रेहन पर रग्घू / खंड 2 / भाग 6 / काशीनाथ सिंह

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इन्हीं दिनों रघुनाथ को एक इलहाम हुआ।

कि 'शरीफ' इंसान का मतलब है निरर्थक आदमी; भले आदमी का मतलब है 'कायर' आदमी। जब कोई आपको 'विद्वान' कहे तो उसका अर्थ 'मूर्ख' समझिए, और जब कोई 'सम्मानित' कहे तो 'दयनीय' समझिए।

उन्हें हर जगह यही कहा गया और उनका कोई काम नहीं किया गया! उन्हें हर जगह 'हट-हट' और 'दुर-दुर' किया गया। वे उस 'बकरी' या 'गाय' की तरह हैं जो सिर्फ 'में-में' या 'बाँ-बाँ कर सकती है, मार नहीं सकती! यही उनकी छवि है सबके आगे - मिमियाने घिघियानेवाले मास्टर की। यह उनकी छवि नहीं है - यही हैं वे।

वे इस छवि को तोड़ने की सोच ही रहे थे कि बब्बन सिंह ने वह अवसर दे दिया!

उस समय रघुनाथ अपने खलिहान में थे। वे मचिया पर बैठे थे और सामने सनेही अपने और उनके हिस्से का गेहूँ तौल रहा था। बगल से गुजरते हुए बब्बन खड़े हो गए! गाँव के सबसे बुजुर्ग और मानिंद। गाँव ही नहीं, पास पड़ोस में भी कहीं विवाद होता तो एक पंच के रूप में किसी न किसी पार्टी की ओर से वह भी होते! यह अलग बात है कि वे मामला सुलझाने के बजाय और उलझा कर आते! यह उन्हें अच्छा नहीं लगा था कि रघुनाथ जाने कहाँ-कहाँ दौड़े, उनके पास नहीं आए! रघुनाथ ने उन्हें देखा लेकिन कोई भाव नहीं दिया!

'मास्टर!' उन्होंने आवाज दी!

रघुनाथ पास गए और प्रणाम किया!

'जमीन तुम्हारी है, गाँव समाज या नरेश का उससे क्या लेना देना? दूसरा कोई कैसे कब्जा कर लेगा?'

'इतना तो मैं भी जानता हूँ!'

'जानते हो तो विधायक जी से क्यों नहीं मिलते?'

'किस विधायक से?'

'अरे वही, अपने कालेज के मैनेजर?'

माथा ठनका रघुनाथ का। इसका मतलब इस पूरे मामले के तार वहाँ से भी जुड़े हैं। संजय की शादी से! उसे उन्हें रिटायर करने और पेंशन रुकवाने से ही संतोष नहीं हुआ - और ये हैं घराने के सबसे बुजुर्ग और मानिंद जो नरेश को न समझा कर मुझे समझा रहे हैं? और समझा नहीं रहे हैं उसमें 'रस' ले रहे हैं! इसी समय रघुनाथ के दिमाग में एक 'खल' विचार आया!

'कक्का!' वे बब्बन का हाथ पकड़ कर थोड़ी दूर ले गए - 'आप से एक सलाह लेना चाहता था कई दिनों से! जब आप मिल ही गए हैं तो कहिए यहीं पूछ लूँ?'

'बोलो, बोलो!'

'मन तो नहीं बनाया है लेकिन कभी-कभी सोचता हूँ वह जमीन ही बेच दूँ!'

बब्बन उन्हें आश्चर्य से देखते रहे - 'तुम्हें पता है कितनी कीमती है वह जमीन? आबादी के अंदर की? कितने काम की? उसे बेचना सोना बेचने जैसा है! और बेचोगे क्यों?'

'सिरदर्द रखने से क्या फायदा?'

'यही तो चाहता है नरेश।'

'लेकिन उसे नहीं बेचना है। उसने जो किया है मेरे साथ, उसे कैसे भूल सकता हूँ?'

'तो फिर?'

'फिर क्या? अभी तो यही सोचा है कि उसे नहीं देना है, बाकी तो घर है, गाँव है, आप चाहेंगे तो आप भी हैं। देखा जाएगा, कोई जल्दी थोड़े है?'

