मछलियां / सुनो बकुल / सुशोभित
सुशोभित
मछलियाँ सम्मोहक होती हैं- आदिम और अजीब! मछलियाँ रहस्यपूर्ण होती हैं! हम मछलियों को बहुत कम करके आंकते हैं।
मनुष्य एक छोटी-सी बात नहीं समझ पाता कि जो मछलियां आंखें खुली रखकर सो सकती हैं, क्या वे आंखें खुली रखकर मर नहीं सकतीं? मैंने अनेक लोगों को देखा है, जो मछलियों को मारकर सीधे पका लेते हैं। भोजन की प्लेट में मुझे मछली की आंख दिखलाई देती है। मैं तो अर्जुन नहीं हूं, ना ही मेरे पास धनुष है। एक अदृश्य धनुष मछलियों की पसलियों में अवश्य सदैव खिंचा रहता है, मरने के बावजूद! आपको क्या लगता है, आप मछलियां खा सकते हैं? वास्तव में उलटे मछलियां हमें निगल जाती हैं। वे हमें ग्रस लेती हैं! हम सभी मछली के पेट में फंसे जोनाह हैं!
मनुष्य जाति का इतिहास मछलियों की किंवदंतियों से भरा हुआ है। लातीन अमरीका में तो मछलियों के रूपक के समांतर कुलगोत्र होते हैं। मत्स्यावतार से लेकर निन्ग्यो और मर्मेड से लेकर सी-मॉन्स्टर्स तक, हमारे स्वप्नों के समुद्र में मछलियां हमेशा छटपटाती रही हैं, अपना विकृत मुंह फाड़े हुए। विलियम फ़ॉकनर के नॉवल में वेर्डी को लगता है कि उसकी मरी हुई मां ताबूत में वैसे ही लेटी है, जैसे नदी में मछली होती है। उसको लगता है कि उसकी मां एक मछली है। वह मछली को मारकर खा जाता है। और एक मृत्यु उसकी धमनियों में गूंजने लगती है! मछली को मारकर खा जाना सबसे सरल है। किंतु अपने भीतर मौजूद उस मछली के द्वारा स्वयं को निगल लिए जाने से बचाना इतना सरल नहीं, बंधु!
जापान में वो लोग रॉ-फ़िश खा जाते हैं। कभी-कभी तो जीवित ही। वे मछलियों को निगल लेते हैं। उन्हें लगता होगा कि उनकी आंतें प्रशांत महासागर है। जबकि वो एक सीधी लीक में चलने वाली नहर भी नहीं। क्या उनको नहीं मालूम कि सातों समुद्र मछलियों के पेट में बज रहे हैं? जो मछुआरे किसी महामत्स्य की पूंछ के झटके से अपनी डोंगी उलटाकर मर जाने को तैयार हैं, वे ही मछलियों को मार सकते हैं। कांटे से फंसाकर मछली पकड़ने वालों की अंतश्चेतना को तो मछलियां राजा दुष्यंत की अंगूठी की तरह निगल जाती हैं।
इक्वेरियम में इंद्रधनुष रचती मछलियां आपको अगर निर्दोष मालूम होती हों तो जान लीजिए कि अपनी समस्त मासूमियत के साथ मछलियाँ अमर हैं! वे इस धरती पर आपके होने से पहले थीं और आपके मरने के बाद भी रहेंगी। दुनिया के बड़े हिस्से को मछलियों ने बांध रखा है! छटांकभर के माछ का जीना क्या और मरना क्या, ये कहने वाले पछुआ पवन की तरह हवा हो जाएंगे, और प्रलय के उपरान्त भी मछलियां मुंह फाड़े तैरती रहेंगी। रक्तबीज की तरह वे अमर हैं।
फ़ेल्लीनी और बेला तार के नायकों को मछलियों ने अपने सम्मोहन में ग्रस लिया था। मार्केज़ और हेमिंग्वे के नायक मछलियों से जान छुड़ाकर भागे थे। एक दिन मैंने एक जहाज़ पर मछलियों के शव का रेगिस्तान देखा। एक और दिन मुझे एक मछली की गर्दन पर काट का निशान दिखाई दिया, जिससे रक्त की एक लीक समुद्र में खिंच गई थी। मैं जानता था कि करुणार्त होने के बावजूद यह सब अंत नहीं था। क्योंकि मछलियों को मारना असम्भव है। मछलियां कभी एक नहीं होतीं, वे अगण्य होती हैं। समस्त समुद्रों की मछलियां सगोत्र हैं। सहस्र कुलों में विभक्त मनुज भला क्या खाकर उनसे जीत सकेगा। मछलियों की अदम्य गरिमा समुद्र से भी गहरा रहस्य है!
मुझे याद आता है, शायद पिछले किसी जन्म में, जाने कितने युगों पूर्व, मैं एक मत्स्य रहा होऊंगा, आंखें खोलकर सोता हुआ! मछेरे के जाल ने मुझे पकड़ लिया होगा, मेरे गलफड़ों में ख़ाली हवा भर गई होगी, और मरने से पहले जो अंतिम अनुभूति रही होगी, वह मेरे शल्कों पर बालू-बजरी की कनी की चुभन की रही होगी! इसके बावजूद जब मछेरे ने मेरा पेट चीरा होगा, तो उसमें से सेवार ही सेवार निकली होगी! इतनी सेवार, इतनी समुद्री घास, कि मछेरे का घर काई से भर गया होगा!
याद रखिएगा कि मछली की याददाश्त अथाह होती है। एक दिन जब हम सभी अपने अवचेतन के अतल में डूब जावैंगे तो हम सभी मछलियां बन जावैंगे। हमारी चेतना का पहला लोक हमेशा मत्स्यलोक होगा। उस दिन हमारे हाथ के तमाम कांटे हमसे छूट जाएंगे। और कंठ में कंटक की अनुभूति का संताप ही तब विश्व-बंधुत्व का प्राथमिक प्रयोजन होगा!