सीमाऐ टूटती हैं / श्रीलाल शुक्ल/ पृष्ठ 1

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पहला भागः-खंडः- ऐक

फाटक से बाहर मुड़ते ही गाड़ी के बैकव्यू मिरर में सुप्रीम कोर्ट के गोलाकार बरामदे और खंभें पुंछ गए। उनकी जगह पीछे भागती हुई सड़क और हवा से उलझती हुयी टहनियों ने घेर ली। उड़ती हुई गर्द में झीने पन में स्कुटरों के दो-एक धब्बों को छोडकर सारी सड़क वीरान पड़ी थी।

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विमल के पास ही अगली सीट पर राजनाथ बैठा था। उसने सुना नहीं, पर उसे लगा ,एक दबी हुई सिसकी आसपास हवा में अब भी अटकी है। बिना मुड़े हुए, अपना हाथ पीछे ले जाकर उसने चांद के बालों को थपथपाया। कहा,‘‘ चांद, ---इस तरह नहीं,--’’।

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विमल चुप रहा। सामने उसकी निगाह मॉडल पर टिक गई, पर वह उसके पीछे खिड़की पर भी टिकी हो सकती थी। नीला ने कहा, ‘‘आप कुछ कह रहे थे।’’

‘‘मैं कह रहा था, तुम्हारे पापा का मुकदमा अब खत्म हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना आखिरी फैसला दे दिया है। उमर-कैद का मतलब है कि उन्हें कम से कम आठ -दस साल जेल में रहना होगा। वे दो साल से ज्यादा जेल में विता चुके हैं। अब हम लोगों को ---मैं यही कहना चाहता हूं, परिस्थिति का सामना करने के दिन खत्म हो गए, अब हमें उसे मान करके चलना चाहिए--- ’’

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‘‘छः महीने तक, हाई कोर्ट ने जब तक हमारी अपील पर फैसला नहीं सुनाया था, हमने क्या -कुछ नहीं सहा! आखिर वहां से अपील का निबटारा हुआ। फॉसी की सजा घटकर आजीवन कारावास की सजा रह गई। याद करो, उस दिन हमें कितनी खुशी हुयी थी । हमें उस खुशी को याद रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट से उन्हे छुडा लेने की आशा में हमने कुछ दिनों के लिए उस खुशी को ठुकरा दिया थां अब हमें फिर घूमकर उसी जगह आ जाना चाहिए। समझना चाहिए कि हाई कोर्ट ने फॉसी की सजा घटाकर आजीवन कारावास की कर दी है और बात यहीं खत्म हो गयी है।’’ किसी ने कुछ नहीं कहा। ‘‘हमारे सामने अब दो -तीन बातें साफ हो गयी हैं। दुर्गादास को कुछ बरस जेल में रहना पड़ेगा। उन्हें पहले भी छुडाने की कोशिश हो सकती है। उन्हें ब्लड प्रेशर है, शायद उनकी तंदुरूस्ती को देखकर सरकार उन्हें पहले ही छोड़ दे। जो भी हो, इसके बारे में कुछ दिन बाद सोचेंगे।’’

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वे चुप बैठे रहे। विमल ने ही खामोशी तोडी़। हल्के ढंग से कहा-‘‘ऐसी बात कहकर तुम तो अपनी नीला भाभी को भी मात दे रही हो।’’ उसने फिर समझाना शुरू किया, ‘‘चांद, तुम एम0एस-सी0 कर चुकी हो। रिसर्च कर रही हो । कम से कम तुम्हें तो इतना भावुक न बनना चाहिये। तुम समझती हो मैं तुम्हारे पापा को यों ही ----सिर्फ तुम्हें बहलाने के लिए----बेकसूर बता रहा हूूं?’’

चांद ने विमल की पूरी बात सुन ली । फिर अपना सिर पहले की तरह अपने प्याले पर झुका लिया। नीला ने कहा, ‘‘बहलाने के लिये ही सही, कम से कम आप वह तो नहीं कहते जेा सारी दुनिया कह रही है।’’

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बाहर वैसी ही धूप थी, वैसी हवा, गर्द की वही भीनी तरलता। इस बार चांद ने धूप को आंख सिकोड़कर नहीं देखा। वह रेस्त्रां से सिर झुकाए हुये बाहर आई और गाड़ी में बैठ गयी। रेडियो ,ट्रांजिस्टर, रिकार्डप्लेयर आदि की एक दुकान के ऊपर लिखा था, ‘दुर्गादास एंड सन्स’। विमल ने राजनाथ को वहीं उतार दिया। वह गाड़ी चलाने जा रहा था कि राजनाथ ने उसकी बांह छूकर उसे रोका और बोला, ‘‘मुझे नाम बदलना पड़ेगा। नही ंतो सारा बिजनेस बैठ जायेगा!’’ विमल ने गाड़ी की खिड़की सेे झांककर साइनबोर्ड की ओर ताका। उसके ऐक हिस्से पर पेड की छांह पड रही थी और वहां दो चिडियां चुपचाप खिलौने की तरह बैठी थीं। राजनाथ की आवाज का तीखापन बिलकुल ही अप्रासंगिक जान पड़ा। उसने कहा ‘‘समझ से काम लो।’’

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विमल ने चांद के लिये ड्राइंग रूम का दरवाजा खेाला। नीला मकान के अंदर पहुंच चुकी थी। विमल ने सुन लिया ं उसे कई बार की तरह फिर से अहसास हुआ, वह अपने पति राजनाथ की तरह उसे अंकल नहीं कहती है अगर उसे कुछ कहने की जरूरत पड़ी तो शयद वह उसे विमल साहब कहना शुरू कर देगी।

वे दोनो बरामदे में पहुंच गयी थीं । सामने ड्राइंगरूम था। -------नीला ने गैलरी के दरवाजे को धक्का दिया। -----वह ड्राइंगरूम के शीशेदार दरवाजे केा धक्का देकर अंदर चली गयी।--------विमल ने चांद के लिये ड्राइंगरूम का दरवाजा खेाला। नीला मकान के अंदर पहुंच चुकी थी।

चांद ड्राइंगरूम के अंदर जाते जाते दरवाजे पर ठिठक गयी। विमल शीशेे के पैनल के सहारे उससे सटा हुआ था। अपना चेहरा ऊंचा करके उसने विमल केा बडी बडी आंखों से देखा। थोडी देर वह उसेे चुपचाप देखती रही। दोनो चुप थे।

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ऊपरी तैार से दोनो एक निर्विकार खामोशी के बीचों बीच खडे थे । जब विमल की उंगली ऊपर की ओर बढती हुयी उसक होंठेेो पर दोबारा रूकी तो चांद ने उसे अपने हाथ में लेकर धीन से हटाया। बोली ‘‘ मैं थक गयी हूं। सोऊंगी’’ पर आवाज बहुत धीमी थी, पता नहीं , विमल ने सुना या नहीं। वह ड्राइंगरूम के धुंधलके की ओर बढ़ गयी। उसके उठते ही दरवाजे की संधि पर दोनेा ओर के पल्ले धीरे धीरे, जैसे अतीत को बंद कर रहे हों, एक दूसरे से सट गए। विमल बरामदे में अकेला रह गया।

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(उपन्यास का कापीराइट प्रकाशक राजकमल पेपरबैक्स के अधीन सुरक्षित होने के कारण समीक्षा स्वरूप प्रत्येक भाग का कुछ अंश ही सम्मिलित किया गया है। संकलनकर्ताः-डा0 अशोक कुमार शुक्ला)

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