मैत्रेय की मूरत / सुनो बकुल / सुशोभित
सुशोभित
सुत्तपिटक के खुद्दकनिकाय में 27 परिच्छेदों की एक छोटी-सी पद्यात्मक पुस्तक है- बुद्धवंस।
इसमें थेरवाद परम्परा में मान्य सभी अठाइस बुद्धों का वर्णन है : दीपंकर बुद्ध से पूर्व के तीन बुद्धों सहित शाक्यमुनि बुद्ध तक।
इनमें मैत्रेय (अजित बोधिसत्व) भी वर्णित हैं, जिनका अवतरण अभी शेष है। उल्लेख है कि जब धरा पर धम्म विस्मृत हो जाएगा, तब मैत्रेय अवतरित होंगे।
विचित्र बात कि मैत्रेय अभी हुए नहीं, किंतु उनका विग्रह उपस्थित है। उनकी अनेकानेक प्रतिमाएँ रची जा चुकी हैं। इतना ही नहीं, अलग-अलग शिल्प शैली के मैत्रेय भी भिन्न-रूप हैं। यथा, गांधार शैली के मैत्रेय अपूर्व ओज से भरे हैं। मथुरा शैली के मैत्रेय करुणा की मूर्ति हैं। श्रीविजयन शैली के मैत्रेय अलंकृत हैं। पेरिस के गुइमेत म्यूज़ियम ऑफ़ एशियन आर्ट्स में विराजित मैत्रेय गहन मनन में डूबे हैं। और चीन के लिंगयिन मंदिर में बुडाई शैली के मैत्रेय वक्रतुंड हैं, शिष्यों के साथ आनंद से विराजित हैं।
कृष्णमूर्ति को मैत्रेय के रूप में प्रचारित किया गया था, जब वे महज़ चौदह बरस के थे। थियोसोफ़िकल सोसायटी द्वारा बाक़ायदा एक ऑर्डर ऑफ़ द स्टार नामक संस्था बनाकर मैत्रेय के अवतरण का प्रयोग किया गया था, जो विफल रहा। कृष्णमूर्ति ने इनकार कर दिया कि वे वर्ल्ड-टीचर नहीं हैं। अगर वे सच में ही मैत्रेय के रूप थे, तो यह उनकी गरिमा के अनुरूप ही था। कृष्णमूर्ति पूरा जीवन बुद्ध की शैली में उपदेश देते रहे कि अपने दीपक स्वयं बनो, किसी परम्परा को मत मानो, किसी को गुरु मत स्वीकारो, लोक-परलोक की नाहक़ बातें मत करो और बेकार के प्रश्न मत पूछो, बस अपनी चेतना को सघन, सचेत, सजीव बनाते चलो। मैं तो कहूँगा कृष्णमूर्ति ही मैत्रेय थे। इसके बावजूद यह मानना चाहूँगा कि मैत्रेय अभी फिर लौटकर आएँगे। मनुष्यता को उनकी आवश्यकता है।
हिमालय पर्वत दीखता है तो शिखर पर जाने की आकांक्षा भी उसके साथ ही जन्म लेती है। कोई शिखर न दीखे तो मनुष्यता अंधकार में ही सिमटी रह जावे।
बौद्धों के पास मैत्रेय हैं तो हिंदुओं के पास भी कल्कि हैं। विष्णु के अंतिम अवतार, जो कलियुग के अंतिम चरण में आएंगे। कहते हैं कि कल्कि ही मैत्रेय हैं, बस दो परम्पराओं की व्याख्या और वर्णन का भेद है।
मैत्रेय अभी तूसीत लोक में विराजे हैं। यह वही लोक है, जहाँ श्वेतकेतु बोधिसत्व विराजित थे और फिर वे तथागत बुद्ध के रूप में आज ही के दिन धरती पर जन्मे- यही कोई ढाई हज़ार साल पहले। मैत्रेय अभी नाथ बोधिसत्व के रूप में तूसीत में हैं।
उस लोक के जो नाथ हैं, इस लोक में मैत्रेय होंगे, कल्याणमित्र होंगे, विश्वबंधु के रूप में आएँगे। हम उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
किंतु यह विग्रहों और अवतारों के प्रति हमारे अनुराग का चरम है- या कहें कि आशान्वित होने का आग्रह- कि जो अभी हुआ नहीं, उसके भी बहुविध विग्रह और किंवदंतियाँ हमने रच दी हैं। आगत पहले ही अतीत हो चुका है।
गांधार शैली के मैत्रेय बोधिसत्व की प्रतिमा देखने लायक़ है। ऐसे मूँछों वाले बुद्ध आपने पहले नहीं देखे होंगे। निर्माणकाल? यही कोई दूसरी सदी।