बब्बन थोड़े गंभीर हुए - 'और उसके कब्जे का क्या करोगे?'

'कब्जे का क्या, खूँटा है। और कुछ नहीं तो जो उखाड़ कर फेंक देगा, उसे भी दे सकता हूँ। मैनेजर साहब भी तो खोलना चाहते हैं बच्चों के लिए अंग्रेजी स्कूल? इसी इलाके में कहीं? यहीं खोलें?'

'अरे, गाँव-घर के लोग मर गए हैं क्या कि बाहर के आदमी को दोगे?'

'नहीं, एक बात कह रहा हूँ! अभी कुछ तय थोड़े है!' रघुनाथ ने धीरे से कहा - 'मैं दान तो कर नहीं रहा हूँ किसी को? जब वाजिब और सही मिलेगा तभी न?'

'तुम तो गाँव में फौजदारी करा दोगे मास्टर!' चिंतित होते हुए बब्बन बोले!

'मैं क्या कराऊँगा? जब वे खुद ही करने पर उतारू हों तो कोई क्या कर सकता है?' रघुनाथ ने उनके कान के पास मुँह ले जा कर कहा - 'लेकिन ये बातें अपने तक रखने की हैं। दुनिया भर के लोग आते रहते हैं आपके पास! क्या फायदा कहने से? है न? तो चलें ...'

रघुनाथ खलिहान की ओर मुड़ गए। सनेही ने दूसरी बार पूछा था कि गेहूँ के गल्ले को बखार में आज ही रख दें या कल के लिए छोड़ें। शीला का कहना था कि अरहर और सरसों भी बँट जाएँ तो सभी बारी-बारी से रख दिए जाएँ। रघुनाथ ने निर्णय शीला पर छोड़ा और बरामदे में जा कर बैठ गए! शीला भी पीछे-पीछे आई - 'क्यों लसरिया रहे थे उनसे? सारी खुराफात की जड़ तो वही हैं।'

'तुम चुप रह कर तमाशा देखो! मैंने काफी मसाला दे दिया है उन्हें। अब कल से यहाँ बैठकी लगाना शुरू कर देंगे लोग!' रघुनाथ के चेहरे पर राहत और संतोष की चमक थी। शीला ने उखड़े मन से पूछा - 'तुम जमीन बेचने की बात कर रहे थे उनसे?' रघुनाथ हँसे - 'बात ही कर रहा था, बेच नहीं रहा था। बेचना भी नहीं है मुझे! मेरी अपनी कमार्ई चीज है भी नहीं कि बेचूँ! बाप दादा के पास और उनके पुरखों के पास भी कैसे आई होगी, वही जानते होंगे! लेकिन ये लोग न खुद चैन से रहेंगे, न कोई रहना चाहेगा तो रहने देंगे! ... अब यही देखो, मेरा अपना कसूर कहाँ है? संजय ने शादी की। वहाँ की, जहाँ चाहा, जहाँ उसे अपना हित दिखा, भविष्य दिखा! मुझे भी अच्छा नहीं लगा लेकिन उसकी अपनी पसंद और अपनी जिंदगी; हम क्या कर सकते थे? लेकिन उसकी सजा मैनेजर ने मुझे दी! फालतू में! मैंने भी कहा - ठीक है, गाँव पर रहेंगे - सुख और शांति से। न ऊधो का लेना, न माधो का देना! एक समय था कि खेत खलिहान के सिवा कुछ नहीं था यहाँ - न अखबार था, न बिजली थी, न फोन था, न टी.वी. थी। आज सब है और पैदावार भी इतनी है कि हम दो के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना है। रही बाकी जरूरतें तो आज नहीं, कल पेंशन मिलेगी ही, देर भले हो! फिर किस बात का गम? क्यों?'

