राजकुमार की प्रतिज्ञा / यशपाल जैन / पृष्ठ 3

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अब तो दोनों और बाघ पर तलवार से वारभी चौकन्ने हो गये। बहुत से जानवर उनके पास से गुजरे, पर वे उतने खूंखार नहीं थे। घोड़ों को देखकर रास्ते से हट गये। वे लोग पल-भर को भी नहीं रुके। उन्हें पता नहीं चल रहा था कि वे कितना जंगल पार कर चुके हैं। सूरज ने भी वहां हार मान ली थी। उन्हें डर था कि कहीं रात न हो जाय। रात में जंगली लोमड़ी भी शेर बन जाती है। जंगली सूअर, नील गाय, भैंसे, शेर, चीते इधर-उधर विचरण करने लगते हैं, पर वहां तो रात-दिन एक-सा था। उजाले का कहीं नाम नहीं था।

उन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी। उनके हौसले के सामने जंगल ने हार मान ली। जंगल समाप्त हुआ, खुला मैदान आ गया। दिन ढल गया था। मारे थकान के दोनों पस्त हो रहे थे। वजीर के लड़के ने कहा,

"अब हम यहीं कोई अच्छी जगह देखकर ठहर जायें। हम लोगों की ताकत जवाब दे रही है और हमारे घोड़े भी पसीने से तर-बतर हो रहे हैं।"

राजकुमार ने उसके प्रस्ताव को मान लिया। कुछ कदम आगे बढ़ने पर पेड़ों के एक झुरमुट में उन्होंने डेरा डाला। पास में कुंआ था। उससे पानी लेकर स्नान किया। ताजा होकर खाना खाया। वजीर के लड़के ने कहा,

"मैं बहुत थक गया हूं। आज की रात मैं खूब सोऊंगा, आप पहरा देना।"

राजकुमार बोला, "ठीक है!"


दोनों अपने-अपने बिस्तरों पर लेट गये। पर थके होने पर भी वजीर के लड़के की आंख नहीं लगी। वह चुपचाप बिस्तर पर पड़ा रहा। राजकुमार थोड़ी देर चौकीदारी करके जैसी ही बिस्तर पर लेटा कि नींद ने आकर उसे घेर लिया। वह सो गया।

वजीर के लड़के ने यह देखा तो उसे बड़े गुस्सा आया, पर वह कर क्या सकता था। राजकुमार राजा का बेटा था और वह उसका चाकर था। राजकुमार की रक्षा करना उसका कर्तव्य था और इसी के लिए वह उसके साथ आया था।

जैसे-तैसे सवेरा हुआ। वजीर के लड़के ने राजकुमार को जगाया। आंखें मलता राजकुमार उठा और दिन के उजाले को लक्ष्य करके बोला, "मैंने बहुत कोशिश की कि जागता रहूं, पर मैं इतना थक गया था कि न चाहते हुए भी मेरी पलकें भारी हो गईं और नींद ने मुझे अपनी गोद में ले लिया।"

वजीर के लड़के को उस पर अब क्रोध नहीं, दया आई और उसने कहा, "कोई बात नहीं है।"

फिर राजकुमार का दिल रखने के लिए मुस्करा कर कहा,"ईश्वर को धन्यवाद दो कि रात को कोई दुर्घटना नहीं हुई। अनजानी जगह का आखिर क्या भरोसा कि कब क्या हो जाये!"

तैयार होकर वे फिर आगे बढ़े।

चलते-चलते काफी समय हो गया। आगे उन्हें एक नगर दिखाई दिया। उसे देखकर वजीर के लड़के का माथा ठनका। राजकुमार तो भूल गया था,पर उसे याद था। परियों की राजकुमारी ने कहा था कि रास्ते में जादू की एक नगरी पड़ेगी। हो न हो,यह वहीं नगरी है। उसने राजकुमार से कहा

"हम इस नगरी के किनारे के रास्ते से निकल चलें। बस्ती में न जायें।"

राजकुमार ने तुनककर कहा,"इतने दिनों से हम जंगलों और मैदानों में घूम रहे हैं। जैसे-तैसे तो एक नगर आया है और तुम कहते हो, इससे बचकर निकल चलें! नहीं, यह नहीं होगा।"

राजकुमार की इच्छा के आगे वजीर का लड़का झुक गया और दोनों ने नगरी में प्रवेश किया।

नगरी की बनावट और सजावट को देखकर राजकुमार मुग्ध रह गया। बोला,

"वाह, ऐसी नगरी को देखने के आनंद से तुम वंचित होना चाहते थे! ऐसे घर, ऐसे महल, ऐसे बाग-बगीचे, कहां देखने को मिलते हैं?"

