च्वांगत्सू की तितली / सुनो बकुल / सुशोभित

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च्वांगत्सू की तितली
सुशोभित


"ताओ" पंथ के रहस्यदर्शी "च्वांगत्सू" ("Zhuang Zhou") की "तितली" जाग्रति और स्वप्न के साहचर्य पर किसी मनुष्य का सबसे बड़ा कौतूहल है!

कथा कुछ यूं है कि एक सुबह "च्वांगत्सू" जागे। वे बड़े परेशान लग रहे थे। उन्हें चाय देने आए शिष्यों ने गुरुवर को परेशान देखा तो कारण पूछा।

"च्वांगत्सू" ने कहा, मैं इसलिए चिंतित हूं, क्योंकि कल रात मैंने एक सपना देखा। सपने में मैंने देखा कि मैं एक तितली हूं। शिष्यों ने कहा, इसमें चिंतित होने वाली क्या बात है। सपना ही तो था।

"च्वांगत्सू" ने कहा, नहीं, लेकिन बात ये है कि जब मैं स्वप्न में तितली था, तब मुझे इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि मैं "च्वांगत्सू" हूं। अभी जागने पर मुझे याद आया है कि मैं "च्वांगत्सू" हूं। तो कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं वास्तव में एक तितली हूं, जो कि अभी यह स्वप्न देख रही है कि वह "च्वांगत्सू" है और जागने पर वो पाए कि वह तो वास्तव में एक तितली है!

सालों बाद एरिक हटन ने इसी दुविधा का सामना किया था। एरिक ने कहा था कि जब हम सपनों में जाग रहे होते हैं तो यथार्थ को भूल जाते हैं। किंतु ऐसा तो नहीं कि जिसे हम यथार्थ कहते हैं, वह किसी और का स्वप्न हो?

फिर एरिक ने इस विभ्रम की काट निकाली। उसने कहा कि जब मैं पूछता हूं कि क्या मैं स्वप्न देख रहा हूं, तो इससे यह तो पता चलता ही है कि मैं हूं। चेतना की कोई एक धुरी है, जो स्वप्न की अनुभोक्ता है और व्यामोह में खो नहीं गई है।

यह सीधे-सीधे देकार्ते की प्रविधि है, जिसने कहा था : "काजिटो एर्गो सम" ("मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं!")

"मंडूक्य उपनिषद" में "जाग्रति", "स्वप्न" और "सुषुप्त‍ि" के स्वरूपों पर विमर्श किया गया है। बौद्ध दार्शनिक वसुबंधु ने "चेतना के बीस छंद" में स्वप्न की प्रकृति पर चिंतन किया है।

मिनोतॉर' का "ग्रीक" मिथक है, जिसमें "मिनोतॉर" ने यह स्‍वप्‍न देखा था कि वह "मिनोतॉर" नहीं बल्कि "एस्‍टीरियन" है, जो कि अपने उद्धारक की राह तक रहा है, जबकि ऐन तभी "थिसियस" उसकी हत्‍या करने आ पहुंचा था।

इसके ठीक सामने मुझे लुई कैरोल की "थ्रू द लुकिंग ग्लास" याद आती है, जिसमें जब एलिस "रेड किंग" को सोते हुए पाती है तो ट्वीडलडम और ट्वीडलडी उसे कहते हैं कि ऐन इसी समय "रेड किंग" एलिस का सपना देख रहा है और अगर वह जाग उठा तो एलिस इस तरह से लुप्त हो जाएगी, जैसे भाप!

फिर भी "च्वांगत्सू" के कौतूहल पर अगर किसी ने बढ़त दर्ज की हो, तो उस शख़्स का नाम खोर्खे हुई बोर्खेस था। यूं भी बोर्खेस हर लिहाज़ से "ताओ" रहस्यात्मकताओं में विचरण करने वाला दरवेश ही था।

बोर्खेस के "द फ़िक्शंस" में एक कथा है :

एक मनुष्य स्वप्न में किसी अन्य पूर्णतर मनुष्य की रचना करना चाहता था। इसके लिए उसने एक प्राचीन एम्फ़ीथिएटर को चुना, जहां कभी अग्नि का उपासनागृह था। वहां वह स्‍वप्‍न की साधना करने लगा। सबसे पहले उसे एक धड़कता हुआ हृदय दिखाई दिया, फिर शरीर के दूसरे अंग। एक-एक धमनी, शिरा, पेशी जोड़कर उसने एक मुकम्‍मल मनुष्‍य को रचा। लेकिन उसने उसे याददाश्‍त नहीं बख्‍़शी, क्‍योंकि अपने निर्माण की प्रक्रिया याद कर वह अपमानित महसूस कर सकता था। और उसने उसे आग से दूर रहने की हिदायत दी, क्‍योंकि आग परछाइयों को नहीं जलाती।

और तब, एक दिन अग्नि का वह प्राचीन उपासनागृह आग की लपटों से घिर गया। यह अंत का संकेत था। उसने सोचा कि स्‍वप्‍न में एक सर्वांग-संपूर्ण मनुष्‍य को रच डालने के गौरव के साथ अब वह मृत्‍यु को अंगीकार कर सकता है, और उसने स्‍वयं को अग्नि को सौंप दिया। लेकिन आग उसे जला नहीं पा रही थी!

राहत के साथ, दहशत के साथ, और अपमान के एक तीखे दंश के साथ उसे समझ आ गया कि वह ख़ुद एक प्रतिबिम्ब था, और कोई अन्‍य व्‍यक्ति उसका स्‍वप्‍न देख रहा था!