सूक्ति और काव्य / रस मीमांसा / रामचन्द्र शुक्ल

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काव्य का लक्ष्य
सूक्ति और काव्य / रस मीमांसा / रामचन्द्र शुक्ल

आनंद' शब्द ने जिस प्रकार काव्य की नीयत को बदनाम किया है, उसी प्रकार 'चमत्कार' शब्द ने उनके रूप को बहुत कुछ बिगाड़ा है। उसके कारण विलक्षण रीति से कोई बात कहना, चाहे वह भावोत्‍तेजक या भावोत्पादक न हो, कविता करना समझा जाने लगा। बात बनानेवाले भी कवि बनाए जाने लगे। 'अनूठी बात' सुनने की उत्कंठा रखनेवाले अपने को काव्यरसिक समझने लगे। काव्य का प्रकृत स्वरूप लोगों की ऑंखों से ओझल हो गया। यहाँ तक कि नारायण पंडित को सर्वत्र अद्भुत रस ही दिखाई देने लगा और उन्होंने कह दिया कि-

रसे सारश्‍चमत्कार : सर्वत्रप्यनुभूयते।

तच्चमत्कारसारत्वे सर्वत्रप्यद्भुतो रस:॥