मालवगढ़ की मालविका / भाग - 29 / संतोष श्रीवास्तव

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अजय फूफासा ने सचमुच यूनिवर्सिटी में फोन करके मेरा हालचाल जाना... संध्या बुआ रूठी हुई हैं... मैं फोन करके मना लूँ उन्हें... उनका आदेश था। मैंने कहना चाहा कि यहाँ तो अभी मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि कहाँ क्या है? सब कुछ नया-नया है। पाँवों के नीचे की धरती तक अजनबी है पर बुआ समझें तब न! वे तो जब तक मेरी आवाज नहीं सुन लेंगी उन्हें यकीन ही नहीं होगा कि मैं रोम पहुँच गई हूँ। और यह जिद भी लिए बैठी हैं कि फोन मैं ही करूँ। तय हुआ कि मिहिर भी अपना काम जल्दी खत्म कर देगा ताकि हम इन कामों के लिए वक्त निकाल सकें। यूनिवर्सिटी तो मुझे इतनी पसंद आई थी कि वहाँ रह जाने का मन कर रहा था।

मिहिर और मैं जिस इलाके में रहते थे वहाँ अधिकतर विद्यार्थी ही रहते थे विभिन्न देशों से आए थे। मेरे पड़ोस में एक जापानी विद्यार्थी ठहरा था जो अपने फुरसत के समय गिटार बजाया करता था। वह भी रोम यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर था। वह जब भी मिलता अपने देश की यशोगाथा में डूब जाता। यहाँ से पढ़ाई समाप्त कर वह अपने देश लौटेगा और ओसाका यूनिवर्सिटी में अध्यापन करेगा। जब मिहिर, मैं और यह जापानी साथ होते तो वह अपने देश के गर्म पानी के सोतों, चीड़, देवदार के जंगलों और चक्करदार पहाड़ी सड़कों का जिक्र करता। मेरा देश भी तो गर्म पानी के सोतों और चीड़, देवदार के जंगलों वाला है। फिर हम कहाँ से अपरिचित हैं और क्यों और जब देश की सीमाएँ हर दूसरे देश से जुड़ी हैं तो रजनी बुआ की शादी विदेश में होने पर प्रताप भवन इतना उदास क्यों था? क्यों बड़ी दादी पीड़ा से सराबोर थीं?

समय गतिशील है। वह किसी का इंतजार नहीं करता। न समय, न सागर की लहरें। लेकिन लहरों का क्रम लगातार तट को छूकर वापस लौट जाने और फिर दुबारा आने का दस्तूर निभाता चलता है और समय दस्तूर नहीं निभाता। वह बीतता चलता है। रोम में आए पूरा एक बरस बीत गया। इस एक बरस में मिहिर ने मुझे रोम के चप्पे-चप्पे से परिचित करा दिया। यहाँ का सूर्यास्त... इटली के देहातों का भ्रमण, पहाड़ियों का प्राकृतिक दृश्य, ठंड, कोहरा, धुंध... एक-एक क्षण जी चुकी हूँ मैं। मैंने देखे हैं यहाँ के फुटपाथ जिन पर भिखारी मक्खियों-से भिनभिनाते हैं... ढाबे हैं, फैक्ट्रियाँ हैं... टाइबर नदी का किनारा जहाँ अक्सर आवारा कुत्ते भौंकते रहते हैं। पत्थरों के घर, मल्टी स्टोरीज बिल्डिंग... तंग गलियाँ। कभी-कभी ऊब जाती हूँ इनसे तब अपना मालवगढ़ बहुत याद आता है। आलिशान प्रताप भवन... चहुँओर बिखरी समृद्धि। मिहिर मेरे मूड्स समझ लेता है और मुझे जबरदस्ती घुमाने ले जाता है जंगलों की ओर। खुली फैली हरियाली। मीलों फैले अंगूर, संतरे और जैतून के बगीचे। तराई में इनके जंगल ही जंगल हैं। मैं यूनिवर्सिटी की टीम के साथ क्रेट आयरलैंड भी देख चुकी हैं। जहाँ ज्वालामुखी हैं और उनमें से हर समय लावा निकलता रहता है। लावे की खूबसूरत झालरें रात की रोशनी में बहुत खूबसूरत लगती हैं। बहुत आकर्षित करती हैं।

बचपन से ही मुझे नीरो बादशाह ने बहुत डिस्टर्ब किया है। उसकी निर्ममता और शैतानी प्रवृत्तियों ने मुझे ये सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर क्यों रोम ने इतना सहा? क्या सारी व्यवस्था गूँगी-बहरी हो रही थी? क्या किसी के कान पर जूँतक नहीं रेंग रही थी जब रोम जल रहा था और नीरो अपना गिटार बजा रहा था? यह सवाल रेंगता है मेरे मन में और मैं विचलित हो जाती हूँ। कोलोसियम पैलेस देखकर भी मैं तड़प उठी थी। उस विशाल पैलेस के झरोखे में बैठकर वह भूखे शेर के सामने असहाय आदमी की तड़प देखता था। इतना सैडिस्ट! ओह!