अपने-अपने घोड़ों पर सवार दोनों नगर के भीतर बढ़ते गये। अकस्मात् भांति-भांति के फूलों और लता-गुल्मों से सजे एक बगीचे को देखकर राजकुमार अपने घोड़े पर से उतर पड़ा और बगीचे की शोभा को निहारने लगा। तभी सामने के घर से एक बुढ़िया दौड़ी आई और राजकुमार से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। रोना रुका तो बोली,

"मेरे बेटे, तुम कहां चले गये थे?"

राजकुमार भौंचक्का-सा रह गया। यह माजरा क्या है? उसने बुढ़िया की बांहों से अपने को छुड़ाने की कोशिश की, पर बुढ़िया ने उसे इतना जकड़ रखा था कि वह अपने को छुड़ा नहीं पाया। बुढ़िया फिर बिलखने लगी।

राजकुमार को उस पर दया आ गई। बोला, "तुम चाहती क्या हो?"

सिसकते हुए बढ़िया ने कहा, "थोड़ी-सी देर को मेरे घर के भीतर चलो।"

इतना कहकर उसने राजकुमार का हाथ पकड़ लिया।

अपना पीछा छुड़ाने के लिए राजकुमार उसके घर जाने को तैयार हो गया। वजीर के बेटे ने मना किया, पर वह नहीं माना। उसने वजीर के लड़के से कहा,

"तुम यहीं रहो, मैं अभी आता हूं।"

इतना कहकर वह बुढ़िया के साथ चल दिया। सामने के घर का दरवाजा खुला था। ज्योंही वे अंदर घुसे कि दरवाजा बंद हो गया।

वजीर के लड़के ने दरवाजे पर जाकर उसे खटखटाया, पर कोई नहीं बोला। उसने मन-ही-मन कहा,

"यह एक नई मुसीबत सिर पर आ गई। पर अब हो क्या सकता था!" उसने बार-बार दरवाजा खटखटाया, राजकुमार को पुकारा, लेकिन कोई नहीं बोला। हारकर वह अपनी जगह पर बैठ गया और राजकुमार के आने की प्रतीक्षा करने लगी।

घंटों बीत गये, न दरवाजा खुला, न राजकुमार आया।

घर के भीतर जो हुआ, वजीर का लड़का उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था।

बुढ़िया जादूगरनी थी। उसने देख लिया कि राजकुमार की उंगली में एक ऐसी अंगूठी है, जिस पर जादू का प्रभाव नहीं हो सकता। इसलिए उसने जैसे ही राजकुमार का हाथ पकड़ा, अंगूठी उतार ली। अब राजकुमार उसके बस में था। उसने घर के भीतर जाकर राजकुमार को मक्खी बना दिया। मक्खी सामने की दीवार पर जाकर बैठ गई। बुढ़िया ने जादू के जोर पर अपना यह रूप बना लिया था। असल में वह अपने असली रूप में आ गई और राजकुमार को भी मक्खी से उसके असली रूप मे ले आई। हंसते हुए बोली, "बहुत दिनों में तुम जैसा आदमी मिला है।"


राजकुमार हैरान रह गया। कहां गई वह बुढ़िया, जो उसे वहां लाई थी? उसकी जगह यह सुन्दरी कहां से आ गई? विस्मय से राजकुमारी कभी उस युवती को देखता, कभी घर पर इधर-उधर निगाह डालता, पर उसकी समझ में कुछ न आता।

राजकुमार की यह हालत देखकर युवती जोर से हंस पड़ी। बोली,

"घबराते क्यों हो? मैं तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं करूंगी। आओ, मेरे साथ चौपड़ खेलो।"

राजकुमार ने दु:खी होकर कहा, "मैं यहां रुक नहीं सकता।"

"क्यों?" युवती ने पूछा।

राजकुमार ने उसे सारी बात बता दी। बोला, "मुझे जल्दी-से-जल्दी सिंहल द्वीप पहुंचकर रानी पद्मिनी से मिलना है।"

"ठीक है।" युवती ने उसकी ओर मुस्करा कर देखा, "पर तुम वहां पहुंचोगे कैसे?"

राजकुमार रानी पद्मिनी के चारों ओर की नाकेबंदी की बात सुन चुका था, फिर भी उसने अनजान बन कहा, "क्यों?"

युवती बोली, "पहले तो तुम सिंहल द्वीप पहुंच ही नहीं पाओगे। अगर किसी तरह पहुंच भी गये तो रानी पद्मिनी से मिल नहीं सकते।"

राजकुमार ने कहा, "मुझे हर हालत में अपनी इच्छा पूरी करनी है। यदि मेरा प्रण पूरा नहीं हुआ तो मैं जान दे दूंगा।"