सूरज का सातवाँ घोड़ा / धर्मवीर भारती / पृष्ठ 3

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पहली दोपहर

नमक की अदायगी

अर्थात जमुना का नमक माणिक ने कैसे अदा किया

उन्होंने सबसे पहली कहानी एक दिन गरमी की दोपहर में सुनाई न्होंने सबसे पहली कहानी एक दिन गरमी की दोपहर में सुनाई थी जब हम लोग लू के डर से कमरा चारों ओर से बंद करके, सिर के नीचे भीगी तौलिया रखे चुपचाप लेटे थे। प्रकाश और ओंकार ताश के पत्ते बाँट रहे थे और मैं अपनी आदत के मुताबिक कोई किताब पढ़ने की कोशिश कर रहा था। माणिक ने मेरी किताब छीन कर फेंक दी और बुजुर्गाना लहजे में कहा, 'यह लड़का बिलकुल निकम्मा निकलेगा। मेरे कमरे में बैठ कर दूसरों की कहानियाँ पढ़ता है। छि:, बोल कितनी कहानियाँ सुनेगा।' सभी उठ बैठे और माणिक मुल्ला से कहानी सुनाने का आग्रह करने लगे। अंत में माणिक मुल्ला ने एक कहानी सुनाई जिसमें उनके कथनानुसार उन्होंने इसका विश्लेषण किया था कि प्रेम नामक भावना कोई रहस्यमय, आध्यात्मिक या सर्वथा वैयक्तिक भावना न हो कर वास्तव में एक सर्वथा मानवीय सामाजिक भावना है, अत: समाज-व्यवस्था से अनुशासित होती है और उसकी नींव आर्थिक-संगठन और वर्ग-संबंध पर स्थापित है।

नियमानुसार पहले उन्होंने कहानी का शीर्षक बताया : 'नमक की अदायगी'। इस शीर्षक पर उपन्यास-सम्राट प्रेमचंद के 'नमक का दारोगा' का काफी प्रभाव मालूम पड़ता था पर कथावस्तु सर्वथा मौलिक थी। कहानी इस प्रकार थी -

माणिक मुल्ला के घर के बगल में एक पुरानी कोठी थी जिसके पीछे छोटा अहाता था। अहाते में एक गाय रहती थी, कोठी में एक लड़की। लड़की का नाम जमुना था, गाय का नाम मालूम नहीं। गाय बूढ़ी थी, रंग लाल था, सींग नुकीले थे। लड़की की उम्र पंद्रह साल की थी, रंग गेहुँआ था (बढ़िया पंजाबी गेहूँ) और स्वभाव मीठा, हँसमुख और मस्त। माणिक, जिनकी उम्र सिर्फ दस बरस की थी, उसे जमुनियाँ कह कर भागा करते थे और वह बड़ी होने के नाते जब कभी माणिक को पकड़ पाती थी तो इनके दोनों कान उमेठती और मौके-बेमौके चुटकी काट कर इनका सारा बदन लाल कर देती। माणिक मुल्ला निस्तार की कोई राह न पा कर चीखते थे, माफी माँगते थे और भाग जाते थे।

लेकिन जमुना के दो काम माणिक मुल्ला के सिपुर्द थे। इलाहाबाद से निकलनेवाली जितनी सस्ते किस्म की प्रेम-कहानियों की पत्रिकाएँ होती थीं वे जमुना उन्हीं से मँगवाती थी और शहर के किसी भी सिनेमाघर में अगर नई तसवीर आई तो उसकी गाने की किताब भी माणिक को खरीद लानी पड़ती थी। इस तरह जमुना का घरेलू पुस्तकालय दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था।

समय बीतते कितनी देर लगती है। कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते और सिनेमा के गीत याद करते-करते जमुना बीस बरस की हो गई और माणिक पंद्रह बरस के, और भगवान की माया देखो कि जमुना का ब्याह ही कहीं तय नहीं हुआ। वैसे बात चली। पास ही रहनेवाले महेसर दलाल के लड़के तन्ना के बारे में सारा मुहल्ला कहा करता था कि जमुना का ब्याह इसी से होगा, क्योंकि तन्ना और जमुना में बहुत पटती थी, तन्ना जमुना की बिरादरी का भी था, हालाँकि कुछ नीचे गोत का था और सबसे बड़ी बात यह थी कि महेसर दलाल से सारा मुहल्ला डरता था। महेसर बहुत ही झगड़ालू, घमंडी और लंपट था, तन्ना उतना ही सीधा, विनम्र और सच्चरित्र; और सारा मुहल्ला उसकी तारीफ करता था।

लेकिन जैसा पहले कहा जा चुका है कि तन्ना थोड़े नीच गोत का था, और जमुना का खानदान सारी बिरादरी में खरे और ऊँचे होने के लिए प्रख्यात था, अत: जमुना की माँ की राय नहीं पड़ी। चूँकि जमुना के पिता बैंक में साधारण क्लर्क मात्र थे और तनख्वाह से क्या आता-जाता था, तीज-त्यौहार, मूड़न-देवकाज में हर साल जमा रकम खर्च करनी पड़ती थी अत: जैसा हर मध्यम श्रेणी के कुटुंब में पिछली लड़ाई में हुआ है, बहुत जल्दी सारा जमा रुपया खर्च हो गया और शादी के लिए कानी कौड़ी नहीं बची।

