राजहंस का जोड़ा / सुनो बकुल / सुशोभित
सुशोभित
एक राजहंस का जोड़ा था.
सरोवर में जहां जलउर्मियों का लहरिल सम्मोहन सबसे कोमल सबसे मृदुल था, वहां वे रहते. संध्या के आलोक में रतिकेलि करते.
हंस हंसिनी की ग्रीवा को अपने चंचुअों से सहलाता. स्नेह से पंख चुनता. फिर वे दोनों विपरीत दिशा में गरदन घुमाकर जादुई नृत्य करते- सिर जोड़कर बनाते हृदय का आकार.
हृदय उनके भीतर नहीं था, वे स्वयं एक आकुल हृदय बन गए थे.
तब एक दिन घटा अनिष्ट, शब्दकोश में जिसका पर्याय अवश्यम्भावी था.
एक अहेरी का अकारथ बाण विपद के वेग से आया और वेध गया हंसिनी का वक्षस्थल.
श्वेत धवल पांख पर रक्त का एक चित्र बन गया.
जलरंग में रक्त की एक रेखा खिंच गई.
हंसिनी की आँखें मुंद गईं, हंस की आँख में आँसू की एक बूंद चली आई.
सरोवर ने कहा, मैं तो खारे पानी की झील हूं, नमक से डरता नहीं, किंतु लवण की इस एक कनी से विकल हो जाऊंगा.
हंस ने निर्निमेष नेत्र से देखा. कहा कुछ नहीं.
इतने शोक को अपने भीतर रखना उसके लिए वैसे ही सम्भव नहीं था, जैसे जल के लिए सम्भव ना था अपने भीतर संजोना आकाश का बिम्ब.
तब कुछ भलेमानुष वहां से निकले. यह दृश्य देखा तो हंसिनी को अपने साथ लिवा ले गए. अनेक दिन उसकी सेवा सूश्रुषा की. घाव भरे तब एक दिन उसे लेकर चले उसी सरोवर की दिशा.
हंसिनी ने तीन कोस दूर से अनुभव कर ली जल की गंध.
उल्लास से गाने लगी राग हंसध्वनि में एक गीत, धड़कन की लय में, जबकि हंसध्वनि में निषिद्ध होता है "धैवत!"
हंस ने हंसिनी का गीत सुना तो त्याग दिया हंसगीत का आलाप. केकाध्वनि-सा वह करुण क्रंदन, जो मरण का पूर्वराग था.
उन भलेमानुषों ने हंसिनी को तट पर छोड़ दिया.
हंस ने दूर से देखा किंतु अपनी जगह से डिगा नहीं. उल्लास की एक पंक्ति की तरह जल में तैरती हंसिनी ही उसके पास जा पहुंची, अभी अभी भरे घाव भुलाकर.
दोनों मिले. एक दूसरे को निहारा. चंचु से चुम्बन किया. फिर ग्रीवा जोड़कर हृदय की आकृति का वही जादुई नृत्य, जिसका प्रतिबिम्ब जल में दुहरा गया!
मैं एक भटका बादल था.
माघ के मेघ सा वर्षा से विरत, किंतु आकाश पथ से यह देखकर रूई के गीले फाहे की तरह चू पड़ा.
मैं मेघदूत था मन्दाक्रान्ता में निबद्ध अपनी संगिनी से दूर.
और तब मैंने अपनी प्रिया को प्रस्तुत मानकर कहा-- तुम्हारे प्रणय की सौगंध, मैं भी प्रतीक्षा करूंगा सहस्र कल्प किंतु मरूंगा नहीं एकाकी.
कि मैं अपना हंसगीत अकेले ना गाऊंगा.
कि मेरे मरण का राग एक दोगाना होगा तुम्हारे साथ.
जैसे लौटकर आई थी हंसिनी, तुम्हें भी लौट आना होगा मेरे पास. मैं प्रतीक्षा का विग्रह बनूंगा तुम्हारे लिए.
और तुम्हारी ग्रीवा पर मेरे चुम्बनों की किल्लोल एक ऋण की तरह मुझ पर शेष है, यह भूलना नहीं, हंसा मेरी!