बेटियों के नाम / सुनो बकुल / सुशोभित
सुशोभित
कवि अज्ञेय ने अपनी डायरियों के नाम उन्होंने इतने प्यार से रखे हैं, जैसे कोई बेटियों के नाम रखता है :
'अन्तरा' 'भवन्ती' 'शाश्वती' 'शेषा'
अगर मेरी चार बेटियाँ होतीं तो उनके नाम सोचने में कोई दुविधा नहीं होती! ये नाम ही रख देता!
तब 'अन्तरा' को घर पर लाड़ से क्या कहकर बुलाता? 'तरु'? यह कि, "ऐ तरु, वो ज़रा पापा के लिए चश्मा तो ले आना!"
तब भवन्ती को? और शाश्वती को? पता नहीं। किंतु शेषा तो घर पर भी शेषा ही कहलाती, यह नाम ही इतना सुश्रव्य- यही भालो नाम, यही डाक नाम!
चार और बेटियाँ होतीं, तब भी चिंता न थी, कवि अज्ञेय की दूसरी पुस्तकों के आधार पर उन्हें-
विपथगा पुष्करिणी रूपाम्बरा सागरमुद्रा
कहकर पुकार लेता!
बिटिया को 'विपथगा' कहने से क्या हर्ज़? माघ का मेघ भी तो विपथ होता है! 'सागरमुद्रा' भी तो परिधि लाँघती है। और रूपा ही कौन-सी सीमा में बंध सकेगी?
अकसर मित्रगण मुझसे निजी संदेशों में बच्चों के नाम सुझाने को कहते हैं। उन्हें कवि अज्ञेय की पुस्तकों के शीर्षक देख लेना चाहिए।
एक बेटा है! उसे समाहित कहकर पुकारा है। चार और बेटे होते तो उन्हें-
'तारसप्तक' 'संवत्सर' 'भग्नदूत' 'जयदोल'
कहकर पुकारता!
अज्ञेय-वांग्मय से लड़कों के लिए कुछ और नाम : 'शेखर', 'इंद्रधनु', 'प्रियदर्शी', 'यायावर', और लड़कियों के लिए 'करुणा', 'प्रभा', 'स्मृतिलेखा', 'वत्सला'।
इनसे भी सुंदर नाम चाहिए तो !