और बेचारी जमुना तन्ना से बातचीत टूट जाने के बाद खूब रोई, खूब रोई। फिर आँसू पोंछे, फिर सिनेमा के नए गीत याद किए। और इस तरह से होते-होते एक दिन बीस की उम्र को भी पार कर गई। और माणिक का यह हाल कि ज्यों-ज्यों जमुना बढ़ती जाए त्यों-त्यों वह इधर-उधर दुबली-मोटी होती जाए और ऐसी कि माणिक को भली भी लगे और बुरी भी। लेकिन एक उसकी बुरी आदत पड़ गई थी कि चाहे माणिक मुल्ला उसे चिढ़ाएँ या न चिढ़ाएँ वह उन्हें कोने-अतरे में पाते ही इस तरह दबोचती थी कि माणिक मुल्ला का दम घुटने लगता था और इसीलिए माणिक मुल्ला उसकी छाँह से कतराते थे।

लेकिन किस्मत की मार देखिए कि उसी समय मुहल्ले में धर्म की लहर चल पड़ी और तमाम औरतें जिनकी लड़कियाँ अनब्याही रह गई थीं, जिनके पति हाथ से बेहाथ हुए जा रहे थे, जिनके लड़के लड़ाई में चले गए थे, जिनके देवर बिक गए थे, जिन पर कर्ज हो गया था; सभी ने भगवान की शरण ली और कीर्तन शुरू हो गए और कंठियाँ ली जाने लगीं। माणिक की भाभी ने भी हनुमान-चौतरावाले ब्रह्मचारी से कंठी ली और नियम से दोनों वक्त भोग लगाने लगीं। और सुबह-शाम पहली टिक्की गऊ माता के नाम सेंकने लगीं। घर में गऊ थी नहीं अत: कोठी की बूढ़ी गाय को वह टिक्की दोनों वक्त खिलाई जाती थी। दोपहर को तो माणिक स्कूल चले जाते थे, दिन का वक्त रहता था अत: भाभी खुद चादर ओढ़ कर गाय को रोटी खिला आती थीं पर रात को माणिक मुल्ला को ही जाना पड़ता था।

गाय के अहाते के पास जाते हुए माणिक मुल्ला की रूह काँपती थी। जमुना का कान खींचना उन्हें अच्छा नहीं लगता था (और अच्छा भी लगता था!) अत: डर के मारे राम का नाम लेते हुए खुशी-खुशी वे गैया के अहाते की ओर जाया करते थे।

एक दिन ऐसा हुआ कि माणिक मुल्ला के यहाँ मेहमान आए और खाने-पीने में ज्यादा रात बीत गई। माणिक सो गए तो उनकी भाभी ने उन्हें जगा कर टिक्की दी और कहा, 'गैया को दे आओ।' माणिक ने काफी बहानेबाजी की लेकिन उनकी एक न चली। अंत में आँख मलते-मलते अहाते के पास पहुँचे तो क्या देखते हैं कि गाय के पास भूसेवाली कोठरी के दरवाजे पर कोई छाया बिलकुल कफन-जैसे सफेद कपड़े पहने खड़ी है। इनका कलेजा मुँह को आने लगा, पर इन्होंने सुन रखा था कि भूत-प्रेत के आगे आदमी को हिम्मत बाँधे रहना चाहिए और उसे पीठ नहीं दिखलानी चाहिए वरना उसी समय आदमी का प्राणांत हो जाता है।

माणिक मुल्ला सीना ताने और काँपते हुए पाँवों को सँभाले हुए आगे बढ़ते गए और वह औरत वहाँ से अदृश्य हो गई। उन्होंने बार-बार आँखें मल कर देखा, वहाँ कोई नहीं था। उन्होंने संतोष की साँस ली, गाय को टिक्की दी और लौट चले। इतने में उन्हें लगा कि कोई उनका नाम ले कर पुकार रहा है। माणिक मुल्ला भली-भाँति जानते थे कि भूत-प्रेत मुहल्ले भर के लड़कों का नाम जानते हैं, अत: उन्होंने रुकना सुरक्षित नहीं समझा। लेकिन आवाज नजदीक आती गई और सहसा किसी ने पीछे से आ कर माणिक मुल्ला का कालर पकड़ लिया। माणिक मुल्ला गला फाड़ कर चीखने ही वाले थे किसी ने उनके मुँह पर हाथ रख दिया। वे स्पर्श पहचानते थे। जमुना!

लेकिन जमुना ने कान नहीं उमेठे। कहा, 'चलो आओ।' माणिक मुल्ला बेबस थे। चुपचाप चले गए और बैठ गए। अब माणिक भी चुप और जमुना भी चुप। माणिक जमुना को देखें, जमुना माणिक को देखे और गाय उन दोनों को देखे। थोड़ी देर बाद माणिक ने घबरा कर कहा, 'हमें जाने दो जमुना!' जमुना ने कहा, 'बैठो, बातें करो माणिक। बड़ा मन घबराता है।'

माणिक फिर बैठ गए। अब बात करें तो क्या करें? उनकी क्लास में उन दिनों भूगोल में स्वेज नहर, इतिहास में सम्राट जलालुद्दीन अकबर, हिंदी में 'इत्यादि की आत्मकथा' और अंगरेजी में 'रेड राइडिंग हुड' पढ़ाई जा रही थी, पर जमुना से इसकी बातें क्या करें! थोड़ी देर बाद माणिक ऊब कर बोले, 'हमें जाने दो जमुना, नींद लग रही है।'

'अभी कौन रात बीत गई है। बैठो!' कान पकड़ कर जमुना बोली। माणिक ने घबरा कर कहा, 'नींद नहीं लग रही है, भूख लग रही है।'