एक थी तरु / भाग 7 / प्रतिभा सक्सेना

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इस कमरे में उत्सव का वातावरण है।

अखबारों से काटी गई गांधी जी की तस्वीर बीच में लगी है, दोनो तरफ नेहरू और सुभाष बोस के फोटो रक्खे हैं। घर का सिला एक तिरंगा झंडा बाँस पर लटक रहा है, जिस पर शन्नो ने बडे यत्न से चरखा बनाया है। उत्सव की सूत्रधार भी वही हैं। गौतम कुर्सी पर शन्नो के बराबर में बैठे हैं।

तरु और संजू दर्शक हैं। वे जय बोलेंगे झण्डे को सलामी देंगे और शन्नो का भाषण सुनेंगे। कौतूहल से उनकी आँखें चमक रही हैं।

शन्नो पहले गांधी जी के चित्र को माला पहनाती हैं। बाँस हिलाकर झण्डे का कपड़ा फहराती हैं और फूल फेंकती हैं। उनका इशारा पाते ही तरु-संजू तन कर सलामी देते हैं।

"वन्दे-मातरम् गा तरु।”

मुझे तो पूरा नहीं आता।”

"भूल जायेगी तो मै बता दूँगी। चल जल्दी शुरू कर--।”

इसके बाद बढी हुई उत्तेजना को संयत कर, गले की आवाज धीमी कर शन्नो बोलने खड़ी हुईं --

"हम अपना ख़ून देकर आजादी लेंगे। अंग्रेजों ने हमारी भारत माँ को गुलाम बना रक्खा है। ये मुट्ठी-भर लेग हमारे देशवासियों पर अत्याचार कर रहे हैं। हमारे देश का धन विदेश ले जा रहे हैं। (बीच-बीच में वह एक कागज देखती जाती हैं जिस पर भाषण तैयार कर लिख रखा है) हमारी भारतमाता परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी कराह रही है। वह हमें पुकार रही है। हम उसकी बेड़ियां काटेंगे उसे आज़ाद करेंगे। ---।”

तरु चकित है जिज्जी कितनी विद्वान हैं।

शन्नो गले की आवाज दाब कर जोर से बोलने का अभिनय करती हुई कहती हैं,”इन्किलाब।”

तरु-संजू चिल्लाते हैं,”ज़िन्दाबाद”

इन दिनों अखबारों की खबरें बडे ज़ोर-शोर से पढ़ी जाती हैं। आस-पास के लोग चबूतरे पर इकट्ठे होकर पिताजी से गरमागरम बातें करते हैं।

उनके स्वरों मे उत्तेजना और आँखों में एक विषेश चमक होती है, गांधी, नेहरू सुभाष, जिन्ना आदि के नाम बार-बार आते हैं। सत्याग्रह, आन्दोलन जैसे शब्द सुनाई देते हैं। वैसे ही जिज्जी भी बोल रही हैं तरु अभिभूत -सी सुन रही है। समझ में कुछ नहीं आ रहा पर शन्नो के जोश भरे चेहरे को मुग्ध होकर देख रही है।

शन्नो बोल रही हैं -"हम सिर पर कफ़न बाँध कर निकल पडेंगे, देश के लिये सब-कुछ बलिदान कर देंगे। हम अपना ख़ून देकर आजादी लेंगे। हमें आजादी चाहिये।”

वे रुकती हैं फिर कुछ सोचकर कहती हैं,”चलो हम भी अपने ख़ून से दस्तखत करेंगे।”

तरु मंत्र-मुग्ध सी सुन रही थी, अचानक उसे लगता है, खून निकालने में दर्द होगा। शन्नो खून निकालने के लिये सुई लेकर आई हैं।

"खून से दस्तखत कौन-कौन करेगा?”