इस बार २५ दिसंबर को बेतहाशा बर्फ गिरी थी और उस बर्फ का लुत्फ उठाने हम पोप पॉल की सिटी वेटिकान गए थे। मिहिर ने बताया कि यहाँ पोप पॉल के नाम के सिक्के भी चलते हैं।

मैंने आश्चर्य से मिहिर को देखा था। भीड़ लाखों की तादाद में थी, बर्फबारी के बावजूद, क्योंकि पोप अपने पैलेस की गोल बाल्कनी से सबको दर्शन देते थे। धर्म में आस्था अमूमन पूरे विश्व में है।

हम पूरा पैलेस नहीं घूम पाए. पूरा पैलेस घूमने में सात दिन लगते हैं। पैलेस के अंदर बड़े-बड़े दीवार तक ऊँचे कालीनों में ईसा मसीह के जीवन की प्रत्येक घटना अक्स है।

लेकिन मैं ट्रिवोली फाउंटेन ज़रूर गई और पीठ के पीछे से सिक्का भी उछाला क्योंकि मिहिर ने कहा था कि इस फव्वारे के पानी में सिक्का डालने से आदमी दुबारा यहाँ आता है।

...हाँ, मैं दुबारा यहाँ आना चाहती हूँ... एकदम निश्चिंतता में... जब पढ़ाई का बोझ सिर पर न हो और जब मैं इस बात पर रिसर्च कर सकूँ कि नीरो ऐसा क्यों था? वैसे रोम की आबोहवा में निश्चिंतता तो मैंने महसूस की। लापरवाही और हर क्षण को भरपूर जी लेने की हर व्यक्ति में साध। मिहिर भी इतनी पढ़ाई के बावजूद कितना एन्जॉय करता है। बता रहा था कि एक बार उसने एक अंग्रेज लड़के के साथ खूब नाचा, गाने गाए और चुल्लू में बोतल से धार बनाकर वाइन पी. चिंतामुक्त लोग, चिंतामुक्त शहर जहाँ नीरो बादशाह गिटार बजाता था जिसे सुनने की मजबूरी में उसका वजीर एंटीनो बोर होता रहता था। शायद इसी निश्चिंतता में वह जलते हुए रोम को देखकर गिटार बजा रहा होगा लेकिन मेरी चिंताएँ समाप्त नहीं होतीं। घर से मिली खबरें मुझे तनाव से भर देती हैं। अम्मा के खतों में इतना विस्तृत हवाला होता है हर एक बात का कि लगता है सिनेमा की रील आँखों के आगे खुलती जा रही है। वीरेंद्र ने बनारस में अपना सिल्क उद्योग शुरू कर दिया है। और अम्मा-बाबूजी भी वहीं जाकर रहने लगे हैं। वीरेंद्र ने कालीन और बनारसी सिल्क की मिलें खरीदकर अच्छा-खासा अपना व्यापार शुरू कर दिया है। वह तीक्ष्ण बुद्धि का है और कपड़ों का व्यापार तो खानदानी है ही। शहर के बाहरी इलाके में बहुत बड़ा हरा-भरा प्लॉट खरीदकर एक विशाल बंगला बनवाया है उसने और फार्म हाउस की तरह तमाम फलों, सब्जियों के बगीचे। उसकी इच्छा तो गाय खरीदने की भी थी पर अम्मा ने मना कर दिया। यह सब अपने वश की बात नहीं... न कभी हमने मवेशी पाले हैं। घोड़े ज़रूर रखे पर अब तो कारों का जमाना आ गया है। नित नए मॉडल बदलते रहो कार के. जसोदा भी अम्मा के साथ ही बनारस आ गई है और पन्ना के बापू ने पन्ना की शादी कर दी है। कंचन के जिम्मे है बड़ी दादी की चाकरी। वह भी भुन्नाती रहती है। दादी की दासी होने के कारण जाहिर है कि वह दादी से स्नेह करती थी और उनके संग हुए अत्याचार के कारण बड़ी दादी से नफरत। बड़े बाबा अक्सर बनारस में ओझा तांत्रिकों की संगत में रहने लगे थे। वे वहाँ के जंगलों में रहने वाले भीलों से धनुष बाण चलाना सीख रहे थे। कभी-कभार किसी उड़ते परिंदे का शिकार कर लाते और जसोदा से बिनती करते कि इसे पका दे। जसोदा परहेज तो करती पर उनकी बात टाल भी नहीं पाती। उस रात वे बंगले के पिछवाड़े बने कमरे में, जो वीरेंद्र ने अपने व्यापारी मिलने-जुलने वालों के लिए बनवाया था चले जाते और बीड़ी पीते हुए गिलास में शराब डालकर अँधेरे में टकटकी बाँध लेते। इतनी समृद्धि, कोठी, जमीन, खेत, खलिहान, कपड़ों के कारखाने छोड़कर बड़े बाबा क्यों सधुक्कड़ी पथ पर अग्रसर हैं? क्यों बड़ी दादी को तनहा छोड़ दिया है? यह प्रश्न मुझे मथ डालता। लड़कियाँ कब तक अपनी घर-गृहस्थी छोड़कर उनकी सेवा टहल को आती रहेंगी? उषा बुआ जाती हैं तो संध्या बुआ आ जाती हैं... रजनी बुआ जल्दी-जल्दी नहीं आ पातीं। वैसे भी वे सिंगापुर में हैं। सातवाँ महीना चल रहा है उनका। तकलीफ ज़्यादा है। डॉक्टर ने बेड रेस्ट कहा है।