सीमाऐ टूटती हैं / श्रीलाल शुक्ल / सामान्य परिचय

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सामान्य परिचय

‘सीमाऐं टूटती हैं’ उपन्यास राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लि0 द्वारा पहली बार 1973 में पुस्तकालय संस्करण के रूप में प्रकाशित होने के बाद वर्ष 1988 में राजकमल पेपरबैक्स में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के अब तक चार पेपरबैक्स संस्करण (अंतिम 2007 में) प्रकाशित हुये हैं। यह उपन्यास तीन बडे भागों में विभाजित है।


श्रीयुत भगवती चरण वर्मा को समर्पित यह उपन्यास एक साहित्यिक अपराध कथा है। दुर्गादास नामक व्यक्ति एक ग्रामोफोन रेडियो आदि का मैकेनिक था जो अपने बडे पुत्र राजनाथ की सहायता इसी से संम्बन्धित एक दुकान चलाता था। दुर्गादास के दो पुत्र तथा एक पुत्री है राजनाथ और तारक नाथ और चांद। छोटा पुत्र तारानाथ एक कस्बे के इंटरमीडिएट कालेज का प्रधानाध्यापक है तथा छोटी पुत्री चांद केमिस्टी को शोध छात्रा है। दुर्गादास का एक अधेड आयु का मित्र भी है विमल, जो साधन संपन्न है तथा सामान्यतः परेशानी के दिनों में दुर्गादास और उसके परिवार की सहायता करता है। व्यवसाय के सिलसिले में लखनऊ जाने पर दुर्गादास जिस होटल में रूकता है उसमें एक हत्या हो जाती है और परिस्थिति जन्य साक्ष्यों के आधार पर दुर्गादास पकडा जाता है और अंततः दोषसिद्ध होकर फांसी की सजा पाता हैं जो सुप्रीम कोर्ट में अपील के निर्णय के उपरांत उम्र कैद की सजा में बदल जाती है । दुर्गादास का छोटा पुत्र तारानाथ अपने विद्यालय के मैनेजर के प्रभावशाली पुत्र शंकर को साथ लेकर अपराध शास्त्र के विशेषज्ञ जेल सुपरिण्टेण्डेण्ट डा0 फड़के से मिलकर हत्या की वास्तविकता का पता लगाने का प्रयास करता है । दुर्गादास की बडी बहू नीला और उसकी पुत्री चांद भी इसी सिलसिले में अपने पिता के पारिवारिक मित्र विमल से सहयोग की अपेक्षा करती हैं तो चांद का शोध सहयोगी छात्र मुखर्जी भी अपने तरीके से अपनी मित्र चांद से अपनी बात कहता है। इसी दौरान यह भी पता चलता है कि विमल की एक महिला मित्र जूली लखनऊ में है और ठीक हत्या के दिन विमल भी लखनऊ में अपनी महिला मित्र के साथ था। उपन्याय इन्हीं पात्रों की आपसी समझा और विचारों की कशमकश के बीच आगे बढता है और अंततः हत्या के शक की सुई विमल की ओर पूरी तरह झुकती हुयी सी प्रतीत होती है परन्तु परिवार के प्रति विमल के एहसान और दुर्गादास को अपराध मुक्त करने के लिये किये जा रहे सहयोग के कारण चांद ऐसा मानने को तैयार नहीं होती और सब कुछ जानते हुये भी अधेड उम्र विमल के प्रति अपनी आसक्ति पारिवारिक विद्रोह की सीमा तक प्रदर्शित करती है। इस प्रकार प्रेम, धर्म, अपराध मनोविज्ञान, सहज मानवीय पृवृतियों से गुंथ कर समाज में स्थापित अनेक सीमाओं को तोडता हुआ यह उपन्यास आगे बढ जाता है।


(नोटः-उपन्यास का कापीराइट प्रकाशक राजकमल पेपरबैक्स के अधीन सुरक्षित होने के कारण समीक्षा स्वरूप इसका संक्षिप्त कथा-सार ही अंकित किया जा रहा है। संकलनकर्ताः-डा0 अशोक कुमार शुक्ला)

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