ये नयी नयी प्रीत है / माया का मालकौंस / सुशोभित

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ये नयी नयी प्रीत है
सुशोभित


साल 1956 की फिल्म 'पॉकेटमार' का यह मीठा, मासूम, मुस्काता हुआ गाना है- "ये नयी नयी प्रीत है, तू ही तो मेरा मीत है।" परदे पर देव आनंद और गीता बाली की जोड़ी है- जो 'पॉकेटमार' से पहले 'बाज़ी', 'जाल' और 'मिलाप' में अवतरित हो चुकी थी। धुन मदन मोहन ने बाँधी है। आवाज़ें हैं लता मंगेशकर और तलत मेहमूद की।

लता और तलत : इनके जितने भी रोमानी-दोगाने हैं, उनमें एक ख़ास तरह की भाव-व्यंजना विकसित हुई है। इसका कारण दोनों की आवाज़ों के टेक्सचर का एक-दूसरे से निहायत ही मुख़्तलिफ़ होना है। लता की आवाज़ कुशाग्र, तेजस्वी और नादपूर्ण है। तलत का स्वर आत्मसंकोच से भरा, मंथर और भंगुर। लता झरने की तरह बहती हैं, तलत ठहर-ठहरकर पाँव धरते हैं। रफ़ी साहब और किशोर कुमार पार्श्वगायन की अपनी आलातरीन शख्सियतों के चलते लता के साथ जैसे क़दमताल करते हुए चलते थे, वैसे हेमंत कुमार और तलत मेहमूद नहीं करते थे, क्योंकि इन दोनों की आवाज़ें बहुत फ़र्क़, अलहदा थीं। हेमंत की आवाज़ में अनुगूँजें थीं, तलत की आवाज़ में कातरता। यही कारण है कि लता के साथ इनके दोगाने बहुत ख़ास तरह की अपील से भर गए हैं।

इस गीत की फिल्मांकन एक नाव पर किया गया है। नाव समुद्र में बही जा रही है। हवा के वेग से देव आनंद के बाल बिखर गए हैं। गीता बाली की साड़ी का पल्लू भी उड़ा चला जाता है। उन्होंने चोटी बाँधी है और देव उसके साथ खेलते हैं। नटखट, मासूम शरारतों से भरा यह युवा युगल है, जिनके प्रेम में दूर-दूर तक कलुष नहीं है, आत्मचेतना नहीं है, अहंकार नहीं है। केवल एक कोमल-सी उत्फुल्लता है, जो नवयुगल के दिलों में रौशनी के दरख़्तों की तरह उग आई है।

मेरे दौर के नौजवानो, संजीदा मोहब्बत सीखना हो तो दिलीप कुमार के पास जाओ और मीठा रोमांस सीखना हो तो देव आनंद के पास- कहाँ वर्तमान के वीरान, उजाड़, बंजर में भटकते हो, खंख होते हो, अपनी आत्मा को बेनूर करते हो!

"ये नयी-नयी प्रीत है"- अभी प्यार जवाँ है, ताज़ा है, टटका है। उसके संस्पर्श ने दोनों को मतवाला कर दिया है। उस ज़माने की फिल्मों में नयी प्रीत के रोमान के इर्द-गिर्द बहुत गीत रचे गए थे, जैसे "बड़े अरमानों से रक्खा है बलम तेरी क़सम, प्यार की दुनिया में ये पहला क़दम।"

"ये नयी नयी प्रीत है,

तू ही तो मेरा मीत है।

न जाने कोई साजना

ये तेरी-मेरी दास्ताँ"

किसी को भनक न लगी है कि क्या हो गया है, बात तेरे और मेरे बीच की है। दुनिया के लिए वह राज़ है पर दो के बीच वह किसी नाव के पाल की तरह खुल गई है। इक़रार हो गया है। हाँ मिल गई है। दुनिया में अब कुछ और पाने जैसा नहीं बचा है। सबकुछ हासिल हो चुका!

परिपूर्णता के इसी भाव को यह गीत व्यक्त करता है, और एकान्त में होने की उत्कण्ठा को-

"न हो कोई जहाँ

बना लें वहीं आशियाँ"

मेरे कैशोर्य के दिनों का इस गीत का राब्ता रहा है। आप पूछ सकते हैं तुम 1982 में जन्मे, साल 1956 के इस गाने से तुम्हारा राब्ता कैसे? सो ऐसे कि यह गीत मैंने रेडियो पर नहीं सुना था, टीवी पर भी नहीं, पर एचएमवी ने तलत के 80 गीतों का एक विशेष बॉक्स-सेट निकाला था- पाँच कैसेट्स वाला। वह मैं ले आया था और रात-दिन तलत को सुनता रहता था। मेरी चढ़ती तरुणाई इस मखमली आवाज़, उसके संकोच, अनमनेपन, झिझक से भरी हुई है। वह मेरा आइडल था, आज भी है। यह गाना उसी बॉक्स-सेट में शुमार था। इसकी बेमाप मेलडी ने उस समय मुझे मथकर रख दिया था।

अंत में, सुविज्ञ पाठक पूछ सकते हैं कि देव आनंद के लिए तलत की आवाज़ कैसे? तलत तो उस ज़माने में दिलीप कुमार के लिए गाते थे। बात दुरुस्त है, पर देव पर भी तलत के कुछ ख़ूबसूरत गीत फिल्माए गए हैं। इनमें सबसे मशहूर है 'टैक्सी ड्राइवर' का "जाएँ तो जाएँ कहाँ, समझेगा कौन यहाँ, दर्द भरे दिल की ज़ुबाँ" या फिल्म 'पतिता' का "हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें, हम दर्द के सुर में गाते हैं।" देव आनंद की एक अन्य फिल्म 'आराम' में भी तलत का एक मशहूर नग़मा था- "शुक्रिया ऐ प्यार तेरा शुक्रिया, दिल को कितना ख़ूबसूरत ग़म दिया"- लेकिन उस गीत को देव आनंद पर नहीं ख़ुद तलत मेहमूद पर फिल्माया गया था।

शुक्रिया ऐ प्यार तेरा शुक्रिया! शुक्रिया देव और गीता, तलत और लता, शुक्रिया मदन मोहन! शुक्रिया मेरी बीती हुई, रीती हुई जवानी के स्मरण! शुक्रिया!