राधारमण / सुनो बकुल / सुशोभित
सुशोभित
वृंदावन में श्रीबांकेबिहारी के विग्रह के बारे में लोकश्रद्धा है कि ध्यान से देखें तो उसमें कभी श्रीराधा की छवि दिखती है तो कभी श्रीकृष्ण की. क्षणांश में ही उसमें राधाकृष्ण की छवियों का विनिमय होता रहता है!
"राधा माधव रंग रंगी" के उपोद्घात में इसीलिए आचार्य विद्यानिवास मिश्र ने कहा था कि जैसे भाव और और रस पृथक नहीं हो सकते, वैसे ही श्रीकृष्ण और राधारानी सम्पृक्त हैं!
इसीलिए तो "राधाकृष्ण" की युति हिंदू मिथकों में वर्णित सभी युगलों में सर्वाधिक काव्य-संपन्न है!
"राम-जानकी" के युगल में "अभिधा" है. वे सिंहासन पर विराजित हैं और राम दरबार सजा है. मर्यादा का मान रखती है "पुरुषोत्तम" की रूपछवि!
"अर्धनारीश्वर" के युगल में "लक्षणा" है. शिव और पार्वती एक हो गए हैं, लेकिन अपने-अपने पृथक स्वरूप को अभी उन्होंने त्यागा नहीं है. वास्तव में जैसे शंकर ने "अद्वैत" कहकर "द्वैत" को ही लक्ष्य किया था, वैसे ही "अर्धनारीश्वर" के विग्रह में एक स्पष्ट द्वैत परिलक्षित होता है!
इनसे कहीं उत्कट, कहीं प्रगल्भ, "राधाकृष्ण" का युगल है, जिसमें काव्य की सुदूरवर्ती "व्यंजना". इनकी प्रीति के तात्पर्यों को ठीक-ठीक तरह से उलीच सके, ऐसी तर्कणा नहीं मिलती. वे दोनों भावरूप में एक-दूसरे के पर्याय हैं.
"श्रीमद्भागवद्गीता" में श्रीकृष्ण ने स्वयं को "मार्गशीर्ष" मास कहकर पुकारा है. बताने वाले बताते हैं कि इसका कारण यह है कि "मार्गशीर्ष" का नक्षत्र "अनुराधा" है और वह राधारानी का रूप है!
"श्रीमद्भागवत" में कृष्ण की असंख्य गोपिकाओं के बीच जो अलक्षित है, "महाभारत" में कृष्ण की सहस्रों परिणीताओं के बीच जो अनुपस्थित है, वही तो राधा हैं, श्रीकृष्ण की प्राणसखी! और कृष्ण के नाम में केवल राधा का नाम जुड़ सका है. रुक्मिणी, सत्यभामा या कालिन्दी का नाम उनके नाम में नहीं जुड़ा है. वे "राधाकृष्ण" ही कहलाए हैं.
आचार्य विद्यानिवास मिश्र ने श्यामवर्ण श्रीकृष्ण की कल्पना एक विशाल अंधकार के रूप में की है. और राधा को उन्होंने वैसा "वसंत" कहा है, जिसमें श्रीकृष्ण की गंध निमग्न है!
मुझे नहीं लगता, "राधाकृष्ण" के युगल के बारे में इससे सुंदर कल्पना किसी और ने की हो! इसके सम्मुख "अर्धनारीश्वर" की "लक्षणा" निरी "अभिधा" लगने लगती है!