रघुनाथ ने मुसकराते हुए शीला को देखा - 'और हर सुख दुःख में हमेशा साथ देनेवाली बीवी अभी जीवित है।' उन्होंने उसे खींचा और अपने पास बिठा लिया! वह शरमाते हुए उनके पास बैठी रही और वे उसे एकटक देखते रहे - 'शीला, इन सब चीजों के सहारे जिंदगी तो काटी जा सकती है, जी नहीं जा सकती!' सहसा उनकी आवाज भारी और उदास हो गई - 'शीला, हमारे तीन बच्चे हैं लेकिन पता नहीं क्यों, कभी-कभी मेरे भीतर ऐसी हूक उठती है जैसे लगता है - मेरी औरत बाँझ है और मैं निःसंतान पिता हूँ! माँ और पिता होने का सुख नहीं जाना हमने! हमने न बेटे की शादी देखी, न बेटी की! न बहू देखी, न होनेवाला दामाद देखा। हम ऐसे अभागे माँ-बाप हैं जिसे उनका बेटा अपने विवाह की सूचना देता है और बेटी धौंस देती है कि इजाजत नहीं दोगे तो न्यौता नहीं दूँगी। और अब तुम्हारी नजर टिकी है राजू पर - कि सारी साधें वही पूरा करेगा। निहाल कर देगा तुम्हें। ऐसा कोई भ्रम हो तो निकाल दो अपने दिमाग से। मुझे पता है कि वह इनसे भी आगे जा रहा है! उसने एक ऐसी विधवा लड़की ढूँढ़ निकाली है जिसके दो साल का बच्चा है। यही नहीं, वह कोई अच्छी खासी सर्विस भी कर रही है। उसी के पैसे से दिल्ली में ऐश कर रहा है। मोटरबाइक ले ही गया है मस्ती के लिए। बच्चा पालना और ऐश करना - दो ही काम है उसके। गए थे डोनेशन की रकम ले कर, आज तक पता नहीं चल सका कि ऐडमीशन लिया भी या नहीं।'

'तुम इतना सब जानते थे, कभी बताया क्यों नहीं?'

'क्या कर लेतीं तुम? क्या करता बता कर? शीला, मैं जानता हूँ उसे। पढ़ने में कभी दिलचस्पी नहीं रही उसकी! अपने बाप से किस तेवर में बातें करता है, इसे देखा है तुमने! वह 'शार्टकट' से बड़ा आदमी बनना चाहता है! उसके लिए बड़ा आदमी का मतलब है 'धनवान' आदमी। और वह भी बिना खून पसीना बहाए, बिना मेहनत के। वह महत्वाकांक्षी लड़का है लेकिन लालच को ही महत्वाकांक्षा समझता है! वह बहुत कुछ हासिल करना चाहता है - आनन-फानन में लेकिन बिना पढ़े-लिखे, बिना अच्छे नंबर लाए, डिवीजन लाए, बिना प्रतियोगिताएँ दिए, बिना खटे और नौकरी किए। मुझे नहीं पता, वह लड़की इसे कैसे मिली? कहाँ मिली? हो सकता है उसे भी किसी मर्द की तलाश रही हो। इतना पता जरूर है कि डेढ़ साल पहले किसी सड़क दुर्घटना में उसका पति मरा था! इस लड़की का अपना फ्लैट है, कार है, आफिस के काम से सिंगापुर, बैंकाक भी आती जाती रहती है और वह उसका बच्चा सँभालता है और घर अगोरता है। जैसे हम नहीं जानते, वैसे ही वह नहीं जानती कि इसके मन में क्या है, इसके इरादे क्या हैं?'

'तुम्हें इतना सब कैसे मालूम?'

'यह न पूछो। नोएडा में मेरे भी अपने आदमी हैं जो आते-जाते रहते हैं।'

शीला चिंतित हो उठी - 'सारे दुख इसी बुढ़ापे में देखने बदे थे क्या? एक बेटा परदेस में, पता नहीं, कब आएगा; दूसरा यहाँ लेकिन उसका भी वही हाल। बल्कि उससे भी खराब! और इधर बाप की अलग मुसीबत। गाँव छोड़ें तो जान बचे, नहीं मारे जाएँ। न कोई देखनेवाला, न सुननेवाला! जाने किस मनहूस की नजर लग गई है इस घर को?'

रघुनाथ को वहीं अकेला छोड़ कर वह चुपचाप अंदर गई और लेट गई!