पोथीख़ाना / सुनो बकुल / सुशोभित

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पोथीख़ाना
सुशोभित


एक ज़माने में जयपुर को "दूसरी काशी" कहा जाता था!

आज कम ही लोग इस बात को जानते हैं कि किसी कालखंड में भारत में विद्याविलास का जितना बड़ा केंद्र काशी था, जयपुर उससे कम नहीं था। कम से कम, पश्चिम भारत में तो उस जोड़ के नगर नहीं थे। इसमें जयपुर के शासकों का महत्तम योगदान था, जो या तो स्वयं विद्याव्यसनी थे, जैसे कि सवाई जयसिंह और सवाई ईश्वरी सिंह, या विद्वत्ता के निष्ठावान संरक्षक थे, जैसे मिर्ज़ा राजा और सवाई माधोसिंह।

वेदविद्या के अग्रणी विद्वान विद्यावाचस्पति पं. मधुसूदन ओझा जयपुर के राज्याश्रय में थे। वे सवाई माधोसिंह द्वितीय के काल में राज्य के पुस्तकालय के संचालक थे। बिहारी, पद्माकर और नरोत्तम दास जैसे लब्धप्रतिष्ठ कवियों को जयपुर ने संरक्षण दिया था। गद्दी पर बैठने के तुरंत बाद ईश्वरी सिंह ने जो पहला काम किया, वो यह था कि राजकवि कलानिधि श्रीकृष्ण भट्ट को बुलवाया और जयपुर पर एक महाकाव्य लिखने का आदेश दिया। राजकवि ने आज्ञा को शिरोधार्य किया और "ईश्वर विलास" शीर्षक से वह पुस्तक लिखी। और जब शाहजहां ने अपने पुत्र दारा शिकोह की रुचि संस्कृत के ग्रंथों में देखी, तो उन्होंने जयपुर की ओर आशा से निहारा। मिर्ज़ा राजा के संरक्षण में जयपुर में संस्कृत विद्यालय संचालित करने वाले पंडितराज जगन्नाथ को तब दिल्ली दरबार भेजा गया और उन्होंने शाहजहां के प्रिय पुत्र को तालीम दी।

जयपुर के "नगर-प्रासाद" या "सिटी पैलेस" में चंद्रमहल के समीप अपार साहित्यिक महत्व का एक भवन है, जिसे "पोथीख़ाना" कहा जाता है। इसमें हज़ारों बहुमूल्य ग्रंथ और पांडुलिपियां सुरक्षित हैं और अकेले पोथीख़ाने के अवगाहन में ही विद्वानों की किसी टोली का समूचा जीवन खट सकता है। रामायण और महाभारत के फ़ारसी प्रामाणिक अनुवाद जयपुर के इसी पोथीख़ाने में सुरक्षित हैं। रामायण का अनुवाद "शाही रामायण" कहलाता है और महाभारत का अनुवाद "रज़्मनामा"।

आमेर-जयपुर के इतिहास-संस्कृति के महनीय विद्वान श्री नंदकिशोर पारीक ने नगर-प्रासाद के इस पोथीख़ाने पर विस्तार से लिखा है। उन्होंने बतलाया है कि राजा मानसिंह से लेकर जयपुर के अंतिम नरेश सवाई मानसिंह द्वितीय तक सभी नृपेंद्र पोथियों के संग्राहक थे। वे जहां भी जाते, पुस्तकें लेकर आते। कोई साढ़े तीन सौ वर्षों के जयपुर स्टेट के इतिहास में इस तरह हज़ारों पुस्तकें संग्रहीत हो गईं, जो आज सिटी पैलेस के पोथीख़ाने में सुरक्षित हैं।

पोथीख़ाने का पहला भाग "ख़ास मुहर" कहलाता है। "ख़ास मुहर" इसलिए, क्योंकि इसमें संग्रहीत कोई आठ हज़ार पुस्तकों और पांडुलिपियों पर जयपुर नरेशों की व्यक्तिगत सील की गई पुस्तकें हैं, यानी रॉयल फ़ैमिली का पर्सनल बुक कलेक्शन। कपड़े के अस्तर और चमड़े की जिल्दों में इन ग्रंथों को सहेजा गया है। दूसरे भाग यानी "ख़ास संग्रह" में कोई तीन हज़ार हस्तलिखित और चित्रांकित पोथियां हैं। इनमें से अनेक पांडुलिपियां मनोहर महात्मा के सुलेख में हैं, जो मिर्ज़ा राजा के काल में हुए थे। "ख़ास संग्रह" में जो "रज़्मनामा" है, उसकी भूमिका तो अबुल फ़ज़ल की लिखी हुई है और चूंकि इस पर अकबर की मुहर है, इसलिए माना जाता है कि यह अकबर के निजी पुस्तकालय की पोथी है।

वेधशालाएं बनवाने वाले सवाई जयसिंह स्वयं खगोलविद् भी थे और यूरोप से इस विषय के ग्रंथ बुलवाकर पढ़ते थे। वे ग्रंथ अब पोथीख़ाने की धरोहर हैं। सवाई जयसिंह के गुरु रत्नाकर पुंडरीक का निजी संग्रह भी पोथीख़ाना में सुरक्षित है। अढ़ाई हज़ार पोथियों का यह संग्रह "पुंडरीक संग्रह" ही कहलाता है। सवाई रामसिंह तो इतने पढ़ाकू थे कि उनके निजी भवन का एक कमरा "किताबों की कोटड़ी" कहलाता है। माधोसिंह द्वितीय बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे, किंतु उनका पुस्तक-प्रेम प्रगाढ़ था। उनकी मृत्यु के बाद उनके कक्ष से जो पुस्तकें मिलीं, उस पर उन्होंने "कियामसिंह" नाम से दस्तख़त कर रखे थे। यह उनके बचपन का नाम था।

शेख़ सादी के "गुलिस्तां" का संस्कृत अनुवाद "पुष्प वाटिका", यूक्लिड की ज्यामिति पुस्तक का अनुवाद, अरबी भाषा की पुस्तक "मजिस्ती" का संस्कृत अनुवाद "सम्राट-सिद्धांत", "ज़ीच उलूगबेगी" का संस्कृत उल्था, "सोम सिद्धांत", "जातक संग्रह" आदि अगणित मूल्यवान पुस्तकें जयपुर के पोथीख़ाने में सुरक्षित हैं। महारानी गायत्री देवी का पुस्तक-अनुराग किसी से छुपा नहीं है। 1965 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो जयपुर स्टेट के अंतिम महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय को चिंता हुई कि कहीं बम हमले में "पोथीख़ाना" नष्ट ना हो जावै। तो वे पोथीख़ाने की अमूल्य पुस्तकें अपने निजी महल में ले आए। पुस्तकों से ऐसे प्रेम करने वाले शासक शायद ही भारतभूमि के किसी और राज्य में हुए होंगे।

"स्वर्णिम त्रिभुज" की पश्चिमी भुजा के रूप में जयपुर का नाम आज दुनिया के पर्यटन के नक़्शे पर चमचमा रहा है, किंतु यह नगर एक वरेण्य विद्यास्थली भी रहा है और उसका "पोथीख़ाना" विश्व-वांग्मय की एक अद्भुत धरोहर है, इस तथ्य को भी उतने ही सामर्थ्य के साथ संसार को बतलाना आवश्यक है। अस्तु!