपने साथ लेकर चलने का सोचा था।ऐसा बहुत कम होता है।ऐसी कितनी लडकियां होती होंगी,जो अपने प्रेमियों के लिए रास्ते सोचकर रखती हैं।कि जब प्यार होगा तब वे उसे अपने साथ उन रास्तों पर ले जायेंगी। वे उन रास्तों पर नहीं जायेंगी जिन्हें उनके प्रेमियों ने उनके लिए सोचा है।बल्कि वे उन्हें खुद ले जायेंगी,उनका हाथ पकडकर,उन रास्तों पर जो उन्होंने सोचा है।वे खुलकर बतायेंगी कि यह है,जो उन्होंने सोचा है।मैंने जितना जाना है,जितना महसूस किया है,वह यह है,कि ज्यादातर के पास उनके अपने रास्ते ही नहीं होते हैं।अगर होते हैं,तो वे उन्हें छिपाकर रखती हैं।फिर उनका दावा होता है,कि वे प्यार करती हैं।वे उन रास्तों को छिपाकर प्यार करती हैं।कितना अजीब है यह विरोधाभास। कुछ छिपाकर प्यार करना।पर हर कोई इसे अंधे की तरह मानता है और प्यार चलता रहता है।पर उसने नहीं छिपाया।मैंने उससे पूछा भी नहीं।जब छिपा ही ना हो तो पूछना कैसा।उसके साथ उन रास्तों पर चलना बडा सहज सा था।मैंने सोचा था,कि प्यार इसी तरह होता है।पर मैं गलत था। बहुत कम लडकियां उस तरह कर पाती होंगी।उसकी तरह प्यार करना कठिन है।