मैं भँवरा तू है फूल / माया का मालकौंस / सुशोभित
सुशोभित
साल 1948 का ग्रामवासी भारत। उस समय के मेले-ठेलों, खेत-अंचलों में रची-बसी फिल्म थी- 'मेला'। इसके तमाम गाने उस समय गली-गली गूँजे थे, विशेषकर ये जिंदगी के मेले और गाये जा गीत मिलन के। पर मुझे निजी रूप से सबसे ज़्यादा प्रिय रहा है यह मीठा-सा, मासूम-सा दोगाना। एक समय यह टीवी पर ख़ूब आता था, पर वो समय भी कहाँ?
परदे पर हैं दिलीप कुमार और नरगिस- यह उस दौर की चर्चित जोड़ी थी- 'अंदाज़', 'बाबुल', 'दीदार', 'हलचल' और 'जोगन' जैसी सफल फिल्मों की हमराही। नरगिस दिलीप से खिंची-खिंची रहती थीं, वे तब राज कपूर के प्रेम में डूबी थीं और उनकी निष्ठा इतनी सघन थी कि अभिनय में भी अपनी विकलताओं और तन्मयताओं को उन्हें राज के लिए ही बचा रखा था। इससे दिलीप और नरगिस की फिल्मों में एक विचित्र-सा भाव उत्पन्न हो गया है- त्रासद-कथाओं के अनुरूप, दो विरक्त-वैरागी आत्माओं का, अभिशप्त प्रेम।
आवाज़ें हैं- मुकेश और शमशाद बेगम की- निहायत ही देशी, खरे, ग्रामीण कंठस्वर। वैसी आवाज़ें भी अब कहाँ?
प्रेमी और प्रेमिका मेला देखने आए हैं। फिर बैलगाड़ी से गाँव लौटकर जा रहे हैं। उसी राह का यह गीत है-
"तू सूरज मैं उजियारा,
है अब जीवन भर का मेल,
सुनो जी प्रीत नहीं है खेल।"
क्या ही मीठी धुन बाँधी है। क्या आपसदारी है, कैसे तरन्नुम से उसे गाया है। परदे पर कितनी नफ़ासत से उसको निभाया है। नरगिस का स्त्रियोचित संकोच, दिलीप की युवकोचित मर्यादा, प्रेम होने के बावजूद दूर रहने की प्रतिज्ञा, प्रतीक्षा, प्रतिश्रुति। किसी अनिष्ट की पूर्वपेक्षा से दृश्य में चले आए संगीन साये। ये 1948 का भारत है!
उत्तरप्रदेश के किसी गाँव में सालोंसाल एक मेला लगता रहा था। फिर एक रोज़ मेला उजड़ गया। वह फिर नहीं भरा। नौशाद साहब बहुत दिनों बाद वहाँ गए तो मेले को न पाकर किसी फ़कीर से पूछा माजरा क्या है। उसने बताया मेले में दो जवान प्रेमियों की मोहब्बत परवान चढ़ी थी, उनकी त्रासद-कथा के बाद फिर मेला उचट गया। नौशाद साहब ने इसी पर 'मेला' नामक इस फिल्म की कहानी रची। इसमें संगीत भी उन्हीं ने दिया। वैसा नितान्त भारतीय, ग्रामीण संगीत वे ही रच सकते थे। मेरे गुरुदेव अजातशत्रु ने उचित ही कहा था, "नौशाद का संगीत प्रेमचंद की कहानियों सरीखा है!"
इस गीत को सुनें, गुनें, इसके साथ-साथ गुनगुनाएँ... साल 48 के कमसिन और नौजवाँ दिलीप-नरगिस भी गर बन जाएँ तो हर्ज़ क्या है? उन्हीं के साथ यह चाशनी भरा दोगाना दोहराएँ-
"मैं तेरा हूँ तू मेरी,
चलेंगे प्रीत का दामन थाम,
हमें दुनिया से नहीं है काम..."