एक वन और दो पर्वत / सुनो बकुल / सुशोभित

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एक वन और दो पर्वत
सुशोभित


राजगृह में कभी एक वन और दो पर्वत थे।

वन था वेणुवन। पर्वत थे वैभार और गृध्रकूट।

राजगृह मगध महाजनपद की राजधानी था। बुद्धकालीन भारत के छह महानगरों में से एक।

487 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध निर्वाण हुआ। उसी वर्ष आषाढ़ में राजगृह के वैभार पर्वत की सप्‍तपर्णी गुहा में पांच सौ अर्हत एकत्र हुए और महास्‍थविर महाकाश्‍यप की अध्‍यक्षता में बुद्धवचनों का संगायन किया। यह प्रथम बौद्ध संगीति कहलाई।

इसके बाद भारत में वैशाली और पाटलिपुत्र में दो और संगीतियां हुईं। शेष तीन संगीतियां कालांतर में सिंहल द्वीप और बर्मा में हुईं। राजगृह की प्रथम धर्म-संगीति में शोकाकुल भिक्षुओं ने धम्‍म (सूत्र) और विनय का संगायन किया था। अभिधम्‍म (त्रिपिटकों में से तीसरा पिटक) का तब कोई उल्‍लेख नहीं मिलता है।

महाकाश्‍यप ने स्‍थविर आनंद से धम्‍म और स्‍थविर उपालि से विनय की प्रामाणिकता के बारे में पूछा। उनके समर्थित वचनों का संघ ने संगायन किया। वैभार पर्वत ने अर्हतों के समवेत उच्चार की मेखला धारण की और स्मृतिधर बना। बुद्ध निर्वाण के बाद पूरे 458 वर्षों तक बुद्धवचनों की विपुल राशि इसी रीति-भांति से स्‍मृति की भंगुर दीर्घाओं में अंकित रहती है। सम्‍यक स्‍मृति!

(बुद्धवचन अंतत: लिपिबद्ध होते हैं 29 ईसा पूर्व में हुई चौथी संगीति में। यह सिंहलद्वीप में वट्टगामाणि के शासनकाल में होती है। वही सिंहलद्वीप, जहां राजपुत्र महेंद्र और राजपुत्री संघमित्रा सांची से धम्म की देशना लेकर पहुंचे थे।)

'चुल्‍लवग्‍ग' (विनयपिटक) के 'पंचशतिकास्‍कंधक' में उल्‍लेख है : प्रथम संगीति के समय आयुष्‍मान पुराण दक्षिणागिरि में थे। वे संगीति में सम्मिलित होने नहीं आए। उन्‍होंने संगीति के पाठ से अपने पाठ को भी नहीं बदला। भिक्षुओं के आग्रह पर उन्‍होंने कहा : 'आवुस, स्‍थविरों ने धम्‍म और विनय का सुंदर संगायन किया है, तो भी मैंने शास्‍ता के मुख से जैसा सुना, वैसा ही ग्रहण करूंगा।'

राजगृह को आज राजगीर के नाम से जाना जाता है और यह बिहार के नालंदा ज़िले में पड़ता है।