"मेरे सुई मत चुभाना, मुझे खून नहीं निकालना है।” तरु सबसे पहले बोल पड़ी।

"कायर, स्वार्थी।”शन्नो ने हिकारत से देखा।

संजू सुई चुभने के डर से चुपके से खिसक गया।

शन्नो धुली हुई निब और सफेद कागज भी निकाल लाईं। सुई हाथ मे लिये उन्होने गौतम की ओर देखा -शायद वे ही पहल करें। गौतम तटस्थ दर्शक बने देखते रहे।

फिर हिम्मत कर के शन्नो ने ही सुई की नोक बायें हाथ की उँगली के पोर में चुभाई। मुँह से सी निकला और सुई हटा निकाल ली, ज़ोर से नहीं चुभा पाई। पोर को दबाने से खून का लाल कण छलका। हिम्मत करके वे फिर चुभाने को हुईं।

अब तरु से नहीं रहा गया।

"जिज्जी, अपने आप उँगली में घाव कर रही हो, फिर काम के मौके पर अम्माँ से कहोगी कट गया। उन्हें तुम्हारे झूठ का पता लग गया तो बहुत नाराज होंगी।”

शन्नो ने क्रुद्ध दृष्टि से तरु को देखा, गौतम पर निगाह डाली और सुई रख दी।

"देखा कैसी चुगलखोर है!”


"हुँह, इन्हें आजादी चाहिये! अब खिड़की पर खड़े होकर उधर ताकते देखा तो टाँगें तोड़ दूँगी।” अम्माँ ने खूब जोर से शन्नो को डाँटा था।

तरु को पूरी छूट है। स्कूल से आने के बाद चाहे सारे दिन मोहल्ले में घूमे, लडकों के साथ गुल्ली-डंडा खेले, पेड़ों पर चढ़ती फिरे! उसे कुछ करने से परहेज़ नहीं। इतना बड़ा बाड़ा तो पीछे का ही है, फिर उधर वालों का बगीचा। , बीच में एक छोटी-सी टूटी दीवार ही तो है। फलाँग कर उधर चली जाती है तरु।


पीछे बाड़े में संघ की शाखा लगती है। शाम को खाकी नेकर पहने बहुत से लड़के इकट्ठे होते हैं और लाठी भाँजना सीखते हैं।

। एक स्वयंसेवक उनका मुखिया है उसे सब लोग अल्लमटोला कहते हैं। उनकी प्रार्थना’नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमे --' सुनना तरु को बहुत अच्छा लगता है। , वे भगवे रंग का त्रिभुजाकार झंडा लगाते हैं -ध्वज! झंडे की सलामी को कहते हैं’ ध्वज-वंदना’ और उसका उनका अपना अलग तरीका है।

बीच की दीवार फाँद कर तरु, दूसरेवाले बाड़े के पेड़ पर चढ़ कर यह सब देखा करती है। गौतम भी शाखा में शामिल होता है। एकाध बार तरु भी उसी के साथ गई थी। अल्लमटोला ने उसे प्यार से अपने पास बिठा लिया था। पर उन बड़े-बड़े लड़कों के बीच उसे बड़ा अजीब लगता है -बडी झेंप लगती है -समझ में नहीं आता कैसे बैठी रहे, कैसे बात करे। उसे पेड़ पर चढ़ कर देखना अधिक सुविधाजनक लगता है -वह सबको देख ले उसे कोई देख ही न पाये।

शाखा लगती है मुश्किल से घंटा भर। बाड़ा खाली होता है तो वह अपने साथियों के साथ गुल्ली-डंडा या कलाम-डाला खेलती है। पतली -पतली स्वर्ण-चंपाकी डालों पर वह चढ़ लेती है, घने पेड़ों की शाखाओं मे छिप सकती है और अमरूद तोडने में तो उसकी बराबरी ही नहीं। इमली की तरफ जाने में डर लगता है-कहते हैं वहाँ चुड़ैल रहती है।

कभी तरु को नहीं डाँटतीं। तरु-संजू छुट्टे बैल हैं। संजू तो अक्सर ही बीमार रहता है। और तरु शुरू से तंदुरुस्त। लड़ाई-झगडे में तरु की संजू से हाथा-पाई होती है। जब देखती है वह बराबर से पीट नहीं पा रहा है तो तरु को उस पर दया आ जाती है। आपसी लड़ाई-झगड़ा कितना भी हो एक दूसरे की शिकायत दोनों में से कोई नहीं करता। हाँ, दोनों के हाथ-मुँह पर खरोंचें देख कर सबको उनके झगड़े का पता चल जाता है। संजू जब कुछ नहीं कर पाता, तो खिसियाता है और किचकिचा कर नाखूनों का प्रयोग करता है। पहले तो दाँतों से काट भी खाता था। जब तरु ने’कटखना कुत्ता' कहना शुरू किया तब बन्द कर दिया।

स्कूल से आने के बाद खेलने से छुट्टी नहीं मिलती। रात को जहाँ खाना खाकर किताबें लेकर बैठो, बड़े ज़ोर से नींद आती है।

पिता आवाज़ लगाते हैं,” तरु पढ़ रही हो?”

तरु रजाई में से मुँह निकाल कर जवाब देती,”हाँ, पिताजी।”

"अभी बताती हूँ -तब से ये रजाई ओढ़े लेटी है", शन्नो धमकातीं।

"तुम कहोगी तो मैं चुप रहूँगी? मैं भी तुम्हारी बातें कह दूँगी।”

"ऊँह, मुझे क्या! अपने आप फेल होएगी।”

पर तरु अच्छे नंबरों से पास हो जाती है।

"चुड़ैल है। बिना पढ़े पास हो जाती है,” शन्नो चेतातीं,”अभी क्या। अभी तो छोटी क्लास है, हमारी क्लास में आयेगी तब पता चलेगा!”

"तुम्हारे जैसी किताब खोले, खिड़की ताकती नहीं बैठी रहूँगी।”

तरु कैसे समझाये कि एक बार स्कूल में पढने से जब याद हो गया तो दुबारा पढ़ना बेकार है। क्लास में पोएम और पहाड़े पूछे जाने पर फटा-फट सुना देती है। पर पढ़ने से ज्यादा उसे घूमना पसंद है।

पिछली बार मन्नो के आने पर दो दिन स्कूल नहीं गई थी। खेल की धुन में किसी से यह भी नहीं पूछा कि याद करने को क्या दिया गया। वो तो क्लास मे बहन जी ने दो-तीन लड़कियों से पहले सुना और उनकी गलतियाँ ठीक कराईं तो सुन-सुन कर उसे याद हो गया। अपनी बारी पर फटाफट सुना डाली।

कहीं बहन जी उसीसे पहले पूछ लेतीं तो!

अरे, तो क्या। दो-चार फुटे मार लेतीं हाथ पर। ऐसे क्या मार पड़ी नहीं है कभी!

पर वह सब बहुत पहले की बातें हैं। अब तो मन्नो ऐसी विदेश जा बसीं कि सालों नहीं आतीं।

"शन्नो, जे तुम्हारी निकली भई लटें बडी पियारी लगती हैं।” मथुरा परशादिन ने हँसकर कहा था।

घर पर अम्माँ ने टोका था,”और लड़कियां भी तो हैं, तुम्ही सबसे निराली क्यों हो? इतनी सौखीनी, इतना बनाव-पटार? सब लोग क्या कहते होंगे। तुम्हें ही अनोखी जवानी चढ़ी है!”

शन्नो की सहेलियों के सामने भी अम्माँ उसे बुरी तरह झिड़क देती हैं, उसका मुँह जरा-सा निकल आता है।

जिज्जी जब खिलखिला कर हँसती हैं तो तरु को बहुत अच्छी लगती हैं, पर अम्माँ चौंक कर उनकी ओर देखने लगती हैं।

शन्नो की सहनशीलता जवाब देने लगी है।

-पता नहीं इस घर से कब छुटकारा मिलेगा!